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अम्बेडकर की वेदों के विषय में भ्रान्ति

मित्रो अम्बेडकर और उनके अनुयायी वेदों के कुप्रचार में लगे रहते है ,,ये लोग पुर्वग्रस्त हो कर वेदों के वास्तविक स्वरुप को पहचान ने का प्रयास न कर उसके कुप्रचार और आक्षेप लगाते रहते है …
अम्बेडकर जी की पुस्तक riddle in hinduism में वेदों पर लगाये गए आरोप का खंडन पिछली इस पोस्ट पर हमारे इस ब्लॉग पर किया गया था..http://nastikwadkhandan.blogspot.in/
अब यहाँ अम्बेडकर की बुद्ध और उनका धम्म नामक पुस्तक में वेदों पर लगाये आक्षेप या अम्बेडकर के वेदों के बारे में फैलाये गये भ्रम का खंडन किया जा रहा है :-
सबसे पहले वेदों के विषय में अम्बेडकर ने किया लिखा वो देखे :-

अम्बेडकर जी वेदों को ईश्वरीय नही मानते है बल्कि ऋषि कृत मानते है उनकी इस बात का जवाब पिछली पोस्ट में दिया जा चूका है ..लेकिन यहाँ भी थोडा सा दे देते है :-“ऋषियों मन्त्रद्रष्टारः।ऋषिदर्शनात् स्तोमन् ददर्शेत्यौपन्यवः।तद् यदेना स्तपस्यस्यमानान् ब्रह्म स्वयम्भवभ्यानर्षत् तदृषीणाम् ऋषित्वमिति विज्ञायते।-निरुक्त २.११.
ऋषि वेदमंत्रो के अर्थद्रष्टा होते है,ओप्मन्व्य आचार्य ने भी कहा है कि वेदों में प्रयुक्त स्तुति इत्यादि विषयक मंत्रो के वास्तविक अर्थ का साक्षात्कार करने वालो को ऋषि के नाम से प्रकाश जाता है ,,तपस्या व ध्यान करते हुए जो इनको स्वयंभु नित्य वेद के अर्थ का भान हुआ इसलिए ऋषि कहलाय …
अत:यहाँ स्पष्ट कहा है ऋषि मन्त्र कर्ता नही बल्कि अर्थ द्रष्टा थे …
कुछ नास्तिक वेदों में प्रजापति,भरद्वाज,विश्वामित्र,आदि नाम दिखा कर इन्हें ऋषि बताते है और इन्हें मन्त्र कर्ता ,,लेकिन वास्तव में ये किसी व्यक्ति विशेष के नाम नही है ,,बल्कि योगिक शब्द है जिनके वास्तविक अर्थ शतपत आदि ब्राह्मण ग्रंथो में उद्र्रत किये है..इन्ही नामो के  आदार पर ऋषियों ने अपने उपाधि स्वरुप नाम रखे ..जैसे भरद्वाज नाम वेदों के भारद्वाज नाम से रखा गया ..फिर उनके पुत्र ने भारद्वाज नाम रखा…
शतपत में भारद्वाज ,वशिष्ट आदि नामो के अर्थ :-
” प्राणों वै वशिष्ट ऋषि (शतपत ८ /१/१/६ )”
वशिष्ट का अर्थ प्राण है ,,
“मनो वै भारद्वाज ऋषि” (शतपत ८/१/१/९ )
भारद्वाज का अर्थ मन है ,,
“श्रोत्रं वै विश्वामित्र ऋषि: “(शतपत ८/१/२/६)
विश्वामित्र का अर्थ कान है ..
“चक्षुर्वे जमदाग्नि:” (शतपत १३/२/२/४)
जमदाग्नि का अर्थ चक्षु है ..
“प्राणों वै अंगीरा:”(शतपत ६/२/२/८ )
अंगिरा का अर्थ प्राण है ..
“वाक् वै विश्वामित्र ऋषि: ” (शतपत ८/१/२/९)
विश्वामित्र का अर्थ वाणी है ..
अत: दिय गये नाम ऋषियों के नही है …
अम्बेडकर लिखते है कि मन्त्र देवताओ की प्राथना के अतिरिक्त कुछ नही है ।
अम्बेडकर जी को वैदिक दर्शन का शून्य ज्ञान था ,,वेदों में अग्नि सोम आदि नामो द्वारा ईश्वर की उपासना ओर देवताओ के द्वारा विज्ञानं और प्रक्रति के रहस्य उजागर किये है ..
अम्बेडकर देवताओ को कोई व्यक्ति समझ बेठे है शायद जबकि देवता प्राक्रतिक उर्जाये ओर प्राक्रतिक जड़ वस्तु विशेष है ..
मनु स्म्रति के एक श्लोक से अग्नि,इंद्र आदि नामो से परमात्मा का ग्रहण होता है :-
“प्रशासितारं सर्वेषामणीयांसमणोरपि ।
रुक्भाम स्वपनधीगम्य विद्यात्तं पुरुषम् परम् ।।
एतमग्नि वदन्त्येके मनुमन्ये प्रजापतिम् ।
इन्द्र्मेके परे प्राणमपरे ब्रहम शाश्वतम् ।।(मनु॰ १२/१२२,१२३ )
स्वप्रकाश होने से अग्नि ,विज्ञानं स्वरूप होने से मनु ,सब का पालन करने से प्रजापति,और परम ऐश्वर्यवान होने से इंद्र ,सब का जीवनमूल होने से प्राण और निरंतर व्यापक होने से परमात्मा का नाम ब्रह्मा है ..
अत स्पष्ट है कि इंद्र,प्रजापति नामो से ईश्वर की उपासना की है ..
वेदों में वैज्ञानिक रहस्य के बारे में जान्ने के लिए निम्न लिंक देखे :-http://www.vaidicscience.com/video.html
अम्बेडकर जी का कहना है कि वेदों में दर्शन नही है ,,लगता है कि उन्होंने वेदों के अंग्रेजी भाष्य को ही प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत किया जबकि वेदों में अनेक मंत्रो में जीवन ,ईश्वर ,अंहिसा ,योग,आयुर्वेद ,विज्ञान द्वारा हर सत्य विद्याओ का दार्शनिक व्याख्या की है जिसके बारे में आगे के लेखो में स्पष्ट किया जाएगा ..
इसके अलावा वेदों में राष्ट्र ,गुरु ,अतिथि आदि के प्रति सम्मान करने का भी उपदेश है ..
बाकि पुत्र ,पुत्री ,पत्नी ,माँ ,पिता ,शिक्षक .विद्यारथी आदि के कर्तव्यो का भी उलेख है …
इससे पता चलता है कि अम्बेडकर जी ने वेदों को दुर्भावना और कुंठित मानसिकता के तहत देखा था ,,,
अम्बेडकर जी वेदों पर आरोप करते है कि इसमें देवताओ को शराब और मॉस भेट का उलेख है ,,इससे लगता है कि अम्बेडकर जी maxmuller के भाष्य के कारण सत्य  न जान सके और अन्धकार में ही भटकते रहे ..
वेदों में सोम नाम से एक लेख हमने इसी ब्लॉग पर डाल उनकी इस बात का खंडन किया था ..अब मासाहार वाली बात को देखे तो अम्बेडकर जी ने यहाँ कोई संधर्भ नही दिया नही तो उन बातो का खंडन प्रस्तुत किया जाता ..लेकिन वेदों में अंहिंसा के उपदेशो का कुछ उलेख यहाँ किया जा रहा है :-
“कृत्यामपसुव “(यजु॰ ३५ /११)”
हिंसा को तू छोड़ दे ..
“मा हिंसी: पुरुष जगत”(यजु॰ १६ /३)”
तू मानव और मानव के अतिरिक्त अन्य की हिंसा न कर ..
मा हिंसी: तन्वा प्रजाः (यजु॰ १२ /३२ )
है मनुष्य तू देह से किसी प्राणी की हिंसा न कर ..
अत स्पष्ट है कि वेदों में अंहिसा का उपदेश है तो ऐसे में मॉस भेट जो हिंसा बिना प्राप्त नही हो सकती है का सवाल ही नही उठता है ..यदि यज्ञ में हिंसा मानते है तो उस पर अलग से पोस्ट के द्वारा स्पष्ट कर दिया जाएगा ..
अम्बेडकर अपनी इसी पुस्तक में कहते है कि वेदों में मानवता का उपदेश नही है इसी कारण बुद्ध ने वेदों को मान्यता नही दी थी ।
लेकिन यहाँ भी अम्बेडकर की अज्ञानता ही है वेदों में कई जगह मानवता का उपदेश है ,,देखिये वेदों का ही यही वाक्य है “आर्य बनो ” और मनुर्भव मतलब मनुष्य बनो “..अर्थात वेद मनुष्य को श्रेष्ट बनने का उपदेश देता है ।
“जन विभ्रति बहुधा विवाचसं नाना धर्माणं प्रथिवी यथोकसम् ।
सहस्त्रं धारा द्रविणस्य में दुधं ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरंती ।।(अर्थव॰ १२/१/८४)”
विशेष वचन सामर्थ वाले ,अनेक प्रकार के कर्तव्य करने वाले व्यक्तियों को मिल जुल कर रहना चाहिए ।तब प्रथ्वी सभी को धन धान से पूरित करती है ।अर्थात मिलजुल कर रहने पर ही प्रथ्वी पर धन धान सुख का उचित दोहन कर सकते है ..जैसे की गाये से दुध का ..
अत स्पष्ट है कि वेद मानवता का ही उपदेश देते है ..
अब अम्बेडकर जी के अनुसार बुद्ध ने वेदों को अमान्य माना तो लगता है कि अम्बेडकर जी ने ठंग से बौद्ध साहित्य भी नही पढ़े थे ..
इसके बारे में भी आगे पोस्ट की जायेगी ..
देखिये सुतनिपात में बुद्ध ने क्या कहा है :-
“विद्वा च वेदेही समेच्च धम्मम् ।
न उच्चावचम् गच्छति भूरिपञ्चो ।।(सुतनिपात २९२ )”
जो विद्वान वेदों से धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है ,वह कभी विचलित नही होता है ।
उपरोक्त सभी प्रमाणों से स्पष्ट है की अम्बेडकर जी वेदों पर अनर्गल और कुंठित ,दुर्भावना ,आक्रोशित मानसिकता के कारण आरोप करते थे ..शायद वे ऐसा जानबूझ कर करते थे ..

अम्बेडकर के वेदों पर आक्षेप

भीम राव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “सनातन धर्म में पहेलियाँ” (Riddles In Hinduism) में वेदों पर अनर्गल आरोप लगाये हैं और अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है। अब चुंकि भीम राव को न तो वैदिक संस्कृत का ज्ञान था और न ही उन्होनें कभी आर्ष ग्रंथों का स्वाध्याय किया था, इसलिये उनके द्वारा लगाये गये अक्षेपों से हम अचंभित नहीं हैं। अम्बेडकर की ब्राह्मण विरोधी विचारधारा उनकी पुस्तक में साफ झलकती है।
इसी विचारधारा का स्मरण करते हुए उन्होनें भारतवर्ष में फैली हर कुरीति का कारण भी ब्राह्मणों को बताया है और वेदों को भी उन्हीं की रचना बताया है। अब इसको अज्ञानता न कहें तो और क्या कहें? अब देखते हैं अम्बेडकर द्वारा लगाये अक्षेप और वे कितने सत्य हैं।
अम्बेडकर के अनुसार वेद ईश्वरीय वाणी नहीं हैं अपितु इंसाने मुख्यतः ब्राह्मणों द्वारा रचित हैं। इसके समर्थन में उन्होनें तथाकथित विदेशी विद्वानों के तर्क अपनी पुस्तक में दिए हैं और वेदों पर भाष्य भी इन्हीं तथाकथित विद्वानों का प्रयोग किया है। मुख्यतः मैक्स मुलर का वेद भाष्य।
उनके इन प्रमाणों में सत्यता का अंश भर भी नहीं है। मैक्स मुलर, जिसका भाष्य अपनी पुस्तक में अम्बेडकर प्रयोग किया है, वही मैक्स मुलर वैदिक संस्कृत का कोई विद्वान नहीं था। उसने वेदों का भाष्य केवल संस्कृत-अंग्रेजी के शब्दकोश की सहायता से किया था। अब चुंकि उसने न तो निरुक्त, न ही निघण्टु और न ही अष्टाध्यायी का अध्यन किया था, उसके वेद भाष्य में अनर्गल और अश्लील बातें भरी पड़ी हैं। संस्कृत के शून्य ज्ञान के कारण ही उसके वेद भाष्य जला देने योग्य हैं।
अब बात आती है कि वेद आखिर किसने लिखे? उत्तर – ईश्वर ने वेदों का ज्ञान चार ऋषियों के ह्रदय में उतारा। वे चार ऋषि थे – अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा। वेदों की भाषा शैली अलंकारित है और किसी भी मनुष्य का इस प्रकार की भाषा शैली प्रयोग कर मंत्र उत्पन्न करना कदापि सम्भव नहीं है। इसी कारण वेद ईश्वरीय वाणी हैं।
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः | ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्य्याय च | स्वाय चारणाय च प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृध्यतामुपमादो नमतु|| (यजुर्वेद 26.2)
परमात्मा सब मनुष्यों के प्रति इस उपदेश को करता है कि यह चारों वेदरूप कल्याणकारिणी वाणी सब मनुष्यों के हित के लिये मैनें उपदेश की है, इस में किसी को अनधिकार नहीं है, जैसे मैं पक्षपात को छोड़ के सब मनुष्यों में वर्त्तमान हुआ पियारा हूँ, वैसे आप भी होओ | ऐसे करने से तुम्हारे सब काम सिद्ध होगें ||
डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक में दर्शन ग्रंथों से भी प्रमाण दिये हैं जिसमें उन्होनें वेदों में आंतरिक विरोधाभास की बात कही है। अम्बेडकर के अनुसार महर्षि गौतम कृत न्याय दर्शन के 57 वे सुत्र में वेदों में आंतरिक विरोधाभास और बली का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार महर्षि जैमिनी कृत मिमांसा दर्शन के पहले अध्याय के सुत्र 28 और 32 में वेदों में जीवित मनुष्य का उल्लेख किया गया है। ऐसा अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक में वर्णन किया है परंतु ये प्रमाण कितने सत्य हैं आइये देखते हैं।
पहले हम न्याय दर्शन के सुत्र को देखते हैं। महर्षि गौतम उसमें लिखते हैं:
तदप्रामाण्यमनृतव्याघातपुनरुक्तदोषेभ्यः |58|
(पूर्वपक्ष) मिथ्यात्व, व्याघात और पुनरुक्तिदोष के कारण वेदरूप शब्द प्रमाण नहीं है।
न कर्मकर्त साधनवैगुण्यात् |59|
(उत्तर) वेदों में पूर्व पक्षी द्वारा कथित अनृत दोष नहीं है क्योंकि कर्म, कर्ता तथा साधन में अपूर्णता होने से वहाँ फलादर्शन है।
अभ्युपेत्य कालभेदे दोषवचनात् |60|
स्वीकार करके पुनः विधिविरुद्ध हवन करने वाले को उक्त दोष कहने से व्याघात दोष भी नहीं है।
अनुवादोपपत्तेश्च |61|
सार्थक आवृत्तिरूप अनुवाद होने से वेद में पुनरुक्ति दोष भी नहीं है।
अतः इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि वेदों में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है और अम्बेडकर के न्याय दर्शन पर अक्षेप पूर्णतः असत्य हैं।
अब मिमांसा दर्शन के सुत्र देखते हैं जिन पर अम्बेडकर ने अक्षेप लगाया है:
अविरुद्धं परम् |28|
शुभ कर्मों के अनुष्ठान से सुख और अशुभ कर्मों के करने से दुःख होता है।
ऊहः |29|
तर्क से यह भी सिद्ध होता है कि वेदों का पठन पाठन अर्थ सहित होना चाहिये।
अपि वा कर्तृसामान्यात् प्रमाणानुमानं स्यात् |30|
इतरा के पुत्र महिदास आदि के रचे हुए ब्राह्मण ग्रंथ वेदानुकुल होने से प्रमाणिक हो सकते हैं।
हेतुदर्शनाच्च |31|
ऋषि प्रणीत और वेदों की व्याख्या होने के कारण ब्राह्मण ग्रंथ परतः प्रमाण हैं।
अपि वा कारणाग्रहणे प्रयुक्तानि प्रतीयेरन् |32|
यदि ब्राह्मण ग्रंथ स्वतः प्रमाण होते तो वेदरूप कारण के बिना वे बिना वेद स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त प्रतीत होने चाहिये थे, परंतु ऐसा नहीं है।
अतः इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि वेदों में कहीं भी किसी जीवित मनुष्य का उल्लेख नहीं किया गया है। अतः यह अक्षेप भी अम्बेडकर का असत्य साबित होता है।
प्रिय पाठकों, अम्बेडकर ने न तो कभी आर्ष ग्रंथ पढ़े थे और न ही उन्हें वैदिक संस्कृत का कोई भी ज्ञान था। अपनी पुस्तक में केवल उन्होनें कुछ तथाकथित विदेशी विद्वानों के तर्क रखे थे जो कि पूर्णतः असत्य हैं। अम्बेडकर ने ऋग्वेद में आये यम यमी संवाद पर भी अनर्गल आरोप लगाये हैं जिनका खण्डन हम यहाँ कर चुके हैं: यम यमी संवाद के विषय में शंका समाधान
अब पाठक गण स्वंय निर्णय लेवें और असत्य को छोड़ सत्य का ग्रहण करें और हमेशा याद रखें:
वेदेन रूपे व्यपिबत्सुतासुतौ प्रजापतिः| ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानम् शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु || (यजुर्वेद 19.78)

 

वेदों को जाननेवाले ही धर्माधर्म के जानने तथा धर्म के आचरण और अधर्म के त्याग से सुखी होने को समर्थ होते हैं ||

बुद्ध मत मे नारिया

download (2)अम्बेडकर वादी कहते है की नारियो का सम्मान सिर्फ बुद्ध मत ही करता है जबकि हिन्दू वैदिक मत मे नारियो पर अत्याचार होते थे …ओर सती प्रथा ओर बाल विवाह आदि अन्य कुप्रथाए हिन्दुओ द्वारा चलयी गयी….लेकिन कई वैदिक विद्वानों ,आर्य विद्वानों द्वारा इसका संतुष्ट जनक जवाब दिया जाता रहा है ,,,

जैसे सीता जी की अग्नि परीक्षा पर ,सती प्रथा पर(*इस पेज पर भी एक पोस्ट इसी से सम्बंधित है )
लेकिन दुर्भावना से ग्रसित लोग आछेप करते रहते है ।
ओर वो भी कुछ प्रक्षेप को उठा कर ये लोग आक्षेप करते है ,,जैसे की मनुस्म्रती पर भी …जबकि मनुस्म्रति मे लिखा है :- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।

अर्थात जहा नारियो की पूजा (सम्मान) होता है..वहा देवता निवास करते है..जहा नारियो का सम्मान नही होता वह सभी कर्म विफल होते है…लेकिन फिर भी ये लोग प्रक्षेप उठा कर यहाँ भी आरोप लगा देते है ..
इसी तरह ऋषि यागव्ल्क्य पर भी आरोप लगाते है । कि एक प्रश्न पूछने पर ॠषि ने गार्गी को मारने की धमकी दी..
खैर अब यहाँ इनके लगाये आरोपों की समीक्षा न कर,,,इनके प्रिय बुद्ध के विचार भी बता देना चाहता हु कि नारियो के बारे मे महात्मा बुद्ध के क्या विचार थे :-
 विनय पीतका के कुल्लावग्गा खंड के अनुसार गौतमबुद्ध ने कहा था की “नारी अशुध, भ्रष्ट और कामुक होती हैं.” ये बात
भी   साफ – साफ लिखी गई है की वो “शिक्षा ग्रहण” नही कर सकती..

अब बताये क्या बुद्ध मत नारियो के बारे मे जहर नही उगलता है।
(१) वेदों की कई मन्त्र द्रष्टा ऋषिय मे से ३० महिलाये है ..
 
(२) बुद्ध मत मे २८ बुद्ध है लेकिन एक भी बुद्ध स्त्री या शुद्र नही है,,जबकि पौराणिको मे देवताओ के साथ 
 साथ देविया भी है ,,
 
उपरोक्त सभी बातो से स्पष्ट है कि बुद्ध मत नारी जाती का सम्मान नही करता है ,,बस दिखावा करता है …  

क्या श्री राम ने पशु वध किया था ??

अम्बेडकर वाड़ी दावा :-

राम जी ने मॉस प्राप्त करने के लिए हिरण का वध किया था ….

दावे का भंडाफोड़ :-

प्रश्न-क्या श्री राम ने किसी हिरण की हत्या की थी?
उत्तर-रामायण के अनुसार वो कोई हिरण नही था असल मे वो एक मायावी बहरूपिया मारिच था जिसने सीता जी ओर रामजी को भ्रमित करने के लिए हिरण का छद्म भेष बनाया था।(ये ठीक इसी प्रकार था जैसे कि रात मे रस्सी को साप समझ कर भ्रम मे पड जाना,रेगिस्तान मे प्यासे को पानी नजर आना)
असल मे मारीच भेष बदलने के अलावा तरह तरह की आवाजे(मिमिकरी)निकालने मे भी माहिर था।
उसके इस छल के बारे मे लक्ष्मण जी ओर श्री राम जी को भी पता चल गया था,,
जैसा कि बाल्मिक रामायण मे है-
शड्कमानस्तु तं दृष्टा लक्ष्मणो राममब्रवीत्।
तमेवैनमहं मन्ये मारीचं राक्षसं मृगम् ॥अरण्यकांड त्रिचत्वारिश: सर्ग: 4॥वा॰रा॰
उस मृग को देख लक्ष्मण के मन मे सन्देह उत्पन्न हुआ ओर उनहोने श्री राम जी से कहा-मुझे तो मृगरूपधारी यह निशाचर मारीच जान पडता है।
वास्तव मे वो सब बनावटी था इसके बारे मे लक्ष्मण जी ने श्री राम से कहा-
मृगो ह्मेवंविधो रत्नविचित्रो नास्ति राघव।
जगत्यां जगतीनाथ मायैषा हि संशयः॥अरण्यकांड त्रिचत्वारिशत: सर्ग 7॥वा॰रा.
लक्ष्मण जी कहते है,है पृथ्वीनाथ!है राघव!इस धरतीतल पर तो इस प्रकार का रत्नो से भूषित विचित्र मृग कोई है नही।अत: निस्संदेह यह सब बनावट है ।
अत: इन बातो से यह निश्चत है कि श्रीराम जानते थे कि वो बहरूपिया असुर मारीच था कोई हिरण नही,,
लेकिन बेवकुफ लोग यहा भी प्रश्न करेंगे कि वो एक बहरूपिया था फिर भी श्री राम ने उसे क्यु मारा ओर उसका कसूर किया था,,
उ०-अरे अंध भक्तो राम जी जानते थे कि वो पापी था क्युकि एक बार पहले भी श्री राम ने उसे क्षमा कर दिया था उसका ओर श्री राम जी का पहले भी सामना हुआ था,,
खुद मारीच ने इस बात को रावण से कहा था कि वो कितना पापी था।
“नीलजीतमूतसडँ्काशस्तप्तकाञ्चनकुण्डलः।
भयं लोकस्य जनयन्किरीटी परिघायुधः॥
व्यचरं दण्डकारण्ये ऋषिमांसानि भयक्षन्।
विश्वामित्रोsथ धर्मात्मा मद्वित्रस्तो महामुनिः॥अर॰का॰,अष्टत्रिशः सर्गः,२,३॥
मारीच कहता है कि मेरे शरीर की कांति नीले रंग के बादल के समान थी,कानो मे तपाये हुए सोने के कुण्डल पहिने,मस्तक पर किरीट धारण किये ओर हाथ मे परिघ लिये हुए,तथा लोगो मे भय उपजाता हुआ मै दण्डकवन मे घूम घूम कर ऋषियो का मांस खाता था।धर्मात्मा महान महर्षि विश्वामित्र भी मेरे से भयभीत थे॥
उसके इस वर्णन से पता चलता है कि वो दुष्ट था साथ ही शस्त्र,मुकुट,कुण्डल पहने एक नीच मनुष्य ही था।
प्र०-क्या सीता जी ने उस मृग को मांस के लिए श्री राम जी से पकडने के लिए बोला था?
उ॰-नही! हिरण सीता जी ने मांस के लिए नही बल्कि सीता जी ने खेलने के लिए मंगवाया था।
“आर्यपुत्राभिरामोsसौ मृगो हरति मे मनः।
आनयैनं महाबाहो क्रीडार्थ नो भविष्यति॥
अरण्यकांड,त्रिचत्वारिशः सर्गः॥
सीता जी कहती है-है आर्यपुत्र,यह मृग मेरे मन को हरे लेता है,सो है महाबाहोः इसे तुम ले आओ!मै इसके साथ खेला करूगी॥
इससे पता चलता है कि सीता जी ने उस हिरण को मांस के लिए नही बल्कि खेलने के लिए श्री राम जी को पकडने को कहा था।
अत: रामायण से ही स्पष्ट है कि श्री राम ने किसी मूक पशु का वध नही किया न ही सीता जी ने उसे मांस के लिए मंगवाया था,,,

क्या बुद्ध तर्कवादी ओर जिज्ञासु थे

अम्बेडकरवादी दावा :-

बुद्ध तर्क वादी ओर जिज्ञासा को शांत करने वाले व्यक्ति थे….अपने शिष्यों को भी तर्क करने ओर जिज्ञासु बनने का उपदेश देते थे …

दावे का भंडाफोड़ :-

एक समय मलयूक्ष्य पुत्त नामक किसी व्यक्ति ने महात्मा गौत्तम बुध्द से प्रश्न किया- भगवन क्या यह संसार अनादी व अन्नत है? यदि नही तो इसकी उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
लेकिन बुध्द ने उत्तर दिया – है मलयूक्ष्य पुत्त तुम आओ ओर मेरे शिष्य बन जाऔ,मै तुमको इस बात की शिक्षा दुंगा कि संसार नित्य है या नही|”
मलयूक्ष्य पुत्त ने कहा ” महाराज आपने ऐसा नही कहा|”(कि शिष्य बनने पर ही शंका दूर करोगे)
तो बुध्द बोले- तो फिर इस प्रश्न को पूछने का मुझसे साहस न करे| -(मझिम्म निकाय कुल मलूक्य वाद)
इससे निम्न बात स्पष्ट है कि बुध्द का सृष्टि ज्ञान शुन्य था …उनका मकसद केवल अपने अनुयायी बनाना था ..इसके अलावा पशु सुत्त ओर महा सोह सुत्त से पता चलता है कि वे अपने शिष्यो को भी जिज्ञासा प्रकट करने का उत्साह नही देते थे..
एक ओर बुध्दवादी कहते है कि बौध्द मत तर्को को प्राथमिकता देता है लेकिन यहा मलुक्य को बुध्द खुद चुप कर रहे है|
अत स्पष्ट है की बुध तर्कवादी ओर जिज्ञासा शांत करने वाले व्यक्ति नही थे ….