अग्नि नामक जगदीश्वर की महिमा -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः पुरोधा: । देवता अग्निः। छन्दः आर्षी त्रिष्टुप् ।
अन्व॒ग्निरुषसमग्रमख्युदन्वहानि प्रथमो जातवेदाः
-यजु० ११ । १७ |
( अग्निः ) तेजस्वी अग्रनायक जगदीश्वर ( उषसाम् अग्रम् ) उषाओं के अग्रभाग को (अनु अख्यत् ) अनुक्रम से प्रकाशित करता है। (प्रथमः जातवेदाः ) वही श्रेष्ठ, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वप्रकाशक जगदीश्वर ( अहानि ) दिनों को ( अनु-अख्यात् ) अनुक्रम से प्रकाशित करता है। वही ( सूर्यस्य) सूर्य की ( पुरुत्रा) बहुत-सी ( रश्मीन्) रश्मियों को ( अनु अख्यत्) अनुक्रम से प्रकाशित करता है। हे प्रभु तूने ही ( द्यावापृथिवी ) द्यु-लोक और पृथिवी-लोक को ( अनु आततन्थ) विस्तीर्ण किया है।
रात्रि का निविड़ अन्धकार दूर हुआ है। उषा का अग्रभाग प्राची में झाँक रहा है। गगन में लाली छा गयी है। तमस्तोम को चीर कर आकाश में लाली लानेवाला कौन है ? ‘अग्नि’ नामक तेजस्वी प्रभु की ही यह करामात है, उसी ने उषा के अग्रभाग को प्रकाश से चमकाया है। निशा काली होती है, दिन प्रकाश से प्रकाशमान हैं । दिनों को प्रकाश से भरनेवाला, ज्योति से जगमगायेवाला कौन है ? ‘जातवेदाः अग्नि’, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, प्रकाशमान प्रभु की ही यह लीला है। इधर भी दृष्टि डालो। उषा आयी, प्रभात खिला, सूर्य की रश्मियाँ चारों ओर फैल गयी हैं, दिशाएँ सूर्यकिरणों से झिलमिला रही हैं। यजुर्वेद ज्योति क्रमश: आकाश-प्राङ्गण में प्रभाकर की प्रभावान् रश्मियों के जाल को फैलानेवाला कौन है? उस ज्योतिष्मान् ‘अग्नि’ नामक जगदीश्वरे की ही यह क्रीडा है। उसी खिलाड़ी का यह खेल है, उसी की यह मनोहर महिमा है। द्यावापृथिवी की ओर भी निहारो। इस पृथिवी को नाना ऐश्वर्यों से किसने भरा है, किसने भूगर्भ में सोना, चाँदी, ताँवे, लोहे, गन्धक की खाने भरी हैं ? किसने पृथिवीतल पर वृक्ष-वल्लरियाँ रोपी हैं ? किसने उन पर रंग-बिरंगे पुष्प और परिपक्व फल लगाये हैं? किसने भूमि पर हिमधवल पर्वत खड़े किये हैं? कौन हिम पिघला कर नदियाँ बहाता है ? किसकी करनी से झरनों से पानी झरता है? कौन पृथिवी पर अथाह समुद्र को भरता है? कौन उसकी सीपियों में मोती रखता है? द्युलोक पर भी दृष्टिपात करो। दिग्दिगन्त को प्रकाश से भरनेवाला ज्योति का पुञ्ज सूर्य, असंख्य नक्षत्र, आकाशगङ्गा, आकाश के सप्त ऋषि, ध्रुवतारा, यह सब किसकी कारीगरी है? फिर अन्तरिक्ष में बादल बनना, विद्युत् की आँखमिचौनी और वृष्टि होना किस जादूगर का जादू है? यह सब द्यावापृथिवी का खेल ‘अग्नि’ प्रभु का ही रचाया हुआ है, उसी ने द्यावापृथिवी को विस्तीर्ण किया है।
आओ, उस प्रभु की महिमा का गान करें, उसके अद्भुत शिल्प पर तान छेड़े, उसकी अचरजभरी रचना पर गीत रचे, उसकी मनभावनी सृष्टि पर सरगम का आलाप करें।
पाद टिप्पणियाँ
१. ख्या प्रकथने, अदादिः, प्रकाशन अर्थ में भी प्रयुक्त होता है।
२. जातं वेत्ति, जाते जाते विद्यते, जातं वेदयते ।
३. तनु विस्तारे, लिट्, आतेनिथ । आततन्थ छान्दस रूप। वभूथाततन्थजगृभ्मबबर्थेति निगमे, पा० ७.२.६४ ।
अग्नि नामक जगदीश्वर की महिमा -रामनाथ विद्यालंकार