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ऋषि के भक्त : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ठाकुर रघुनाथ सिंह जयपुरः महर्षि जी के पत्र-व्यवहार में वर्णित कुछ प्रेरक प्रसंगों तथा निष्ठावान् ऋषि भक्तों को इतिहास की सुरक्षा की दृष्टि से वर्णित करना हमारे लिए अत्यावश्यक है। ऐसा न करने से पर्याप्त हानि हो चुकी है। ऋषि-जीवन पर लिखी गई नई-नई पुस्तकों से ऋषि के प्रिय भक्त व दीवाने तो बाहर कर दिये गये और बाहर वालों को बढ़ा-चढ़ा कर इनमें भर दिया गया। ऋषि के पत्र-व्यवहार के दूसरे भाग में पृष्ठ 363-364 पर जयपुर की एक घटना मिलती हैं। जयपुर के महाराजा को मूर्तिपूजकों ने महर्षि के भक्तों व शिष्यों को दण्डित करते हुए राज्य से निष्कासित करने का अनुरोध किया। आर्यों का भद्र (मुण्डन) करवाकर राज्य से बाहर करने का सुझाव दिया गया। महाराजा ने ठाकुर गोविन्दसिंह तथा ठाकुर रघुनाथसिंह को बुलवाकर पूछा- यह क्या बात है?

ठाकुर रघुनाथ सिंह जी ने कहा- आप निस्सन्देह इन लोगों का भद्र करवाकर इन्हें राज्य से निकाल दें, परन्तु इस सूची में सबसे ऊपर मेरा नाम होना चाहिये। कारण? मैं स्वामी दयानन्द का इस राज्य में पहला शिष्य हूँ। महाराजा पर इनकी सत्यवादिता, धर्मभाव व दृढ़ता का अद्भुत प्रभाव पड़ा। राजस्थान में ठाकुर रणजीत सिंह पहले ऋषि भक्त हैं, जिन्हें ऋषि मिशन के लिए अग्नि-परीक्षा देने का गौरव प्राप्त है। इस घटना को मुारित करना हमारा कर्त्तव्य है। कवियों को इस शूरवीर पर गीत लिखने चाहिये। वक्ता, उपदेशक, लेखक ठाकुर रघुनाथ को अपने व्यायानों व लेखों को समुचित महत्त्व देंगे तो जन-जन को प्रेरणा मिलेगी।

ठाकुर मुन्ना सिंहः महर्षि के शिष्यों भक्तों की रमाबाई, प्रतापसिंह व मैक्समूलर के दीवानों ने ऐसी उपेक्षा करवा दी कि ठाकुर मुन्नासिंह आदि प्यारे ऋषि भक्तों का नाम तक आर्यसमाजी नहीं जानते। ऋषि के कई पत्रों में छलेसर के ठाकुर मुन्नासिंह जी की चर्चा है। महर्षि ने अपने साहित्य के प्रसार के लिए ठाकुर मुकन्दसिंह, मुन्नासिंह व भोपालसिंह जी का मुखत्यारे आम नियत किया। इनसे बड़ा ऋषि का प्यारा कौन होगा?

ऋषि के जीवन काल में उनके कुल में टंकारा में कई एक का निधन हुआ होगा। ऋषि ने किसी की मृत्यु पर शोकाकुल होकर कभी कुछ लिखा व कहा? केवल एक अपवाद मेरी दृष्टि में आया है। महर्षि ने आर्य पुरुष श्री मुन्नासिंह के निधन को आर्य जाति की क्षति मानकर संवेदना प्रकट की थी। श्री स्वामी जी का एक पत्र इसका प्रमाण है।

वह कौन स्वामी आया? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

वह कौन स्वामी आया? :- हरियाणा के पुराने भजनीक पं. मंगलदेव का एक लबा गीत कभी हरियाणा के गाँव-गाँव में गूंजता थाः- ‘‘वह कौन स्वामी आया?’’

सारे काशी में यह रुक्का (शोर) पड़ गया कि यह कौन स्वामी आ गया? ऋषि के प्रादुर्भाव से काशी हिल गई। मैं हरियाणा सभा के कार्यालय यह पूरा गीत लेने पहुँचा। मन्त्री श्री रामफल जी की कृपा से सभा के कार्यकर्ता ने पूरा भजन दे दिया। यह किस लिये? इंग्लैण्ड की जिस पत्रिका का हमने ऊपर अवतरण दिया है, उसमें ऋषि की चर्चा करते हुए सन् 1871 में कुछ इसी भाव के वाक्य पढ़कर इस गीत का ध्यान आ गया। यह आर्य समाज स्थापना से चार वर्ष पहले का लेख है। सन् 1869 के काशी शास्त्रार्थ में पौराणिक आज पर्यन्त ऋषि जी को पराजित करने की डींग मारते चले आ रहे हैं। इंग्लैण्ड से दूर बैठे गोरी जाति के लोगों में काशी नगरी के शास्त्रार्थ में महर्षि की दिग्विजय की धूम मच गई। हमारे हरियाणा के आर्य कवि सदृश एक बड़े पादरी ने काशी में ऋषि के प्रादुर्भाव पर इससे भी जोरदार शब्दों  में यह कहा व लिखा The entire city was excited and convulsed   अर्थात् सारी काशी हिल गई। नगर भर में उत्तेजना फैल गई- ‘‘यह कौन स्वामी आया?’’ रुक्का (शोर) सारे यूरोप में पड़ गया। लिखा है, The reputation of the cherished idols began to suffer, and the temples emoluments sustained a serious deputation in the value प्रतिष्ठित प्रसिद्ध मूर्तियों की साख को धक्का लगा। मन्दिरों के पुजापे और चढ़ावे को बहुत आघात पहुँचा। ध्यान रहे कि मोनियर विलियस के शदकोश में Convulsed  का अर्थ कपित भी है। काशी को ऋषि ने कपा दिया।

जब ऋषि के साथ केवल परमेश्वर तथा उसका सद्ज्ञान वेद था, उनका और कोई साथी संगी नहीं था, तब सागर पार उनके साहस, संयम, विद्वत्ता व हुंकार की ऐसी चर्चा सर्वत्र सुनाई देने लगी।

चाँदापुर का शास्त्रार्थः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

चाँदापुर का शास्त्रार्थः

आश्चर्य है कि इतिहास प्रदूषण पुस्तक से तिलमिला कर चाँदापुर के शास्त्रार्थ पर मेरी मौलिक देन को झुठलाने का दुस्साहस किया गया है। जिस विषय का ज्ञान न हो, उस पर लेखनी चलाना, भाषण देना यहाी तो इतिहास प्रदूषण है। चाँदापुर के शास्त्रार्थ पर प्रदूषण फैलाने वालों की तो वकालत हो रही है और पं. लेखराम जी से लेकर अमर स्वामी, पं. शान्ति प्रकाश पर्यन्त शास्त्रार्थ महारथियों और प्रमाणों के भण्डार ज्ञानियों के लेख व कथन झुठलाये जा रहे हैं। हिण्डौन के वैदिक पथ व दयानन्द सन्देश में छपा है कि कहाँ लिखा है कि हिन्दू व मुसलमान मिलकर ईसाई पादरियों से शास्त्रार्थ करें? ये मेरे इस लेख को मेरे द्वारा मनगढ़न्त कहानी सिद्ध करने की कसरत कर रहे हैं। इनके मण्डल को तो मुंशी प्यारे लाल व मुक्ताप्रसाद के बारे में झूठ गढ़ने का दुःख नहीं।

संक्षेप से मेरा उत्तर नोट कर लें। प्राणवीर पं. लेखराम का चाँदापुर के शास्त्रार्थ पर एक लेख मैं दिखा सकता हूँ। वह ग्रन्थ मेरे पास है। आओ! मैं प्रमाण स्पष्ट शदों में दिखाता हूँ। तुहारी वहाँ कहाँ पहुँच? उसी काल के राधास्वामी गुरु हजूर जी महाराज की पुस्तक के कई प्रमाण चाँदापुर में देता आ रहा हूँ। उस पुस्तक से भी सिद्ध कर दूँगा। हिमत है तो झुठलाकर दिखाओ। मैंने पहली बार मास्टर प्रताप सिंह शास्त्रार्थ महारथी के मुख से सन् 1948 में यह बात सुनी थी। उनकी चर्चा निर्णय के तट पर में है। तबसे मैं यह प्रसंग लिखता चला आ रहा हूँ। अमर स्वामी पीठ थपथपाते थे। यह शोर मचाते हैं। अब आर्य समाज में ‘थोथा चना बाजे घना’……….क्या करें?

स्वामी श्रद्धानन्द जी के लिये कहा क्या था?

स्वामी श्रद्धानन्द जी के लिये कहा क्या था?

दिल्ली से एक युवक ने चलभाष पर यह पूछा है कि यहाँ यह प्रचारित किया गया है कि डॉ. अबेडकर ने स्वामी श्रद्धानन्द जी को दलितों का मसीहा बताया था। क्या डॉ. अबेडकर के यही शब्द  थे? हमने तो आपके  साहित्य में कुछ और ही शब्द  पढ़े थे। मेरा निवेदन है कि मैंने जो कुछ लिखा है पढ़कर, मिलान करके लिखा है, परन्तु मैं आर्य समाज के इन तथाकथित सर्वज्ञ इतिहासकारों को इतिहास प्रदूषण करने से नहीं रोक सकता। इन्हें खुल खेलने की छूट है। डॉ. अबेडकर के शब्द  हैं, स्वामी श्रद्धानन्द दलितों के सबसे बड़े हितैषी हैं। मराठवाडा में डॉ. अबेडकर विद्यापीठ में डॉ. अबेडकर के साहित्य के मर्मज्ञ किसी प्रोफैसर से पत्र-व्यवहार करके मेरे वाक्य की जाँच परख कर लीजिये। मेरी भूल होगी तो दण्ड का भागीदार हूँ।

हृदय की साक्षी-सद्ज्ञान वेदः प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

हृदय की साक्षी-सद्ज्ञान वेदः- पं. गंगाप्रसाद जी चीफ जज की पुस्तक ‘धर्म का आदि स्रोत’ की कभी धूम थी। मेरे एक कृपालु मौलाना अदुल लतीफ प्रयाग ने भी इसे पढ़ा है। निश्चय ही वह इससे प्रभावित हैं। ईश्वर सर्वव्यापक है। उसके नियम तथा ज्ञान वेद भी सर्वव्यापक हैं। कोई ऋषि की बात माने अथवा न माने, परन्तु ‘‘दिल से मगर सब मान चुके हैं योगी ने जो उपकार कमाये।’’

देखिये, इस समय मेरे सामने लण्डन की ईसाइयों की सन् 1871 की एक पत्रिका है। इसमें लिखा है, The land is honestest thing in the world, whatever you give it you will get back again:. So in a far more certain sense, is it with the sowing of moral seed the fruit is certain   अर्थात्- भूमि संसार में सबसे प्रामाणिक (सत्यवादी) वस्तु है। आप इसे जो कुछ देंगे, यह आपको उपज के रूप में वही लौटायेगी। इससे भी बड़ा अटल सत्य यह है कि जो नैतिक बीज (कर्म) आप बोओगे, उसका फल भी अवश्य भोगोगे, पाओगे। इस अवतरण का प्रथम भाग वहाँ के कृषकों की लोकोक्ति है। पूरे कथन का अर्थ या सार यही तो है, जो करोगे सो भरोगे। वेद की कई ऋचाओं में कर्मफल सिद्धान्त को कृषि के दृष्टान्त से ही समझाया है। पं. गंगाप्रसाद जी उपाध्याय ने वेद प्रवचन में एक मन्त्र की व्याया में लिखा है कि ईश्वर के कर्म फल के अटल नियम का साक्षी, सबसे बड़ा साक्षी और विश्वासी किसान होता है। जुआ व लाटरी में लगे लोग इससे उलट समझिये। ईसाइयों की पत्रिका का यह अवतरण वैदिक कर्मफल सिद्धान्त की गूञ्ज नहीं तो क्या है? धर्म का, सत्य का स्रोत वेद है- यह इससे प्रमाणित होता है। ऐसी-ऐसी कहावतें वैदिक धर्म की दिग्विजय हैं।

हमारी विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज जी ने टी.वी. पर एक करवा चौथ उपवास की बड़े लुभावने शदों में वकालत की थी। दैनिक पत्र-पत्रिकायें भी इसे सुहागनों का त्यौहार प्रचारित करती हैं। पत्नी के कर्मकाण्ड से पति की आयु बढ़ जाती है। कर्म पत्नी ने किया, फल पति को मिलता है। इन्हीं सुषमा जी ने गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करके तालियाँ बटोरी थीं। गीता कर्मफल सिद्धान्त का सन्देश देती है। करवा चौथ जैसे कर्मकाण्ड या इस प्रकार के अंधविश्वासों से गीता के मूल सिद्धान्त का खण्डन है या नहीं? इसी प्रकार पापों के क्षमा होने या क्षमा करवाने की मान्यता का उपरोक्त अवतरण से घोर खण्डन होता है । इस कथन में तो कर्म के फल की प्राप्ति Certain (सुनिश्चित) बताई गई है। कोई मत इस वैदिक सिद्धान्त के सामने नहीं टिकता । इसके अनुसार कुभ स्नान, तीर्थ यात्रायें व हज आदि सब कर्मकाण्ड ईश्वरीय आज्ञा के विपरीत हैं।

ऋषि जीवन विचारः प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु जी

ऋषि जीवन विचारःयह आनन्ददायक लक्षण है कि ‘परोपकारी’ ऋषि मिशन का एक ‘विचारपत्र’ ही नहीं, अब आर्य मात्र की दृष्टि में आर्यों का एक स्थायी महत्त्व का ऐसा शोधपत्र है, जिसने एक आन्दोलन का रूप धारण कर लिया है। इसका श्रेय इसके सपादक, इसके मान्य लेखकों व परोपकारिणी सभा से भी बढ़कर इसके पाठकों तथा आर्य समाज की एक उदीयमान युवा मण्डली को प्राप्त है। परोपकारी की चमक व उपयोगिता को बढ़ाने में लगी पं. लेखराम की इस मस्तानी सेना का स्वरूप अब अखिल भारतीय बनता जा रहा है।

ऋषि जीवन विषयक तड़प-झड़प में दी जा रही नई सामग्री पर मुग्ध होकर अन्य -अन्य पत्रों का प्रबल अनुरोध है कि ऐसे लेख- नये दस्तावेजों का लाभ, हमारे पाठकों को भी दिया करें। एक ऐसा वर्ग भी है, जिसका यह दबाव है कि ये दस्तावेज हमें भी उपलध करवायें। मेरा नम्र निवेदन है कि परोपकारिणी सभा के लिए इन पर कार्य आरभ हो चुका है। दिनरात ऋषि जीवन पर एक नये ग्रन्थ का निर्माण हो रहा है। दस्तावेज अब सभा की सपत्ति हैं। इनके लिये सभा के प्रधान जी व मन्त्री जी से बात करें। ये दस्तावेज अब तस्करी व व्यापार के लिए नहीं हैं। श्री अनिल आर्य, श्री राहुल आर्य, श्री रणवीर आर्य, श्री इन्द्रजीत का भी कुछ ऐसा ही उत्तर है। जिसे इस सामग्री के महत्त्व का ज्ञान है, जो इस कार्य को करने में सक्षम है, उसे सब कुछ उपलध करवा दिया है। वह ऋषि की सभा के लिये जी जान से इस कार्य में लगा है। ऋषि के प्यारे भक्त भक्तिभाव से सभा को आर्थिक सहयोग करने के लिए आगे आ रहे हैं।

पहली आहुति दिल्ली के ऋषि भक्त रामभज जी मदान की है। पं. गुरुदत्त विद्यार्थी के मुलतान जनपद में जन्मे श्री रामभज के माता-पिता की स्मृति में ही पहला ग्रन्थ छपेगा। हरियाणा राजस्थान के उदार हृदय दानी भी अनिल जी के व मेरे सपर्क हैं। आर्य जगत् ऋषि का चमत्कार देखेगा। कुछ प्रतीक्षा तो करनी होगी। हमारे पास इंग्लैण्ड व भारत से खोजे गये और नये दस्तावेज आ चुके हैं। ऋषि के जीवन काल में छपे एक विदेशी साप्ताहिक की एक फाईल भी हाथ लगी है।

प्रो. मोनियर विलियस ने अपनी एक पुस्तक में आर्य सामाजोदय और महर्षि के प्रादुर्भाव पर लिखा है, ‘‘भारत में दूसरे प्रकार की आस्तिकवादी संस्थायें विद्यमान हैं। अभी-अभी एक नये ब्राह्मण सुधारक का प्रादुर्भाव हुआ है। वह पश्चिम भारत में बहुत बड़ी संया में लोगों को आकर्षित कर रहा है। वह ऋग्वेद का नया भाष्य करने में व्यस्त है। वह इसकी एकेश्वरवादी व्याया कर रहा है। उसकी संस्था का नाम आर्यसमाज है। हमें कृतज्ञतापूर्वक इन संस्थाओं के परोपकार के श्रेष्ठ कार्यों के लिए उनका आभार मानना चाहिये। ये मूर्तिपूजा , संर्कीणता, पक्षपात, अंधविश्वासों तथा जातिवाद से किसी प्रकार का समझौता किये बिना युद्धरत हैं। ये आधुनिक युग के भारतीय प्रोटैस्टेण्ट हैं।’’

प्रो. मोनियर विलियस के इस कथन से पता चलता है कि हर कंकर को शंकर मानने वाले मूर्तिपूजक हिन्दू समाज को महर्षि दयानन्द के एकेश्वरवाद ने झकझोर कर रख दिया था। जातिवाद पर ऋषि की करारी चोट का भी गहरा प्रभाव पड़ रहा था। अब पुनः अनेक भगवानों, अंधविश्वासों व जातिवाद को राजनेता खाद-पानी दे रहे हैं। हिन्दू समाज को रोग मुक्त कर सकता है, तो केवल आर्यसमाज ही ऐसा एकमेव संगठन है। इसके विरुद्ध कोई और नहीं बोलता।

Why not four spouses for Muslim women too, asks Kerala HC judge

Kerala high court judge Justice B Kamal Pasha stirred a hornet’s nest on Sunday by asking why Muslim women could not have four husbands while the men enjoyed the same privilege under the Muslim personal law.

Addressing a seminar organised by an NGO run by women lawyers in Kozhikode, Pasha said Muslim personal laws are heavily loaded against women. He blamed religious heads for establishing the hegemony of men and wanted them to introspect during religious discourses on sensitive issues.

Under the Muslim personal law, a man can marry four times. Although many Muslim countries have banned polygamy, it is still prevalent in India.

“Religious heads should do self-introspection whether they are eligible to pronounce one-sided verdicts. People should also think about the eligibility of persons who are pronouncing such verdicts,” he said, adding that women were deprived even of the rights enshrined in the Quran.

Pasha also said that it was unfair to oppose a uniform civil code. “Even the highest court is a bit reluctant to interfere in this. Women should come forward to end this injustice,” he said.

“Personal law is loaded with discrimination. Besides denying equality, it also denies women’s right to property and other issues,” he said. The judge added that the Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005, will be fruitful if the right of a woman to her husband’s property is properly defined.

This article originally appeared on Hindustan Times.

http://www.hindustantimes.com/india/why-not-four-spouses-for-muslim-women-too-kerala-hc-judge/story-AGUfESXK3vo51XUMgUFLNJ.html

क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?: अभिषेक कुमार

प्रश्न: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?

उत्तर : अवश्य होते हैं पर वैसे नहीं जैसे आप इस समय सोच रहे हैं!

* ईश्वर स्वभाव से चेतन है और चेतन तत्त्व निराकार होता है इसलिए ईश्वर का दीदार, देखना या दर्शन करने का तात्पर्य होता है – उसकी सत्ता का ज्ञान होना, उसकी अनुभूति (feeling) होना! इसी feeling को दार्शनिक भाषा में ‘ईश्वर साक्षात्कार’ कहते हैं।

* “दृश्यन्ते ज्ञायन्ते याथातथ्यत आत्मपरमात्मनो बुद्धिन्द्रियादयोतिन्द्रियाः सूक्ष्मविषया येन तद दर्शनम् “||
अर्थात् जिससे आत्मा, परमात्मा, मन, बुद्धि, इन्द्रियों आदि सूक्ष्म विषयों का प्रत्यक्ष = ज्ञान होता है, उसको दर्शन कहते हैं। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को देखने के लिए ज्ञान-चक्षुओं की आवश्यकता होती है, चरम-चक्षुओं (भौतिक नेत्रों) की नहीं!।

* पदार्थ दो प्रकार के होते हैं – 1) जड़ और 2) चेतन। जड़ वास्तु ज्ञानरहित होती है और चेतन में ज्ञान होता है। प्रकृति तथा उससे बनी सृष्टि की प्रत्येक वास्तु जड़ होती है। परमात्मा और आत्मा दोनों चेतन हैं।

* चेतन (आत्मा) को ही चेतन (परमात्मा) की अनुभूति होती है। चेतनता अर्थात् ज्ञान।

* हमारे नेत्र जड़ होते है, देखने के साधन हैं और जो उनके द्वारा वस्तुओं को देखता है वह चेतन (जीवात्मा) होता है। जह वस्तुचेतन को नहीं देख सकती क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं होता पर चेतन वास्तु (आत्मा और परमात्मा) जड़ और चेतन दोनों को देख सकती है।

* अतः ईश्वर का साक्षात्कार आत्मा ही कर सकता है शर्त यह है कि आत्मा और परमात्मा के बीच किसी भी प्रकार का मल, आवरण या विक्षेप न हो अर्थात् वह शुद्ध, पवित्र और निर्मल हो अर्थात् वह सुपात्र हो।

* ईश्वर की कृपा का पात्र (सुपात्र) बनाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवान को वैदिक नियमों तथा आज्ञाओं के अनुसार बनाए, नियमित योगाभ्यास करे और अष्टांग योग के अनुसार समध्यावस्था को प्राप्त करे। समाध्यावास्था में ही ईश्वर के साक्षात्कार हो सकते हैं, अन्य कोई मार्ग नहीं है।

* इस स्थिति तक पहुँचने के लिए साधक को चाहिए कि वह सत्य का पालन करे और किसी भी परिस्थिति में असत्य का साथ न दे। जब तक जीवन में सत्य का आचरण नहीं होगा ईश्वर की प्राप्ति या उसके आनन्द का अनुभव (feeling) नामुमकिन है जिस की सब को सदा से तलाश रहती है।

See translation:-

योग के सन्दर्भ में, स्वस्थ जीवन, आध्यात्मिक ज्ञान, तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिये आवश्यक यम- नियम:–
The 5 (यम)Yamas listed by Patañjali in Yogasūtra are:
Ahiṃsā (अहिंसा): Nonviolence, non-harming other living beings.
Satya (सत्य): truthfulness, non-falsehood.
Asteya (अस्तेय): non-stealing.
Brahmacharya (ब्रह्मचर्य): chastity, marital fidelity or sexual restraint.
Aparigraha (अपरिग्रहः): non-avarice, non-possessiveness.

The 10 (यम) Yamas listed in Śāṇḍilya Upanishad, are:
Ahiṃsā (अहिंसा): Nonviolence.
Satya (सत्य): truthfulness.
Asteya (अस्तेय): not stealing.
Brahmacharya (ब्रह्मचर्य): chastity, marital fidelity or sexual restraint.
Kṣamā (क्षमा): forgiveness.
Dhṛti (धृति): fortitude.
Dayā (दया): compassion.
Ārjava (आर्जव): non-hypocrisy, sincerity.
Mitāhāra (मितहार): measured diet.
Sauch (शौच): purity, cleanliness.

The 5 (नियम) Niyamas listed by Patañjali in Yogasūtra are:
Śaucha(शौच): purity, clearness of mind, speech and body.
Santoṣha(सन्तोष): contentment, acceptance of others and of one’s circumstances as they are, optimism for self.
Tapas(तपस): accepting and not causing pain.
Svādhyāya(स्वाध्याय): study of self, self-reflection, introspection of self’s thoughts, speeches and actions.
Īśvarapraṇidhāna(ईश्वरप्रणिधान): contemplation of the Ishvara (God/Supreme Being, True Self, Unchanging Reality).

The 10 (नियम) Niyamas listed in Śāṇḍilya Upanishad/Varuha Upanishad/ Hatha Yoga Pradipika are:
Tapas(तपस): persistence, perseverance in one’s purpose, austerity.
Santoṣa(सन्तोष): contentment, acceptance of others and of one’s circumstances as they are, optimism for self
Āstika(आस्तिक्य): faith in Real Self (jnana yoga, raja yoga), belief in God (bhakti yoga), conviction in Vedas/Upanishads (orthodox school).
Dāna(दान): generosity, charity, sharing with others.
Īśvarapūjana(ईश्वरपूजन): worship of the Ishvara (God/Supreme Being, Brahman, True Self, Unchanging Reality).
Siddhānta vakya śrāvaṇa(सिद्धान्तवाक्यश्रवण): listening to the ancient scriptures.
Hrī(हृ): remorse and acceptance of one’s past, modesty, humility.
Mati(मति): think and reflect to understand, reconcile conflicting ideas.
Japa(जाप): mantra repetition, reciting prayers or knowledge.
Huta(हुत): rituals, ceremonies such as yajna sacrifice.

[REGVEDA–1-164-44–N —1-164-1–N 10-5-7–N 164-22 N 10-177-1 N 10-177-2 N ATHARWAVED KA PARMAN –10-8-17 AND 1-164-20 YA]

धन्यवाद।

आर्य समाज द्वारा वैदिक धर्म के उत्थान के लिए।

 

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इस्लाम और औरत को पीटने का अधिकार

इस्लाम के मानने वाले औरतों के बारे में  सम्मानजनक सोच और उसके सिलसिले में अधिकारों की कल्पना को  इस्लाम की देन बताते हैं. और इस बात का दंभ भरते हैं कि इस्लाम ने औरत को अपमान की गहरी खाई से निकाल कर सम्मान की बुलंदी पर पहुँचा दिया लेकिन इस्लामी किताबें और इतिहास इसके विपरीत ही कुछ प्रदर्शित करता है. औरतों के प्रति इस्लामी गलियारों में जो कुछ जुल्म होते हैं उनमें से एक पर यहाँ विचार करेगें और इस्लाम के जानने वालों से इस बारे में अपेक्षा रखेंगे की वो इस पर प्रकाश डालें कि क्या ऐसी मान्यतायें जो कुरान, जिसे मुसलमान आसमानी किताब का दर्ज़ा देते हैं, आदि से पुष्ट होती हैं को वो आज भी मानते हैं ?

कुरान सूरा निसा आयत ३४ ( ४ -३४)( मौलाना सैयद  अबुल आला मौदूदी)

मर्द औरतों के मामलों के जिम्मेदार हैं इस आधार पर कि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे के मुकाबले आगे रखा है और इस आधार पर कि पुरुष अपने माल खर्च करते हैं अतः जो भली औरतें हैं वे आज्ञाकारी होती हैं और मर्दों के पीछे अल्लाह की रक्षा और संरक्षण में उनके अधिकारों की रक्षा करती हैं और जिन औरतों से तुम्हें सरकशी का भय हो उन्हें समझाओं , सोने की जगहों (ख्वाह्गाहों ) में उनसे अलग रहो और मारो फिर अगर वे तुम्हारी बात मानने लगें तो अकारण उनपर हाथ चलाने के लिए बहाने तलाश न करो यकीन रखो कि ऊपर अल्लाह मौजूद है जो बढ़ा सर्वोच्च है .

तर्जुमा : मौलाना सैयद  अबुल आला मौदूदी, पृष्ट १३०-१३१ , संस्करण दिसम्बर २०१३ ई

कुरान सूरा निसा आयत ३४ ( ४ -३४)( अल्लामा शब्बीर अहमद उस्मानी )

Men are made lord over women for that Allah gave greatness to one over the other and for that they expended of their wealth, then those women who are virtuous they are obedient and guard at back with God’s guarding and those women you fear their misconduct admonish them and sleep away from their couches and beat them, if then they obey you, look not for any way of blame against them surely god is the highest of all, the great

कुरान सूरा निसा आयत ३४ ( ४ -३४)( अत्यातुल्लाह आघा )

Men have authority over women on account of the qualities with which God hath caused the one of them to excel the other and for what they spend of their property therefore the righteous women are obedient guarding the unseen that which God hath guarded and as to those whose perverseness ye fear admonish them and avoid them in beds and beat them and if  they obey you them seek not a way against them verily God is ever high ever great.
The Holy Quran – Page – 383

कुरान की इस आयत के अलग अलग तर्जुमे उसी बात को दोहरा रहे हैं कि पुरुष का स्त्री के ऊपर अधिकार है और पुरुष की बात न मानने के कारण पुरुष स्त्री को पीटने उसे प्रताड़ित करने का अधिकार रखता है.

 

अत्यातुल्लाह आघा साहब अपनी तफसीर में लिखते हैं:

The remedy  prescribed against any such disobedience on the part of the wife is pointed out three fold. In the first stage she is to be admonished and if she desists the evil is mended, but f she persists in the wrong course the second stage is her bed to be separated If the woman still persists then the third stage is to chastise her.

The Holy Quran – Page – 374
भावार्थ यह है कि पति के पास पत्नी के बात न मानने की स्तिथी में तीन विकल्प में पहले उसे समझाया जाये, उससे बिस्तर अलग कर लिया जाये और तीसरी विकल्प में उसे पीटा जाये

अल्लामा शब्बीर अहमद उस्मानी अपनी तफसीर में लिखते हैं:

If she is not redeemed then the third stage is beating. This is the last stage. Beating should not be serious short of bone fracture. Every fault has its own degree. Beating should not be taken up at first stage. there are three stages of amelioration. beating is the last remedy Beating should not be undertaken on small faults. If there is any big fault on the part of woman then there is no sin or fault in beating but that too in the final stage. The beating should not be so serious that the bone is fractured not the blow should be so hard that it may smite a wound leaving a scar after healing.
The Nobel Quran, Vol-1 Page -335

भावार्थ यह है कि पत्नी यदि समझाने के बाद न माने तो तीसरा तरीका उसे पीटना है . पीटना ऐसा नहीं हो की हड्डियाँ टूट जाएँ . मौलाना साहब कहते हैं कि पीटना अंतिम तरीका है और छोटे अपराध पर नहीं होना चाहिए  लेकिन यदि अपराध बड़ा है तो पीटने में कोई पाप नहीं है .

हाँ मौलाना साहब इतनी छुट देते हैं की पीटना ऐसा न हो की हड्डियाँ टूट जाएँ या फिर घाव बन जाये जो बाद में निशान छोड़ दे.

मौलाना सैयद  अबुल आला मौदूदी अपनी तफसीर में लिखते हैं:

This does not mean that a man should resort to these three measures all at once but that they may be employed if wife adopts an attitude of obstinate defiance. so far as the actual application of these measures is concerned, there should, naturally be some correspondence between the fault and the punishment that is administered. Moreover it is obvious that wherever a light touch can prove effective one should not resort to sterner measures.

Towards understanding the Quran b Sayyid Abul Ala Maududi. Vol 2, Page 36

भावार्थ यह है कि तीनों कम एक साथ कर डाले जाएँ यह अर्थ नहीं है बल्कि अर्थ यह है की सरकशी की हालत में इन तीनों उपायों को अपनाया जा सकता है . अब रहा इनको व्यव्हार में लाना तो हर हाल में इसमें अपराध और सजा के बीच अनुकूलता होनी चाहिए और हलके उपाय से बात बन सकती हो वहां कड़े उपाय से काम न लेना चाहिए.

तीनों तफसीरों को देखने से साफ़ जाहिर होता है कि कुरान स्त्रियों को पीटने की आज्ञा देती है . अलग अलग कुरान के व्याख्याकारों की भाषा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस आयत की व्याख्या में स्त्रियों को पीटने के मुद्दे को स्पष्ट करने में दिक्कतों को सामना किया होगा. व्याख्याकारों ने पिटाई के अलग अलग स्तर बना दिए की पिटाई ऐसी न हो की हड्डियाँ टूट जाएँ पिटाई ऐसी न हो की घाव भरने पर निशान रह जाये .

लेकिन कोई भी भाष्यकार ये हिम्मत न कर सका की पिटाई करना गलत है . आखिरकार कुरान की आयत जो कह रही है लेकिन उनकी व्याख्या की भाषा से यह प्रदर्शित हो रहा है की पिटाई करना वो गलत मानते हैं लेकिन शायद कुरान की आयत में लिखा होने की वजह से खुल कर न लिख सके और यही कहते रहे की पिटाई ऐसी न हो कि हड्डियाँ तोड़ दे .

 

 

मिर्ज़ा साहब गर्भवती हो गए ………

मिर्ज़ा गुलाम अहमद को इस्लाम के मनाने वाले मुहम्मद साहब के बाद अंतिम रसूल ए खुदा मानते हैं. हालांकि ज्यादातर मुसलमान मुहम्मद साहब को ही अंतिम रसूल मानते हैं लेकिन अहमदिया सम्प्रदाय मुहम्मद साहब के साथ नबुबत का खात्मा न मानकर इसे मिर्ज़ा गुलाम अहमद के साथ खात्मा मानते हैं और मिर्ज़ा गुलाम अहमद को अंतिम नबी मानते हैं.

मशहूर कादियानी शायर काजी अकमल के शेर का हवाला  देते हुए मौलाना मुहम्मद अब्दुर्रउफ़ ने लिखा है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मुहम्मद साहब से श्रेष्ठ मुलमानों का यह संप्रदाय मानता है. ये शेर मिर्ज़ा गुलाम अहमद मिर्ज़ा की मौजूदगी में पढ़े गए और मिर्ज़ा साहब ने भी उन्हें पसंद किया :

मुहम्मद फिर उतर आये हैं  हममें

और आगे से हैं बढ़कर अपनी शान में

मुहम्मद देखने हों जिसने अकमल

गुलाम अहमद को देख कादियां में

मुहम्मद साहब के बाद नबी होने के अतिरिक्त मिर्ज़ा गुलाम अहमद उनकी भविष्य वाणियों के लिए जाने गए . अल्लाह के द्वारा वही आने का दावा इस्लाम में  मुहम्मद साहब के बाद मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  ने भी किया. वही भी नायाब  कहीं महामारी फ़ैली किसी की मृत्यु हुयी किसी का क़त्ल हुआ मिर्ज़ा गुलाम अहमद तुरंत वही का दावा कर दिया करते थे .

लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो मिर्ज़ा साहब और उनके इस्लाम का एक अलग ही नज़ारा प्रस्तुतु करती हैं. ये कुछ ऐसे वाकये हैं जो इस्लाम में मिर्ज़ा साहब से पहले किसी ने किये हों ऐसा मालूम नहीं होता.

मिर्ज़ा जी गर्भवती हो गए

मिर्ज़ा साहब फरमाते हैं  कि मरियम की तरह ईसा की रूह मुझमें फूंकी गई और लाक्षणिक रूप में मुझे गर्भ धारण कराया गया और की महीने के बाद दस महीने से ज्यादा नहीं , इह्लाम के जरिये से मुझे मरियम से ईसा बनाया गया . इस प्रकार से में मरियम का बेटा ईसा (इब्न मरियम ) ठहरा

– कश्ती ए नूह पृष्ट – ४६, ४७ संस्करण १९०२ ई

मिर्ज़ा साहब खुदा की बीवी

काजी यार मुहम्मद साहब कादियानी लिखते हैं कि हजरत मसीह मौउद ने एक अवसर पर अपनी यह स्तिथी प्रकट की कि “कश्फ़” (इलहाम या वहय) की हालात  आप पर इस तरह तारी हुयी कि मानों आप औरत हें और अल्लाह तआला ने अपनी पौरुष शक्ति (Sex Power) को जाहिर किया I समझदारों के लिए इशारा ही काफी है

– ट्रैक्ट १३४, इस्लामी कुर्बानी , पृष्ट १२ लेखक काजरी यार मुहम्मद

अभी तक तो इस्लाम के रसूल अल्लाह से बात करने, फरिश्तों  के युद्ध में लड़ने, चाँद के टुकडे होने जैसे चमत्कारों की बात किया करते थे.

लेकिन मिर्ज़ा साहब ने इससे आगे जाकर ये चमत्कार भी बढ़ा दिए कि वो गर्भवती हुए थे और  अल्लाह तआला पुरुषों पर अपनी पौरुष शक्ति (Sex Power) को जाहिर करता है I