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ये प्रेरक प्रसंग, यह किया और यह दिया: राजेन्द्र जिज्ञासु

ये प्रेरक प्रसंग, यह किया और यह दिया :- मार्च 2016 के वेदप्रकाश के अंक में श्री भावेश मेरजा ने मेरी दो पुस्तकों के आधार पर देशहित में स्वराज्य संग्राम में आर्यसमाज के बलिदानियों को शौर्य की 19 घटनायें या बिन्दु दिये हैं।

किन्हीं दो आर्यवीरों ने ऐसी और सामग्री देने का अनुरोध किया है। आज बहुत संक्षेप से आर्यों के साहस शौर्य की पाँच और विलक्षण घटनायें यहाँ दी जाती हैं।
1. देश के स्वराज्य संग्राम में केवल एक संन्यासी को फाँसी दण्ड सुनाया गया। वे थे महाविद्वान् स्वामी अनुभवानन्दजी महाराज। जन आन्दोलन व जन रोष के कारण फाँसी दण्ड कारागार में बदल दिया गया।

2. हैदराबाद राज्य के मुक्ति संग्राम में सबसे पहले निजामशाही ने पं. नरेन्द्र जी को कारागार में डाला अन्य नेता बाद में बन्दी बनाये गये।

3. निजाम राज्य में केवल एक क्रान्तिवीर को मनानूर के कालेपानी में एक विशेष पिंजरे में निर्वासित करके बन्दी बनाया गया।

4. स्वराज्य संग्राम में केवल एक राष्ट्रीय नेता को पिंजरे में गोराशाही ने बन्दी बनाया। वे थे हमारे पूज्य स्वामी श्रद्धानन्द जी।

5. जब वीर भगतसिंह व उनके साथियों ने भूख हड़ताल करके अपनी माँगें रखीं तब उनके समर्थन में एक विराट् सभा की। अध्यक्षता के लिए एक बेजोड़ निर्ाीक सेनानी की देश को आवश्यकता पड़ी। राष्ट्रवासियों की दृष्टि हमारे भीमकाय संन्यासी स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी पर पड़ी।

सरकार उनके उस ऐतिहासिक भाषण से हिल गई। आर्य समाज के पूजनीय नेता के उस अध्यक्षीय भाषण को क्रान्तिघोष मान कर सरकार ने केहरी को (स्वामी जी का पूर्व नाम केहर सिंह-सिंहों का सिंह था) कारागार में डाल दिया। आज देशवासी और आर्यसमाज भी यह इतिहास-गौरव गाथा भूल गया।

पाठक चाहेंगे तो ऐसी और सामग्री अगले अंकों में दी जायेगी। मेरे पश्चात् फि र कोई यह इतिहास बताने, सुनाने व लिखने वाला दिख नहीं रहा। श्री धर्मेन्द्र जिज्ञासु इस कार्य को करने में समर्थ हैं यदि……..

हटावट के नये उदाहरण :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु जी

हटावट के नये उदाहरण :-

‘इतिहास प्रदूषण’ पुस्तक पढ़कर प्रदूषण के नये प्रकार हटावट के और ठोस उदाहरण इस सेवक से माँगे जा रहे हैं। मैं कितने उदाहरण दूँ? अजमेर में मनाई गई सन् 1933 की अर्धशतादी का वृत्तान्त आप पढ़ें। इसके पृष्ठ 74 पर पं. विश्वबंधु शास्त्री के और स्वामी सत्यानन्दजी के विरुद्ध प्रस्तावों को आप पढ़ें। परोपकारिणी सभा के इतिहास से इनको निकाल दिया गया। हटावट का यह पाप किसने किया? उसमें विश्वबंधु की करतूतों का उल्लेख मिलेगा।

पं. भगवद्दत्त जी ने ऋषि के पत्र-व्यवहार में बहुत कुछ लिख दिया है। इस सामग्री का सीधा सबन्ध परोपकारिणी सभा से है। हटावट की तीखी छुरी चलाकर इतिहास प्रदूषित किया गया है। इसका प्रयोजन? पं. भगवद्दत्त जी को अपमानित करने व करवाने वाले को महिमा मण्डित करने का घृणित पाप तो चलो कर दिया, परन्तु पं. भगवद्दत्त जी से दुर्व्यवहार की हटावट का कारण? हटावट वालों का अपना ही मिशन है। ऋषि के मिशन से इन्हें क्या लेना?

भीष्म स्वामी जी धीरता, वीरता व मौन :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

भीष्म स्वामी जी धीरता, वीरता व मौन :-
इस बार केवल एक ही प्रेरक प्रसंग दिया जाता है। नरवाना के पुराने समर्पित आर्य समाजी और मेरे विद्यार्थी श्री धर्मपाल तीन-चार वर्ष पहले मुझे गाड़ी पर चढ़ाने स्टेशन पर आये तो वहाँ कहा कि सन् 1960 में कलायत कस्बा में आर्यसमाज के उत्सव में श्री स्वामी भीष्म जी कार्यक्रम में कूदकर गड़बड़ करने वाले साधु से आपने जो टक्कर ली वह प्रसंग पूरा सुनाओ। मैंने कहा, आपको भीष्म जी की उस घटना की जानकारी कहाँ से मिली? उसने कहा, मैं भी तब वहाँ गया था।

संक्षेप से वह घटना ऐसे घटी। कलायत में आर्यसमाज तो था नहीं। आस-पास के ग्रामों से भारी संया में लोग आये। स्वामी भीष्म जी को मन्त्र मुग्ध होकर ग्रामीण श्रोता सुनते थे। वक्ता केवल एक ही था युवा राजेन्द्र जिज्ञासु। स्वामी जी के भजनों व दहाड़ को श्रोता सुन रहे थे। एकदम एक गौरवर्ण युवा लंगडा साधु जिसके वस्त्र रेशमी थे वेदी के पास आया। अपने हाथ में माईक लेकर अनाप-शनाप बोलने लगा। ऋषि के बारे में भद्दे वचन कहे। न जाने स्वामी भीष्म जी ने उसे क्यों कुछ नहीं कहा। उनकी शान्ति देखकर सब दंग थे। दयालु तो थे ही। एक झटका देते तो सूखा सड़ा साधु वहीं गिर जाता।

मुझसे रहा न गया। मैं पीछे से भीड़ चीरकर वेदी पर पहुँचा। उस बाबा से माईक छीना। मुझसे अपने लोक कवि संन्यासी भीष्म स्वामी जी का निरादर न सहा गया। उसकी भद्दी बातों व ऋषि-निन्दा का समुचित उत्तर दिया। वह नीचे उतरा। स्वामी भीष्म जी ने उसे एक भी शद न कहा। उस दिन उनकी सहनशीलता बस देखे ही बनती थी। श्रोता उनकी मीठी तीन सुनने लगे। वह मीठी तान आज भी कानों में गूञ्ज रही हैं :-

तज करके घरबार को, माता-पिता के प्यार को,
करने परोपकार को, वे भस्म रमा कर चल दिये……

वे बाबा अपने अंधविश्वासी, चेले को लेकर अपने डेरे को चल दिया। मैं भी उसे खरी-खरी सुनाता साथ हो लिया। जोश में यह भी चिन्ता थी कि यह मुझ पर वार-प्रहार करवा सक ता था। धर्मपाल जी मेरे पीछे-पीछे वहाँ तक पहुँचे, यह उन्हीं से पता चला। मृतकों में जीवन संचार करने वाले भीष्म जी के दया भाव को तो मैं जानता था, उनकी सहन शक्ति का चमत्कार तो हमने उस दिन कलायत में ही देखा। धर्मपाल जी ने उसकी याद ताजा कर दी।

मैं इनका ऋणी हूँ : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

मैं इनका ऋणी हूँ :- ऋषि के जीवनकाल में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर उसी समय उर्दू में एक पुस्तक छपी थी। तब तक ऋषि जीवन पर बड़े-बड़े ग्रन्थ नहीं छपे थे, जब पं. लेखराम जी ने अपने एक ग्रन्थ में उक्त पुस्तक के आधार पर यह लिखा कि शास्त्रार्थ के आरभ होने से पूर्व मुसलमानों ने ऋषि से कहा था कि हिन्दू व मुसलमान मिलकर ईसाइयों से शास्त्रार्थ करें। ऋषि ने यह सुझाव अस्वीकार कर दिया। जब मैंने ऋषि जीवन पर कार्य किया, इतिहास प्रदूषण पुस्तक में यह घटना दी तब यह प्रमाण भी मेरे ध्यान में था।
मुसलमान लीडरों डॉ. इकबाल, सर सैयद अहमद खाँ, मौलवी सना उल्ला व कादियानी नबी ने पं. लेखराम का सारा साहित्य पढ़ा। पण्डित जी के साहित्य पर कई केस चलाये गये।

पाकिस्तान में आज भी पण्डित जी के साहित्य की चर्चा है। किसी ने भी इस घटना को नहीं झुठलाया, परन्तु जब मैंने यह प्रसंग लिखा तो वैदिक पथ हिण्डौन सिटी व दयानन्द सन्देश आदि पत्रों में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर लेख पर लेख छपे। मेरा नाम ले लेकर मेरे कथन को ‘इतिहास प्रदूषण’ बताया गया। मैंने पं. लेखराम की दुहाई दी। देहलवी जी, ठा. अमरसिंह, महाशय चिरञ्जीलाल प्रेम के नाम की दुहाई तक देनी पड़ी। किसी पत्र के सपादक व मालिक ने तो मेरे इतिहास का ध्यान न किया, न इन गुणियों पूज्य पुरुषों की लाज रखी। थोथा चना बाजे घना।

मैंने प्राणवीर पं. लेखराम का सन्मान बचाने के लिये उनके ग्रन्थ के उस पृष्ठ की प्रतिछाया वितरित कर दी। पं. लेखराम जी पर कोर्टों के निर्णय आदि पेश कर दिये। लेख देने वाले को तो मुझे कुछ नहीं कहना। इन पत्रों के स्वामियों व सपादकों का मैं आभार मानता हूँ।

मैं इनका ऋणी हूँ। यह वही लोग हैं जो नन्हीं वेश्या पर लेख प्रकाशित करके उसे चरित्र की पावनता का प्रमाण-पत्र दे रहे थे। इनका बहुत-बहुत धन्यवाद। इन पत्रों के स्वामी पं. लेखराम जी के ज्ञान की थाह क्या जानें।
विषदाता कह पत्थर मारे। क्या जाने किस्मत के मारे।।
सुधा कलश ले आया। उस जोगी का भेद न पाया।।

हाँ! मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि वैदिक पथ पर श्री ज्वलन्त जी का सपादक के रूप में नाम छपता है। आप ने ऐसी गभीर बात पर चुप्पी साध ली। मुझ से बात तक न की। मेरा उनसे एक नाता है, उस नाते से उनका मौन अखरा और किसी से कोई शिकायत नहीं। जी भर कर मुझे कोई कोसे। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाना चाहिये। कन्हैया, केजरीवाल व राहुल ने सबकी राहें खोल दी हैं।
‘फूँकों से यह चिराग बुझाया न जायेगा’

पं. श्रद्धाराम फिलौरी विषयक गभीर प्रश्न :प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

पं. श्रद्धाराम फिलौरी विषयक गभीर प्रश्न :-

परोपकारी के एक इतिहास प्रेमी ने लखनऊ से प्रश्न पूछा है कि पं. श्रद्धाराम फिलौरी का ऋषि के नाम पत्र पढ़कर हम गद्गद् हैं, परन्तु पं. श्रद्धाराम ने ऋषि के विरुद्ध कोई पुस्तक व ट्रैक्ट तक नहीं लिखा, आपका यह कथन पढ़कर हम दंग रह गये। इसकी पुष्टि में कोई ठोस प्रमाण हमें दीजिये। प्रश्न बहुत गाीर व महत्त्वपूर्ण है। ऋषि की निन्दा करने वालों को मेरे कथन का प्रतिवाद करना चाहिये था। तथापि मेरा निवेदन है कि श्रद्धाराम जी के साहित्य की सूची कोई-सी देखिये। इन सूचियों में श्री कन्हैयालाल जी अलखधारी व श्री नवीन चन्द्रराय के विरुद्ध एक भी पृष्ठ नहीं लिखा गया। किसी को ऐसी कोई सूची न मिले तो फिर हमारे पास आयें। जो इसका प्रमाण माँगेंगे ठोस प्रमाण दे देंगे। सूचियाँ दिखा देंगे। हम हदीसें गढ़ने वाले नहीं हैं। इतिहास प्रदूषण को पाप मानते हैं। जिस विषय का ज्ञान न हो उसमें टाँग नहीं अड़ाते।
– वेद सदन, अबोहर-152116

पण्डित महेंद्र पाल जी के यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क गालियों की बारिश

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यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क:

पण्डित महेंद्र पाल जी ने स्वयं रचित निरर्थक विवाद और अपशब्दों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए एक विचित्र तर्क दिया है कि अपशब्द उन्होंने इसलिए प्रयोग किये और वो निरंतर कर रहे हैं क्योंकि वो शिष्य ऋषि दयानन्द के शिष्य हैं गांधी के नहीं .
पण्डित जी अपने अपशब्दों की पुष्टि यह कह कर रहे हैं कि वो उन्होंने आर्य समाज के सातवें नियम के आधार पर दिए हैं “………यथायोग्य वर्तना चाहिए ”
यह एक विचित्र तर्क है यदि यथायोग्य का अर्थ गालियों की लुगात कब से हो गयी!
पण्डित जी माना की आप गालियाँ देने की कला में सिद्धहस्थ हैं प्रतीत होता है कि ये आपकी ३२ वर्षों की तपस्या का फल है लेकिन इसका सम्बन्ध आर्य समाज के सातवें नियम से कैसे हो गया ?
क्या पण्डित लेखराम वैदिक मिशन के किसी सदस्य ने आपसे अभद्रता से वार्तालाप किया या कोई लेख आपको लेके अभद्रता पूर्वक लिखा जो आप इसे यथायोग की संज्ञा दे रहे हैं .
यदि यथायोग्य का अर्थ अपशब्दों के प्रयोग करना है और जो आपकी बुद्धि अनुसार ऋषि दयानन्द का सिद्धांत है तो कृपया आप हम अबोध बालकों को कोई ऐसी ऋषि दयानन्द की घटना तो बताइये जहाँ उन्होंने इस अपशब्द देने वाले अस्त्र का प्रयोग किया हो . ऋषि को तो अनेकों गलियां दी गयीं उन्होंने यदि सिध्धांत लिखा है तो उनका अनुसरण भी तो किया होगा ( यहाँ तो हमने आपसे एक शब्द भी नहीं कहा )
आप तो सिद्धहस्त हैं विद्वान हैं ऋषि दयानन्द की बाद की पीढ़ियों के कई विद्वानों का सानिध्य पाने के आप धनी रहे हैं.
यदि ऋषि दयानन्द का उदहारण देने में असमर्थ हैं तो पण्डित लेखराम जी पण्डित गुरुदत्त जी स्वामी श्रद्धानन्द जी पण्डित शांति प्रकाश जी पण्डित गंगाप्रसाद जी पण्डित देवप्रकाश जी इत्यादि किसी के तो प्रमाण आपके पास होंगे किसी की तो घटना आपको याद होगी जहाँ उन्होंने इस गालियों देने के आपके स्वरचित सिद्धांत का पालन किया हो . ठाकुर अमर स्वामी जी को तो आप गुरु मानते हैं उनके तो आप निकट रहे हैं उनका ही कोई उदाहरण दे दीजिये
या तो ये आपकी स्वरचित व्याख्या है . या फिर आप मुसलमानों की उस परम्परा जिसके तहत उन्होंने ऋषि दयानन्द से लेकर पण्डित लेखराम पण्डित चमूपति ठाकुर अमर स्वामी जी के लिए अपशब्दों का अनुसरण किया का पालन कर रहे हैं.
क्या आप मौलाना सनाउल्ला मिर्ज़ा गुलाम अहमद आदि का अनुसरण कर रहे रहें जो इस कला के सिद्ध हस्त रहे हैं .
पण्डित महेंद्र पाल जी इस बार देख लीजिये आपके आदर्श मिर्ज़ा गुलाम अह्मंद सरीखे हैं या ऋषि दयानन्द
कम से कम अपनी इस गलियों की सिद्धहस्तता को छिपाने के लिए ऋषि दयानन्द के सिधान्तों की ओट न लीजिये .
अपशब्दों का प्रयोग या तो मौलानाओं जैसे मौलाना अनाउल्लाह मिर्जा गुलाम अहमद आदि ने किया है आर्य समाज में तो ऐसा तपोधन हमें नज़र नहीं आता जिन्हें आर्य समाज के सातवें नियम की आड़ लेकर गालियाँ दी हों हमें तो कोई ऐसा विद्वान् ही नज़र नहीं आता जो आर्य होते हुए गालियाँ देता हो
अतः पण्डित जी आप स्वयं विचार करें कि आप गालियाँ देने के मामले में ऋषि दयानन्द के शिष्य हें या इन मौलानाओं के !

प्रारम्भ से ही पंडित जी ने जबसे मुद्दा उठाया तबसे लेकर आज तक हम इन्हें “प्रीतिपूर्वक” यही समझाते आये है की पंडित जी आप जैसा सोच रहे है वैसी बात नहीं है आमजन ध्यान देंकि विडियो में क्या है और जिस शब्द से इन्हें आपति है उसका कितना सम्बन्ध है
सत्यार्थ प्रकाश से पंडित लेखराम वैदिक मिशन ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रचार को लेकर नया तरीका निकाला की सत्यार्थ प्रकाश के प्रत्येक बिंदु को लेकर एनीमेशन विडियो बनाये जाए और हमने शुरुआत की चौदहवे समुल्लास से की
प्रत्येक वीडिओ को को नाम दिया गया है, जैसा कि किसी भी चल चित्र में आता है,
यह उस विडियो को या फिल्म को पहचान देने मात्र से किया जाता है इसी तरह हमने प्रत्येक विडियो को नाम दिया जिसमें पंडित जी ने ९वे बिंदु के विडियो को देखा उस विडियो को यह नाम दिया गया “बिना पुरुषों के 72 हूरों को कौन सम्भालेगा” पहली बात जैसा पंडित जी कह रहे है की मिशन वालों ने लिखा है की “इन्ही लोगों ने एक पोस्ट डाला है सत्यार्थप्रकाश में स्वामी जी ने ,लिखा जन्नत में 72 हुरें मिलेंगे |”
ऐसा कही भी लिखा हुए पंडित जी दिखा दें तो उनका उपकार होगा क्यूंकि यह लिखा दिखाने के बाद हम सहर्ष क्षमा मांग लेंगे
फिल्म के नाम को स्वामी जी के साथ पंडित जी स्वयं जोड़कर मिशन को बदनाम करने में लगे है, इसके पीछे कारण क्या है वो वे ही जानते है
विडियो में सत्यार्थ प्रकाश से जो बाते है वो केवल ऑडियो में है जिसका प्रारम्भ ही (“सत्यार्थ प्रकाश चौह्द्वा समुल्लास नौवीं समीक्षा”) इस तरह होता है उसके बाद प्रत्येक शब्द सत्यार्थ प्रकाश से लिया हुआ है उसमें किसी भी प्रकार का संशौधन नहीं किया है इस ऑडियो में कही भी यदि ७२ हूरों का या सत्यार्थ प्रकाश से इतर किसी भी शब्द का फेर बदल हो वो पण्डित जी बताएं .

यदि पंडित जी सम्पूर्ण विडियो को ही सत्यार्थ प्रकाश का हिस्सा समझते है तो जो पहला शब्द आता है “पंडित लेखराम वैदिक मिशन” यह भी सत्यार्थ प्रकाश में नहीं है इसका भी विरोध जल्द प्रारम्भ कर देना चाहिए उन्हें और यहाँ तक की कई सारे चित्र जो विडियो में है वे भी सत्यार्थ प्रकाश का हिस्सा नहीं है, तो क्यों ना उन्हें भी विरोध का हिस्सा बना लिया जाए
एक साधारण सी बात उन्हें व्यक्तिगत रूप से चलभाष के माध्यम से समझा दी गई परन्तु वे चाहकर भी समझना नहीं चाहते या उनका अहंकार आड़े आ रहा है हम नहीं जानते

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति: परेशां परिपीडनाय
खलस्य साधोर्न विपरीत मेतत ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय .

हार मान ली :

पण्डित जी ने लिखा है ” जब विद्वान मान कर महेन्द्रपाल के सामने हार ही स्वीकार कर लिया………….”
पण्डित जी हम सहर्ष हार स्वीकार करते हैं भला आपकी इस जीवन भर की गालियों की अभ्यस्तता के आगे कौन हार नहीं मान लेगा.
शायद पूर्व के मौलानाओं को भी , जिनसे प्रेरणा पाकर शायद आपने ये लिखा हों (क्योंकि आर्य तो अपशब्दों का प्रयोग नहीं करते ) आपके निम्न लिखित शब्दों को पढ़कर शर्म न आजाए
ज़रा अपने इन शब्दों पर गौर फरमाइए :
-उल्लू के पट्टे –
– गधे
– हराम जादे
– तुझ जैसे जाहिलों
– ना मालूम किस माँ बाप ने पैदा किए तुझ जैसे जाहिल को
– हराम के पिल्लै
– मिथ्याचारियों
– नालायक
– अगर अपने बाप से जन्मा है तो
– तुम सब बिन बापके आवलाद माने जावगे……….
इस पुष्प वर्षा में आपने कुछ नए शब्द भी जोड़े हैं यथा :
सोंटा कुत्तों को देख कर ही रखना चाहिये
“लगता है कुन्ती ने जैसे कर्ण को जन्मी =मरियम ने जैसे इस को जनी तू भी वैसा ही होगा |”
यही पंडित जी का यथायोग्य है ??
पण्डित जी ये तो आपके संस्कार ही हो सकते हैं जो आप इन सब शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और आप तो स्वयं को वैदिक प्रवक्ता लिखते हैं जरा ये भी बता दीजिये की वेद का कौनसा मंत्र की व्याख्यानुसार आपने ये पुष्प वर्षा की है .

कीचढ़ उछालना :

पण्डित जी हमें तो आपके बारे में कुछ मालूम भी नहीं हम आपके ऊपर क्यों कीचड उछालने लगे ?
न ही हमने कुछ ऐसा आपके बारे में लिखा है .
हमने तो ये समीक्षा की थी की व्यक्ति गालियाँ क्यों देता है जैसे कि मुख्य कारण ये हो सकते हैं :
– बहुविवाह की वजह से क्लेश
– पारिवारिक क्लेश
– मदिरा आदि का सेवन की वजह से
– सात्विक भोजन न होने की वजह से जैसे मांसाहार करने का आदि हो
– किसी के परिवार के व्यक्ति ने ही कोर्ट में केस कर दिया हो तो व्यक्ति ज्यादा परेशां हो जाता है
– पारिवारिक क्लेश के कितने भी कारण हो सकते हैं
ऐसे ही किसी न किसी कारणों से ही परेशां होकर व्यक्ति अपशब्दों का प्रयोग करता होगा .
हमें तो पूर्ण विश्वास है की आप तो आर्य हैं विद्वान् है वैदिक प्रवक्ता हैं आपको तो ये दुर्गुण छु भी नहीं सकते . और ये हमारा ही पूर्ण विश्वास नहीं सम्पूर्ण आर्य जगत का विश्वास है आप तो सबकी आशा की किरण हो और जिस तरह आप क्रिन्वंतों विश्वं आर्यम की परिकल्पना को साकार करने में लगे हैं वो अत्यंत सराहनीय है .
अतः हम तो पुनः कहते हैं कि आपके अपशब्दों के प्रयोग का कारण हमारी समझ से परे है .

मानसिक दुःख झेलना पड़गया

पण्डित जी अप लिखते हैं “जिस कारण मुझे इतना कुछ लिखना पड़ गया मै जो काम कर रहा था वह रुक गया मुझे मानसिक दुःख झेलना पड़गया की मैं एक समाज छोड़ घरवार अपनों को जिस सत्य के कारण छोड़ा उसका यही परिणाम मिल रहा है मुझे ”
पण्डित जी विवाद आपने प्रारम्भ किया , व्यर्थ की चुनौती आपने दी हमें तो आपको निमंत्रण नहीं दिया था.
अपितु आपको चलभाष पर बात करके आपके मार्गदर्शन लेने की ही बात यशवंत जी ने कही थी .
लेकिन अब इसे आपके घमण्ड की पराकाष्ठा कहें या क्या कहें समझ नहीं आता जो आपने इन अपशब्दों रूपी श्रद्धा सुमनों की बारिश कर दी .
ईश्वर दयालु है न्यायकर्ता है तो यदि मानसिक दुःख आपको झेलना पढ़ा है तो इसका कारण तो क्या रहा होगा आप जैसे विद्वान को हम क्या बताएं .
हाँ ये अवश्य है कि बिना कुछ कहें हमारा सम्मान आपने माँ बहिनों की गालियों से किया है वो तो आधिभौतिक दुख ही होगा बाकी विद्वान और ईश्वर जानता है .
और रही आपके ” सत्य के कारण छोड़ा उसका यही परिणाम मिल रहा है मुझे ” इस कथन की बात तो सत्य के लिए छोड़ा था तो इसमें प्रलाप कैसा……

सत्यार्थ प्रकाश की रक्षा
आपका सत्यार्थ प्रकाश की रक्षा के लिए किया गया योगदान अत्यंत सराहनीय है . इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन पण्डित जी आपका यह कहना की केवल मैं ही कार्य कर रहा है केवल मेंने ही जीत दिलाई कुछ गले नहीं उतारा .
जहाँ तक मुझे याद है आपने तो उस कुरान के भाष्य के दर्शन भी नहीं किये थे जिसको लेके ऋषि दयानन्द के समीक्षा की थी . आप तो वो कुरान देखने के लिए लालायित थे चलो जो भी हो

लेकिन पण्डित जी यदि केवल आपने ही सारा कार्य किया बाकी आर्य समाजीयों का कोई योगदान नहीं तो १७ वकीलों की टीम क्या कर रही थी विमल वधावन भी क्या कर रहे हैं
और यदि केवल आपकी वजह से ही जीत हुयी तो फिर आपके साथ साथ अन्य लोगों का सम्मान सत्यार्थ प्रकाश का केस जीतने के बाद जो समारोह हुआ उसमें क्यों किया गया . वहां तो आपने ये नहीं कहा की केवल मेरी वजह से जीत हुयी है
हम आपके योगदान को कम नहीं आंक रहे बस आपसे ये गुजारिश है की अन्य ऋषि भक्तों के भी इसमें योगदान हैं कृपया उनको भी तवज्जों दीजिये

पण्डित लेखराम वैदिक मिशन का व्यापार :

पण्डित जी लिखते हैं ” दुनिया के लोगों को बताना चाहते हैं हमकेवल उस यह काम कर रहे हमें धन चाहिए | यही इन लोगों का व्यापर है | इसी प्रकार के कई प्रमाण मेरे सामने है पिछले दिन एक ठग मनीष ने अमेरिका के रणजीत से दो लाख दसहज़ार मार लिया | मुझे बताया गया लुटने के बाद मैंने प्रयास कर उन्हें 35 हज़ार लौटाया | यह लोग भी इसी प्रकार से दुकानदारी कर रहे हैं ”

सर्वप्रथम तो ये ठग मनीष कौन है ये हमें नहीं पता . ना ही पण्डित लेखराम मिशन से उसका कोई सम्बन्ध है . यदि उसने ऐसा किया है तो निसंदेह दण्ड का पात्र है आप यथोचित माध्यम से आप उसे दण्ड दिलाएं .
रही बात हमारी व्यापर करने की तो पण्डित जी आपके लिए चुनौती शब्द तो हम क्या प्रयोग करें विनती है जरा उस एक व्यक्ति को तो लेके आइये जिसने हमें आज तक की अवधि में एक पैसे का दान लिया हो .
पण्डित जी पण्डित लेखराम वैदिकक मिशन के कार्यकर्ता ईश्वर की दया से भरण पोषण के लिए आवश्यक धन कमा लेते हैं और साथ साथ इतना धन भी कमा लेते हैं की पण्डित लेखराम वैदिक मिशन को बिना दान के चला सकें कम से कम इतनी कृपा तो अभी बनी हुयी है ईश्वर की . लाखों रूपया साल का खर्च करते हें लेकिन आजतक किसी से दान नहीं लिया . देश विदेश से काफी लोगों से कहा लेकिन सबको मना कर दिया. जो खर्च किया संगठन के सदस्यों ने स्वयं के पारिवारिक धन से खर्च किया और कर रहे हैं .
हम लोग आपसे पुनः विनती करते हैं पण्डित जी कि पण्डित जी आपके आरोप की पुष्टि में एक व्यक्ति ही ला दीजिये जिससे हमें दान लिया हो चाहे वो एक पैसा ही क्यों न हो .
और साथ साथ ये भी बता दीजिये कि आपके इस आरोप के जवाब में यदि आप कोई साक्ष्य प्रस्ततु नहीं करते हैं तो आपकी न्याय व्यवस्था के अनुसार आप क्या करेंगे .

पण्डित जी का एक और झूठ

पण्डित जी ने किसे का लेख शेयर किया है जिसमें लिखा है कि” मुझे याद है, एक बार दिल्ली प्रतिनिधि सभा के पूर्व प्रधान आचार्य राजसिंह द्वारा जब यज्ञ से मनोकामना पूर्ण के विषय पर शास्त्रार्थ होने की बात चली थी तो यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था…. और आप सब को यह तो जानकारी अवश्य होगी कि पंडित जी उस समय भी, मुस्लिम अदि को अपशब्दों से संबोधित करते थे… तो क्या उस समय पंडित जी अपशब्द इनको नहीं दिखते थे..???”
“यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था” – ये सरासर झूठ है .
पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने पण्डित जी से कोई बात नहीं की
पण्डित लेखराम वैदिक मिशन की तरफ से आचार्य रामचंद्र जी थे . जिनका इस सन्दर्भ में वार्तालाप भी हुआ था . ये झूठ के वाहक पुरानी पोस्ट देख सकते हैं की उनमें पण्डित महेंद्र पाल जी का नाम है या आचार्य रामचंद्र जी का

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अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आ गया :
मैंने जो दिल को पेश किया था उसके सामने
कहने लगे शोख मुझे जान चाहिए

पण्डित महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया

Mahendra pal arya about arya mantavya

महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया
विगत कुछ महीनों में पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने विभिन्न विषयों को लेकर चलचित्रों का निर्माण किया.
इनमें श्री कृष्ण के बारे में विभिन्न भ्रांतियां, संध्या कैसे करें और कुछ सत्यार्थ प्रकाश के कुछ अंशों के चलचित्र समाहित रहे. स्वाभाविक है कि प्रत्येक चलचित्र का कुछ न कुछ तो शीर्षक रहा ही होगा. इसी प्रकार के एक चलचित्र के शीर्षक को लेकर पण्डित महेंद्रपाल जी की आपत्ति रही.
पण्डित महेन्द्रपाल जी से चलभाष पर वार्तालाप भी इस बारे में किया गया लेकिन …….
सम्माननीय पण्डित जी ने संगठन के सदस्यों को कुछ इन पुष्पों से नवाजा है:
-उल्लू के पट्टे –
– गधे
– हराम जादे
– तुझ जैसे जाहिलों
– ना मालूम किस माँ बाप ने पैदा किए तुझ जैसे जाहिल को
– हराम के पिल्लै
– मिथ्याचारियों
– नालायक
– अगर अपने बाप से जन्मा है तो
– तुम सब बिन बापके आवलाद माने जावगे……….
चरित्र के धनी महेन्द्रपाल जी के इन शब्दों के लिए हम अत्यंत आभारी हैं लेकिन पण्डित जी आपकी ये सप्रेम भेंट हमारे किसी प्रयोजन को सिद्ध करने में असमर्थ है अतः आपकी ये श्रध्दा सुमन रूपी भेंट आपको ही समर्पित है .
पण्डित जी ईश्वर की ऐसी कृपादृष्टि इस संगठन के सदस्यों के ऊपर रही की सभी ने सभ्य धार्मिक माता पिता के यहाँ जन्म लिया चाहे आर्य परिवार हों या पौराणिक .
धार्मिक परिवार में जन्म लेने के अतिरिक्त ईश्वर की कृपा से पालन पोषण और युवावस्था में भी विद्वानों की संगति और मार्गदर्शन के फलस्वरूप आपके इन प्रिय शब्दों के प्रयोग की कभी हमें आवश्यकता नहीं पडी.
व्यक्ति का भोजन सात्विक होना चाहिए ऐसी ही सम्मति सर्वत्र है, स्वभाव पर भी भोजन का अनुकूल व प्रतिकूल असर देखने में आता है. सभी सदस्य आर्य परिवारों से हैं अतः भावावेश में भी ऐसे शब्दों की आवश्यकता हमें कभी अनुभव नहीं हुयी.
हां ! कई बारे मदिरा के आवेश में भी व्यक्ति ऐसे शब्दों का प्रयोग किया करता है लेकिन पुनः यह रोग न तो हमारे किसी सदस्य में है न ही ऐसी हमारी संगति
पण्डित जी के जीवन का एक महत्व पूर्ण भाग मुसलमान परिवार में गुजरा. मांसाहार तो जीवन का हिस्सा रहा ही होगा ( अब तो आर्य हैं …) . संगति भी ऐसी रही होगी.
मदिरा का सेवन तो मुसलमानों में अवैध माना जाता है तो उस अवधि में तो दोजख के भय से ये रोग नहीं लगा होगा उम्मीद है कि आर्य बनने के बाद से तो मदिरा का नाता वैसे भी नहीं रहा होगा
चरित्र के धनी पण्डित महेंद्रपाल जी आर्य जो स्वयं को आर्य भी लिखते हैं और पण्डित भी है तो इस दृष्टि से न तो वो मांसाहार एवं मदिरा के सेवी हो सकते हैं न ही ऐसी संगति उनकी हो सकती है की ऐसे शब्दों का प्रयोग करें.
कई बार व्यक्ति की पारिवारिक स्तिथियाँ ठीक ना होने की वजह से एवं न्यायालयों के चक्करों में उलझ कर मानसिक उत्पीडन झेलते के कारण भी ऐसे शब्दों के प्रयोग का अभ्यस्त हो जाता है परन्तु पंडित जी विद्वान व्यक्ति है वे तो स्वयं कहते है की आर्य समाजीयों को कोर्ट कचहरी के चक्करों से दूर ही रहना चाहिए, तो ऐसा कुछ होना भी सम्भव नहीं दीखता है
इस्लाम व्यक्ति बहुविवाह की भयंकर कुरीति का शिकार है जिसके दुष्परिणामों में से एक मानसिक शांति का खोना है परन्तु ऐसा कुछ भी यहाँ सम्भव नहीं है क्यूंकि पंडित जी आर्य है, ऋषि प्रणीत सिद्धांतों के अनुगामी है तो ऐसा हो यह बात भी असम्भव है ( कुछ व्यभिचारी लोग बहु विवाह की कुरीति का अभी भी अनुसरण करते हैं इन परिवारों में प्राय देखा जाता है की शांती का अभाव होता है और पत्नी पति के दुराचार से तंग आकर न्यायलय की शरण लेती है )
आर्य बनने के बाद तो शैतान के बहकाने का बहाना भी नही चल सकता 🙂
सुना है कई बार पूर्व काल के संस्कार काफी प्रबल होते हैं हो सकता है इसी कारण महेन्द्रपाल जी ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हों.
सात्विक भोजन करने वाले, पवित्र चरित्र आत्मा, ब्रह्मचर्य धारी, वैदिक ग्रहस्थी (एक ही पत्नी से संतुष्ट रहने वाले ) मदिरा के सेवन से कोसों दूर रहने वाले माननीय पण्डित जी द्वारा कहे गए ऐसे शब्दों का हमें पूर्वकालिक संस्कारों के अलावा कोई कारण प्रतीत नहीं होता ( एक आर्य में इन गुणों का समावेश होना स्वाभाविक है और आर्य समाज जहाँ कर्मानुसार वर्ण व्यवस्था है वहां तो इन गुणों का होना पण्डित होने के लिए अत्यावश्यक है )
महेन्द्रपाल जी द्वारा हमारे लिए प्रयोग किये गए इन शब्दों से हमें कोई आघात नहीं पहुँचा है न ही हमारे ऐसी सामर्थ्य है कि हम पण्डित जी की चुनौती को स्वीकार करें .
कहाँ इन शब्दों के प्रयोग में अभ्यस्त सूर्य रूपी प्रभा वाले पण्डित जी और कहाँ इन सबसे दूर पण्डित लेखराम वैदिक मिशन के निरीह कार्यकर्ता
अतः इस क्षेत्र में पण्डित लेखराम वैदिक मिशन पण्डित महेन्द्रपाल आर्य जी से हार मानता है.

हमने पूज्य पण्डित लेखराम जी , पण्डित गुरुदत्त जी , स्वामी श्रधानंद जी , पण्डित शांतिप्रकाश जी ठाकुर अमर स्वामी जी आदि के जीवन चरित्र पढ़े लेकिन हमें कही भी कोई ऐसी घटना नहीं मालूम हुयी जहाँ इस पूज्यों को ऐसे शब्दों का प्रयोग करना पढ़ा हो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी ये गालियों की गुलात आपकी ३२ वर्षों की साधना का फल है.आपको इन गालियों के प्रयोग में सिद्धि हासिल है .
पण्डित जी क्या यह तपस्या अनवरत रूप से अभी भी जारी है …….

Deadly ignorance: Islam & Terrorism

A hallmark of Mr. Obama and his former Secretary of State Hillary Clinton is they have continually downplayed Islamic terror, telling us climate change is far and away a greater threat to mankind.
But at 2 a.m. Sunday, Omar Mateen, 29, the son of Afghan immigrants and an American anchor baby, used a Sig Sauer MCX (not an AR-15) and a handgun to kill 49 people and wound 53 others in Pulse, a gay nightclub in Orlando, Fla., before he was taken out about three hours later by police.
Having traveled to Saudi Arabia on more than one occasion, he had ties to the Islamic State, which said on its official propaganda site that it was responsible for the attack and “The Orlando attack is the work of a soldier of the Caliphate.”
Divorced but married again, some reports say Mateen was gay. His first wife says he was not only gay and a homophobe but also a misogynist who beat her during their marriage. This behavior, the norm for the Muslim culture, is similar to what German women experienced in Cologne six months ago and why Sweden is now the world’s rape capital.
Whether or not Mateen was gay isn’t important. What he did in his murderous rampage was totally related to Islam.
According to The Reliance of the Traveller, the sharia manual, says American Thinker columnist Eileen F. Toplansky, “there is consensus among Muslims … that sodomy is an enormity. It is even viler and uglier than adultery,” which is “punished brutally, including by death.”
The clear meaning is killing homosexuals is not Islamic jihadist law, or ISIS law, or as Mr. Obama pronounces it, ISIL, it is sharia, Muslim law.
Noting that a year ago Iranian Ayatollah Ali Khamenei “encouraged Western youth to find out about Islam for themselves and not allow their image of it to be clouded by prejudice,” Ms. Toplansky said youths were to “study and research and receive knowledge of Islam from its primary and original sources.” Here is a smattering of those primary original sources:
Quran 8:12 – I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them.
Quran 9:5 – So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush.
Quran 4:144 – O ye who believe! Take not for friends unbelievers rather than believers: Do ye wish to offer Allah an open proof against yourselves?
Quran 5:51 – O ye who believe! Take not the Jews and the Christians for friends. They are friends one to another, He among you who taketh them for friends is (one) of them. Lo! Allah guideth not wrongdoing folk.
Quran 4:101 – For the Unbelievers are unto you open enemies.
Quran 4:89 – They would have you become Kafirs [non-Muslims – infidels] like them so you will all be the same. Therefore, do not take any of them as friends until they have abandoned their homes to fight for Allah’s cause [jihad]. But if they turn back, find them and kill them wherever they are.
“The whole world must submit to Islam,” says Bill Warner in Sharia Law for Non-Muslim. “Kafirs are the enemy simply by not being Muslims. Violence and terror are made sacred by the Quran. Peace comes only with submission to Islam.”
Killing gays, Jews, Christians, Yazidis, Hindus, Buddhists and uncovered women, or anyone who refuses to bow down to the medieval edicts of Islam, is not ISIS law. It is Muslim law — sharia, says Ms. Toplansky.
An estimated 3 million Muslims live in America, and more are being brought every day by Mr. Obama. A poll by the Center for Security Policy in May 2015 said 51% of American Muslim wanted their own sharia courts, not the American legal system. Taxpayer cost is $20,000 per immigrant, and that is before they receive welfare, food stamps and free health care.
Refusing to acknowledge that Islam is behind terrorists attacks against Western civilization even when attackers shout “Allahu Akbar” (God is great), Mr. Obama, called the Paris attacks “random violence.” Although he didn’t express anger Sunday in his talk regarding the Orlando massacre, he said it was a “terror attack.” Then he launched into his anti-gun crusade.
The political correctness whitewashing of Islamic terror and sharia was clear in Orlando. And it will happen again.

source : http://www.carolinacoastonline.com/news_times/opinions/editorials/article_fcff777e-3491-11e6-b5b7-8b0abee0f109.html

दिल्ली से प्रकाशित निन्दनीय ऋषि-जीवन :प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु जी

दिल्ली से प्रकाशित निन्दनीय ऋषि-जीवन :-

दिल्ली में आर्यसमाज के अनेक नेता हैं। नये-नये शास्त्रार्थ महारथी भी हैं। इनकी सबकी नाक के नीचे एक घटिया दूषित, विकृत ऋषि जीवन छपा है। दर्शन योग विद्यालय से श्री दिलीप वेलाणी जी ने मेरे पास भेजा है। इसमें क्या है? यह अगले अंकों में बताया जायेगा।
प्रतापसिंह और नन्हीं वेश्या का तो उल्लेख तक नहीं। अली मर्दान को सुप्रसिद्ध डॉक्टर लिखा गया है। महाराणा सज्जन सिंह जी को जोधपुर लाया गया है। पं. गुरुदत्त, ला. जीवन दास की चर्चा नहीं। श्री सैयद मुहमद तहसीलदार का नाम तक अशुद्ध है। कई संवाद इसमें कल्पित हैं। घटनायें प्रदूषित, मनगढ़न्त और विकृत हैं। इतिहास प्रदूषण की अद्भूत शैली है। लेखक ने बड़ी कुशलता से अपनी कुटिलता दिखाई है। परोपकारिणी सभा प्रत्येक वार-प्रहार का उत्तर देने के लिये है। सभा मन्त्री जी ने मेरे सुझाव पर अगली पीढ़ी को मैदान में उतारा है। प्रकाशक वह भूल सुधार कर दे तो ठीक नहीं तो फिर हम अगला पग उठायेंगे। जहाँ मेरी आवश्यकता होगी, मैं मोर्चा सभालूँगाः-
जरा छेड़े से मिलते हैं मिसाले ताले तबूरा
मिला ले जिसका जी चाहे बजा ले जिसका जी चाहे

अच्छा होता यदि दिल्ली के नेता व सभायें जागरूक होतीं।

काशी शास्त्रार्थ में वेदः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

काशी शास्त्रार्थ में वेदः-

‘परोपकारी’ के एक पिछले अंक में महर्षि दयानन्द जी द्वारा जर्मनी से वेद संहितायें मँगवाने विषयक आचार्य सोमदेव जी को व इस लेखक को प्राप्त प्रश्नों का उत्तर दिया गया था। कहीं इसी प्रश्न की चर्चा फिर छिड़ी तो उन्हें बताया गया कि सन् 1869 के काशी शास्त्रार्थ में ऋषि जी ने महाराजा से माँग की थी कि शास्त्रार्थ में चारों वेद आदि शास्त्र भी लाये जायें ताकि प्रमाणों का निर्णय हो जाये। इससे प्रमाणित होता है कि वेद संहितायें उस समय भारत में उपलध थीं। पाण्डुलिपियाँ भी पुराने ब्राह्मण घरों में मिलती थीं।

परोपकारी में ही हम बता चुके हैं कि आर्यसमाज स्थापना से बहुत पहले पश्चिमी देशों में पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहा कि यह संन्यासी दयानन्द ललकार रहा है, कि लाओ वेद से प्रतिमा पूजन का प्रमाण, परन्तु कोई भी वेद से मूर्तिपूजा का प्रमाण नहीं दे सका। ऋषि यात्राओं में वेद रखते ही थे। हरिद्वार के कुभ मेले में ऋषि यात्राओं में वेद रखते ही थे। हरिद्वार के कुभ मेले में ऋषि विरोधी पण्डित भी कहीं से वेद ले आये। लाहौर में श्रद्धाराम चारों वेद ले आये। वेद कथा भी उसने की।

ऐसे अनेक प्रमाणों से सिद्ध है कि जर्मनी से वेद मँगवाने की बात गढ़न्त है या किसी भावुक हृदय की कल्पना मात्र है। देशभर में ऐसे वेद पाठियों की संया तब सहस्रों तक थी जिन्हें एक-एक दो-दो और कुछ को चारों वेद कण्ठाग्र थे। सेठ प्रताप भाई के आग्रह पर कोई 63-64 वर्ष पूर्व एक बड़े यज्ञ में एक ऐसा वेदापाठी भी आया था, जिसे चारों वेद कण्ठाग्र थे। तब पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज भी उस यज्ञ में पधारे थे। आशा है कि पाठक इन तथ्यों का लाभ उठाकर कल्पित कहानियों का निराकरण करेंगे।