प्रश्न: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
उत्तर : अवश्य होते हैं पर वैसे नहीं जैसे आप इस समय सोच रहे हैं!
* ईश्वर स्वभाव से चेतन है और चेतन तत्त्व निराकार होता है इसलिए ईश्वर का दीदार, देखना या दर्शन करने का तात्पर्य होता है – उसकी सत्ता का ज्ञान होना, उसकी अनुभूति (feeling) होना! इसी feeling को दार्शनिक भाषा में ‘ईश्वर साक्षात्कार’ कहते हैं।
* “दृश्यन्ते ज्ञायन्ते याथातथ्यत आत्मपरमात्मनो बुद्धिन्द्रियादयोतिन्द्रियाः सूक्ष्मविषया येन तद दर्शनम् “||
अर्थात् जिससे आत्मा, परमात्मा, मन, बुद्धि, इन्द्रियों आदि सूक्ष्म विषयों का प्रत्यक्ष = ज्ञान होता है, उसको दर्शन कहते हैं। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को देखने के लिए ज्ञान-चक्षुओं की आवश्यकता होती है, चरम-चक्षुओं (भौतिक नेत्रों) की नहीं!।
* पदार्थ दो प्रकार के होते हैं – 1) जड़ और 2) चेतन। जड़ वास्तु ज्ञानरहित होती है और चेतन में ज्ञान होता है। प्रकृति तथा उससे बनी सृष्टि की प्रत्येक वास्तु जड़ होती है। परमात्मा और आत्मा दोनों चेतन हैं।
* चेतन (आत्मा) को ही चेतन (परमात्मा) की अनुभूति होती है। चेतनता अर्थात् ज्ञान।
* हमारे नेत्र जड़ होते है, देखने के साधन हैं और जो उनके द्वारा वस्तुओं को देखता है वह चेतन (जीवात्मा) होता है। जह वस्तुचेतन को नहीं देख सकती क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं होता पर चेतन वास्तु (आत्मा और परमात्मा) जड़ और चेतन दोनों को देख सकती है।
* अतः ईश्वर का साक्षात्कार आत्मा ही कर सकता है शर्त यह है कि आत्मा और परमात्मा के बीच किसी भी प्रकार का मल, आवरण या विक्षेप न हो अर्थात् वह शुद्ध, पवित्र और निर्मल हो अर्थात् वह सुपात्र हो।
* ईश्वर की कृपा का पात्र (सुपात्र) बनाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवान को वैदिक नियमों तथा आज्ञाओं के अनुसार बनाए, नियमित योगाभ्यास करे और अष्टांग योग के अनुसार समध्यावस्था को प्राप्त करे। समाध्यावास्था में ही ईश्वर के साक्षात्कार हो सकते हैं, अन्य कोई मार्ग नहीं है।
* इस स्थिति तक पहुँचने के लिए साधक को चाहिए कि वह सत्य का पालन करे और किसी भी परिस्थिति में असत्य का साथ न दे। जब तक जीवन में सत्य का आचरण नहीं होगा ईश्वर की प्राप्ति या उसके आनन्द का अनुभव (feeling) नामुमकिन है जिस की सब को सदा से तलाश रहती है।
See translation:-
योग के सन्दर्भ में, स्वस्थ जीवन, आध्यात्मिक ज्ञान, तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिये आवश्यक यम- नियम:–
The 5 (यम)Yamas listed by Patañjali in Yogasūtra are:
–Ahiṃsā (अहिंसा): Nonviolence, non-harming other living beings.
–Satya (सत्य): truthfulness, non-falsehood.
–Asteya (अस्तेय): non-stealing.
–Brahmacharya (ब्रह्मचर्य): chastity, marital fidelity or sexual restraint.
–Aparigraha (अपरिग्रहः): non-avarice, non-possessiveness.
The 10 (यम) Yamas listed in Śāṇḍilya Upanishad, are:
–Ahiṃsā (अहिंसा): Nonviolence.
–Satya (सत्य): truthfulness.
–Asteya (अस्तेय): not stealing.
–Brahmacharya (ब्रह्मचर्य): chastity, marital fidelity or sexual restraint.
–Kṣamā (क्षमा): forgiveness.
–Dhṛti (धृति): fortitude.
–Dayā (दया): compassion.
–Ārjava (आर्जव): non-hypocrisy, sincerity.
–Mitāhāra (मितहार): measured diet.
–Sauch (शौच): purity, cleanliness.
The 5 (नियम) Niyamas listed by Patañjali in Yogasūtra are:
–Śaucha(शौच): purity, clearness of mind, speech and body.
–Santoṣha(सन्तोष): contentment, acceptance of others and of one’s circumstances as they are, optimism for self.
–Tapas(तपस): accepting and not causing pain.
–Svādhyāya(स्वाध्याय): study of self, self-reflection, introspection of self’s thoughts, speeches and actions.
–Īśvarapraṇidhāna(ईश्वरप्रणिधान): contemplation of the Ishvara (God/Supreme Being, True Self, Unchanging Reality).
The 10 (नियम) Niyamas listed in Śāṇḍilya Upanishad/Varuha Upanishad/ Hatha Yoga Pradipika are:
–Tapas(तपस): persistence, perseverance in one’s purpose, austerity.
–Santoṣa(सन्तोष): contentment, acceptance of others and of one’s circumstances as they are, optimism for self
–Āstika(आस्तिक्य): faith in Real Self (jnana yoga, raja yoga), belief in God (bhakti yoga), conviction in Vedas/Upanishads (orthodox school).
–Dāna(दान): generosity, charity, sharing with others.
–Īśvarapūjana(ईश्वरपूजन): worship of the Ishvara (God/Supreme Being, Brahman, True Self, Unchanging Reality).
–Siddhānta vakya śrāvaṇa(सिद्धान्तवाक्यश्रवण): listening to the ancient scriptures.
–Hrī(हृ): remorse and acceptance of one’s past, modesty, humility.
–Mati(मति): think and reflect to understand, reconcile conflicting ideas.
–Japa(जाप): mantra repetition, reciting prayers or knowledge.
–Huta(हुत): rituals, ceremonies such as yajna sacrifice.
[REGVEDA–1-164-44–N —1-164-1–N 10-5-7–N 164-22 N 10-177-1 N 10-177-2 N ATHARWAVED KA PARMAN –10-8-17 AND 1-164-20 YA]
धन्यवाद।
आर्य समाज द्वारा वैदिक धर्म के उत्थान के लिए।
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