यह भृगुसंहिता भृगु की बनाई हैं। या अन्य किसी की, इस विषय में भी विद्वानों में विवाद हैं। मनु भृगुसंहिता के कर्ता की स्वयं बनाई तो हो ही नहीं सकती। कौन थें ? इतना तो मनुस्मृति के पहले श्लोक से ही विदित हैं –
मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः।
प्रतिपूज्य यथा न्यायमिदं वचनमबु्रवन्।।
अथार्त् जब मनु महाराज एकान्त में बैठे हुए थे तो महर्षियों ने सत्कार-पूर्वक आकर उनसे उपदेश के लिये प्रार्थना की । यदि मनु स्वयं लिखने वाले होते तो इस प्रकार आरंभ न होता।
इस पर कहा जा सकता है कि अन्य स्मृतियों का भी तो आरंभ इसी प्रकार हुआ है। जैसे,
योगेश्वराज्ञवल्क्यं सपूज्य मुनयोऽब्रवन्।
वर्णाश्रमेतरणां नो बू्रहि धर्मानशेषतः।।
हुताग्निहोत्रमासीनमत्रि वेद विदां वरम्।
सर्वशास्त्रविधिज्ञं तमृषिभिश्च नमस्कृतम्।।
नमस्कृत्य च ते सर्व इदं वचनमब्रु वन्।
हितार्थं सर्वलोकानां भगवन् कथयस्व नः।
विष्णुमेकाग्रमासीनं श्रुतिस्मृतिविशारदम्।
पप्रच्छुर्मुनयः सर्वे कलापग्रामवासिनः।।
इष्ट्ठा क्रतुशतं राजा समाप्त वर दक्षिणम्।
भगवतं गुरूं श्रेष्ठं प्र्यपृच्छद् बृहस्पतिम्।।
हमारा विचार हैं कि याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों के नाम से जो स्मतियाॅ पीछे बनाई गईं वह मनुस्मृति का अनुकरण मात्र थीं। भारतीय साहित्य में एक ऐसा युग आ चुका हैं जब लोग अपनी बनाई हुई चीजों कों पूर्व आचार्यों और ऋषियों के नाम से प्रचलित कर देते थें जिससे सर्वसाधारण में उनका मान हो सकें। भारतवर्ष में जब बौद्ध, आदि अवैद्कि मतों का प्रचार हुआ और जब वेदों का पुनरूद्धार करने के लिये पौराणिक धर्म ने जोर पकडा तो ऐसी प्रवृति बहुत बढ गई। याज्ञवल्क्य स्मृति के बनाने वाले याज्ञवल्क्य कौन है यह कहना कठिन है। आरंभिक श्लोक से तो ऐसा प्रतीत होता हैं कि यह वही याज्ञवल्क्य है जिनका उल्लेख शतपथ ब्राहम्णादि ग्रन्थों में पाया जाता है। मनुस्मृति के अनुकरणार्थ ही उसका आरंभ उसी प्रकार के श्लोक से कर दिया गया। यही दशा अन्य स्मृतियों की है जो बडे बडे नामों से सम्बन्धित कर दी गई है। परन्तु मनुस्मृति के विषय में यह माना जा सकता है कि मनुमहाराज के उपदेशों को ही भृगु या अन्य किसी विद्वान् ने छन्दोबद्ध कर दिया हो । प्राचीन काल में उपदेष्टा मौखिक उपदेश दिया करते थे और पीछे से उनके अनुयायी सर्वसाधारण के लाभार्थ उन भावों को छन्दों का रूप दे देते थे। यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू (Aristotle) लिखता नहीं था। उसके उपदेश उसके शिष्यों ने लेखबद्ध किये। महात्मा बुद्ध के जो उपदेश धम्मपद में मिलते है वह बुद्ध के शब्द नहीं है। न बुद्ध श्लोक बनाकर उपदेश देते थे । यह तो बौद्ध शिष्यों ने पीछे से बना दिये। यदि यह सत्य है कि भगवद्गीता श्रीकृष्ण के उपदेश है तो उसके विषय में भी यही धारणा ठीक होगी कि व्यास अथवा किसी अन्य महाभारत के लेखक ने उन उपदेशों कों श्लोक-बद्ध कर दिया।