मित्रो अम्बेडकर और उनके अनुयायी वेदों के कुप्रचार में लगे रहते है ,,ये लोग पुर्वग्रस्त हो कर वेदों के वास्तविक स्वरुप को पहचान ने का प्रयास न कर उसके कुप्रचार और आक्षेप लगाते रहते है …
अम्बेडकर जी की पुस्तक riddle in hinduism में वेदों पर लगाये गए आरोप का खंडन पिछली इस पोस्ट पर हमारे इस ब्लॉग पर किया गया था..http://nastikwadkhandan.blogspot.in/
अब यहाँ अम्बेडकर की बुद्ध और उनका धम्म नामक पुस्तक में वेदों पर लगाये आक्षेप या अम्बेडकर के वेदों के बारे में फैलाये गये भ्रम का खंडन किया जा रहा है :-
सबसे पहले वेदों के विषय में अम्बेडकर ने किया लिखा वो देखे :-
अम्बेडकर जी वेदों को ईश्वरीय नही मानते है बल्कि ऋषि कृत मानते है उनकी इस बात का जवाब पिछली पोस्ट में दिया जा चूका है ..लेकिन यहाँ भी थोडा सा दे देते है :-“ऋषियों मन्त्रद्रष्टारः।ऋषिदर्शनात् स्तोमन् ददर्शेत्यौपन्यवः।तद् यदेना स्तपस्यस्यमानान् ब्रह्म स्वयम्भवभ्यानर्षत् तदृषीणाम् ऋषित्वमिति विज्ञायते।-निरुक्त २.११.
ऋषि वेदमंत्रो के अर्थद्रष्टा होते है,ओप्मन्व्य आचार्य ने भी कहा है कि वेदों में प्रयुक्त स्तुति इत्यादि विषयक मंत्रो के वास्तविक अर्थ का साक्षात्कार करने वालो को ऋषि के नाम से प्रकाश जाता है ,,तपस्या व ध्यान करते हुए जो इनको स्वयंभु नित्य वेद के अर्थ का भान हुआ इसलिए ऋषि कहलाय …
अत:यहाँ स्पष्ट कहा है ऋषि मन्त्र कर्ता नही बल्कि अर्थ द्रष्टा थे …
कुछ नास्तिक वेदों में प्रजापति,भरद्वाज,विश्वामित्र,आदि नाम दिखा कर इन्हें ऋषि बताते है और इन्हें मन्त्र कर्ता ,,लेकिन वास्तव में ये किसी व्यक्ति विशेष के नाम नही है ,,बल्कि योगिक शब्द है जिनके वास्तविक अर्थ शतपत आदि ब्राह्मण ग्रंथो में उद्र्रत किये है..इन्ही नामो के आदार पर ऋषियों ने अपने उपाधि स्वरुप नाम रखे ..जैसे भरद्वाज नाम वेदों के भारद्वाज नाम से रखा गया ..फिर उनके पुत्र ने भारद्वाज नाम रखा…
शतपत में भारद्वाज ,वशिष्ट आदि नामो के अर्थ :-
” प्राणों वै वशिष्ट ऋषि (शतपत ८ /१/१/६ )”
वशिष्ट का अर्थ प्राण है ,,
“मनो वै भारद्वाज ऋषि” (शतपत ८/१/१/९ )
भारद्वाज का अर्थ मन है ,,
“श्रोत्रं वै विश्वामित्र ऋषि: “(शतपत ८/१/२/६)
विश्वामित्र का अर्थ कान है ..
“चक्षुर्वे जमदाग्नि:” (शतपत १३/२/२/४)
जमदाग्नि का अर्थ चक्षु है ..
“प्राणों वै अंगीरा:”(शतपत ६/२/२/८ )
अंगिरा का अर्थ प्राण है ..
“वाक् वै विश्वामित्र ऋषि: ” (शतपत ८/१/२/९)
विश्वामित्र का अर्थ वाणी है ..
अत: दिय गये नाम ऋषियों के नही है …
अम्बेडकर लिखते है कि मन्त्र देवताओ की प्राथना के अतिरिक्त कुछ नही है ।
अम्बेडकर जी को वैदिक दर्शन का शून्य ज्ञान था ,,वेदों में अग्नि सोम आदि नामो द्वारा ईश्वर की उपासना ओर देवताओ के द्वारा विज्ञानं और प्रक्रति के रहस्य उजागर किये है ..
अम्बेडकर देवताओ को कोई व्यक्ति समझ बेठे है शायद जबकि देवता प्राक्रतिक उर्जाये ओर प्राक्रतिक जड़ वस्तु विशेष है ..
मनु स्म्रति के एक श्लोक से अग्नि,इंद्र आदि नामो से परमात्मा का ग्रहण होता है :-
“प्रशासितारं सर्वेषामणीयांसमणोरपि ।
रुक्भाम स्वपनधीगम्य विद्यात्तं पुरुषम् परम् ।।
एतमग्नि वदन्त्येके मनुमन्ये प्रजापतिम् ।
इन्द्र्मेके परे प्राणमपरे ब्रहम शाश्वतम् ।।(मनु॰ १२/१२२,१२३ )
स्वप्रकाश होने से अग्नि ,विज्ञानं स्वरूप होने से मनु ,सब का पालन करने से प्रजापति,और परम ऐश्वर्यवान होने से इंद्र ,सब का जीवनमूल होने से प्राण और निरंतर व्यापक होने से परमात्मा का नाम ब्रह्मा है ..
अत स्पष्ट है कि इंद्र,प्रजापति नामो से ईश्वर की उपासना की है ..
वेदों में वैज्ञानिक रहस्य के बारे में जान्ने के लिए निम्न लिंक देखे :-http://www.vaidicscience.com/video.html
अम्बेडकर जी का कहना है कि वेदों में दर्शन नही है ,,लगता है कि उन्होंने वेदों के अंग्रेजी भाष्य को ही प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत किया जबकि वेदों में अनेक मंत्रो में जीवन ,ईश्वर ,अंहिसा ,योग,आयुर्वेद ,विज्ञान द्वारा हर सत्य विद्याओ का दार्शनिक व्याख्या की है जिसके बारे में आगे के लेखो में स्पष्ट किया जाएगा ..
इसके अलावा वेदों में राष्ट्र ,गुरु ,अतिथि आदि के प्रति सम्मान करने का भी उपदेश है ..
बाकि पुत्र ,पुत्री ,पत्नी ,माँ ,पिता ,शिक्षक .विद्यारथी आदि के कर्तव्यो का भी उलेख है …
इससे पता चलता है कि अम्बेडकर जी ने वेदों को दुर्भावना और कुंठित मानसिकता के तहत देखा था ,,,
अम्बेडकर जी वेदों पर आरोप करते है कि इसमें देवताओ को शराब और मॉस भेट का उलेख है ,,इससे लगता है कि अम्बेडकर जी maxmuller के भाष्य के कारण सत्य न जान सके और अन्धकार में ही भटकते रहे ..
वेदों में सोम नाम से एक लेख हमने इसी ब्लॉग पर डाल उनकी इस बात का खंडन किया था ..अब मासाहार वाली बात को देखे तो अम्बेडकर जी ने यहाँ कोई संधर्भ नही दिया नही तो उन बातो का खंडन प्रस्तुत किया जाता ..लेकिन वेदों में अंहिंसा के उपदेशो का कुछ उलेख यहाँ किया जा रहा है :-
“कृत्यामपसुव “(यजु॰ ३५ /११)”
हिंसा को तू छोड़ दे ..
“मा हिंसी: पुरुष जगत”(यजु॰ १६ /३)”
तू मानव और मानव के अतिरिक्त अन्य की हिंसा न कर ..
मा हिंसी: तन्वा प्रजाः (यजु॰ १२ /३२ )
है मनुष्य तू देह से किसी प्राणी की हिंसा न कर ..
अत स्पष्ट है कि वेदों में अंहिसा का उपदेश है तो ऐसे में मॉस भेट जो हिंसा बिना प्राप्त नही हो सकती है का सवाल ही नही उठता है ..यदि यज्ञ में हिंसा मानते है तो उस पर अलग से पोस्ट के द्वारा स्पष्ट कर दिया जाएगा ..
अम्बेडकर अपनी इसी पुस्तक में कहते है कि वेदों में मानवता का उपदेश नही है इसी कारण बुद्ध ने वेदों को मान्यता नही दी थी ।
लेकिन यहाँ भी अम्बेडकर की अज्ञानता ही है वेदों में कई जगह मानवता का उपदेश है ,,देखिये वेदों का ही यही वाक्य है “आर्य बनो ” और मनुर्भव मतलब मनुष्य बनो “..अर्थात वेद मनुष्य को श्रेष्ट बनने का उपदेश देता है ।
“जन विभ्रति बहुधा विवाचसं नाना धर्माणं प्रथिवी यथोकसम् ।
सहस्त्रं धारा द्रविणस्य में दुधं ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरंती ।।(अर्थव॰ १२/१/८४)”
विशेष वचन सामर्थ वाले ,अनेक प्रकार के कर्तव्य करने वाले व्यक्तियों को मिल जुल कर रहना चाहिए ।तब प्रथ्वी सभी को धन धान से पूरित करती है ।अर्थात मिलजुल कर रहने पर ही प्रथ्वी पर धन धान सुख का उचित दोहन कर सकते है ..जैसे की गाये से दुध का ..
अत स्पष्ट है कि वेद मानवता का ही उपदेश देते है ..
अब अम्बेडकर जी के अनुसार बुद्ध ने वेदों को अमान्य माना तो लगता है कि अम्बेडकर जी ने ठंग से बौद्ध साहित्य भी नही पढ़े थे ..
इसके बारे में भी आगे पोस्ट की जायेगी ..
देखिये सुतनिपात में बुद्ध ने क्या कहा है :-
“विद्वा च वेदेही समेच्च धम्मम् ।
न उच्चावचम् गच्छति भूरिपञ्चो ।।(सुतनिपात २९२ )”
जो विद्वान वेदों से धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है ,वह कभी विचलित नही होता है ।
उपरोक्त सभी प्रमाणों से स्पष्ट है की अम्बेडकर जी वेदों पर अनर्गल और कुंठित ,दुर्भावना ,आक्रोशित मानसिकता के कारण आरोप करते थे ..शायद वे ऐसा जानबूझ कर करते थे ..