भगवा

swami dayanand saraswati 1

भगवा

हमारे भारतीय सन्यासियों के वस्त्र का रंग भगवा है|और भारत के सनातन वैदिक धर्म ध्वजा का रंग भी भगवा है पर प्रश्न है कि ये भगवा रंग कहाँ से लिया गया,  क्यूँ लिया गया,  इसकी क्या विशेषता है, इसके पिछे क्या प्रेरणा है , भारत के ऋषी मुनियों ने क्यूँ इसे चुना और ये किन बातों का प्रतीक है ?

ये भगवा रंग अग्नि से लिया गया है | अग्नि की तीन विशेषताएं हैं | वैसे तो अग्नि का गुण धर्म अर्थात स्वरुप उष्णता और प्रकाश है | पर इसमें विशेषता भी है वह बहुत खास है | १. विशेषता है अग्नि किसी भी पदार्थ के गुणों को कई गुना रूप से प्रगट करती है २.  जब इसमें कुछ जलाया जाता है तब ये दुर्गुणों को नष्ट करती है ३. ये जीवनदायिनी है सूर्य के रूप में | इसी अग्नि से ये रंग लिया गया है | जब अग्नि में शुद्ध पदार्थ हवन करते हुए डाले जाते हैं तब ये भगवा रंग प्रगट होता है | वैसे तो कचरा जला कर भी भी अग्नि प्रगट होती है पर उसका रंग भगवा नहीं होता और वह प्रदूषण भी फैलती है पर हवन करते जो अग्नि प्रगट होती है वह धुआं रहित और उसमे यह रंग निरंतर प्रगट होता है | अग्नि जिस पदार्थ को ग्रहण करती है वह कई गुना रूप में अंतरिक्ष में फ़ैला देती है अर्थात वह उसका त्याग करती है | अपने पास नहीं रखती | हवन करते हुए हम जिस पदार्थ को स्वाहा करते हैं अग्नि भी उस पदार्थ को स्वाहा कर देती है यही इसके तीसरे गुण का गहरा भाव है | यही इसका वैराग्य स्वाभाव है |

इधर ऋषीमुनी सन्यासी आदि ने भी यही तीन गुण होते हैं | अगर सन्यासी में ये तीन गुण न हों, तो वह कैसा सन्यासी ?

१. सन्यासी व्यक्तियों के दुर्गुणों को नष्ट करता है |

२. व्यक्तियों के सद्गुणों को प्रगट करता है |

३. दुःख भरे जीवन को नष्ट कर सुख रूप जीवन से दूसरों को भर देता है |

वह जो भी ग्रहण करता है वह उसका संग्रह न कर दूसरों को दे देता है, त्याग करता है। वह अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है | वह सुखों का ग्रहण कर्ता नहीं दाता है | ऐसे वैराग्य भाव को सन्यास कहते हैं | अग्नि का असर पदार्थों पर होता है और सन्यासी का असर व्यक्तियों पर अर्थात आत्माओं पर होता है | ऐसा सन्यासी अग्नि है | इसीलिए परमात्मा भी अग्नि है | अग्नि के इस रंग से ही सन्यासी के वस्त्र का रंग दिया गया है,” जो वैराग्य का प्रतीक है , त्याग का प्रतीक है और ज्ञान का प्रतीक है” |

ज्ञान अग्नि से भी अज्ञान भस्म होता है. अग्नि के और सन्यासी के इसी समानता के कारण ही सन्यासी के वस्त्र के लिए इस रंग को चुना गया है |

कभी किसी पूर्व प्रबल संस्कारों के कारण सन्यासी का विचार विचलित होने लगे राह से भटकने लगे तो यह भगवा रंग उसे जागृत कर उसे यह बताये कि यह तेरा धर्म नहीं है |

धर्म नाम है धारण करने का, धारण करने का प्रतीक है ध्वज इसीलिए ध्वज को भी वही रंग दिया गया। ध्वजा का निर्माण ही इसी लिए है कि वह जिस व्यक्ति की है, सम्प्रदाय की है,  देश की है धर्म की है उसके आतंरिक भाव को प्रगट करे | आतंरिक भावनाओं को हर किसी को समझाने की जरुरत नहीं पर यह धर्म ध्वज, गुण धारण ध्वज, यह कल्याण ध्वज, त्याग ध्वज, सुखकारक ध्वज सभी ध्वजों से ऊपर होता है | इस संसार में हजारों तरह के ध्वज हैं में नहीं जानता उनके अंतरंग भाव क्या हैं पर किसी व्यक्ति के विचार का, वैराग्य का धर्म का नीति का त्याग का भाव शायद ही ध्वज से प्रगट होता हो जो भगवा ध्वज से प्रगट होता है | आज भले ही इस भगवे की आड़ में ढोंगियों की भीड़ जमा हुई हो । पर ये भी सत्य है असल से ही नक़ल चलती है अन्यथा नकल का स्वतंत्र अस्तित्व ही कहाँ है ?

अग्नि से भगवा रंग तभी प्रगट होता है जब उसमें शुद्ध सामग्री डाली जाये ।  तभी उसमें धुंध रहित ज्वाला निकलेगी  अन्यथा कचरे से धुँआ भी बहुत निकलता है । ऐसे ही व्यक्ति के भीतर शुध्द विचारों से, कल्याणकारी विचारों से ही सन्यास प्रगट होता है। निरंतर त्याग भाव है तो वैराग्य है | वैराग्य है तो सन्यास है । जहाँ सन्यास वैराग्य है वह ह्रदय अग्नि है अर्थात भगवा है जहाँ धुँआँ नहीं ज्वालायें हें । वह तेजोमयी अग्नि भगवा है जहाँ सारे विषय भोग भस्म हो जाते हैं नष्ट हो जाते हैं अब ह्रदय “भगवा है ” | देना ही देना है |

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