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Muslim BBC Chief Says ‘Of Course’ ISIS and Islam Are Related

Responding to the theory that ISIS has nothing to do with Islam, the head of the BBC religion section told students this week that people need to come to grips with the “uncomfortable” truth that the Islamic State terror group draws its inspiration from the religion of Islam.
Professor Aaqil Ahmed, himself a Muslim scholar and chief of BBC religion, denied the politically correct opinion that ISIS “has nothing to do with Islam” during a speech at before a group of college students at Huddersfield University this past week.

“I hear so many people say ISIS has nothing to do with Islam — of course it has. They are not preaching Judaism,” Ahmed noted.

As Breitbart reported earlier this year, more and more scholars and pundits are stepping forward to show that the Islamic State indeed draws its principles from the Qur’an and the writings of Mohammed.

A growing consensus suggests that the perpetrators of violent jihad do not represent Muslim “extremism,” but rather reflect a straightforward application of central Islamic principles.

One such scholar, James V. Schall of Georgetown University, has stated that Muslim violence is intrinsic to the nature of Islam itself in a recent essay titled, “Realism and Islam.”

Schall insists that Islam has consistently advocated violence, which it has practiced “from its seventh century beginning,” and that the purpose of jihad is, ultimately, “religious and pious.”

Far from a historical anomaly, then, the violent method of the Islamic State “is little different from what has been seen throughout the centuries wherever Islam is found,” he said. Islam “is actually and potentially violent throughout its entire history.”

“And while it may be politically incorrect to state these things, they need to be stated and are in fact the truth—things that both Muslims and non-Muslims need to hear and consider,” Schall said.

Schall is far from alone is his sober assessment of historical Islam.

In March of this year, Nabeel Qureshi, a former Muslim, published a provocative article in USA Today titled “The Quran’s Deadly Role in Inspiring Belgian Slaughter,” in which he recounts his own discovery “that the pages of Islamic history are filled with violence.”

The author also noted that “ISIL’s primary recruiting technique is not social or financial but theological,” and that they continuously draw from “the highest sources of authority in Islam, the Quran and hadith” in spurring their followers to violent jihad.

The fact of the matter is that violence and jihad are at “the very foundations of their faith,” he wrote.

Professor Ahmed’s recent statements regarding the relationship between ISIS and the religion of Islam are significant for two reasons.

First, as a Muslim scholar, Ahmed holds the credentials to make authoritative statements regarding the teachings of Islam. Second, as the religion director of the BBC, Ahmed represents the liberal media machine that has consistently avoided linking violent jihad to the Muslim faith.

“They [Islamic State] are Muslims,” Ahmed said. “That is a fact and we have to get our head around some very uncomfortable things.”

Ahmed has been with the BBC since 2009, and commissioned the documentaries Inside The Mind Of A Suicide Bomber and The Qur’an.

http://www.breitbart.com/london/2016/06/03/muslim-bbc-chief-says-course-isis-islam-related/

” ओ३म् -वन्दना “

” ओ३म् -वन्दना ”
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयेंI
दीनों पर करें दया और, जीवों को न कहीं सतायें II
सौरजगत निर्माता स्वयं हैं, पृथ्वी जिसका हिस्सा I
उसे पलक झपकते विलय कराते, यह वेदों का किस्सा II
सब घूमें जीव स्वतन्त्र यहाँ, कोई परतंत्र ना हो जायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
हो भेदभाव से रहित जगत यह, ईश हमारा सपना I
सब जियें यहाँ उस प्रेमभाव से, “मत” हो अपना-अपना II
दो भक्तिभाव हे परमब्रह्म, ना “वेद” विहीन हो जायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
वह तीस करोड़ और सरसठ लाख, वर्ष बीस हजार की गिनती I
फिर होगी कथित “प्रलय” द्वापर सम, मिलजुल करते विनती II
ब्रह्माण्ड रचयिता हैं आप, हम सूक्ष्मात्मा कहलायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
पुनः “आदिमनु” पैदा करते, मानवान्तर के स्वामी I
तदोपरान्त सृष्टि चलती, वे अग्रज हम अनुगामी II
परमपिता वह सद्बुद्धि दो, गीत आपके गायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
अग्नि वायु आदित्य अंगिरा,”वेदों” के अधिकारी I
गले उतारे ओउम ने उनके, सबको दी जानकारी II
विघ्न निवारक और सुखदायक, जो ध्यावें सो पायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
चौदह “मनु” निर्मित करते नित्य, “कल्प” जो कहलावे I
दिन तीनसौ साठ ‘शतक’ में, महाकल्प बन जावे II
वर्ष इकत्तिस्सौदस बिन्दु चार खरब, की दीर्घायु वे पायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
तदोपरान्त उस ब्रह्माण्ड के संग, स्वयं विलीन हो जावें I
यह क्रम प्रभु का चले निरंतर, कभी रुकावटें न आवें II
दो श्रेष्ट आत्मा वह साहस, दुष्टों से ना झुक जायें I
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें II
किम कर्तव्य विमूढ़ किये, धर्मज्ञों ने अन्तर्यामी I
क्षमा करें “गज” त्रुटि हमारी,ओ३मम शरणम गच्छामी II
हे ओ३म् दीजिये शक्ति, यथोचित काम सभी के आयें I
दीनों पर करें दया और, जीवों को न कहीं सतायें II
—————-Rachayita Gajraj Singh—————-

रोगी हिन्दू समाज के ये डाक्टरः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

रोगी हिन्दू समाज के ये डाक्टरः

एक बार महाराष्ट्र सभा के आदेश पर मैं धूले गाँव गया। प्रातः समय समाचार पत्र विक्रेता एक युवक से आर्य समाज मन्दिर का अता-पता पूछा। उसने कहा, ‘‘वह कौनसे भगवान् का मन्दिर है?’’ मैंने उसे कहा-‘‘तू अपने नगर के भगवानों की सूची दिखा। मैं देखकर बताऊँगा कि आर्यों का भगवान् उसमें है या नहीं?’’ यह हिन्दू समाज के रोगग्रस्त होने का एक प्रमाण है। जब रोगी स्वयं को रोगी ही न माने या रोग को रोग ही न समझे तो ठीक नहीं हो सकते। हिन्दू समाज की रक्षा का भार आज झोला छाप डाक्टरों के ऊपर है। वे बड़बोले तो हैं, परन्तु रोगी के रोग को जानते हुए भी उसका उपचार करना नहीं चाहते। घृणित जाति बन्धन तोड़ने का आन्दोलन  इन लोगों ने कभी छेड़ा? हिन्दू कृषक सैकड़ों व सहस्रों आत्महत्यायें क्यों कर रहे हैं? कभी सोचा इन्होंने कि हिन्दू समाज में ही इतनी आत्महत्यायें क्यों हो रही हैं? बलात्कार की घटनाओं की शिकार भी हिन्दू देवियाँ! अपराधी भी हिन्दू! पढ़-सुनकर रोना आता है। कभी एक नेता जी ने कहा था कि रेप इण्डिया में होते हैं, भारत में नहीं। इसका क्या अर्थ? कहाँ रेप की घटनायें नहीं हुई? योग -योग का शोर मचाने वालें के कुंभ स्नान को देखा क्या? प्रवचन, व्यायान, ज्ञान, ध्यान, योग, भक्ति भजन क्या था? बस डुबकी लगाने की होड़। म.प्र. में एक मन्दिर में मदिरा का प्रसाद दिया जाता है। शिवजी की बूटी की महिमा एक योगी बाबा बता रहे थे। बिहार में अगला मुय मन्त्री किस जाति का होगा? लव जिहाद का शोर मचाने वालों ने कभी जाति पाँति को चुनौती माना? गुजरात में कुरान का नाम लेकर गोमाँस के दोष के विज्ञापन लगाये गये। कथन तो ठीक था, परन्तु वचन कुरान का नहीं था। आर्य समाज के विद्वानों से सुन तो लिया, प्रमाण का अता-पता न किया। मुसलमान चिल्लाये। कर्मफल को, गीता को मानने वाले संकट मोचन मन्दिरों, ज्योतिषियों से दुःख निवारण करवाते, स्नान से पाप क्षमा करवाते? कहाँ गई गीता? हिन्दू समाज के झोला छाप डाक्टर रोगों पर चुप्पी साधे बैठे हैं। घर वापिसी का क्या बना? कोई पं. देव प्रकाश, पं. शान्ति स्वरूप, पं. मेघातिथि, सत्यदेव, वीरेन्द्र घर वापिस लाये क्या? आर्य समाज के नाम से ही बिदकने वाले ये डाक्टर समाज को क्या बचायेंगे? प्रमाण, सामग्री मुझसे माँगते हैं और मेरे आर्य समाज का नाम तक लेना नहीं चाहते।

शैतानी किसने कर दी? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

शैतानी किसने कर दी?

एक बार कादियाँ (पंजाब) में अल्लाह मियाँ पहुँचा था। कादियाँ के नबी मिर्जा गुलाम अहमद के मरने पर अल्लाह शोक मनाने (पंजाब में मकानी बोलते हैं) आया था। यह नबी ने आप लिखा है। तब कादियाँ वालों को अल्लाह के आने का पता तक न चला। मैं कॉलेज का विद्यार्थी था। आर्य सभासदों के चन्दे मैं ही लाकर कोषाध्यक्ष को दिया करता था। जब ला. दाताराम का चन्दा लेने जाता था, तब उनके बहुत वृद्ध पिताजी ला. मलावामल की बैठकर बातें सुनने लग जाता था। आप मिर्जा के संगी साथी थे। आपने कभी अल्लाह के कादियाँ में आने की बात की पुष्टि नहीं की थी। आपने तब उसे  देखा ही नहीं था तो पुष्टि क्या करते?

टी.वी. देखते-देखते जब हज की दुर्घटना का दुखद दृश्य देखा तो अल्लाह के कादियाँ आने की घटना याद आ गई। इतने भोले-भाले हज यात्री स्त्रियाँ और वृद्ध मारे गये। दृश्य देाा नहीं गया। जैसे भारत में हिन्दू मन्दिरों व तीर्थों में भगदड़ मचने से आबाल वृद्ध मारे कुचले जाते हैं, वही कुछ वहाँ हुआ। परपरा से एक स्थान विशेष पर हाजी शैतान को पत्थर मारकर हज के कर्मकाण्ड को पूरा करते हैं। अंधविश्वास हिन्दू मुसलमान सब में फैले हुए हैं।

मक्का को मुसलमान ‘बैत अल्लाह’ (अल्लाह का घर) मानते हैं। अल्लाह के पास फरिश्तों की भारी सेना है-यह कुरान बताता है। न जाने फिर शैतान अल्लाह के घर में कैसे घुस जाता है? भगदड़ मचने का कारण क्या था? शैतानी वहाँ शैतान ने तो की नहीं। कहा जाता है कि किसी हाजी ने ही शैतानी की। अब वहाँ की सरकार यह जाँच करेगी कि शैतानी की किसने? शैतान को तो किसी ने वहाँ कभी देखा ही नहीं। जिसे अल्लाह इतने लबे समय से नहीं पकड़ पाया, उसका इन कंकरों से क्या बिगड़ेगा? हमारी हितकारी सीख बहुत कुछ तो मुसलमानों ने मान ली है, परन्तु जन-जन तक नहीं पहुँचाई। हम क्या कर सकते हैं?

शैतान विषयक हमारा न सही, सर सैयद की सीख ही सुन लेते तो इतने अभागे हाजी न मरते। सर सैयद ने लिखा है, ‘‘एक मौलाना ने सपने में शैतान को देख लिया। झट से कसकर एक हाथ से उसकी दाढ़ी पकड़कर खींची। दूसरे हाथ से शैतान के गाल पर पूरी शक्ति से थप्पड़ मारा। शैतान का गाल लाल-लाल हो गया। इतने में मौलाना की नींद टूट गई। देखा तो उसके हाथ में उसी की दाढ़ी थी और वह लाल-लाल गाल जिस पर थप्पड़ मारा गया था, वह भी मियाँ जी का अपना ही गाल था। सो पता चल गया कि शैतान कहीं बाहर नहीं है। आपके भीतर के आपके दुरित, दुर्गुण ही हैं।’’ आशा है इतनी बड़ी दुर्घटना से सब शिक्षा लेंगे।

हटावट का उदाहरण माँगा गया हैः- इतिहास में मिलावाट की तो बहुत चर्चा होती है। मैंने इतिहास प्रदूषण

हदीसों को बस हदीस ही समझेंः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

हदीसों को बस हदीस ही समझेंः

दो-तीन पाठकों ने ऋषि दयानन्द जी व आर्य समाज की हिन्दी को देन पर छपे एक ेलेख के बारे में कई प्रश्न पूछे हैं। मैं हदीसें गढ़ने वालों की कल्पनाशक्ति का तो प्रशंसक हूँ, परन्तु उनके फतवों पर कुछ नहीं कह सकता। गप्प तो गप्प ही होती है।1. स्वामी श्रद्धानन्द जी ने रात-रात में ‘सद्धर्म प्रचारक’ उर्दू साप्ताहिक को हिन्दी में कर दिया। यह सुनने-सुनाने में तो अच्छा लगता है, वैसे यह एक मनगढन्त कहानी है। सद्धर्म प्रचारक के अन्तिम महीनों के अंक इस गप्प की पोल खोलते हैं। आर्य समाचार मेरठ एक उर्दू मासिक था। इसके मुखपृष्ठ पर इसका नाम तो हिन्दी में भी छपता था। इसको हिन्दी का पत्र बताने वाले खोजी लेखक इसका एक अंक दिखायें। आर्य दर्पण मासिक भी द्विभाषी पत्र था। हिन्दी व उर्दू दो भाषाओं में होता था। उसे हिन्दी मासिक लिखना आंशिक सच है। मैंने इसके त्रिभाषी अंक भी देखे हैं। आर्य समाज के सदस्यों ने हिन्दी में लाखों पुस्तकें लिख दीं। इस पर तो टिप्पणी करना भी उचित नहीं। मिर्जा कादियानी भी ऐसे ही सैंकड़ों, सहस्रों की नहीं, लाखों की घोषणायें किया करता था। भगवान आर्य समाज को ऐसी रिसर्च व ऐसे खोजियों से बचावे । इससे अधिक इन प्रश्नों का उत्तर क्या दिया जावे?

दिल्ली के वे दीवाने धर्मवीरः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

दिल्ली के वे दीवाने धर्मवीरः

कुछ पाठकों की प्रेरणा से छोटे-छोटे दो-तीन प्रेरक प्रसंग दिल्ली के इतिहास से देता हूँ। याद रखिये, सिलाई स्कूल, बारात घर, होयोपैथी डिस्पैन्सरी-यह आर्य समाज का इतिहास नहीं। यह कार्य तो रोटरी क्लब भी करते हैं। स्वामी चिदानन्द जी पर दिल्ली में शुद्धि के लिए अभियोग चला। वे जेल गये। यातनायें सहीं। मौत की धमकियाँ मिलती रहीं। कभी दिल्ली में किसी ने उनकी चर्चा की?

दिल्ली में दो स्वामी धर्मानन्द हुए हैं। मेरा उपहास उड़ाया गया कि कौन था धर्मानन्द स्वामी? अरे भाई दिल्ली वालों! आप नहीं जानते तो लड़ते क्यों हो? पं. ओ3म् प्रकाश जी वर्मा, डॉ. वेदपाल जी, श्री विरजानन्द से पूछ लो कि करोल बाग समाज वाले कर्मवीर संन्यासी धर्मानन्द कौन थे। दिल्ली के पहले मुयमंत्री चौ. ब्रह्मप्रकाश ने दिग्विजय जी वाला काम कर दिया। बुढ़ापे में शादी रचा ली। सब लीडर बधाइयाँ दे रहे थे। हमारे स्वामी धर्मानन्द जी पुराने स्वतन्त्रता सेनानी थे। यह उनके घर जाकर लताड़ लगा आये कि यह क्या सूझा?

दिल्ली के पहले आर्य पुस्तक विक्रेता का नाम दिल्ली में कौन जानता है? वह थे श्री दुर्गाप्रसाद जी। पं. लेखराम ला. बनवारीलाल करनाल वालों के संग एक ग्रन्थ की खोज करने निकले। प्रातः से रात तक सारी दिल्ली की दुकानें छान मारीं। आर्य जाति की रक्षा के लिए एक पुस्तक में उसका प्रमाण देना था। अँधेरा होते-होते उन्हें वह ग्रन्थ मिल गया। कुछ और ग्रन्थ भी क्रय कर लिये। पुस्तक विक्रेता थे श्री दुर्गाप्रसाद जी आर्य। वह ताड़ गये कि यह ग्रन्थ तो कोई गवेषक स्कालर ही लेता है। यह ग्राहक कौन है?

पं. लेखराम जी भी दुकानदार को कभी मिले नहीं थे। पन्द्रह रुपये माँग तो लिए फिर पूछा, ‘‘अरे भाई आप हो कौन?’’ साथी ला. बनवारी लाल बोले, ‘‘आप नहीं जानते? यह हैं जातिरक्षक आर्य पथिक पं. लेखराम जी।’’ अब दुर्गाप्रसादजी ने कहा, ‘‘इनसे मैं इनका मूल्य नहीं लूँगा।’’ पं. लेखराम अड़ गये कि ‘‘मैं यह राशि दूँगा और अवश्य दूँगा।’’ मित्रों! तब रुपया हाथी के पैर जितना बड़ा होता था। पण्डित जी की मासिक दक्षिणा मात्र 30-35 रुपये थे। धर्मवीर पं. लेखराम तो धन्य थे ही, कर्मवीर दुर्गाप्रसाद के धर्मानुराग कााी तो कोई मूल्याङ्कन करे।

ऋषि की ऊँचाईः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ऋषि की  ऊँचाईः

हमें पहले ही पता था कि इतिहास प्रदूषण का उत्तर तो किसी से बन नहीं पड़ेगा। एक-एक बात का उसमें प्रमाण दिया गया है। विरोधी विरोध के लिए मेरे साहित्य में से इतिहास की कोई चूक खोज कर उछालेंगे। मैं तो वैसे ही भूल-चूक सुझाने पर उसके सुधार करने का साहस रखता हूँ। इसमें विवाद व झगड़े का प्रश्न ही क्या है। पता चला कि कुछ भाई ऋषि की ॥द्गद्बद्दद्धह्ल ऊँचाई का प्रश्न उठायेंगे। फिर पता नहीं, पीछे क्यों हट गये। मैंने निश्चय ही ऋषि को एक लबा व्यक्ति लिखा है। ग्रन्थ में यत्र-तत्र इसके प्रमाण भी दिये हैं। आक्षेप करने वाले ऋषि की खड़ाऊँ के आधार पर उनका कद बहुत बड़ा नहीं मानते। प्रश्न जब पहुँच ही गया है, तो एक प्रमाण यहाँ दे देता हूँ।

लाहौर में एक पादरी फोरमैन थे। वह लाहौर में बहुत ऊँचे व्यक्ति माने जाते थे। एक दिन डॉ. रहीम खाँ जी की कोठी से ऋषि जी समाज में व्यायान देने जा रहे थे। उनका ध्यान सामने से आ रहे पादरी फोरमेन पर नहीं गया। पादरी ने ऋषि का अभिवादन किया तो साथ वालों ने उन्हें कहा कि सामने देखो, पादरी जी आपका अभिवादन करते आ रहे हैं। जब पादरी जी पास आये तो मेहता राधाकिशन (ऋषि के जीवनी लेखक) ने देखा कि पादरी जी ऋषि के कंधों तक थे। अब विरोधी का जी चाहे तो मुझे कोस लें। मैं इतिहास को, तथ्यों को और सच्चाई को बदलने वाला कौन? मैं हटावट, मिलावट, बनावट करके मनगढ़न्त हदीसें नहीं गढ़ सकता। ऋषि जी ने स्वयं एक बार अपनी ऊँचाई की चर्चा की थी। वह प्रमाण हमारे विद्वानों की पकड़ में नहीं आया। ऋषि-जीवन की चर्चा करने वालों को वह भी बता दूँगा। प्रमाण बहुत हैं। चिन्ता मत करें।

ऋषि जीवन-विचारः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ऋषि जीवन-विचारः-

आर्य समाज के संगठन की तो गत कई वर्षों में बहुत हानि हुई है-इसमें कुछ भी सन्देह नहीं हैं। कहीं भी चार-छः व्यक्ति अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये मिलकर एक प्रान्तीय सभा या नई सार्वदेशिक सभा बनाने की घोषणा करके विनाश लीला आरभ कर देते हैं। इसके विपरीत ऋषि मिशन के प्रेमियों ने करवट बदलकर समाज के लिए एक शुभ लक्षण का संकेत दिया है। वैदिक धर्म पर कहीं भी वार हो, देश-विदेश केााई-बहिन झट से परोपकारिणी सभा से सपर्क करके उत्तर देने की माँग करते हैं। सभा ने कभी किसी आर्य बन्धु को निराश नहीं किया। पिछले 15-20 वर्षों के परोपकारी के अंकों का अवलोकन करने से यह पता लग जाता है कि परोपकारी एक धर्मयोद्धा के रूप में प्रत्येक वार-प्रहार का निरन्तर उत्तर देता आ रहा है।

नंगल टाउनशिप से डॉ. सरदाना जी ने, जंडयाला गुरु आर्यसमाज के मन्त्री जी ने सभा से सपर्क करके फिर इस सेवक को सूचना दी कि एक व्यक्ति ने फेसबुक पर ज्ञानी दित्तसिंह  के ऋषि दयानन्द से दो शास्त्रार्थों का ढोल पीटा है। जब सभा के विद्वानों ने पंजाब की यात्रा की थी, तब जालंधर मॉडल टाऊन समाज में भी डॉ. धर्मवीर जी के सामने ज्ञानी दित्तसिंह के एक ट्रैक्ट में ऋषि से तीन शास्त्रार्थों का उत्तर देने की माँग की थी। मैं साथ ही था। मैंने तत्काल कहा कि परोपकारी में उस पुस्तक का प्रतिवाद दो-तीन बार किया जा चुका है। लक्ष्मण जी वाले जीवन चरित्र के पृष्ठ 268,269 को देखें। यह दित्तसिंह की पुस्तक का छाया चित्र है। इसमें वह स्वयं को वेदान्ती लिखता है। वह सिख नहीं था। उस ट्रैक्ट में किसी सिख गुरु का नाम तक नहीं, न कोई गुरु ग्रन्थ का वचन है।

ऋषि से शास्त्रार्थ की सारी कहानी ही कल्पित है। तत्कालीन किसी ऋषि विरोधी ने भी दित्तसिंह से ऋषि के शास्त्रार्थ की किसी पुस्तक व पत्रिका में चर्चा नहीं की। भाई जवाहरसिंह ने ऋषि के बलिदान के पश्चात् आर्य समाज को छोड़ा । उसने भी दित्तसिंह ज्ञानी के शास्त्रार्थ का कभी कहीं उल्लेख नहीं किया। शेष आमने-सामने बैठकर जो पूछना चाहेंगे उनको और बता देंगे।

ठाकुर मुकन्दसिंह जी की कविताः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ठाकुर मुकन्दसिंह जी की कविताः

ठाकुर मुकन्द सिंह जी ऋषिवर के सबसे पहले शिष्यों में से एक थे और सबसे लबे समय तक ऋषि के सपर्क में रहे। वे एक विनम्र सेवक थे। राहुल जी के पुरुषार्थ से यह तथ्य सामने आया है कि आप एक गभीर विद्वान् व कवि भी थे। आपकी पुस्तक ‘तहकीक उलहक’ के पृष्ठ 317 पर पद्य की ये पाँच पंक्तियाँ छपी हैं। इन्हें ऋषि के प्रति उनकी श्रद्धाञ्जलि समझें।

दयानन्द स्वामी का फैजान1 है, जो लिखी है मैंने यह नादिर2 किताब। मगर क्या करूँ छह बरस हो गये, कि त्यागा उन्होंने जहाने सराब3। दयानन्दी संवत हुए यह नये, इसी में मैं लिखता हूँ साले किताब4 सरे हर बरक से अयाँ साल है, दयानन्दी संवत का है यह हिसाब। सरे वाह गुरुदेव कर दीजिये, तो है दूसरा साल भी लाजवाब।

ऋषि के सबसे पहले शिष्यों में से रचित ऋषि जी पर यह पहली कविता हमारे हाथ लगी है।

जाति पाँति का विषः जातिवाद के विरुद्ध दहाड़ने वाले, दलितों के लिये घड़ियाली आँसू बहाने किसी भी दल व संस्था ने आज पर्यन्त दलितोद्धार के लिए प्राण देने वाले वीर रामचन्द्र, वीर मेघराज, भक्त फूलसिंह आदि का स्मारक बनवाया? उन्हें किसी ने कभी श्रद्धाञ्जलि दी? उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया? किसी और संस्था ने दलितों के लिए कोई बलिदान दिया? आज दलित-दलित का शोर मचाने वाले कभी दलितों के लिये पिटे या घायल हुए? राहुल केजरीवाल आज कहीं भी  पहुँच जाते हैं। जब फीरोजपुर के कारागार में नेहरू युग में सुमेर सिंह आर्य सत्याग्रही को पीट-पीट कर मारा गया, तब इन टर्राने वालों के दल व इनके पुरखा कहाँ थे? सज्जनो! देशवासियो!:-

नेहरूशाही ने दण्डा गुदा में दिया,

आप बीती यह कैसे सुनाऊँ तुहें?

आत्म हत्या व जातिवादःआत्महत्याएँ व जातिवाद की महामारियाँ फैल रही हैं। नेता लोग भाषण परोस रहे हैं। सामूहिक बलात्कार की घटनायें नित्य घटती हैं। दलों को, नेताओं को लज्जा आनी चाहिये। हिन्दू धर्म व संस्कृति के नये-नये व्यायाकार महाराष्ट्र में मन्दिर प्रवेश के लिये महिला सत्याग्रह पर आज भी वैसे ही मौन हैं, जैसे साठ वर्ष पूर्व काशी विश्वनाथ मन्दिर में दलितों के साथ प्रवेश करने पर विनोबा जी की पिटाई पर इनके बड़ों ने चुप्पी साघ ली थी। तब केवल आर्यसमाज ने भेदभाव व उस कुकृत्य की निन्दा की थी।

नारी की, कन्याओं की, संस्कृत की व संस्कृति की दुहाई देनेवाले नेता काशी जाते रहते हैं। काशी में कन्याओं के वेदाध्ययन के अधिकार की ध्वजा फहराने वाले और जाति-पाँति का विध्वंस करनेवाले पाणिनि गुरुकुल काशी की इनमें से किसने यात्रा की? इन्हें विवेकानन्द स्वामी तो याद रहते हैं, भेदभाव का दुर्ग ढहाने वाले काशी का यह गुरुकुल दिखाई ही नहीं देता। केजरीवाल भी तो गंगा स्नान का कर्मकाण्ड करके  काशी यात्रा कर आया।

पाद टिप्पणी

  1. उपकार 2. उत्तम, अद्भुत 3. नाशवान, अनित्य 4. पुस्तक लेखन का वर्ष

आर्य समाज को अपयश से बचाओः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

आर्य समाज को अपयश से बचाओः

व्यक्तियों में भी कमियाँ हो सकती हैं और संगठन में समाज में भी दोष हो सकते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो स्वयं तो कोई साहसिक कार्य आज पर्यन्त कर नहीं सके, उन्हें समाज के संगठन के दोष गिन-गिन कर सुनाने व प्रचारित करने की बड़ी लगन लगी रहती है। श्री सत्यपाल जी आर्य,मन्त्री प्रादेशिक सभा से व कुछ अन्य सज्जनों से पता चला कि एक जन्मजात दुखिया ने अपनी एक पोथी में चुन-चुन कर ऐसे कई नाम दिये हैं, जिनकी अन्तिम वेला में समाज ने सेवा नहीं की। ऐसे विद्वानों, महात्माओं, साधुओं में श्री महात्मा आनन्द स्वामी जी का नाम भी गिनाया गया है। लिखा है कि अन्तिम वेला में वे अपनी पुत्री के घर पर जा कर मरे।

यह बड़ी घटिया सोच है। हर कोई मानेगा कि समाज की जीवन भर सेवा करने वालों की अन्तिम वेला में समाज द्वारा सेवा व रक्षा की जानी चाहिये। अपनी कोई कमी है तो वह हमें दूर करनी चाहिये। जिस दुखिया ने दस नाम गिनाये हैं, उसको ऐसे दो चार नामों का भी पता न चला, जिनकी अन्तिम वेला में श्रद्धा भक्ति से आर्यसमाज ने सेवा की। क्या महात्मा नारायण स्वामी जी, स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी की, स्वामी आत्मानन्द जी की आर्यसमाज ने श्रद्धा भक्ति से सेवा नहीं की थी? पं. माथुर शर्मा जी, स्वामी सोमानन्द जी, स्वामी सपूर्णानन्द जी, स्वामी सुव्रतानन्द जी, स्वामी भूमानन्द जी, पं. देवप्रकाश जी, मास्टर पूर्णचन्द जी आदि की स्वामी सर्वानन्द जी ने दिनरात सेवा नहीं की थी? क्या पं. नरेन्द्र जी को आर्यों ने फैं क दिया? चौ. वेदव्रत जी वानप्रस्थी ने धूरी में मेरे पास प्राण छोड़े। मैं तब अविवाहित ही था। स्वामी ज्ञानानन्द जी तो चलते-चलते चल बसे। जिस महापुरुष ने सूची बनाकर आर्यसमाज के अपयश फैलाने का यश लूटा है, उसे यह भी तो बताना चाहिये था कि उसने किस विद्वान् की, संन्यासी की कभी सेवा की?

यह झूठ है कि महात्मा आनन्द स्वामी जी को आर्यसमाज ने अन्त में नहीं पूछा। वे बेटी के घर मरने तो नहीं गये थे। यह आकस्मिक घटना थी। मैं स्वयं महात्मा जी से विनती करके आया कि कुछ समय के लिए मेरे पास आयें। कोई काम नहीं लेंगे। न कथा और न प्रवचन होगा। सेवा करेंगे। धूरी के बाबू पुरुषोत्तमलाल जी ने आग्रपूर्वक कहा कि आप मेरे पास चलें। मैं बढ़िया इलाज करवाऊँगा। चौबीस घण्टे आपकी सेवा में रहूँगा। जब तक आपकी शवयात्रा नहीं निकलेगी, मैं सब काम धंधे छोड़कर आपकी सेवा में रहूँगा।

क्या स्वामी सर्वानन्द जी महाराज, महात्मा आनन्द स्वामी की सेवा से इनकार कर देते? क्या स्वामी सत्यप्रकाश जी की दीनानाथ जी ने जी जान से सेवा नहीं की थी? कुछ ऐसे नाम भी दुखिया जी गिना देते तो औरों को सेवा करने की प्रेरणा मिलती। हमारे आशय को आर्य जन समझें। महात्मा आनन्द स्वामी जी का अवमूल्यन मत करें। उनके सेवकों की कमी नहीं थी।