बड़ों की सेवा के प्रेरक प्रसंगः-
एक जन्मजात दुःखिया के दुष्प्रचार के प्रतिवाद के लिए हमने पूज्य विद्वान् महात्माओं की आर्यों द्वारा सेवा के कई दृष्टान्त देकर लिखा था कि आर्य समाज ने महात्मा आनन्द स्वामी जी आदि को अन्तिम वेला में फेंक दिया, ये सब घृणित व मिथ्या प्रचार हैं। ऐसे प्रचारकों ने आप तो जीवन भर कभी किसी की सेवा की नहीं, सस्ते उपदेश देते हैं।
महात्मा आनन्द भिक्षु जी के पुत्र जैमिनि जी ने भक्तों से घिरे अपने पिताजी को अन्तिम दिनों में सेवा का अवसर देने का अनुरोध किया। मेरे सामने महात्मा जी पर दबाव बनाया। सेवा उनकी हो ही रही थी। मैंने ऐसे किसी व्यक्ति को पूज्य मीमांसक जी और आचार्य उदयवीर जी के अन्तिम दिनों में उनके पास फटकते नहीं देखा था। कुछ लोग पं. युधिष्ठिर जी मीमांसक से श्री धर्मवीर जी, विरजानन्द जी आदि विद्वानों के मतभेद को उछालते रहे। मीमांसक जी ने अपनी अमूल्य बौद्धिक सपदा तो धर्मवीर जी को ही सौंपी। क्यों? मीमांसक जी के निधन पर केवल परोपकारिणी सभा से जुड़े विद्वान् ही रेवली पहुँचे। और सभायें भी पहुँचती तो अच्छा होता। मान्य विरजानन्द जी, श्रीमती ज्योत्स्ना ने पहुँचकर आर्य समाज की शोभा बढ़ाई। आचार्य सत्यानन्द जी वेदवागीश तथा यह सेवक भी वहाँ था। पहलेाी पता करने कई बार गये। पूज्यों को छोड़ने व फेंकने का प्रचार कोरी शरारत है।