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वेदो ओर महाभारत मे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख (photosynthesis explaned in ved and mahabharat)

मित्रो नमस्ते,,,
इस बार आप के लिए वेदो ओर महाभारत मे वर्णित प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का वर्णन ले कर आया हु। …

प्रकाश संश्लेषण-

सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है।
इस क्रिया मे पादप की पत्तिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि सेजल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस(O2) बाहर निकालते हैं।  ……
हमारे धर्म ग्रंथो मे इस क्रिया का उल्लेख है …….

वेदो मे प्रकाश संश्लेषण-

वेदो मे प्रकाश संश्लेषण क्रिया का उल्लेख नीचे दिए गए इस चित्र मे देखे-
 ॠग्वेद के 10 मं के 97 सुक्त के 5 वे मंत्र मे पत्तियो द्वारा सूर्य के प्रकाश को ग्रहण कर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का स्पष्ट उल्लेख है।
महाभारत मे भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख है महाभारत मे ये ज्ञान मर्हिषी शोनक जी ने इसी मंत्र के विश्लेषण ओर अपनी योग बल के आधार पर युधिष्टर को दिया था…जो महाभारत मे इस प्रकार मिलता है;

महाभारत मे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख- शौनकेनैवम उक्तस तु कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः

पुरॊहितम उपागम्य भरातृमध्ये ऽबरवीद इदम [1]————————————————
परस्थितं मानुयान्तीमे बराह्मणा वेदपारगाःन चास्मि पालने शक्तॊ बहुदुःखसमन्वितः [2]————————————————
परित्यक्तुं न शक्नॊमि दानशक्तिश च नास्ति मे
कथम अत्र मया कार्यं भगवांस तद बरवीतु मे [3]————————————————
मुहूर्तम इव स धयात्वा धर्मेणान्विष्य तां गतिम
युधिष्ठिरम उवाचेदं धौम्यॊ धर्मभृतां वरः [4]————————————————
पुरा सृष्टनि भूतानि पीड्यन्ते कषुधया भृशम
ततॊ ऽनुकम्पया तेषां सविता सवपिता इव [5]————————————————
गत्वॊत्तरायणं तेजॊ रसान उद्धृत्य रश्मिभिः
दक्षिणायनम आवृत्तॊ महीं निविशते रविः [6]————————————————
कषेत्रभूते ततस तस्मिन्न ओषधीर ओषधी पतिः
दिवस तेजः समुद्धृत्य जनयाम आस वारिणा [7]————————————————
निषिक्तश चन्द्र तेजॊभिः सूयते भूगतॊ रविः
ओषध्यः षड्रसा मेध्यास तदेवान्धस् पराणिनां भुवि [8]————————————————
एवं भानुमयं हय अन्नं भूतानां पराणधारणम
पितैष सर्वभूतानां तस्मात तं शरणं वरज [9]————————————————
राजानॊ हि महात्मानॊ यॊनिकर्म विशॊधिताः
उद्धरन्ति परजाः सर्वास तप आस्थाय पुष्कलम [10] [महाभारत वन पर्व ३. भाष्य]————————————————

अर्थ – शौनक ऋषि के समक्ष अपने भाइयों के सामने कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने कहा –

हे! ऋषिवर, ब्रह्मा जी की बांते जो वेदों में लिखी गयी है, उनका अनुपालन करते हुए, मैं वन की ओर गमन कर रहा हूँ, मै अपने अनुचरो का समर्थन व उनका पालन करने में असमर्थ हूँ, उन्हें जीविका प्रदान करने की शक्ति मेरे पास नहीं है, अतः हे! मुनिश्रेष्ठ बताइए अब मुझे क्या करना चाहिए?

अपनी योगशक्तियों द्वारा संपूर्ण वस्तुस्तिथि का पता लगाकर गुणी पुरुषो में श्रैष्ठ धौम्य, युधिष्ठिर के सन्मुख होकर बोले –

“हे कुन्तीपुत्र! तू अपने अनुजों की जीविका की चिंता मत कर, तेरा कर्तव्य एक पिता का है, अति प्राचीन काल से ही सूर्यदेव अपने मृत्युलोकवासी बालकों की जीविका चलाते अर्थात उन्हें भोजन देते चले आ रहें हैं! जब वे भूंख से पीड़ित होते है, तब सूर्यदेव उन पर करुणा बरसाते हैं, वे अपनी किरणों का दान पौधों को देते हैं, उनकी किरणें जल को आकर्षित करती हैं, उनका तेज (गर्मी) समस्त पृथ्वी के पेड़-पौधों में प्रसारित (फैलता) होता है, तथा पौधे भी उनके इस वरदान (प्रकाश) का उपयोग करते है, तथा मरुत (हवा या कह सकते है CO2) एवं इरा (जल) की शिष्टि (सहायता) से देवान्धस् (पवित्र भोजन) का निर्माण करते हैं! जिससे वे इस लोक (संसार/मनुष्य) के जठरज्वलन (भूख) को शांत करते हैं!

सूर्यदेव इसीलिए सभी प्राणियों के पिता हैं! युधिष्ठिर, तू नहीं! समस्त प्राणी उन्ही के चरणों में शरण लेते हैं! सारे उच्च कुल में जन्मे राजा, तपस्या की अग्नि में तपकर ही बाहर निकलते हैं, उन्हें जीवन में वेदना होती ही है, अतः तू शोक ना कर, जिस प्रकार सूर्यदेव संसार की जीविका चलाते हैं, उसी प्रकार तेरे अनुजों के कर्म उनकी जीविका चलाएंगे! हे गुणी! तू कर्म में आस्था रख!

यहा पोधो के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मे सुर्य के प्रकाश ओर कार्बनडाई ओक्साईड,जल द्वारा भोजन निर्माण का स्पष्ट उल्लेख है।
इस लेख को लिखने मे मैने इस ब्लोग की सहायता भी ली है –
http://www.vijaychouksey.blogspot.in/2014/02/photosynthesis-explained-in-mahabharata.html इस ब्लोग पर अवश्य क्लिक करे इस पर आप भारद्वाज मुनिकृत विमानशास्त्र भी पढ सकते है।

यम यमी संवाद पर एक नजर

ऋग्वेद के दशवे मंडल के दशवे सूक्त १०|१० में यम यमी शब्द आये हैं |

जिसके मुर्ख मनुष्य अनर्गल व्याख्या करते हैं | उसके अनुसार यम तथा यमी विवस्वान् के पुत्र-पुत्री हैं और वे एकांत में होते हैं, वहा यमी यम से सहवास कि इच्छा प्रकट करती हैं |
यमी अनेक तर्क देती किन्तु यम उसके प्रस्ताव को निषेध कर देता | तो यमी कहती मेरे साथ तो तु ना कहे रहा पर किसी अन्य तेरे साथ ऐसे लिपटेगी जैसे वृक्ष से बेल, इत्यादि |

इस प्रकार के अर्थ दिखा के वेद निंदक नास्तिक वेद को व आर्यो के प्रति दुष्प्रचार करते हैं | आर्यो का जीवन सदैव मर्यादित रहा हैं, क्यों के वे वेद में वर्णित ईश्वर
कि आज्ञा का सदैव पालन करते रहे हैं | यहाँ तो यह मिथ्या प्रचार किया जा रहा अल्पबुद्धि अनार्यों द्वारा के वेद पिता-पुत्री, भाई-बहन के अवैध संबंधो कि शिक्षा देते
और वैदिक काल में इसका पालन होता रहा है |

वेदों के भाष्य के लिए वेदांगों का पालन करना होता हैं, निरुक्त ६ वेदांगों में से एक  हैं | निघंटु के भाष्य निरुक्त में यस्कराचार्य क्या कहते हैं यह देखना अति आवश्यक होता हैं व्याकरण के नियमों के पालन के साथ-२ ही | व्याकरण भी ६ वेदांगों में से एक हैं |* राथ यम-यमी को भाई बहन मानते और मानवजाती का आदि युगल किन्तु मोक्ष मुलर (प्रचलित नाम मैक्स मुलर) तक ने इसका खंडन किया क्यों के उन्हें
भी वेद में इसका प्रमाण नहीं मिल पाया |
हिब्रू विचार में आदम और ईव मानव जाती में के आदि माता-पिता माने जाते हैं | ये विचार ईसाईयों और मुसलमानों में यथावत मान्य हैं | उनकी सर्वमान्य मान्यता के
अनुसार दुनिया भाई बहन के जोड़े से हि शुरू हुई | अल्लाह (या जो भी वे नाम या चरित्र मानते हैं) उसने दुनिया को प्रारंभ करने के लिए भाई को बहन पर चढ़ाया और
वो सही भी माना जाता और फिर उसने आगे सगे भाई-बहनो का निषेध किया वहा वो सही हैं |

ये वे मतांध लोग हैं जो अपने मत में प्रचलित हर मान्यता को सत्य मानते हैं और
दूसरे में अमान्य असत्य बात को सत्य सिद्ध करने पर लगे रहते हैं | ये लोग वेदों के अनर्गल अर्थो का प्रचार करने में लगे रहते हैं |

स्कन्द स्वामी निरुक्त भाष्य में यम यमी कि २ प्रकार व्याख्या करते हैं |
१.नित्यपक्षे तु यम आदित्यो यम्यपि रात्रिः |५|२|
२.यदा नैरुक्तपक्षे मध्यमस्थाना यमी तदा मध्यमस्थानों यमो वायुवैघुतो वा वर्षाकाले
व्यतीते तामाह | प्रागस्माद् वर्षकाले अष्टौ मासान्-
अन्यमुषू त्वमित्यादी | |११|५

आपने आदित्य को यम तथा रात्री को यमी माना हैं अथवा माध्यमिक मेघवाणी यमी तथा माध्यमस्थानीय वायु या वैधुताग्नी यम हैं | शतपथ ब्राहमण में अग्नि तथा पृथ्वी को यम-यमी कहा हैं |
सत्यव्रत राजेश अपनी पुस्तक “यम- यमी सूक्त कि अध्यात्मिक व्याख्या” कि भूमिका में स्पष्ट लिखते हैं के यम-यमी का परस्पर सम्बन्ध पति-पत्नी हो सकता हैं भाई बहन कदापि नहीं क्यों के यम पद “पुंयोगदाख्यायाम्” सूत्र
से स्त्रीवाचक डिष~ प्रत्यय पति- पत्नी भाव में ही लगेगा | सिद्धांत कौमुदी कि बाल्मानोरमा टिका में “पुंयोग” पद कि व्याख्या करते हुए लिखा हैं –
“अकुर्वतीमपि भर्तकृतान्** वधबंधादीन् यथा लभते एवं तच्छब्दमपि, इति भाष्यस्वारस्येन जायापत्यात्मकस् यैव पुंयोगस्य विवाक्षित्वात् |”
यहा टिकाकर ने भी महाभाष्य के आधार पर पति पत्नी भाव में डिष~ प्रत्यय माना हैं | और स्वयं सायणाचार्य ने ताण्डय्-महाब्राहमण के भाष्य में यमी यमस्य पत्नी, लिखा हैं

अतः जहा पत्नी भाव विवक्षित नहीं होगा वहा – “अजाघतष्टाप्” से टाप् प्रत्यय
लगकर यमा पद बनेगा और अर्थ होगा यम कि बहन | जैसे गोप कि पत्नी गोपी तथा बहन गोपा कहलाएगी.,अतः यम-यमी पति- पत्नी हो सकते हैं, भाई बहन कदापि नहीं | सत्यव्रत राजेश जी ने अपनी पुस्तक में यम को पुरुष- जीवात्मा तथा यमी को प्रकृति मान कर इस सूक्त कि व्याख्या कि हैं |
स्वामी ब्रह्मुनी तथा चंद्रमणि पालिरात्न ने निरुक्तभाष्य ने यम-यमी को पति-
पत्नी ही माना हैं | सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानंद कि भी यही मान्यता हैं
|
डा० रामनाथ वेदालंकार के अनुसार – आध्यात्मिक के यम- यमी प्राण तथा तनु (काया) होने असंभव हैं | जो तेजस् रूप विवस्वान् तथा पृथ्वी एवं आपः रूप
सरण्यु से उत्पन्न होते हैं | ये दोनों शरीरस्थ आत्मा के सहायक एवं पोषक होते हैं | मनुष्य कि तनु या पार्थिव चेतना ये चाहती हैं कि प्राण मुझ से विवाह कर ले तथा मेरे ही पोषण में तत्पर रहे | यदि ऐसा हो जाए तो मनुष्य कि सारी आतंरिक प्रगति अवरुद्ध हो जाये तथा वह पशुता प्रधान ही रह जाये | मनुष्य का लक्ष्य हैं पार्थिक
चेतना से ऊपर उठकर आत्मलोक तक पहुचना हैं |
श्री शिव शंकर काव्यतीर्थ ने यम- यमी को सूर्य के पुत्र-पुत्री दिन रात माना हैं तथा कहा हैं कि जैसे रात और दिन इकठ्ठा नहीं हो सकते ऐसे ही भाई- बहन का परस्पर विवाह भी निषिद्ध हैं |
पुरुष तथा प्रकृति का आलंकारिक वर्णन मानने पर, प्रकृति जीव को हर प्रकार से
अपनी ओर अकार्षित करना चाहती हैं, किन्तु जीव कि सार्थकता प्रकृति के प्रलोभन में न फसकर पद्मपत्र कि भाति संयमित जीवन बिताने में हैं |

इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में वेद और लोक व्यहवार –विरुद्ध भाई बहिन के सहवास सम्बन्धी अर्थ को करना युक्त नहीं हैं | इसी सूक्त में कहा हैं-

“पापमाहुर्यः सवसारं निगच्छात्” बहिन भाई का अनुचित सम्बन्ध पाप हैं |

इसे पाप बताने वा वेद स्वयं इसके विपरीत बात कि शिक्षा कभी नहीं देता हैं |

सन्दर्भ ग्रन्थ – आर्य विद्वान वेद रत्न सत्यव्रत राजेश के व्याख्यानों के संकलन “वेदों में इतिहास नहीं” नामक पुस्तिका से व्याकरण प्रमाण सभारित |

 

ईसाई पैगम्बरों का चरित्र चित्र

लेखक –श्री राम आर्य

ईसाई मजहब व बाइबल का पोलखाता अर्थात ईसाई पैगम्बरों के चरित्रो का कच्चा चिट्ठा –

सारे संसार में बुद्धिमान लोगो ने मनुष्यों के उत्थान के लिए शुभ आचरण करने पर जोर दिया है |मनुष्य यदि उत्तम विचार रखे,परोपकारी वृति रखे ,दीन ,दुखियो निर्बलो,असहायों पर दया दृष्टि रखे ,प्राणिमात्र को अपने अपने कर्मो से किसी भी प्रकार का कष्ट न पंहुचाये,सबके हित में अपना हित समझे,नेत्रों से उत्तम चीजों को देखे,वाणी से श्रेष्ट बातें करे,कानो से शुभ कथाये वार्ता सुने,मन में सदा शुभ विचार व श्रेष्ट संकल्प धारण करे, निराकार सर्वव्यापक जगतकर्ता प्रभु में प्रीती रखे,उसकी भक्ति में मन को लगाये,सदाचार व संयम का जीवन व्यतीत करे मन,बुद्धि व आत्मा को पतित करने वाले मॉस ,मदिरा आदि विष्टा तुल्य गंदे पदार्थो के सेवन से बचे,सत्य ज्ञान प्राप्त करे व महापुरुषों का सत्संग करे तो उसके लिए इस लोक में सुख व म्रत्यु के अनन्तर उत्तम जन्म जन्मान्तर के शुभ कर्मो के परिणाम स्वरूप आत्मा के निर्मल होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है| यह भारत के आर्यों का वैदिक सिधान्त है|

किन्तु चंद लोगो ने अपना बडप्प्न दिखाने के लिए स्वयं को खुदा का बेटा या खुदा का एक मात्र पैगम्बर अथवा स्वयं को सक्षात्त खुदा बताकर संसार के भोले भाले लोगो को बेवकूफ बनाया है ओर अपने चेलो की संख्या बढ़ाने के लिए यह घोषित किया है कि परमसुख अथवा मोक्ष के हम ही ठेकेदार है,खुदा की तरफ से हम पर ही मोक्ष की सोल एजेंसी है| बिना हमारे ऊपर ईमान लाये मुक्ति किसी को भी नही मिलेगी |हम इंसान को अथवा अपने चेले को मोक्ष ,स्वर्ग,अथवा बहिश्त में घुसने का पासपोर्ट या टिकिट देगे |

जो हमारे चेलो में नाम नही लिखायेगा,आँखे बंद करके हमारे ऊपर ईमान नही लायेगा,हम उसे नर्क या दोजक में ठूस देगे| फिर चाहे उसके कर्म कितने ही अच्छे क्यूँ न हो|

(युहन्ना पर्व १४ का भावार्थ व कुरान शरीफ का सारांश )

इस प्रकार की बातें आपको ईसाई व इस्लाम मजहब में बहुत कुछ मिलेगी| इन दोनों मजहबो के संस्थापको ने बहिश्त के वह नजारे अपने चेलो को फांसने के लिए अपने ग्रंथो या उपदेशो में पेश किये है कि अज्ञानी लोग उनके लालच में फंस कर उनके मजहबो में फंसते रहे है|

इस्लाम का बहिश्त में बहिश्ती शराबे ७०-७० हूरे (अछूत सुन्दरी औरते ) व ७२-७२ गिलमो अर्थात बड़ी बड़ी आँखों वाले खुबसूरत लडको) का लालच अरब के वहशी लोगो को मुसलमान बनाने का प्रधान आकर्षण रहा है ,तो यूरोप के अज्ञानी जन समुदाय को ईसाईयत के बहिश्त व ईसा के फर्जी करिश्मे व खुदा के बेटे पर ईमान लाना एक मुख्य कारण ईसाइयत में प्रवेश कराने का रहा है|

हजरत ईसा मशीह ने खुदा का इकलोता बेटा अपने आप को बताया तो हजरत मुहम्मद साहब ने अपने आप को खुदा का आखरी पैगम्बर बताकर अपने मजहब का प्रचार किया था| हम इस लेख में इस्लाम पर न लिख कर केवल ईसाई मजहब में जनता को कुछ परिचय करवाएंगे |

ईसाई मजहब के धर्मग्रन्थ बाइबिल का यह कहना है की ईसा मसीह खुदा के इकलोते बेटे थे,एक बड़ी बेतुक्की बात है | हजरत खुदा के बेटे है तो उसके बहु,साले,सास,ससुर,सालिया व सलेज वगैरा सभी रिश्तेदार अवश्य होंगे| ईसाई लोग इनके नाम पते बतावे ताकि खुदा की ससुराल का हाल मालुम हो सके |

हजरत खुदा के सिर्फ एक ही बीटा मसीह पैदा हुआ आगे उसने कोई भी औलाद पैदा नही की ,इसका क्या कारण है? क्या वजह हुई कि खुदा की गर्भवती बीवी ने खुदा को छोड़ कर जल्दी युसूफ नाम के बढई को पसंद कर लिया ओर शादी कर ली?

खुदा को अपने क्वारेपन की पहली औलाद ईसा को अपने पिता के घर में जन्म न देकर गैर आदमी से शादी करके उसके घर उसके घर जाकर जन्म देने की श्रीमती आदरणीय मरियम महोदय को क्यों आवश्कता पड़ी ? क्या इस रहस्य को इसाई विद्वान पादरीगण खोल सकेंगे?

जब खुदा के बेटे मसीह को इंसान ने फांसी दे कर मारा तो वह सूली पर चिल्लाता रहा कि –

“ है मेरे बाप! मुझे बचा लो “(मती २७/४६)”

तो खुदा अपनी एक मात्र औलाद को बचाने क्यों नही आया? ईसा ने बड़े जोर से चिल्ला चिल्लाकर फांसी के तख्ते पर प्राण छोड़ा| (मती २७/५०)

इससे सिद्ध हुआ है की ईसा मौत से बेहद डरता था| उससे भारत के लाल भगत सिंह जैसे लोग ज्यादा बहादुर थे जिन्होंने हँसते हुए अपने हाथो से फांसी का फंदा गले में पहिना था| वीर जोरावर की मिसाइल ईसा से कही ज्यादा ऊँची है जो हँसते हसते हुए धर्म के लिए दीवार में चुने गये उस पर ईसा खुद को साक्षात खुदा का बेटा मानते थे तो बाप का धर्म था बेटे की मदद करता|

बेटे तीन तरह के होते है,(१) पूत(२)सपूत ओर (३)कपूत |पूत वह जो बाप के जैसा हो| सपूत वह जो बाप से बढ़ कर काम करे| कपूत वह जो बाप का नाम डुबो दे|

हो सकता है कि ईसामसीह खुदा के भी पूत व सपूत न होकर तीसरे नंबर के बेटे हो ओर शायद इसी के लिए खुदा ने उनको त्याग दिया हो| बहुत सम्भव है कि जैसे दुनिया को पैदा करके खुदा बाईबिल में पछताया (उत्पत्ति)

वैसे ही एक औलाद ईसा को पैदा कर पछताया हो ओर दुखी हो कर आगे को ब्रह्मचर्य धारण कर बेठा हो|

ईसाइयों का मजहब क्या है? एक तमाशा है| ईसाई खुदा के यहा बेटा है बीवी है बेठने के लिए तख़्त है, रहने को मकान है,रक्षा के लिए फोज है,खिदमत के लिए फरिस्ते है|अपने मकान से उतर कर अदन के बाग़ में ठंडी ठंडी हवाओं में सैर करता है ओर आदम से बातें करता है| (उत्त्पति)

शेतान से डरता है| गुंडा शेतान जिन गरीब लोगो पर हावी हो जावे उन्हें दंड देता है,शेतान को सजा देने की उसमे शक्ति नही है|

“खुदा याकूब से रात भर कुश्ती लड़ता है ओर न वह याकूब को पछाड़ पाता है,न याकूब को गिरा पाता है|(उत्पति ३२)”

“इंसान को आदमी के पाखाने से रोटी पका कर खाने की आज्ञा देता है|”(जेह्केल पर्व ४)

“बाप को अपनी बेटी से व्यभिचार व शादी करने की आज्ञा देता है तथा उसे अच्छा काम बताता है|(करन्थियो ३६-३७-३८)”

“उसका बेटा मसीह शराब पीता है|(मती११/११)”

“वह गधो की चोरी कराता है|(युहन्ना१२/१४ तथा लूका १९/३०)”

“ईसा खुदा का सोल एजेंट होने का दावा करता है(युहन्ना १४/६)”

“यहोवा परमेश्वर औरतो को नंगा करता है|(याशाशाह३/१६-१७)”

“ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरितहीन थे|यहूदा ने अपने बेटे की बहु से व्यभिचार किया|(उत्पत्ति ३८/१२-२०)”

“पैगम्बर लूत ने अपनी खास बेटियों से शराब पी करके उन्हें गर्भवती बनाया|(उत्पत्ति १९/३३-३८)”

“हजरत अविराहम ने अपनी बहन से व्यभिचार किया व झूठ-मुठ की शादी की|(उत्पत्ति १२/११-१३)”

“याकूब ने अपनी दासियों के साथ व्यभिचार किया व उसके बेटी दीन ने हमुर के बेटे सिकम के साथ व्यभिचार किया|(उत्पत्ति ३४२४-३०)”

“पैगम्बर दाउद ने उरियाह की खुबसूरत बीवी से व्यभिचार किया,उरियाह को मरवा डाला व उसकी बीवी को अपने घर में डाल लिया|(सैमुएल२ पर्व ११/२-२५)”

“दाउद के बेटे आमुनुन ने अपनी सगी बहिन तामार के साथ जबरदस्ती काला मुह (व्यभिचार) किया |(सैमुएल२/१३/१-२०)”

“ईसा की माँ मरियम क्वारेपन में ही बाप के घर से गर्भवती होकर आई थी ओर उसी से ईसामसीह पैदा हुए |(इंजील १/१८-९)”

“ईसा ने गधा चुरवाया|(मती २१/१-७)”

“इसराइल में रुबेन ने अपने पिता की बीवी के साथ व्यभिचार किया|

मूसा ने फोज की क्वारी अछूती कन्याओ से खुले में व्यभिचार की आज्ञा दी (गिनती नामक पुस्तक ३१/१४-१८)”

ईसाई खुदा अत्यंत बहरम बी जाहिल है|वह मर्द,औरतो,नन्हे मासूम बच्चे,भेड़,ऊंट,गधे आदि निर्दोषों को अत्यंत बेरहमी से क़त्ल करने की आज्ञा देता है|(१ सेमुएल १५/२)

“बाइबिल ईसाई मजहब को धोखे व मक्कारी से फ़ैलाने की आज्ञा देता है|(चोलास का फिलोपियो को ख़त १/१८)”

बाइबल मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ डालने की आज्ञा देती है|(व्यवस्था विवरण१३/९)

बाइबल इतवार के दिन काम करने वालो को मार डालने का आदेश देती है|(निर्गमन३५/२)

“इसाई तालीम औरतो को व्यभिचार के लिए लुटने का हुक्म देती है|(न्यायियों को २१/२१)”

“ईसाई तालीम पर स्त्री,माल व बाल बच्चो को लुटने की व्यवस्था देती है|(विव्रन२०/१४)”

“ईसा ने लोगो को लड़ने के लिए शस्त्र खरीदने का आदेश दिया है| उसने कहा की मै दुनिया में झगड़े फसाद पैदा कराने आया हू| मत समझो कि मै मुहब्बत पैदा कराने आया हू|(मती१०/३४-३६)”

“ईसा ने कहा जितने भी पैगम्बर मुझसे पहले आये सब चोर डाकू थे(योहन रचित सुसमाचार पर्व १०/९)”

इससे सिद्ध होता है कि ईसाई पैगम्बर चोर ओर डाकू थे| उनके चरित भी ख़राब थे| ऐसे ख़राब चरित्रों के लोगो को केवल इसाई लोग ही भला भला आदमी व पैगम्बर मान सकते है| दुनिया के लोग ऐसो के नाम से भी घृणा करंगे|

जब पैगम्बर का यह हाल है तो उसके अनुगामी लोगो के चरित्र क्यूँ कर न भ्रष्ट होंगे,जैसे गुरु वैसा चेले होने चाहिए|

ईसाई मजहब एक गलत मजहब है| वह लोगो को गुमराह करता है| इसीलिए कोई समझदार आदमी इस मजहब में प्रवेश नही करता है| ईसाई लोग धोखे,मक्कारी व लोभ लालच से भोले बेपढ़े गरीब मेहतरो को बहका कर ईसाई बना लेते है| किसी पढ़े लिखे आदमी से यह कभी बात करने की हिम्मत नही करते है|

ये भारत में पैदा हुए भारतीय अन्न जल से पले,भारतीय इसाई आज स्वतंत्र देश के नागरिक होते हुए अपने भारतीय पूर्वज राम कृष्ण को भूल कर विदेशी ईसा को अपना दिल व दिमाग बेच कर उसकी उपासना करते है| उसकी गुलामी में फंसे है| कितनी शर्म की बात है कि जिनके रक्त से पैदा है उन्ही को भूल बेठे है|

मेरे इसाई बंधुओ तुम्हारा ओर हम भारतीयों का खून का रिश्ता है,विदेशी ईसा से तुम्हारा पानी का रिश्ता है| खून का रिश्ता पानी के रिश्ते से वजनी होता है|जब देश स्वतंत्र हो गया तो हमारे देश के लिये| भारतीय आर्य रक्त वालो के लिए यह कलंक की बात है कि अपने देश के महापुरुषों को त्याग कर विदेशियों की गुलामी में अपने दिमाग को ख़राब करे| अत: मै भारतीय इसाई बंधुओ से अपील करता हु कि वै आर्य समाज में शुद्धि करा कर अपने पूर्वजो के सत्य वेद धर्म को स्वीकार करे,ओर मानव जीवन को सफल करे|

ईसा के अंध भक्त विदेशीय पादरियों से भी मुझे दो शब्द कहने हैं कि तुम लोग अपने घर योरोप व अमेरिका में जाकर पाहिले उसे ठीक करो जहा चोरी,जिनाखोरी,शराब,गोश्तखोरी बदकार आम रिवाजे है|सारा ईसाई संसार एक दुसरे के खून का प्यासा है| गत दो महायुद्ध इसका सबूत है|

तुम भारत में बदमाशिया करना बंद करो| भारत के लोग धर्म के बारे में तुमसे ज्यादा जानते है|तुम अभी धर्म ज्ञान के बारे में बच्चे हो| अपनी शुद्धि करा कर हम आर्यों से अभी तुम धर्म के बारे में शिक्षा प्राप्त करो|

तुम्हारे धर्म में दुनिया की सारी बुराइया भरी हुई है| एक भी ऐसी ज्ञान विज्ञानं की बात ईसाई मजहब या बाइबल में नही है जिस पर तुम गर्व कर सको, जिस थोथे धर्म को धोखे,मक्कारी व लालच से तुम भारत के गरीबो में फ़ैलाने चले हो उसका खंडन तो भारत का बच्चा बच्चा कर सकता है| इसलिए नौकरियों व लम्बी लम्बी तनख्वाहो के कारण तुम लोगो को गुमराह करने की कोशिश करने से बाज आओ| वरना दम हो तो शाश्त्रथो द्वारा अपने धर्म की सत्यता सिद्ध करने के लिए मैदान में उतरो| यह हमारे सारे ईसाई जगत को निमंत्रण है|

जिन विदेशिय पादरियों का ऐसा ख्याल है कि वे भारत निवासियों को ईसाई बना कर (योरोप अमरीका वालो के हम मजहब बना कर) पुन: भारत को विदेशियों का गुलाम बना सकेंगे वे मुर्ख की दुनिया में रहते है | ऐसे देश द्रोही पादरियों को भारत से तुरंत बाहर निकाल देना भारत सरकार का कर्तव्य है|

…………………………………………………समाप्त……………………………………………………………………..

बाईबिल मे अन्तर्विरोध भाग2

पिछली पोस्ट बाईबिल मे अंतर्विरोध से आगे-

5परमात्मा थक जाता है और विश्राम करता है-

17 वह मेरे और इस्त्राएलियों के बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्राम करके अपना जी ठण्डा किया॥

(निर्गमन 31:17)

6 यहोवा की यह वाणी है कि तू मुझ को त्यागकर पीछे हट गई है, इसलिये मैं तुझ पर हाथ बढ़ाकर तेरा नाश करूंगा; क्योंकि, मैं तरस खाते खाते उकता गया हूँ।(यिर्मयाह 15:6)

24 तू मेरे लिये सुगन्धित नरकट रूपऐ से मोल नहीं लाया और न मेलबलियों की चर्बी से मुझे तृप्त किया। परन्तु तू ने अपने पापों के कारण मुझ पर बोझ लाट दिया है, और अपने अधर्म के कामों से मुझे थका दिया है॥( यशायाह 40:26)

परमात्मा न थकता न विश्राम करता-

28 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।

(यशायाह 40:28)

6 ईश्वर सर्व व्यापक है और सब वस्तुओ को देखता ओर जानता है-

9 यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़ कर समुद्र के पार जा बसूं,
10 तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। (भजन संहिता 139:9,10)

21 क्योंकि ईश्वर की आंखें मनुष्य की चालचलन पर लगी रहती हैं, और वह उसकी सारी चाल को देखता रहता है। (अयुब 34:21)

ईश्वर सर्व व्यापक नही है ओर न तमाम वस्तुओ को देखता है और न जानता है-

5 जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिये यहोवा उतर आया। (उत्पत्ति 11:5)

21 इसलिये मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा। (उत्पत्ति 18:21)

8 तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। (उत्पत्ति 3:8)

7ईश्वर मनुष्यो के हृदय को जानता है-

24 और यह कहकर प्रार्थना की; कि हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दानों में से तू ने किस को चुना है। (प्रेरितो के काम 1:15)

21 तो क्या परमेश्वर इसका विचार न करता? क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है। (भजन संहिता 44:21)wpid-Jesus-Rifle.jpg

2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।
3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। (भजन संहिता 139:2,3)

ईश्वर लोगो के दिल की बात जानने के लिये उनकी जाच करता है-

3 तब तुम उस भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखने वाले के वचन पर कभी कान न धरना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी परीक्षा लेगा, जिस से यह जान ले, कि ये मुझ से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम रखते हैं वा नहीं? (व्यवस्थाविवरण 13:3)

2 और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिये ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा वा नहीं। (व्यवस्थाविवरण 8:2)

8ईश्वर सर्व शक्तिमान है-

27 क्या मेरे लिये कोई भी काम कठिन है?(यिर्मयाह 32:27)

26 यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है। (मत्ति 19:26)

ईश्वर सर्व शक्तिमान नही है-

19 और यहोवा यहूदा के साथ रहा, इसलिये उसने पहाड़ी देश के निवासियों निकाल दिया; परन्तु तराई के निवासियों के पास लोहे के रथ थे, इसलिये वह उन्हें न निकाल सका।(न्यायियो 1:19)

                                                       क्रमश्…………………………………………………………………………।

बाईबिल मे अंतर्विरोध

मित्रो इसाई ओर मुस्लिम समुदाय अपनी अपनी किताबो को परमात्मा की भेजी बताते है जबकि दोनो के अध्ययन से पता चलता है कि दोनो मे परस्पर विरोधी वचन होने से ये मानवकृत किताबे है। इससे पहले हमने कुरान मे अंतर्विरोध बताया था अब बाईबिल मे देखे-

1 परमेश्वर अपने कार्यो से संतुष्ट है-

31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया॥(उत्पत्ति 1:31)

14 मुझ यहोवा ही ने यह कहा है; और वह हो जाएगा, मैं ऐसा ही करूंगा, मैं तुझे न छोड़ूंगा, न तुझ पर तरस खऊंगा न पछताऊंगा; तेरे चालचलन और कामों ही के अनुसार तेरा न्याय किया जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।(यहेजकेल 21:14)

परमेश्वर अपने कार्यो से असंतुष्ट है-

11 यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उसने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ। (2 इतिहास 7:11)

6 और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ।
7 तब यहोवा ने सोचा, कि मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। (उत्पत्ति 6:6-7)

2 परमेश्वर चुने हुए मंदिरो मे निवास करता है-

11 यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उसने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ। (2 इतिहास 7:11)

परमेश्वर मंदिरो मे नही रहता-

48 परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा। (प्रेरितो के काम 7:48)

3परमेश्वर प्रकाश मे रहता है-

16 और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा, और न कभी देख सकता है: उस की प्रतिष्ठा और राज्य युगानुयुग रहेगा।(1 तीमुथियस 6:16)

परमेश्वर अंधकार मे रहता है-

12 तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूंगा। (1 राजा 8:12)

4 परमेश्वर को देखा व सुना जा सकता है-

23 फिर मैं अपना हाथ उठा लूंगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा॥(निर्गमन 33:23)

11 और यहोवा मूसा से इस प्रकार आम्हने-साम्हने बातें करता था, जिस प्रकार कोई अपने भाई से बातें करे। और मूसा तो छावनी में फिर आता था, पर यहोशू नाम एक जवान, जो नून का पुत्र और मूसा का टहलुआ था, वह तम्बू में से न निकलता था॥ (निर्गमन 33:11)

8 तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। (उत्पत्ति 3:8)

30 तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।(उत्पत्ति 32:30)

1 जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया। (याशायाह 6:1)

9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनिए ऊपर गए,
10 और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया; और उसके चरणों के तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ था, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ था।(निर्गमन 24:9,10)

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परमात्मा अदृश्य है देखा व सुना नही जा सकता है-

18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया॥ (यूहन्ना 1:18)

37 और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है।(यूहन्ना 5:37)

20 फिर उसने कहा, तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।(निर्गमन 33:20)

16 और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा, और न कभी देख सकता है: उस की प्रतिष्ठा और राज्य युगानुयुग रहेगा।(1 तीमुथियुस 6:16)

                                                                         क्रमश्……………………………………………………………………………………………………………………………।

महात्मा बुद्ध ओर गौ संरक्षण

अम्बेडकर वादी खुद को बुद्ध का अनुयायी कहते है लेकिन खुद बुद्ध के ही उपदेशो की धजिय्या उठाते है |
सनातन धर्म पर अपनी कुंठित मानसिकता के कारण ये कभी वेद आदि आर्ष ग्रंथो पर अपनी खुन्नस उतारते है | तो कभी कभी महापुरुषों को गालिया देंगे जैसे की मनु को ,श्री राम ,कृष्ण ,दुर्गा आदि को ..
अपने इसी मानसिकता के चलते ये कभी रावन शाहदत दिवस, महिषासुर शाहदत दिवस आदि मानते रहते है |
अपनी इसी विरोधी मानसिकता के चलते ये गौ मॉस की मांग करने लगे है जिसे आप इस लिंक पर देख सकते है :- http://m.bhaskar.com/article/referer/521/NAT-tiss-campus-become-the-latest-battleground-of-food-politics-4708256-PHO.html?pg=2
ये लोग खुद को बुद्ध का अनुयायी कहते है लेकिन बुद्ध की अंहिसा ,शाकाहार,गौ संरक्षण आदि सिधान्तो को एक ओर कर अपनी विरोधी ओर कुंठित मानसिकता का परिचय दिया है| जबकि बुद्ध के गौ संरक्षण पर निम्न उपदेश है :-
उन्होंने गो हत्या का विरोध किया और गो पालन को अत्यंत महत्व दिया ।
यथा माता सिता भ्राता अज्ञे वापि च ज्ञातका ।
गावो मे परमा मित्ता यातु जजायंति औषधा ॥
अन्नदा बलदा चेता वण्णदा सुखदा तथा ।
एतवत्थवसं ज्ञत्वा नास्सुगावो हनिं सुते ॥
माता, पिता, परिजनों और समाज की तरह गाय हमें प्रिय है । यह अत्यंत सहायक है । इसके दूध से हम औषधियाँ बनाते हैं । गाय हमें भोजन, शक्ति, सौंदर्य और आनंद देती है । इसी प्रकार बैल घर के पुरुषों की सहायता करता है । हमें गाय और बैल को अपने माता-पिता तुल्य समझना चाहिए । (गौतम बुद्ध)
गोहाणि सख्य गिहीनं पोसका भोगरायका ।
तस्मा हि माता पिता व मानये सक्करेय्य च् ॥ १४ ॥
ये च् खादंति गोमांसं मातुमासं व खादये ॥ १५ ॥
गाय और बैल सब परिवारों को आवश्यक और यथोचित पदार्थ देते हैं । अतः हमें उनसे सावधानी पूर्वक और माता पिता योग्य व्यवहार करना चाहिए । गोमांस भक्षण अपनी माता के मांस भक्षण समान है । (लोकनीति ७)
गाय की समृद्धि से ही राष्ट्र की समृद्धि होगी । (सम्राट अशोक)

अत: पता चलता है की नव बुद्ध अम्बेडकरवादी बुद्ध मत के अनुयायी नही है ये नस्तिक्वादी केवल अम्बेडकर के ही अनुयायी है अपनी सुविधा अनुसार कभी बुद्ध के उपदेशो का इस्तेमाल करते है तो कभी खूटे पर टांग देते है| अगर बुद्ध के वास्तविक अनुयायी होते तो गौ मॉस तो क्या किसी भी प्राणी के मॉस की मांग न करते|

भगवान मनु ओर दलित समाज

मित्रो ओम |
मै जो लेख लिख रहा हु उससे सम्बंधित अनेक लेख आर्य विद्वान अपने ब्लोगों पर डाल चुके है| कई तरह की पुस्तके भी लिखी जा सकती है | जिसमे सबसे महत्वपूर्ण योगदान सुरेन्द्र कुमार जी का है| जिन्होंने मह्रिषी मनु के कथन को स्पष्ट करने का ओर मनु स्म्रति को शुद्ध करने का प्रसंसिय कार्य किया है| इस सम्बन्ध में आपने जितने भी लेख जैसे मनु और शुद्र,मनु और महिलायें आदि विभिन्न blogger द्वारा लिखे पढ़े होंगे |वे सब इन्ही की किताबो ओर शोधो से लिए गये है |हमारा भी ये लेख इन्ही की किताब से प्रेरित है|
मह्रिषी मनु को कई प्राचीन विद्वान ओर ब्राह्मणकार कहते है की मनु के उपदेश औषधि के सामान है लेकिन आज का दलित समाज ही मनु का कट्टरता से विरोध करता है | ओर बुद्ध मत को श्रेष्ट बताते हुए मनु को गालिया देता है ओर उनकी मनुस्म्र्ती को भी जलाते है | इसके निम्न कारण है :-
(१) मनु द्वारा वर्णव्यवस्था को बताना ..
(२) मनु पर जाति व्यवस्था को बनाने का आरोप
(३) मनु द्वारा स्त्री के शोषण का आरोप .
उपरोक्त आरोपों पर विचार करने से पहले हम बतायेंगे की मनु को हिन्दू विद्वानों ने ही नही बल्कि बुद्ध विद्वानों ने भी माना है | बौद्ध महाकवि अश्वघोस जो की कनिष्क के काल में था अपने ग्रन्थ वज्रकोपनिषद में मनु के कथन ही उद्दृत करता है| इसी तरह बुद्ध ने भी धम्म पद में मनु के कथन ज्यो के त्यों लिखे है..इनमे बस भाषा का भेद है मनुस्म्र्ती संस्कृत में है ओर धम्मपद पाली में ..देखिये मनुस्म्रती के श्लोक्स धम्मपद में :

अभिवादन शीलस्य नित्यं वृध्दोपसेविन:|

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्||मनुस्मृति अध्याय२ श्लोक १२१||
अभिवादन सीलस्य निञ्च वुड्दा पचभिनम्|
खतारी धम्मावड््गत्ति आनुपवणपीसुलम्||धम्मपद अध्याय ८:१०९||
न तेन वृध्दो भवति,येनास्य पलितं शिर: |
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवा स्थविंर विदु:||मनुस्मृति अध्याय२:१५६||
न तेन चेरो सीहोती चेत्तस्य पालितं सिरो|
परिपक्को वचो तस्यं पम्मिजितीति बुध्दवति||धम्मपद ९:१२०||

iइन निम्न श्लोको को आप देख सकते है ,और धम्मपद के भी निम्न वाक्य देख सकते है जो काफी समानता दर्शाते है ..इससे पता चलता है की बुद्ध ओर अन्य बौद्ध विद्वान मनुस्म्रती से प्रभावित थे|
मनु द्वारा धर्म के १० लक्षणों में से एक अंहिसा को जैन ओर बुद्धो ने अपने मत का आधार बनाया था ..
अब मनु पर लगाये आरोपों की  संछेप में यहाँ विवेचना करते है :-
(१) मनु द्वारा वर्णव्यवस्था चलाना :
मह्रिषी मनु वर्णव्यवस्था के समर्थक थे लेकिन वे जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था के नहीं बल्कि कर्म आधरित वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे जो की मनुस्म्र्ती के निम्न श्लोक्स से पता चलता है :-
शूद्रो ब्राह्मणात् एति,ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्|

क्षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात्तथैव च||
(मनुस्मृति १०:६५)
गुण,कर्म योग्यता के आधार पर ब्राह्मण,शूद्र,बन जाता है| ओर शूद्र ब्राह्मण|
इसी प्रकार क्षत्रिए ओर वैश्यो मे भी वर्ण परिवरितन समझने चाहिअ|

ओर महात्मा बुद्ध भी कर्माधारित वर्ण व्यवस्था को समर्थन करते थे ..वर्ण व्यवस्था का विरोध उन्होंने भी नही किया था|इस बारे में अलग से ब्लॉग पर एक नया लेख आगे लिखा जायेगा |
(२) मनु पर जातिवाद लाने का आरोप :-
ये सत्य है की मनु ने जाति शब्द का प्रयोग किया लेकिन ये इन लोगो का गलत आरोप है की मनु ने जाति व्यवस्था की नीव डाली ..मनु ने जाति शब्द का अर्थ जन्म के लिए किया है न की ठाकुर ,ब्राह्मण ,भंगी आदि जाति के लिए ..देखिये मनुस्म्रती से :-
 जाति अन्धवधिरौ(१:२०१)=जन्म से अंधे बहरे|

जाति स्मरति पौर्विकीम्(४:१४८)=पूर्व जन्म को स्मरण करता है|
द्विजाति:(१०.४)=द्विज ,क्युकि उसका दूसरा जन्म होता है|
एक जाति:(१०.४) शुद्र क्युकि विद्याधरित दूसरा जन्म नही होता है|

अत स्पष्ट है मनु जातिवाद के जनक नही थे …
(३) मनु पर नारी विरोधी का आरोप :-
मनुस्मृति में निम्न श्लोक आता है :-
पुत्रेण दुहिता समा(मनु•९.१३०)
पुत्र पुत्री समान है|वह आत्मारूप है,अत: पैतृक संपति की अधिकारणी है|
इससे पता चलता है कि मह्रिषी मनु पुत्र ओर पुत्री को समान मानते है |
मनु के कथन को निरुक्त कार यास्क मुनि उदृत कर कहते है :-
अविशेषेण पुत्राणां दायो भवति धर्मत:|
मिथुनानां विसर्गादौ मनु: स्वायम्भुवोsब्रवीत्(निरूक्त३:१.४)
सृष्टि के आरंभ मे स्वायम्भुव मनु का यह विधान है कि दायभाग = पैतृक भाग मे पुत्र पुत्री का समान अधिकार है|
अत स्पष्ट है कि मनु पुत्री को पेतर्क सम्पति में पुत्र के सामान अधिकार देने का समर्थन करते थे ..
मनु से भारत ही नही विदेश में भी कई प्रभावित थे चम्पा दीप (दक्षिण वियतनाम ) के एक शीला लेख में निम्न मनु स्मरति का श्लोक मिला है :-
वित्तं बन्धुर्वय: कर्म विद्या भवति पञ्चमी|
एतानि मान्यस्थानानि गरीयो यद्यत्तरम्||[२/१३६|
इसी तरह वर्मा,कम्बोडिया ,फिलिपीन दीप आदि जगह मनु और उनकी स्मृति की प्रतिष्टा देखी जा सकती है|
लेकिन भारत में ही एक वर्ग विशेष उनका विरोधी है जिसका कारण है मनुस्म्रती में प्रक्षेप अर्थात कुछ लोभी लोगो द्वारा अपने स्वार्थ वश जोड़े गये श्लोक जिनके आधार पर अपने वर्ग को लाभ पंहुचाया जा सके ओर दुसरे वर्ग का शोषण कर सके ..
मनुस्मर्ती में कैसे और कोन कोनसे प्रक्षेप है इसे जानने के लिए निम्न लिंक पर जा कर विशुद्ध मनुस्मर्ती डाउनलोड कर पढ़े :
वही इस चीज़ को अपने वोट बैंक के लिए कुछ दलित नेता भी बढ़ावा देते है ताकि ब्राह्मण विरोध को आधार बना कर अपना वोट पक्का कर सके इसके लिए वै आर्ष ग्रंथो को भी निशाना बनाते है | एक दलित साहित्यकार स्वप्निल कुमार जी अपनी एक पुस्तक में लिखते है की मनु शोषितों ओर किसानो का नेता था|(भारत के मूल निवाशी और आर्य आक्रमण पेज न ६१) इनके इस कथन पर हसी आती है कि कभी मनु को मुल्निवाशी नेता तो कभी विदेशी आर्य ये लोग अपनी सुविधा अनुसार बनाते रहते है |
मनुस्म्रति से सम्बंदित इसी तरह के आरोपों के निराकरण के लिए निम्न पुस्तक मनु का विरोध क्यूँ अवश्य पढ़े जो की इसी ब्लॉग के ऊपर होम के पास दिए गये लिंक में है …
अंत में यही कहना चाहूँगा की प्रक्षेपो के आधार पर मनु को गाली न देवे इसमें महाराज मनु का कोई दोष नही है ..सबसे अच्छा होगा की मनुस्मर्ती से प्रक्षेप को हटा मूल मनु स्मृति का अनुशरण किया जाये जैसे की सुरेन्द्र कुमार जी की विशुद्ध मनुस्मृति ….
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ :-(१) मनु का विरोध क्यूँ ?- सुरेन्द्र कुमार 
(२) विशुद्ध मनुस्मृति -डा सुरेन्द्र कुमार 
(३) निरुक्त -यास्क मुनि 
(४) वृहत भारत का इतिहास भाग ३-आचार्य रामदेव 
                                              (५) बोलो किधर जाओगे -आचार्य अग्निव्रत नेष्ठिक जी  

अम्बेडकर की सांख्य दर्शन के प्रति भ्रान्ति

डॉ अम्बेडकर की वेदों के प्रति कुछ भ्रान्ति के बारे में हमने पिछली पोस्टो पर लिखा .इस बार अम्बेडकर जी की सांख्य दर्शन पर भ्रान्ति का निराकरण का प्रयास किया है ..
डॉ अम्बेडकर जी अपने बुद्ध और उनका धम्म नामक पुस्तक में लिखते है की सांख्य दर्शन के रचेता कपिल मुनि ईश्वर को नही मानते है ओर अम्बेडकर जी ये भी मानते है कि गौतम बुद्ध इस दर्शन से प्रभावित थे और उन्होंने इस की शिक्षा भी ली ..वैसे बुद्ध साहित्य के अनुसार बुद्ध ने सांख्य की ही नही वेदों की भी शिक्षा ली थी ..बुद्ध ग्रन्थ ललितविस्तर में इसका उलेख है :-
“स ब्रह्मचारी गुरुगेह वासी ,तत्कार्यकारी विहितान्नभोजी।
सांय प्रभात च हुताशसेवी ,वृतेन वेदाश्चं समध्यगीष्ट ।।”
अर्थात सिद्धार्थ गौतम ने ब्रह्मचारी बन,गुरु के कुल में निवास और उन की सेवा करते हुए शास्त्र विहित भोजन,प्रात सांय हवन और व्रतो को धारण करते हुए वेदों का अध्यन्न किया …
अत: यह स्पष्ट है कि बुद्ध ने सनातन ग्रंथो की शिक्षा ली थी ..
अब अम्बेडकर जी की भ्रान्ति देखते है जिसमे उन्होंने माना है की सांख्य कार ईश्वर को नही मानता है ,,

अब हम यहा यही कहेंगे की अम्बेडकर जी ने शायद सांख्य दर्शन नही पढ़े होंगे ..या फिर किसी फिरंगी अनुवादक या किसी वेद विरुधि की पुस्तक पढ़ ये बात लिखी होगी ..
सांख्य से ही प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे है कि सांख्य कार कपिल मुनि जी ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे :
“स हि सर्ववित् सर्वकर्ता (सांख्य ३:५६)” अर्थात ईश्वर सर्वत्र और निमित कारण रूप से जगत का कर्ता है …….
“ईदृशेश्वरसिद्ध: सिद्धा (सांख्य ३:५७ )” ऐसे जगत के निमित कारण रूप सर्वत्र ईश्वर की सिद्धी सिद्ध है …..
इन उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि कपिल मुनि ईश्वर को मानते थे ..अब उनके वेद विषय में देखते है :-
” नात्रिभीपौरुषेयत्वाद्वेदस्यतदर्थस्यातिन्द्रियत्वात् (सांख्य ५:४१)” वेद अपौरुष होने और वेदार्थ के अति इन्द्रिय होने से उक्त तीनो कारणों से नही हो सकता है …
“पौरुषेयत्व तत्कर्त्तः पुरुषस्याऽभावत् (सांख्य ३:५६)” वेदों का कर्ता पुरुष न होने से पौरुषेत्व नही बनता है …
इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट है कि सांख्य कार कपिल ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे ..
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ :-(१) सांख्य दर्शन 
(२) वेदों का यथार्थ स्वरूप :-प. धर्मदेव जी  

बुद्ध मत में अन्धविश्वास

अक्सर बुद्ध मत के समर्थक ओर नास्तिक अम्बेडकरवादी सनातन धर्म पर अंधविश्वास का आरोप लगाते है ,ओर खुद को अंधविश्वास रहित बताते बताते नही थकते है ..लेकिन हद तो तब कर देते है जब वेदों पर भी अंधविश्वास का आरोप लगाते है ..यहाँ हम बुद्ध मत में वर्णित विभिन्न तरह के अंधविश्वास ,काल्पनिक बातें और आडम्बर के बारे में बतायेंगे ..बुद्धो में हीनयान,महायान ,सिध्यान ,वज्रयान नाम के कई सम्प्रदाय है इन सभी में अंधविश्वास आपको मिल जायेगा …
बुद्धो में भूत ,पिशाच के बारे में अंध विश्वास :-
एक समय की बात है कि मुर्रा नाम की एक भूतनी ने भेष बदल कर बुद्ध से प्रेम का इकरार किया लेकिन बुद्ध ने मना कर दिया ,,उसने नृत्य ,श्रृंगार ,रूप आदि से बुद्ध को लुभाने की खूब कोसिस की लेकिन बुद्ध ने उसकी एक न मानी ..तब क्रोधित मुर्रा भूतनी ने बुद्ध पर आक्रमण किया लेकिन उसके सारे हमले निष्फल हो जाते है ..फिर वो भूतनी अपने भूत प्रेतों के टोले के साथ आक्रमण करती है ..लेकिन बुद्ध पर इन सबका कोई प्रभाव नही होता है और फिर सभी भूत और भूतनिया बुद्ध के आगे झुक जाती है ..और बुद्ध इन्हें मोक्ष प्रदान करते है ..
अब इस काल्पनिक कहानी से निम्न प्रश्न उठते है :-
क्या बुद्ध मत भूत ,प्रेत को मानता है ..
क्या कोई आत्मा किसी के प्रति आकर्षित हो सकती है ..
क्या आत्मा भूत आदि सम्भोग की इच्छा कर सकते है ..

इसी तरह प्रेतवत्तु सूक्त के अनुसार जब कोई व्यक्ति तपस्या करते भिक्षु को कंकड़ मारता है तो वो प्रेत बन जाता है ..इसी सूक्त में एक और प्रेतनी का वर्णन है जो कि गंगा के पास पानी पीने जाती है और उसे नदी का पानी लहू दिखने लगता है ……
इस तरह की अनेक भूत पिशाचो की बातें बुद्ध मत में मिलेगी ………………………………………………..
  बुद्ध मत में आडम्बर :-                                                                                                                          
(१)प्रार्थना चक्र :-
चित्र में बुद्ध भिक्षुओ के पास एक प्रार्थना चक्र है जिसे ये घुमाते रहते है ,,आइये जानते है प्रार्थना चक्र के बारे में
ये हाथ में पकड़ कर घुमाने की साइज़ से लेकर १०० फिट का होता है …जिसे गूगल पर बुद्ध प्रेयर व्हील नाम से खोज कर देख सकते है …
इस पर संस्कृत में लिखा होता है ,ॐ मणि पद्मे हुम् “
इनका मानना है कि चक्र को घुमाने से मन पवित्र होता है और पुण्य प्राप्त होता है …भूत प्रेत आदि नकाराताम्क उर्जाये दूर होती है ..
इस चक्र को घडी की दिशा में घुमाने से ध्यान अच्छे से लगता है और विपरीत दिशा में घुमाने से तंत्र में सफलता मिलती है …यदि कोई जानवर भी इसकी छाया से गुजरे तो उसे भी अध्यात्म की प्राप्ति होती है ….
अब ये बात लोग खुद सोचे क्या चक्र से भूत भाग सकते है ?
क्या चक्र से अध्यात्मिक सुख की अनुभूति हो सकती है ?
बुद्धो द्वारा दांत की पूजा करने वाले एक मंदिर को इस लिंक में देखिये /Temple_of_the_Tooth
इससे पता चलता है कि बुद्धो में कितना पाखंड भरा है ..इसी तरह ये लोग बुद्ध के भिक्षा पात्र की भी पूजा करते है …                                                                                                                                                           विमानवत्थु सूक्त के अनुसार स्तूप (मठो आदि ) पर माला अर्पण करने से शांति और अध्यात्म ,सुख की प्राप्ति होती है …अब अन्धविश्वासी बुद्धो से कोई पूछे की अच्छे कर्मो से सुख ,अध्यात्म आएगा या माला आदि ढोंगो से ..
बुद्ध द्वारा काल्पनिक चीजों का निर्माण :-                                                                                               
बुद्ध वंस के रतनचंगमनण्ड के अनुसार धम्मप्रवर्तक चक्र चलाने से पहले बुद्ध बुद्ध जादू से रत्नों और मणियो से सुसज्जित रत्न खचित चक्रमण भूमि का निर्माण करते है …

अशोकवंदन अनुसार उसने पिछले जन्म में 500 हिरनों की ऑंखें फोड़ दी थी
फलस्वरूप
वह पैदा तो आँखों के साथ हुआ पर उसके आँखों की रौशनी चली गई बाद में
कैसे गई इसपर कई कहानी है
बाद में एक अरहंत या एक सिद्ध बोध भिक्षु ने अपनी शक्तियों से कुनाल की आंखे ठीक करदी …

महा बौधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति का सम्बन्ध ये लोग स्वयं बुद्ध से बताते है ..कहा जाता है कि इसमें बुद्ध की आकर्षण मूर्ति की स्थापना करने का विचार किया गया लेकिन कोई ऐसा शिल्पकार नही मिला जो बुद्ध की मूर्ति बना सके ..
सहसा एक व्यक्ति आया और उसने बुद्ध की मूर्ति बनाने की बात कही लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्त भी रखी …कि उसे पत्थर का एक स्तम्भ और लेम्प दिया जाये ..
उसकी एक और शर्त थी कि उसे ६ महीनो का समय दिया जाए और उससे पहले कोई भी मंदिर का दरवाजा न खोले ……
उसकी शर्त मान ली गयी..लेकिन व्याकुल ग्राम वासियों ने तय समय से ४ दिन पहले मंदिर के द्वार खोल दिए ..उन्होंने मंदिर में एक आकर्षित मूर्ति देखि .जिसका हर अंग आकर्षित था सिवाय छाती के क्यूँ की छाती वाला भाग अभी तक नही तराशा गया था …
कुछ समय बात बुद्ध भिक्षु इस मंदीर में रहने लगे और एक बुद्ध भिक्षु के सपने में आकर भगवन बुद्ध बोले की ये मूर्ति उन्होंने बनाई है …..
इसी तरह की कई काल्पनिक बातें बुद्ध साहित्यों और बुद्धो द्वारा प्रचारित की जाती है जिससे अंधविश्वास को बढवा मिलता है ….
भविष्यवाणी ओर भाग्यवाद सम्बंधित पाखंड :-
उपरोक्त चित्र लाफिंग बुद्ध का है ,,जिसे ये बुद्ध लोग ये मानते है कि घर में रखने से सुख समर्धि और शांति प्राप्त होती है …अब भला बिना पुरुषार्थ के एक जड़ से सुख शांति कैसे मिल सकती है ये बात तो यही बुद्ध जानते होंगे …
इनता ही नही ये बुद्ध किसी भी व्यक्ति की भविष्यवाणी भी कर देते थे ..पुब्बकम्मपिलोतिक बुद्ध अपदान में बुद्ध ओर उनसे पूर्व के २४ और साथ के ३ और आगे आने वाले बुद्ध के बारे में ..उनके जीवन परिचय के बारे में है …
इसी के बुद्धपकिण्णक कण्ड के अनुसार गौतम बुद्ध आने वाले बुद्ध मेतेर्य बुद्ध की भविष्यवाणी करते है ..
(१) सरुची नाम के तपस्वी के लिए पनोमदस्सी भगवान ने भविष्य वाणी की कि यह अपने अंतिम जीवन में सारिया नाम की ब्राह्मणी की कोख से पैदा होकर सारीपुत्त नाम वाला होकर पेनी प्रज्ञा वाला होगा …यह उस समय धर्मचक्र अनुप्रवर्तक बनेगा ..    (सारीपुत्तत्थेर अपदान )
(२) कोसिय नाम के जटाधारी के लिए पुदुमुतर भगवान ने भविष्यवाणी की कि यह इश्वाकू वंश के कुले गौतम शाशककाल में प्रव्रज्या प्राप्त कर उनका सुभूति नामका श्रावक होगा ..(सूभूतित्थेर अपदान )
(३) अनोम नाम के तापस के लिए पियदस्सी भगवान ने भविष्यवाणी की कि चक्षुमान गौतम बुद्ध के शासक काल में यह अभिरमण करता हुआ ,उनके धर्म को सुन कर, अपने दुखो का विनाश करेगा और सारे आसन्वो का परिज्ञान कर अनानसव होकर निर्वान प्राप्त करेगा …(हेमकत्थेर अपादान )
अब निम्न बातो को पढने से पता चलता है कि बुद्ध मत भी पाखंडियो की तरह कर्म को महत्व न दे भाग्यवाद और भविष्यवाणी में विश्वास करता है ….
संभोग योगा :-                                                                                                                                         
बुद्ध मत में वज्रयान नाम की एक शाखा है .जिसमे तरह तरह के तंत्र मन्त्र होते है ..ये तरह तरह के देवी देवताओ विशेष कर तारा देवी को पूजते है …
ये लोग वाम्मार्गियो की तरह ही बलि और टोटके करते है ..इन्ही में भेरवी चक्र होता है ..जिसमे ये लोग शराब और स्त्री भोग करते है ..जिसे ये सम्भोग योग कहते है ..इनका मानना है की विशेस तरह से स्त्री के साथ योन सम्बन्ध बनाने से समाधी की प्राप्ति होती है ..इस तरह का पाखंड इन बुद्धो में भरा है ..एक महान बौद्ध राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार भारत में   बुद्ध मत का नाश इसी वज्रयान के कारण हुआ था …………………..
आज भी थाईलैंड ,चाइना आदि वज्रयान बुद्ध विहारों पर कई नाबालिक लडकियों का कौमार्य इन दुष्ट भिक्षुओ द्वारा तोडा जाता है ……
अन्य बौद्ध पाखंड या काल्पनिक बातें :-                                                                                                      
मझिम निकाय के अनुसार बुद्ध लाखो में विभक्त होकर एक हो जाते थे ..बुद्ध खुद को बहुत विशाल ओर खुद को चीटी जैसा छोटा भी कर लेते थे ..                                                                                                             शीलवती बौद्ध भिक्षुणी के पैर के अंगूठे को बुद्ध देव सपने में आकर छू देते है ओर वह गर्भवती हो जाती है …
जापानी बुद्धो द्वारा एक लोक कथा प्रचलित है की एक भिक्षुणीकी  जिसे ८०० नन कहा जाता है ..   जापान में एक मान्यता थी की यदि कोई जलपरी का मॉस खा ले तो अमर बन जाएगा ..अब उस भिक्षुणी का नाम था याओ .याओ के पिता एक मछुवारे थे ..एक दिन उनके जाल में जल पारी फस गयी और याओ ने उसका मॉस खा लिया जिसके कारण वह अमर हो गयी तक़रीबन ८०० साल बाद वह बुद्ध की शरण में गयी और मोक्ष को प्राप्त कर गयी …
ललितविस्तर सूक्त के अनुसार बुद्ध पैदा होते ही चलने लगे थे और जहा जहा वे चलते वहा वहा कमल खिलने लगते …
इस तरह की कई अवैज्ञानिक ,स्रष्टि नियम विरुद्ध बातें बुद्ध मत में आपको मिलेगी लेकिन दुसरो के बारे में बोलने वाले नास्तिक कभी भी अपने अंधविश्वास को नही उजागर करेंगे ,,
यहा हमने बुद्धो के कुछ ही अंधविश्वास प्रस्तुत किये है ..इसके अलावा बुद्ध साहित्य और बुद्ध स्थलों ,मठो और बिहारो में तरह तरह के पाखंड देखे जा सकते है ..पाठक गण थोड़े से ही पता कर सकते है की बुद्ध मत में कितना पाखंड है ………….

नास्तिकों के दावों का खण्डन

 

– ओउम् –
नमस्ते प्रिय पाठकों, नास्तिक मत भी एक विचित्र मत है जो इस सृष्टि के रचियता और पालनहार यानि ईश्वर को स्वीकार नहीं करते और उसे केवल आस्तिकों की कल्पना मात्र बताते हैं। परंतु वे यह भूल जाते हैं कि हर चीज के पीछे एक कारण होता है। बिना कर्ता कोई क्रिया नहीं हो सकती। यही सृष्टि के लिये भी लागू होता है।
ईश्वर ही इस सृष्टि के उत्पन्न होने का कारण है। परंतु यह बात नास्तिक स्वीकार नहीं करते और तरह-तरह के तर्क देते हैं। अपने मत के समर्थन में कितने सार्थक हैं उनके तर्क आइये देखते हैं।
हम यहाँ नास्तिकों के दावों का खण्डन करेंगे। महर्षि दयानन्द ने अपनी पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” में नास्तिकों के तर्कों का खण्डन पहले ही कर दिया है। हम नास्तिकों द्वारा हाल ही में किये दावों का खण्डन करेंगे।
नास्तिकों के दावे और उनकी समीक्षा:
दावा – नास्तिकों के अनुसार ईश्वर हमारा रचियता नहीं है क्योंकि ईश्वर हमें पैदा नहीं करता अपितु हमारे माता पिता के समागम से हम जन्म लेते हैं। इसलिये ईश्वर हमारा रचियता नहीं है।
समीक्षा – केवल इतना कह देने से ईश्वर की सत्ता और उसका अस्तित्व अस्वीकार कर देना मूर्खता होगी। माता पिता के समागम से बच्चा पैदा होता है क्योंकि ईश्वर ने ऐसा ही विधान दिया है। एक माता को यह नहीं पता होता की उसके गर्भ में पल रहा शिशु लड़का है या लड़की, न ही उसे यह पता होता है कि उस शिशु के शरीर में कितनी हड्डियाँ हैं। न ही उन्हें यह पता होता है कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है या नहीं अर्थात बच्चे को कोई आन्तरिक रोग तो नहीं है? यदि माता पिता ही सब कुछ जानने वाले होते तो वे बच्चे भी अपनी मर्जी से पैदा करते अर्थात लड़का चाहते तो लड़का और लड़की चाहते तो लड़की। इससे पता चलता है कि माता पिता का समागम केवल शिशु उत्पन्न करता है। शिशु कौन होगा और कैसा होगा यह उनको नहीं पता होता। केवल ईश्वर ही यह बात जानता है और मनुष्य नहीं, क्योंकि ईश्वर ने उन्हें ऐसा बनाया है।
दावा – कुछ बच्चे बीमार भी पैदा होते हैं और कुछ पैदा होती ही मर भी जाते हैं। कुछ को पैदा होती ही ऐसे रोग भी लग जाते हैं जो जिंदगी भर उनके साथ रहते हैं। यदि ईश्वर है तो उसने इन बच्चों को ऐसा क्यों बनाया अर्थात इन्हें रोग क्यों दिये इनको स्वस्थ पैदा क्यों नहीं किया?
समीक्षा – क्योंकि ईश्वर की सत्ता में कर्मफल का विधान है। ये बच्चे भी उसी का परिणाम हैं। और बाकि उसके माता पिता पर भी निर्भर करता है कि उनका आचरण कैसा है। माता पिता यदि उच्च आचरण वाले होंगे तो उनकी सन्तान भी स्वस्थ पैदा होगी। यदि माता पिता का आचारण नीच होगा तो सन्तान भी नीच और विकारों वाली पैदा होगी। और बाकि उस शिशु के पूर्वजन्म के कर्मों पर भी निर्भर करता है। ईश्वर किसी के साथ अन्याय नहीं करता। जैसे जिसके कर्म होंगे वैसा ही उसे फल मिलेगा, चाहे शिशु हो या चाहे व्यस्क। यही कर्मफल का सिद्धांत है।
दावा – ईश्वर की बनाई यह सृष्टि परिशुद्ध अर्थात परफेक्ट नहीं है क्योंकि जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं वह परफेक्ट नहीं है। इसमें कहीं समुद्र है, कहीं रेगिस्तान, कहीं द्वीप, कहीं ज्वालामुखी और कहीं पर्वत। अगर ईश्वर परिशुद्ध होता तो अपनी पृथ्वी को भी वैसा ही बनाता परंतु ऐसा नहीं है। पृथ्वी परफेक्ट नहीं है और इससे यह पता चलता है कि ईश्वर भी परफेक्ट नहीं है।
समीक्षा – चलिये आपने माना तो कि ईश्वर है। अब वह परिशुद्ध है या नहीं इसका निर्णय भी हो जायेगा। पृथ्वी पर विभिन्न जगह विभिन्न चीज़े ईश्वर ने दी हैं। तो क्या इससे यह मान लिया जाये कि पृथ्वी परफेक्ट नहीं है? कदापि नहीं। ईश्वर ने किसी कारण से ही इसको ऐसा रूप दिया है। यदि वह इसको पूर्णतः गोल और चिकनी बना देता, तो न तो यहाँ समुद्र होते जिसके कारण वर्षा न होती और वर्षा न होती तो खेती न हो पाती, और अगर खेती न हो पाती तो मनुष्य को भोजन न मिलता और वह भूखा मर जाता। यदि पृथ्वी पर ज्वालामुखी न होते तो पृथ्वी के अंदर का लावा धरती को क्षती पहुँचाकर बाहर निकलता जिससे मानव और जीव दोनों की हानि होती। अब इनको पृथ्वी पर बनाने में ईश्वर की परफेक्टनेस न कहें तो और क्या कहें!? जिसने सभी जीव, जन्तु, वनस्पति का ध्यान रखते हुए इस पृथ्वी को रचा। केवल मूर्ख ही इस बात को अब अस्वीकार करेंगे।
दावा – हम केवल ब्रह्म अर्थात चेतना को सत्य मानते हैं और यह जगत केवल मिथ्या है। इसका कोई रचियता नहीं है। जो हम देखते हैं अपने आस पास वह केवल हमारी चेतना द्वारा किया गया एक चित्रण है।
समीक्षा – यदि ब्रह्म ही सत्य है और यह जगत केवल मिथ्या तब इस जगत में जीव दुःख, सुख, क्रोध आदि भौतिक भाव क्यों अनुभव करता है? क्या हमारी चेतना केवल सुख का संसार ही नहीं बना सकती थी? यदि यह जगत मिथ्या है तो मनुष्य के अतिरिक्त दूसरी जीवात्मा (जानवर, जन्तु) का इस जगत में क्या प्रयोजन है? यह जगत को मिथ्या मानना केवल मूर्खता है। ईश्वर ने यह जगत किसी प्रयोजन से रचा है ताकि जीवात्मा ईश्वर द्वारा दिये वेदों को जानकर, उनका अनुसरण कर मोक्ष को प्राप्त हो सके। जैसे एक इंजीनियर ही अपने द्वारा बनाई गयी प्रणाली को भली भाँति जानता है, उसी प्रकार केवल ईश्वर ही इस सृष्टि को जानता है।
वेदों में नास्तिकता के विषय में कहा है:
अवंशे द्यामस्तभायद् बृहन्तमा रोदसी अपृणदन्तरिक्षम् | स धारयत्पृथिवी पप्रथच्च सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार || ऋग 2.15.2
कोई नास्तिकता को स्वीकार कर यदि ऐसे कहें कि जो ये लोक परस्पर के आकर्षण से स्थिर हैं इनका कोई धारण करने वा रचनेवाला नहीं हैं उनके प्रति जन ऐसा समाधान देवें कि यदि सूर्यादि लोकों के आकर्षण से ही सब लोक स्थिति पाते हैं तो सृष्टि के आगे कुछ नहीं है वहाँ के लोकों के आकर्षण के बिना आकर्षण होना कैसे सम्भव है ? इससे सर्वव्यापक परमेश्वर की आकर्षण शक्ति से ही सूर्यादि लोक अपने रूप और अपनी क्रियाओं को धारण करते हैं | ईश्वर के इन उक्त कर्मों को देख धन्यवादों से ईश्वर की प्रशंसा सर्वदा करनी चाहिए ||
आगे ईश्वर उपदेश करता है:
असृग्रमिन्द्र ते गिरः प्रति त्वामुदहासत। अजोषा वृषभं पतिम॥ (ऋग्वेद 1.9.4)
जिस ईश्वर ने प्रकाश किये हुए वेदों से जाने अपने-अपने स्वभाव, गुण और कर्म प्रकट किये हैं, वैसे ही वे सब लोगों को जानने योग्य हैं, क्योंकि ईश्वर के सत्य स्वभाव के साथ अनन्तगुण और कर्म हैं, उनको हम अल्पज्ञ लोग अपने सामर्थ्य से जानने को समर्थ नहीं हो सकते। तथा जैसे हम लोग अपने-अपने स्वभाव, गुण और कर्मों को जानते हैं, वैसे औरों को उनका यथावत जानना कठिन होता है, इसी प्रकार सब विद्वान् मनुष्यों को वेदवाणी के बिना ईश्वर आदि पदार्थों को यथावत् जानना कठिन होता है। इसलिए प्रयत्न से वेदों को जानके उनके द्वारा सब पदार्थों से उपकार लेना तथा उसी ईश्वर को अपना इष्टदेव और पालन करनेहारा मानना चाहिए।
जड़ पदार्थों के विषय में लिखा है:
यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन । स धीनां योगमिन्वति॥ (ऋग्वेद 1.18.7)
व्यापक ईश्वर सब में रहनेवाले और व्याप्त जगत् का नित्य सम्बन्ध है वही सब संसार को रचकर तथा धारण करके सब की बुद्धि और कर्मों को अच्छी प्रकार जानकर सब प्राणियों के लिये उनके शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार सुख-दुःखरूप फल देता है। कभी ईश्वर को छोड़ के अपने आप स्वभाव मात्र से सिद्ध होनेवाला, अर्थात् जिस का कोई स्वामी न हो ऐसा संसार नहीं हो सकता क्योंकि जड़ पदार्थों के अचेतन होने से यथायोग्य नियम के साथ उत्पन्न होने की योग्यता कभी नहीं होती॥
अब पाठक गण स्वंय निर्णय लेंवे और सत्य को स्वीकार और असत्य का परित्याग करें। और सदा उस परमपिता परमात्मा का ही गुणगान करें जिसने हमें यह अमूल्य जीवन दिया है।
हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक ऽआसीत् | स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम || (यजुर्वेद 13.4)

 

हे मनुष्यों! तुमको योग्य है कि सब प्रसिद्ध सृष्टि के रचने से प्रथम परमेश्वर ही विद्यमान था, जीव गाढ़ा निद्रा सुषुप्ति में लीन और जगत का कारण अत्यन्त सूक्ष्मावस्था में आकाश के समान एकरस स्थिर था, जिसने सब जगत् को रचके धारण किया और अन्त्य समय में प्रलय करता है, उसी परमात्मा को उपासना के योग्य मानो ||