क्या रंतिदेव के रसोई में गौ वध होता था ?

हमारे ब्लॉग पर ही एक अति जोशीले विपसना साधक लेकिन कम्युनिस्ट छाप पुस्तको को पढ़ अपने को अति ज्ञानी समझने वाले एक बन्धु ने राजा रन्तिदेव के र्स्सोई में गौ वध का उलेख किया | चुकि जिस पुस्तक से इन्होने चेपा है उसके खंडन में पहले ही ” अ रिव्यू ऑफ़ बीफ इन अकिएन्त इंडिया ” लिखी जा चुकी है जिसका उत्त्तर कम्यूनिस्टो पर नही है | इसके आलावा एक पुस्तक इन्ही के क्मुय्निष्ट छाप के द्वारा लिखी गयी जिसका उत्तर आर्य समाज की तरफ से रिप्लाई ऑफ़ dn झा के नाम से लिखी गयी है | अब हम उन्ही का पुन खंडन करते है |
इनके द्वारा दिया गया आरोप –
महाभारत में रंतिदेव नामक एक राजा का वर्णन मिलता है जो गोमांस परोसने के कारण यशस्वी बना. महाभारत, वन पर्व (अ. 208 अथवा अ.199) में आता है

राज्ञो महानसे पूर्व रन्तिदेवस्‍य वै द्विज
द्वे सहस्रे तु वध्‍येते पशूनामन्‍वहं तदा
अहन्‍यहनि वध्‍येते द्वे सहस्रे गवां तथा
समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्‍य नित्‍यशः
अतुला कीर्तिरभवन्‍नृप्‍स्‍य द्विजसत्तम
-महाभारत, वनपर्व 208 199/8-10

अर्थात राजा रंतिदेव की रसोई के लिए दो हजार पशु काटे जाते थे. प्रतिदिन दो हजार गौएं काटी जाती थीं मांस सहित अन्‍न का दान करने के कारण राजा रंतिदेव की अतुलनीय कीर्ति हुई. इस वर्णन को पढ कर कोई भी व्‍यक्ति समझ सकता है कि गोमांस दान करने से यदि राजा रंतिदेव की कीर्ति फैली तो इस का अर्थ है कि तब गोवध सराहनीय कार्य था, न कि आज की तरह निंदनीय

यहा पर इन्होने वध्यते शब्द देख गौ हत्या अर्थ लिया जबकि व्याकरण का प्रमाणिक ग्रन्थ से ही इस बात का खंडन होता है अष्टाध्यायी के अनुसार – ‘वध’ धातु स्वतन्त्र है ही नहीं जिसका अर्थ ‘मारना’ हो सके ,मरने के अर्थ में तो ‘हन्’ धातु का प्रयोग होता है |पाणिनि का सूत्र है “हनी वध लिङ् लिङु च “ इस सूत्र में  कर्तः हन् धातु को वध का आदेश होता है अर्थात वध स्वतन्त्र रूप से प्रयोग नही हो सकता है |अतः व्याकरण के आधार पर स्पस्ट है की की ये ‘वध्येते ‘ हिंसा वाले वध के रूप में नहीं हो सकते हैं | तब हंमे यह ढूढ़ना पड़ेगा की इस शब्द का क्या अर्थ है और निश्चय ही ये हत्या वाले ‘हिंसा’ नहीं अपितु बंधन वाले ‘ बध बन्धने’ धातु है |

अपितु यह दान के अर्थ में होगी |पाणिनि ने गौहन सम्प्रदाय के कहने से भी इसी बात की पुष्टि की है एक व्याकरण का समान्य बालक भी जनता है की सम्प्रदाय चतुर्थ विभक्ति दान के अर्थ में या के लिए में आती है | जबकि हिंसा आदि के लिए अपादान भी बोल सकते थे |

आगे इसी में समास शब्द आया है मांस से यहा प्राणी जनित मॉस नही बल्कि अन्न है ये आगे के प्रमाण में भी स्पष्ट करेंगे शतपथ ब्राह्मण ११/७/१/३ में आया है परम अन्न मॉस ” अब परम अन्न क्या है इस बारे में अमर कोष कहता है – परमान्ना तु पायसम अर्थात चावल की खीर परम अन्न है | तो यहा भी कोई मॉस नही है क्यूंकि व्यास ने काफी जटिल श्लोको में महाभारत की रचना की थी जिसके बारे में खुद कृष्ण इस तरह से कहते है –
“इसमें ८८८०  श्लोक हैं जिनका अर्थ मैं जनता हूँ , सूत जी जानते हैं और संजय जानते हैं या नहीं ये मैं नहीं जनता ..”| अब आप स्वयं ही सोचये की जिनके अर्थ को संजय जानते हाँ या नहीं इसमें संशय है वो क्या इतने सीधे होंगे की उनकी गूढता और प्रसंग का विचार किये बिना केवल शाब्दिक अर्थ (वो भी व्याकरण को छोड़कर) ले लिया जाय ?

इस तरह देखा महाभारत काफी गूढ़ ग्रन्थ है | अंब महाभारत की ही अन्तीय साक्षियों से राजा रन्तिदेव पर लगे आरोपों का खंडन करते है –
द्रौण पर्व के अनुसार नारद जी जब संजय के पुत्र के मर जाने पर शौक में बेठे संजय को समझाते है तो संजय को राजा रन्तिदेव के बारे में कहते है –
इसे गीताप्रेस से प्रकाशित महाभारत का पेज यहा लगा कर बताते है –dron parv 67

ये द्रौण पर्व ६७ से है यहा स्पष्ट लिखा है कि २ लाख रसोइये भोजन बनाते थे तथा रन्तिदेव ऋषियों आदि को स्वर्ण ओर गौओ का दान करते थे | श्लोक में ही अन्न शब्द है जिससे वहा मॉस का तो कोई काम ही नही नजर आता है | इस में एक आलम्भ शब्द से आप लोग मारना अर्थ करते है लेकिन आल्म्भ शब्द स्पर्श के लिए भी प्रयोग होता है | पारसार गृहसूत्र में २/२/१६ में उपनयन संस्कार में शिष्य को गुरु के ह्रदय को छूने पर ह्रदय आल्म्भं शब्द आया है वहा स्पर्श ही किया जाता है न की ह्रदय को काटा जाता है | मनु २/१७९ में पत्नी का आल्मभं शब्द से छूना आया है | इसी तरह गौतम धर्मसूत्र में अकारण इन्द्रियों का स्पर्श का निषेध आलम्भ शब्द से किया है -२/२२ || प्राप्ति अर्थ में भी आलम्भ का प्रयोग निरुक्त १/१४ में हुआ है | मह्रिषी काशकृत्सन ने अपने धातु पाठ में लभि धारणे (१/३६२) से धारण अर्थ में ही किया है | अत: यहा वध अर्थ क्यूँ लिया ये आप जाने | न ही प्रकरण ओर महाभारत के सिद्धांत अनुसार यहा वध शब्द लेना सही है |  क्यूंकि इसी महाभारत में गौ वध करने वालो को पापी कहा है जिसका प्रमाण भी गीताप्रेस की महाभारत से देते है | शान्ति पर्व २९ में आया है –shanti 29

यहा गौ वध करने वाले गौ ही नही बैल के वध करने वाले को पापी कहा है फिर राजा रन्तिदेव को गौ हथिया करने पर महान बताना विरोधी कथन है | ऐसे में आप स्वयम फस जाते हो की किस श्लोक को सत्य माने जबकि दोनों श्लोक सत्य है क्यूंकि रन्तिदेव हत्या नही दान करते थे जो द्रौण पर्व से हम सिद्ध कर चुके है | इसलिए उन्हें महान राजा कहा है | महाभारत में अंहिसा ही परम धर्म बताया है ये जगह जगह आया है | ओर दान को धर्म माना है जिनमे गौ दान ही बताया है | vanparav cheptar 200

उपरोक्त महाभारत का वनपर्व २०० का अध्याय गौ दान पर ही जोर डाल रहा है इससे स्पष्ट है कि महाभारत दान को ही मान्यता देता है हत्या को नही |
फिर आप कहते है
रंतिदेव का उल्‍लेख महाभारत में अन्‍यत्र भी आता है.

शांति पर्व, अध्‍याय 29, श्‍लोक 123 में आता है कि राजा रंतिदेव ने गौओं की जा खालें उतारीं, उन से रक्‍त चूचू कर एक महानदी बह निकली थी. वह नदी चर्मण्‍वती (चंचल) कहलाई.

महानदी चर्मराशेरूत्‍क्‍लेदात् संसृजे यतः
ततश्‍चर्मण्‍वतीत्‍येवं विख्‍याता सा महानदी

कुछ लो इस सीधे सादे श्‍लोक का अर्थ बदलने से भी बाज नहीं आते. वे इस का अर्थ यह कहते हैं कि चर्मण्‍वती नदी जीवित गौओं के चमडे पर दान के समय छिड़के गए पानी की बूंदों से बह निकली.

इस कपोलकप्ति अर्थ को शाद कोई स्‍वीकार कर ही लेता यदि कालिदास का ‘मेघदूत’ नामक प्रसिद्ध खंडकाव्‍य पास न होता. ‘मेघदूत’ में कालिदास ने एक जग लिखा है

व्‍यालंबेथाः सुरभितनयालम्‍भजां मानयिष्‍यन्
स्रोतोमूर्त्‍या भुवि परिणतां रंतिदेवस्‍य कीर्तिम

वास्तव में श्लोक तो आपने तोड़ मरोड़ के अर्थ किया है जबकि आपकी बुद्धि का क्या कहना महाभारत की बात पर कालिदास का काल्पनिक महाकाव्य भी ले आये लेकिन वो भी आपकी कल्पना मात्र है उसमे भी आप सफल नही है |
यहा गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित महाभारत से पेज दर्शाते है – shanti parv 29

 

यहा कही भी पुरे प्रकरण में गौ को मारना ओर श्लोक में रक्त ओर बूंद बूंद टपकना शब्द नही है मतलब आपने अपनी कल्पना से यह शब्द गढ़ लिए | ओर ध्यान देने वाली बात है की यदि रन्तिदेव २००० गाय प्रतिदिन मारता तो साल में होती ७२०००० गाय ओर इस तरह लगभग कुछ सालो में गायो का अस्तित्व ही मिट जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नही हुआ इसलिए गौ हत्या बताना कल्पना ही है |   इस पेज में आगे पढिये की रन्तिदेव के यज्ञ में पशु अपने आप आ जाते है | अब आप विपसना साधक सोच सकते है कि कोई पशु को मारता है तो क्या पशु उसके पास अपने आप जाते है या जो पशुओ से प्रेम करता है उसके पास अपने पास जाते है | शायद आपने गाय को देखा होगा यदि ग्रामीण जीवन का अनुभव किया होगा तो गाय को जो व्यक्ति रोटी देता है उसके पास अपने आप चली जाती है जबकि मारने वाले को या तो सींग दिखाती है या दूर भागती है क्यूंकि उससे भय होता है जबकि रन्तिदेव के पास अपने आप पशुओ का आना सिद्ध करता है कि रन्तिदेव से पशुओ में भय नही था बल्कि प्रेम था | क्यूंकि अवश्य ही यज्ञ से उन्हें भी अन्न आदि मिल जाता होगा | इसी पेज के लाइन किये हुए एक श्लोक में तो स्पष्ट लिखा है कि रन्तिदेव ब्राह्मणों से दाल भात कहने को कह रहे है मॉस नही | जिससे हमारे उपरी कथन को ही बल मिलता है कि रन्तिदेव की रसोइय में अन्न ही बनता था ओर अतिथि भी अन्न ही खाते थे मॉस नही |
चलिए अब आपके कालिदास वाले की समीक्षा करते है उस श्लोक में भी खून ,टपकना .बूंद बूंद शब्द नही है बल्कि जल से नहलाना ही है आपने पूरा श्लोक रखा ही नही –
आराध्य एनम शरवणभवत देवं उल्नग्धिताश्ना
सिद्ध द्वन्दे: जलकणभयात बीणिभि: मुक्तमार्ग: |
व्यालम्बेधा: सुरभिलनया आलाम्भजात आनयिष्यन
स्रोतोंमुर्त्या मूवि परिणाताम् रन्तिदेवस्य कीर्तिम || – पूर्व मेघ ४५
 यहा कालिदास ने भी जल से ही नदी मानी है जल कण आदि शब्द इसके वाचक है वेसे इस शलोक का भाष्य करते हुए माधव शास्त्री अपने ग्रन्थ ” काव्यसरा संग्रह “में लिखते है – ” सुरभि तनया – गाव: तान्सा आलम्भन प्रोक्ष्ण ततो जाता प्रसूता मूवि ,च स्रोतोंमृर्या प्रवाहरूपेण ,परिणता रूपान्तर गताम |- पेज न १८ “
अर्थात गायो को जल से नहलाने ओर धोलाने से जो पानी जमीन पर गिरता वो प्रवाह रूप में गतिमान हो गया |
इससे स्पष्ट है कि वादी ने ही अर्थ तोड़ मरोड़ कर किया है जबकि कालिदास ,ओर उसके टीकाकार भी जल से ही नदी मानते है | कोई मुर्ख ही होगा जो खून से नदी बनना मान ले | ओर ये कथन नदी बनना भी अलंकारित प्रयोग है क्यूंकि नदी तो नहलाने से भी नही बनती हाँ इतना जल अवश्य इक्ठटा हो जाता होगा कि उसे नदी से सम्बोधित करना पड़ता होगा |
रन्तिदेव का प्रकरण यज्ञ सम्बन्धित है ओर यज्ञ में पशु हत्या को धूर्तो की मिलावट बताया गया है महाभारत ही इसे धूर्तो की मिलावट बताती है तो रन्तिदेव के यज्ञ में पशु बद्ध मानना महाभारत के विरुद्ध है जिसकी संगीति नही बैठती | वादी के आक्षेप का सारा खंडन यह श्लोक ही कर देता है – शान्ति पर्व २६५ / ९ ” यज्ञ में जीव हत्या आदि धूर्तो के कार्य .मिलावट है वेद में तो अंहिसा विहित यज्ञ कर्म ही है |”
यज्ञ में पशु को छुआ जाता था मारा नही पशु मारने का निषेध पुराण जेसे ग्रन्थ भी करते है –
” पशुआलम्भं  न हिंसा ”  (भागवत ११.५.१३ ) अर्थात यज्ञ में पशु का स्पर्श होता है हिंसा नही |
यहा तक वादी के रन्तिदेव पर लगाये आरोपों का खंडन हमने कर दिया है ओर निष्कर्ष निकलता है की राजा रन्तिदेव दान करते थे हत्या नही |
महाभारत गौ को अवध्य मानती है ओर हत्यारे को पापी इसके अतिरिक्त अन्य श्लोक इसके विपरीत दीखते है वो क्षेपक ही है महाभारत में क्षेपक पर हम कभी किसी दिन प्रमाणित पोस्ट करेंगे |
महाभारत के शब्दों में धर्म क्या है लिख लेख की समाप्ति करते है – ” न भूतानाहिंसाया ज्यायान धर्मोsस्ति “(शान्ति पर्व २५२ /३० ) ” किसी की हिंसा न करना ही सबसे उत्तम धर्म है |
संधर्भित ग्रन्थ अथवा पुस्तके – 
(१) review of beef in acient india – unkonwn 
(2) महाभारत (गीताप्रेस )- अनुवादक पंडित राम नारायणदत्त शास्त्री 
(३) काव्यसरा संग्रह – माधव शास्त्री 

 

 

 

13 thoughts on “क्या रंतिदेव के रसोई में गौ वध होता था ?”

  1. विषय वस्तु सारगर्भित है और विचारपूर्वक चिन्तन , मनन करके प्रयोगात्मक स्वरूप् दिया जाना आवश्यक है ।।

      1. ved hinsa ki bat naheen karta
        ved ka pratham mantra hee kahta hai ki “pashuon ki raksha karo”
        पशून पाहि

    1. ved hinsa ki bat naheen karta
      ved ka pratham mantra hee kahta hai ki “pashuon ki raksha karo”
      पशून पाहि

    1. ved hinsa ki bat naheen karta
      ved ka pratham mantra hee kahta hai ki “pashuon ki raksha karo”
      पशून पाहि

      1. rishwa jee apne mantra pada kya nahi??
        sir aapki hi website se lia gaya hai aur pashu vadh kahan se aaya ?? main to bas itna puch raha haun ki vadh dhatu svatantara nahi hai iska kya matlab hai ??

            1. arya samaj kaa mandir me jaaye… aapko vidwaan mil jaayenge…. yah koi jaruri nahi ki ham aapke shanka ki samadhaan kaa khoj karne ke liye hi samay bitaye….hame aur bhi kai kaam hote hain…..kripya koi vedik vidwan se sampark kare… haa yadi mantra ke arth ko naa samjh sake to bataye uskaa jaankaari de sakta hu… vyakarn sambandhi aap waha ke vedik vidwaan se jaankaari lein

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *