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ये पिंजरे की नारी

islam men nari

“इस्लाम में नारी” यह शब्द सुनते ही चेहरे पर चिंता की लकीर खींच जाती है और नरक के विचार आने लगते है, “पिंजरे में कैद पंछी” और “इस्लाम में नारी” लगता है ये दोनों वाक्य एक दूजे के पर्याय है

महिला आयोग हो या मानवाधिकार आयोग या so called समाजसुधारक आमिर खान हो इन्हें कभी भी इस्लाम की कुरीतियों पर मुहं खोलना याद नहीं आता है परन्तु देखा जाए तो विश्व में यदि कोई मत सम्प्रदाय है जिस पर इन लोगों को वास्तव में मुहं खोलना चाहिए तो वो है “इस्लाम”

खैर इस विषय पर जितना लिखते जायेंगे उतना कम लगेगा क्यूंकि इस्लाम में नारी केवल और केवल भोग विलास का साधन है

जिस प्रकार हम सनातनी कर्म की प्रधानता को मानते है इस्लाम को मानने वाले काम-वासना को प्रधान मानते है तभी तो बच्चे का खतना करते है ताकि उसकी सेक्स क्षमता को बढाया जा सके (ये इस्लाम को मानने वालो का तर्क है) वैसे अपने इस तर्क को छुपाने के लिए कई बार नमाज के समय शरीर के पाक साफ़ होने का वास्ता देकर उचित बताते है हां यह बात अलग है की मुहम्मद के समय तो अरब निवासी जुम्मे के जुम्मे नहाते थे

चलिए जैसे हमने इस लेख की प्रधानता नारी को दी है तो आइये इस्लाम में नारी की स्थिति और इस्लाम के विद्वानों की नारी के प्रति क्या सोच है कुरान क्या कहती है इसका विश्लेषण कर लिया जाये

अभी आपको याद होगा हाजी अली में महिलाओं के जाने पर रोक थी पर अदालत ने इस रोक को हटा दिया है और महिलाओं के हाजी अली में प्रवेश को प्रारम्भ कर दिया है

यह प्रभाव है हमारे सनातन धर्म का उसी के प्रभाव और सनातन धर्म में नारी के स्थान से प्रभावित होकर ही आज महिलाओं को हाजी अली में जाने अधिकार प्राप्त हुआ है वरना जैसे अरब देशों में महिलाओं की शरीयत से दयनीय स्थिति ही वैसी भारत में भी इस्लामिक महिलाओं की स्थिति बन चुकी है

महिलाओं का मस्जिदों में जाने पर प्रतिबन्ध कुरान का लगाया है यह तर्क इस्लामिक विद्वान देते आये है

“इस्लामिक कानून में पसंदीदा शक्ल यही है की वह (नारी) घर में रहे जैसा की आयत “अपने घरों में टिककर रहो” (कुरान ३३:३३)

“हाँ कुछ पाबंदियों के साथ मस्जिदों में आने की इजाजत जरुर दी गई है, लेकिन इसको पसंद नहीं किया गया !”
“उसको महरम (ऐसा रिश्तेदार जिससे विवाह हराम हो) के बिना सफ़र करने की भी इजाजत नहीं दी गई”
इसी तरह एक हदीस में फरमाया है की

“औरतों के लिए वह नमाज श्रेष्ठ है जो घर के एकांत हालत में पढ़ी जाए”
“नबी ने हिदायत फरमाई की छिपकर अकेले कोने में नमाज पढ़ा करो”

जहाँ एक तरह सम्पूर्ण विश्व इस बात पर जोर दे रहा है जो सनातन धर्म की देन है की महिला और पुरुष को समान दर्जा दिया जाए
वहीँ इस्लाम में नारी को आज तक केवल भोग का साधन मात्र रखा हुआ है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हाजी अली की घटना है जहाँ किसी इस्लामिक संस्था ने नहीं बल्कि अदालत को मस्जिद में जाने का अधिकार दिलाने के लिए आगे आना पड़ा

ये एक घटना नहीं है ऐसी कई घटना है जिससे ये प्रमाणित हो जाता है की इस्लाम आज तक उस द्कियानुकिश सोच से आगे नहीं बढ़ पाया कभी कभी ये मजाक भी सही लगता है और सही भी है की सम्पूर्ण विश्व (इस्लाम को छोड़कर) आज चाँद पर पहुँच गया है पर इस्लाम अभी तक बुर्के में ही अटका हुआ है

इस्लाम के पैरोकार इस्लाम में महिला की स्थिति सनातन धर्म से बेहतर बताने के कई झूठे दावे करते है परन्तु उनके दावों की पोल उनके इमामों के फतवे ही खोल देते है तो कोई और क्या कहे

कुरान में एक आयत है जहाँ औरतों को पीटने तक की इजाजत दी गई है उसे प्रमाणित यह व्रतांत करता है

“हदीस की किताब इब्ने माजा में है की एक बार हजरत उमर ने शिकायत की कि औरते बहुत सरकश हो गई है, उनको काबू में करने के लिए मारने की इजाजत होनी चाहिए और आपने इजाजत दे दी ! और लोग ना जाने कब से भरे बैठे थे, जिस दिन इजाजत मिली, उसी दिन सतर औरते अपने घरों में पिटी गई”

यहाँ तर्क देने को कुछ बचता नहीं है इस्लामिक विद्वानों के पास क्यूंकि यह तो कुरान ही सिखाती है और मोहम्मद साहब ने इसे और पुख्ता कर दिया

अब यदि किसी को विचार करना है तो इस्लाम को मान रही महिलाओं, औरतों, बहु, बेटियों को करना है की वे कब तक इस जहन्नुम में रहेगी और कब अपनी आवाज को इन अत्याचारों के विरुद्ध बुलंद करेगी या क़यामत तक का इन्तजार करते रहेगी

और सतर्क होना है तो गैर इस्लामिक महिलाओं को की इस मत से जुड़े लड़कों के जाल में फसकर अपने परिजनों को जीते जी चिता में मत जलाना

इसके साथ ही में अपने शब्दों को विराम देता हूँ और वही निवेदन पुनः करता हूँ की बेहतर भविष्य और आमजन में जानकारी पहुंचाने हेतु www.aryamantavya.in के सभी लेखों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाए

धन्यवाद

भीष्म स्वामी जी धीरता, वीरता व मौन : राजेंद्र जिज्ञासु जी

भीष्म स्वामी जी धीरता, वीरता व मौन :- इस बार केवल एक ही प्रेरक प्रसंग दिया जाता है। नरवाना के पुराने समर्पित आर्य समाजी और मेरे विद्यार्थी श्री धर्मपाल तीन-चार वर्ष पहले मुझे गाड़ी पर चढ़ाने स्टेशन पर आये तो वहाँ कहा कि सन् 1960 में कलायत कस्बा में आर्यसमाज के उत्सव में श्री स्वामी भीष्म जी कार्यक्रम में कूदकर गड़बड़ करने वाले साधु से आपने जो टक्कर ली वह प्रसंग पूरा सुनाओ। मैंने कहा, आपको भीष्म जी की उस घटना की जानकारी कहाँ से मिली? उसने कहा, मैं भी तब वहाँ गया था।
संक्षेप से वह घटना ऐसे घटी। कलायत में आर्यसमाज तो था नहीं। आस-पास के ग्रामों से भारी संख्या में लोग आये। स्वामी भीष्म जी को मन्त्र मुग्ध होकर ग्रामीण श्रोता सुनते थे। वक्ता केवल एक ही था युवा राजेन्द्र जिज्ञासु। स्वामी जी के भजनों व दहाड़ को श्रोता सुन रहे थे। एकदम एक गौरवर्ण युवा लंगडा साधु जिसके वस्त्र रेशमी थे वेदी के पास आया। अपने हाथ में माईक लेकर अनाप-शनाप बोलने लगा। ऋषि के बारे में भद्दे वचन कहे। न जाने स्वामी भीष्म जी ने उसे क्यों कुछ नहीं कहा। उनकी शान्ति देखकर सब दंग थे। दयालु तो थे ही। एक झटका देते तो सूखा सड़ा साधु वहीं गिर जाता।

मुझसे रहा न गया। मैं पीछे से भीड़ चीरकर वेदी पर पहुँचा। उस बाबा से माईक छीना। मुझसे अपने लोक कवि संन्यासी भीष्म स्वामी जी का निरादर न सहा गया। उसकी भद्दी बातों व ऋषि-निन्दा का समुचित उत्तर दिया। वह नीचे उतरा। स्वामी भीष्म जी ने उसे एक भी शब्द न कहा। उस दिन उनकी सहनशीलता बस देखे ही बनती थी। श्रोता उनकी मीठी तीन सुनने लगे। वह मीठी तान आज भी कानों में गूञ्ज रही हैं :-

तज करके घरबार को, माता-पिता के प्यार को,
करने परोपकार को, वे भस्म रमा कर चल दिये……

वे बाबा अपने अंधविश्वासी, चेले को लेकर अपने डेरे को चल दिया। मैं भी उसे खरी-खरी सुनाता साथ हो लिया। जोश में यह भी चिन्ता थी कि यह मुझ पर वार-प्रहार करवा सकता था। धर्मपाल जी मेरे पीछे-पीछे वहाँ तक पहुँचे, यह उन्हीं से पता चला। मृतकों में जीवन संचार करने वाले भीष्म जी के दया भाव को तो मैं जानता था, उनकी सहन शक्ति का चमत्कार तो हमने उस दिन कलायत में ही देखा। धर्मपाल जी ने उसकी याद ताजा कर दी।

ईश्वर सुकृत कैसेः- राजेन्द्र जिज्ञासु

श्री सुधाकर आर्य कोशाबी गाजियाबाद की दोनों नन्हीं-नन्हीं पुत्रियाँ बहुत कुशाग्र बुद्धि हैं। कभी-कभी ऐसे प्रश्न पूछ लेती हैं कि उनके दादा डॉ. अशोक आर्य सोच में पड़ जाते हैं कि इतनी छोटी-सी आयु की बालिकाओं को कैसे समझाऊँ। बच्चे के स्तर पर उत्तर देना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है। एक आर्य बालक ने अपने स्वाध्यायशील पिता से पूछ लिया, वायु क्यों और कैसे चलती है? पिता के लिये समस्या खड़ी हो गई कि इसे क्या उत्तर दूँ?

डॉ. अशोक जी की चार वर्षीय पौत्री ने घर के बड़ों से पूछा, हम सबके घर में काले बाल हैं, दादा जी के काले क्यों नहीं हैं? उनकी दूसरी पोत्री से सन्ध्या के पश्चात् प्रश्न उठाया, मैं आप सबको देाती हूँ, परन्तु भगवान् दिखाई क्यों नहीं देता। मुझे उन्हें सन्तुष्ट करने को कहा गया। मैंने छोटी बालिका से कहा, तुम पहले से बड़ी हो गई हो। हम सबमें व्यापक ईश्वर हमारे शरीरों का परिवर्तन व वृद्धि करता रहता है। जवानी ढलती है, तो शरीर शिथिल हो जाता है। काले बाल श्वेत हो जाते हैं। वह प्रभु सुकृत सुन्दर और विचित्र कला वाला कलाकार या कारीगर है।

कहीं यह प्रसंग सुना रहा था तो किसी को सुकृत शब्द तो बहुत भाया, परन्तु इसे और स्पष्ट करने को कहा। साथ ही एक नया प्रश्न जोड़ दिया सूअर जैसे गन्दे प्राणी तथा सर्प जैसी योनि को बनाने वाले को वेद ‘सुकृत’ कहता है। हम उसे सुकृत कैसे मान लें?
उसे उत्तर दिया, देखो! हमारे बच्चों की आयु बढ़ती है तो पहले वाले मूल्यवान् वस्त्र कोट, स्वैटर आदि काम नहीं आते। वे ठीक होने पर भी बच्चों के काम नहीं आते। हमें बहुत व्यय करके नये मूल्यवान् वस्त्र सिलवाने पड़ते हैं, परन्तु मानव चोला वही का वही काम करता है। छोटा, कोट तो बड़ा नहीं बन सकता, परन्तु प्राु हमारे पैरों, टाँगों, भुजाओं, हाथों व मुख आदि सब अंगों को बिना कतरणी चलाये बढ़ाता जाता है। क्या कोई मानवीय कारीगर ऐसा कर सकता है? उस प्रश्न कर्त्ता तथा सब श्रोताओं का मेरे द्वारा दिया गया उत्तर बहुत जँचा। वे मुग्ध हो गये। अब उन्हें समझ में आ गया कि वेद ने ईश्वर को सुकृत क्यों कहा है।
रही बात सूअर आदि योनियों को क्यों बनाया? सो उन्हें बताया कि जिसने सूअर जैसा आपको गन्दा दिखने वाला जन्तु पैदा किया है। मोर व तोते जैसे सुन्दर प्राणी पक्षी भी उसी ने बनाये हैं। सुन्दर दर्शनीय नगरों में जहाँ स्कूल, कॉलेज, हस्पताल बनाये जाते हैं, वहीं कारागार व फांसी का फँदा भी होता है। ये भी जीवों के कल्याणार्थ आवश्यक हैं।

काशी शास्त्रार्थ में वेदः- राजेन्द्र जिज्ञासु

काशी शास्त्रार्थ में वेदः-

‘परोपकारी’ के एक पिछले अंक में महर्षि दयानन्द जी द्वारा जर्मनी से वेद संहितायें मँगवाने विषयक आचार्य सोमदेव जी को व इस लेखक को प्राप्त प्रश्नों का उत्तर दिया गया था। कहीं इसी प्रश्न की चर्चा फिर छिड़ी तो उन्हें बताया गया कि सन् 1869 के काशी शास्त्रार्थ में ऋषि जी ने महाराजा से माँग की थी कि शास्त्रार्थ में चारों वेद आदि शास्त्र भी लाये जायें ताकि प्रमाणों का निर्णय हो जाये। इससे प्रमाणित होता है कि वेद संहितायें उस समय भारत में उपलध थीं। पाण्डुलिपियाँ भी पुराने ब्राह्मण घरों में मिलती थीं।
परोपकारी में ही हम बता चुके हैं कि आर्यसमाज स्थापना से बहुत पहले पश्चिमी देशों में पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहा कि यह संन्यासी दयानन्द ललकार रहा है, कि लाओ वेद से प्रतिमा पूजन का प्रमाण, परन्तु कोई भी वेद से मूर्तिपूजा का प्रमाण नहीं दे सका। ऋषि यात्राओं में वेद रखते ही थे। हरिद्वार के कुभ मेले में ऋषि यात्राओं में वेद रखते ही थे।

हरिद्वार के कुभ मेले में ऋषि विरोधी पण्डित भी कहीं से वेद ले आये। लाहौर में श्रद्धाराम चारों वेद ले आये। वेद कथा भी उसने की। ऐसे अनेक प्रमाणों से सिद्ध है कि जर्मनी से वेद मँगवाने की बात गढ़न्त है या किसी भावुक हृदय की कल्पना मात्र है। देशभर में ऐसे वेद पाठियों की संया तब सहस्रों तक थी जिन्हें एक-एक दो-दो और कुछ को चारों वेद कण्ठाग्र थे। सेठ प्रताप भाई के आग्रह पर कोई 63-64 वर्ष पूर्व एक बड़े यज्ञ में एक ऐसा वेदापाठी भी आया था, जिसे चारों वेद कण्ठाग्र थे। तब पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज भी उस यज्ञ में पधारे थे। आशा है कि पाठक इन तथ्यों का लाभ उठाकर कल्पित कहानियों का निराकरण करेंगे।

श्री कृष्ण चोर या महापुरुष

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कृष्ण जन्माष्टमी आते ही योगिराज श्री कृष्ण की मान मर्यादा को तार तार करने का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है, सोशल मिडिया को महापुरुषों के लिए शोषण मिडिया बनाकर रख दिया है

महापुरुषों की या हिन्दू देवी देवताओं के किसी की भी जयंती आने वाली हो सोशल मिडिया पर ऐसे संदेशों की बहार आ जाती है जिसमें उन पर कई गन्दी और बेहूदा मजाक बनाई होती है

जन्माष्टमी पर कृष्ण को लेकर एक संदेश बहुत चल रहा है

गुरुवार तारीख 25-08-2016 को दुनिया के सबसे
बड़े डॉन का बर्थडे है
कोई ऐसा गुनाह नहीं जो उन्होंने नहीं किया हो….
1. जेल में जन्म
2. माँ-बाप की हेरा-फेरी
3. बचपन में लड़कियों का चक्कर
4. नागदेवता को भी मार दिया
5. कंकर मार कर लडकियों को छेड़ना
6. 16108 लफड़ा
7. दो-दो बीवियां
8. अपने मामू का मर्डर
9. मथुरा से तड़ीपार
फिर भी भाई कभी पकडे नहीं गये
इसलिए तो उसे में भगवान मानता हूँ

इस संदेश की जड़ वैसे तो कुलषित मनोवृत्ति का कोई असामाजिक तत्व है
परन्तु ये सब बाते फैली है विष्णु पुराण आदि की वजह से, जिसमें हमारे पूर्वज योगिराज श्री कृष्ण के जीवन चरित्र को बेहद घटिया बताया है

हम लोग इन अवैदिक झूठे ग्रन्थों को सही मान कर कृष्ण को इस तरह का समझ बैठते है और ऐसे घटिया बेहूदा संदेशों को मजाक समझकर आगे भेजते रहते है

श्री कृष्ण योगिराज थे और ये विचारणीय बात है की कोई योगिराज क्या धर्मपत्नी को छोड़कर अन्य औरतों के साथ सम्बन्ध रखेगा यहाँ यह बात भी झूठी है कि “नरकासुर की कैद से १६१०० स्त्रियाँ छुड़ाई गई थी जिन्हें संभवतः समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, उन्हें पत्नी का सम्मानजनक दर्जा दिया, वे भोगी नहीं योगी थे”

श्री कृष्ण का ओहदा उस समय भी उच्च स्तर का था तो यदि ऐसी कोई घटना हुई की १६१०० स्त्रियों को छुड़ाया तो सम्भवतः कृष्ण जब लोगों को समझाते की ये स्त्रियाँ पवित्र है और जो विवाह योग्य है उनसे उचित व्यक्ति विवाह करे और जो छोटी है उन्हें अपनी बेटी बना उनका लालन पालन करें तो आमजन उनकी बात को समझकर उसे स्वीकार उन स्त्रियों को अपनाते

बाकी जो कपडे चुराना लडकियां छेड़ना जैसी असभ्य हरकतों का जो जिक्र है वह वाम मार्गियों द्वारा बनाये गए ग्रन्थ भागवत हरिवंश पुराण आदि की देन है श्री कृष्ण का जीवन चरित्र महाभारत में मिलता है उससे इतर बाद के लोगों और वाममार्गियों ने उनके बारे में झूठी बाते लिखकर हमारे इतिहास को बदलने की चेष्टा की है

परन्तु यह हम सनातनियों का दायित्व है की हम अपने महापुरुषों को जानकर, समझकर, उनके बारे में सत्य जीवन चरित्र पढ़कर गलतफहमियों को मिटाने का प्रयास करे

youtube पर “pandit lekhram vedic mission” के नाम से एक चैनल है

श्री कृष्ण के विवाहों का सच

राधा का सच

श्री कृष्ण की माखन चोरी और वस्त्र चोरी सच क्या

द्रौपदी के विवाह का सच

जहाँ श्री कृष्ण के बारे में जो झूठी भ्रांतियां फैलाई गई है उनके बारे में एनीमेशन विडियो बनाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है उन विडियो को भी शेयर करके आप लोगों को जागरूक कर सकते है

जरूरत है लोगों में श्री कृष्ण के जीवन चरित्र को लेकर जागरूकता फैलाने की इसके लिए हमें स्वयं इनके जीवन चरित्र को पढना पड़ेगा और कुछ वेबसाइट पर उनके जीवन चरित्र को लेकर सत्यता बताई है उसे अधिक से अधिक शेयर करने की

इसके लिए आप
www.aryamantavya.in पर जाकर और अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते है

मैं इनका ऋणी हूँ :- – राजेन्द्र जिज्ञासु

मैं इनका ऋणी हूँ :-

ऋषि के जीवनकाल में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर उसी समय उर्दू में एक पुस्तक छपी थी। तब तक ऋषि जीवन पर बड़े-बड़े ग्रन्थ नहीं छपे थे, जब पं. लेखराम जी ने अपने एक ग्रन्थ में उक्त पुस्तक के आधार पर यह लिखा कि शास्त्रार्थ के आरभ होने से पूर्व मुसलमानों ने ऋषि से कहा था कि हिन्दू व मुसलमान मिलकर ईसाइयों से शास्त्रार्थ करें। ऋषि ने यह सुझाव अस्वीकार कर दिया। जब मैंने ऋषि जीवन पर कार्य किया, इतिहास प्रदूषण पुस्तक में यह घटना दी तब यह प्रमाण भी मेरे ध्यान में था।
मुसलमान लीडरों डॉ. इकबाल, सर सैयद अहमद खाँ, मौलवी सना उल्ला व कादियानी नबी ने पं. लेखराम का सारा साहित्य पढ़ा। पण्डित जी के साहित्य पर कई केस चलाये गये। पाकिस्तान में आज भी पण्डित जी के साहित्य की चर्चा है। किसी ने भी इस घटना को नहीं झुठलाया, परन्तु जब मैंने यह प्रसंग लिखा तो वैदिक पथ हिण्डौन सिटी व दयानन्द सन्देश आदि पत्रों में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर लेख पर लेख छपे। मेरा नाम ले लेकर मेरे कथन को ‘इतिहास प्रदूषण’ बताया गया। मैंने पं. लेखराम की दुहाई दी। देहलवी जी, ठा. अमरसिंह, महाशय चिरञ्जीलाल प्रेम के नाम की दुहाई तक देनी पड़ी। किसी पत्र के सपादक व मालिक ने तो मेरे इतिहास का ध्यान न किया, न इन गुणियों पूज्य पुरुषों की लाज रखी। थोथा चना बाजे घना। मैंने प्राणवीर पं. लेखराम का सन्मान बचाने के लिये उनके ग्रन्थ के उस पृष्ठ की प्रतिछाया वितरित कर दी। पं. लेखराम जी पर कोर्टों के निर्णय आदि पेश कर दिये। लेख देने वाले को तो मुझे कुछ नहीं कहना। इन पत्रों के स्वामियों व सपादकों का मैं आभार मानता हूँ। मैं इनका ऋणी हूँ। यह वही लोग हैं जो नन्हीं वेश्या पर लेख प्रकाशित करके उसे चरित्र की पावनता का प्रमाण-पत्र दे रहे थे। इनका बहुत-बहुत धन्यवाद। इन पत्रों के स्वामी पं. लेखराम जी के ज्ञान की थाह क्या जानें।
विषदाता कह पत्थर मारे। क्या जाने किस्मत के मारे।।
सुधा कलश ले आया। उस जोगी का भेद न पाया।।
हाँ! मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि वैदिक पथ पर श्री ज्वलन्त जी का सपादक के रूप में नाम छपता है। आप ने ऐसी गभीर बात पर चुप्पी साध ली। मुझ से बात तक न की। मेरा उनसे एक नाता है, उस नाते से उनका मौन अखरा और किसी से कोई शिकायत नहीं। जी भर कर मुझे कोई कोसे। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाना चाहिये। कन्हैया, केजरीवाल व राहुल ने सबकी राहें खोल दी हैं।
‘फूँकों से यह चिराग बुझाया न जायेगा

औरतों का खतना: एक दर्दनाक इस्लामिक मान्यता

khatna

मोमिन कहते है कि इस्लाम में नारी को जो सम्मान मिला है वो किसी मत मतान्तर में नहीं मिला,

मत मतान्तर मेने प्रयोग किया है और उपयुक्त भी है परंतु धर्म की परिभाषा से अनभिज्ञ लोग इस्लाम ईसाइयत आदि मत मतान्तरों को भी धर्म कहते है, यह लम्बा विषय है जिस पर कभी भी लिखा जा सकता है परंतु हम आज जिस बात पर चर्चा कर रहे है वो मुद्दा इस सृष्टि के रचनाकार के माध्यम यानी नारी शक्ति को लेकर है तो मोमिनों की भांति विषयांतर ना करके हम विषय को आगे बढ़ाते है

इस्लाम में नारी की स्थिति इस्लामिक नरक में काफिरों के जैसी है
जहाँ पर्दा प्रथा यानी काला बुरका पहनने की पाबंदी चाहे कितनी ही झुलसा देने वाली गर्मी हो पर उस काले हीटर को धारण करना अतिआवश्यक है
फिर बच्चों की पूरी फ़ौज पैदा करना
प्रसव पीड़ा को एक नारी ही समझ सकती है और इस पीड़ा से इस्लाम में बार बार गुजरना पड़ता है

और तलाक के तीन शब्द कहने मात्र से यहाँ नारी की जिंदगी जो पहले से नरक थी और बदतर हो जाती है

विवाह जैसे रिश्ते यहाँ मकड़ी के जाल से भी कच्चे होते है

{हा जिसे बचपन से ऐसे ही संस्कार मिले हो उनके लिए तो यही जन्नत है परन्तु उन्हें भी चाहिए की इस इस्लामिक कुए से बाहर निकलकर सनातन वैदिक धर्म के स्वर्ग से रूबरू हो}

ये ऐसे नर्क वाले तथ्य तो लगभग सभी जानते है परंतु आज आपको एक नए तथ्य से अवगत कराते है

इसे पढ़ने मात्र से आपका रोम रोम खड़ा हो जाएगा तो सोचिये उस नारी की स्थिति क्या होगी जो इसे सहन करती है

इस्लाम में लड़कों का खतना तो हमने सुना ही है

आज आपको लड़कियों के खतने के बारे में बताते है

हवस से भरे इस मजहब में जहाँ कुछ इस्लामिक विद्वान खतने को शरीर की सफाई से जोड़ते है वही कुछ विद्वान इसे सेक्स का समय और आनन्द बढाने का माध्यम बताते है

अब लड़कियों के बारे में विचार किया जाए तो यहाँ कौनसी शारीरिक सफाई उससे होती है समझ से बाहर दिखेगी

हदीस मे लेखक कहता है कि

“लड़कियों का खतना भी वाजिब है और मुस्तहिब यह है कि फजूल खाल कम कम काटे और ज्यादा न काटे”

इस्लामिक विद्वान/नबी अपने आप को अल्लाह/ईश्वर से बढ़कर स्वयं को समझते है जो उसकी बनाई मानवीय कृति में भी छेड़छाड़ कर उसे ईश्वरीय बताते है

लड़कों के लिंग की खाल और लड़कियों के शर्मगाह की चमड़ी क्या अल्लाह/ईश्वर ने बेवजह बनाई है?

क्या अल्लाह अल्पज्ञ है ?

क्या अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं की वो मनुष्यों में कुछ फ़ालतू अंग या चमड़ी आदि दे रहा है ?

क्या अल्लाह को अब इस्लामिक विद्वानों से सीखने की जरुरत है ?

इन विद्वानों को देखकर इन सब का जवाब “हां” ही लगता है

आगे लेखक लिखता है

“जिसका खतना न हुआ हो जमीन उसके पेशाब से कराहत करती है”

इस हास्यास्पद ब्यान पर में अपने शब्द लिखने की जगह पाठकों पर ये जिम्मेदारी देता हूं कि आप इसे ब्यान पर दो शब्द कहें

आगे लेखक ने हजरत मोहम्मद की बात रखते हुए इस हास्यास्पद ब्यान को पुख्ता करने का प्रयत्न किया है

“रसूल फरमाते है कि जिसका खतना न हुआ हो उसके पेशाब से जमीन चालीस दिन नजिस (परेशान) रहती है”

दूसरी हदीस में फरमाते है की

“जमीन उसके पेशाब से खुदाए तआला के सामने फ़रियाद करती है”

“खतना करने से औरत अपने शौहर की नजर में इज्जत पाती है फिर औरत को क्या चाहिए”

ये एक पंक्ति ही बता देती है की इस्लाम में औरत के लिए केवल एक ही कार्य है वह है उसके पति के सामने अपनी इज्जत बनाये रखने के लिए अपने शरीर तक को पीड़ा पहुचाती रहे

ये कैसा मजहब है और विचार कीजिये वो पति कितना सख्त दिल होगा जो अपनी अर्धांगनी को ऐसी शारीरिक पीड़ा से गुजरने देगा और जो गुजरने दे तो उससे भविष्य में क्या अपेक्षा की जा सकती है ?? यह विचार तो इस्लाम में घुट घुट कर जी रही महिलाओं को करना चाहिए

“औरतों का खतना सात बरस बाद करे”

सात वर्ष का होने के बाद से अत्याचार की शुरुआत हो जाती है

जो इस्लाम पग पग पर कुरान के अनुसार जीने को प्रेरित करता रहा है वही इस्लाम कुरान से इतर भी कर्म करता है उसी का उदाहरण है ये महिलाओं का खतना

दूसरी हदीस में लिखा है की
“पहली औरत जिसकी खतना की गई वह हजरते हाजरा हजरते इस्माइल अलैहिस्सलाम की वालिदा थी की हजरते सारा वालिदा-ए-हजरते इस्हाक अलैहिस्सलाम ने गुस्से से उनकी खतना कर दी थी मगर वह और हजरते हाजरा की खूबी की ज्यादती का बाएस हुई और उसी दिन से औरतों की खतना करने की सुन्नत जारी हुई”

और एक जगह देखिये हजरत क्या कहते है

एक बार लड़कियों के खतना करने वाली महिला “उम्मे-हबीबा” से हजरत ने फरमाया की

“ऐ उम्मे-हबीबा! जो काम तू पहले करती थी अब भी करती है ??

तो उसने कहा “रसुल्लाह अब तक तो करती हूँ मगर अब आप मना फरमाएंगे तो छोड़ दूंगी !

तो हजरत ने कहा

“नहीं छोड़ नहीं ! यह तो हलाल काम है बल्कि आ ! में तुझे समझा दूँ की क्या करना चाहिए, जब तू औरतो का खतना करे तो ज्यादा मत काटा कर बल्कि थोड़ा थोड़ा की उससे चेहरा ज्यादा नुरानी हो जाता है और रंग ज्यादा साफ़, और शौहर की नजर में इज्जत ज्यादा हो जाती है”

ये कोई इस्लामिक अविज्ञान होगा जिसका पल्लू अभी मुसलमान पकडे बैठे है

हिन्दू मत में अंधविश्वास की बाते करने वाले मत सम्प्रदायों को अपने मतों में फैले ऐसे अंधविश्वासों पर भी आँखे और मुह खोलने चाहिए

इस्लाम को औरतों के लिए जन्नत कहने वालों को इस्लाम का वास्तविक चेहरा एक बार स्वयं देख लेना चाहिए ऐसी बात कहना भी बैमानी लगता है

हां यह सही है की औरतों को चाहे वे इस्लाम में है या इस्लाम की और आकर्षित है या किसी मुस्लमान के प्यार में फसी हुई है उन सभी को ये वास्तविकता को देखना चाहिए पढना चाहिए

पाठकगण से आग्रह है की इसे लोगों में फैलाए जागरूकता बढाये और अपनी बहन बेटियों को इस्लाम के इस नरक से रूबरू कराए

इसी नरक को छुपाने को ये मुसलमान झूठे जन्नत के फलसफे सुनाते है

सन्दर्भ : तहजीब उल इस्लाम, अल्लामा मजलिसी

Pakistani husbands can ‘lightly beat’ their wives, Islamic council says

The head of a powerful Islamic council is refusing to back down from a proposal that make it legal for husbands to “lightly beat” their wives in Pakistan, despite ridicule and revulsion including calls that maybe the clerics should stand for their own gentle smack down.

Speaking to reporters, the chairman of the Council of Islamic Ideology, Muhammad Kahn Sherani, said a “light beating” should be a last resort.

“If you want her to mend her ways, you should first advise her. … If she refuses, stop talking to her … stop sharing a bed with her, and if things do not change, get a bit strict,” Sherani said, according to Pakistan’s Express-Tribune newspaper.

If all else fails, he added, “hit her with light things like handkerchief, a hat or a turban, but do not hit her on the face or private parts.”

The council, also known as the CII and made up of Islamic clerics and scholars who advise Pakistani legislators, said it was “un-Islamic” for women to leave an abusive relationship and seek refuge in a shelter. The CII strongly opposed Punjab’s law, and said it wanted to weigh in with its own proposal.

[If a husband beats his wife in Pakistan, can she flee? Maybe not.]

Before the bill is expanded from Punjab to other areas of Pakistan, the council said it wanted to weigh in with its own proposal. A draft of the proposal is now complete, and reads like an appalling misprint: Husbands should be allowed to “lightly beat” their wives, the CII recommends.

“A husband should be allowed to lightly beat his wife if she defies his commands and refuses to dress up as per his desires; turns down demand of intercourse without any religious excuse or does not take bath after intercourse or menstrual periods,” the report states, according to Pakistan’s Express-Tribune newspaper.

Reached by phone, a CII official confirmed the report to The Washington Post, but stressed that some changes could still be made to the document before it is forwarded to lawmakers for review.

Currently, Pakistan’s domestic violence abuse laws are vague, although prosecution even in the most heinous cases has been rare.

The CII, which claims that its recommendations are based on Koranic teachings and Sharia law, also seeks to legalize domestic violence if a woman refuses to cover her head or face in public, “interacts with strangers; speaks loud enough that she can easily be heard by strangers; and provides monetary support to people without taking consent of her spouse,” the Express-Tribune reported.

Pakistani supporters of the Islamic group Ahl-e-Hadith youth forum hold placards reading in Urdu “No to women liberation, like in western culture” during a protest in Lahore, Pakistan, on March 17 against the Protection of Women Against Violence Act recently enacted by the Punjab provincial assembly. (Rahat Dar/European Pressphoto Agency)
Although the recommendations are nonbinding, the 163-page document does provide a window into how the most conservative strains of Islam still view the role of women.

The document would ban women from appearing in television or print advertising and would prohibit female nurses from treating male patients. It also would give a husband permission to forbid his wife from visiting males other than relatives.

Some Pakistani leaders and activists slammed the proposal, calling it a national embarrassment. They hope it will persuade Pakistanis to rally for the council to be permanently disbanded.

In an interview, Farzana Bari, an Islamabad-based human rights activist, said the proposal should persuade Pakistanis to rally for the council to be permanently disbanded.

“It shows the decadent mindset of some elements who are part of the council,” Bari said. “The proposed bill has nothing to do with Islam and it would just bring a bad name to this country.”

Pakistan’s Human Rights Commission, which estimates 70 percent of Pakistani women have suffered domestic violence, said in a statement it’s “difficult to comprehend why anyone in his right mind would think that any further encouragement or justification is needed to invite violence upon women in Pakistan.”

The Human Rights Commission “would like to know why the CII’s obsession with women,” the statement said. “We hope and expect that … the draft bill will be condemned unreservedly by all segments of society,” it added.

Bari notes that even if finalized, the proposal has almost no chance of becoming law.

Despite its reputation for being a place where women’s rights lag decades behind the West, Pakistan is actually far more advanced than some other Islamic countries.

Pakistani women have had the right to vote since 1947, the same year that Pakistan was partitioned from India. In 1988, Pakistanis elected the late Benazir Bhutto as prime minister, the first Muslim-majority nation to install a female head of state.

According to Newsweek Pakistan, Bhutto’s son, Bilawal Bhutto Zardari, responded to the CII proposal by saying its members are the ones who should be given a “light beating.”

Unlike in Saudi Arabia, Pakistani women are permitted to drive. There are no formal restrictions on what women in Pakistan can wear in public; such decisions are generally made based on a woman’s cultural upbringing.

But the freedom women have in major cities such as Islamabad, Karachi and Lahore are often not available to them in more rural areas of the country.

Under its constitution, Pakistan is an “Islamic republic” with democratically elected national and provincial legislators. The Council of Islamic Ideology was created so that legislators can seek clerics’ advice before implementing legislation that may conflict with Islamic law.

If legislators defy the council, its members have been known to accuse lawmakers of blasphemy. In Pakistan, a formal blasphemy charge can be punishable by death.

Even the CII, however, appears to be trying to moderate some of its views. The draft document includes provisions endorsing women in government and says a girl should be able to marry without her parents’ permission, according to the Express-Tribune.

On one matter, the CII appears even more tolerant than religious conservatives in the United States. It is proposing to wait up until 120 days after conception before abortion is declared “murder.”

But Bari hopes the Pakistani public sees the document for what it is: a cringe-worthy example of why the CII should be disbanded.

In national elections, Islamist parties with close links to CII members generally receive no more than 10 percent of the total national vote. Absent political support, the CII has become a vehicle for allowing extreme views to remain entrenched in public policy, she said.

“Violence against women can’t be accepted, and it’s time for the nation to stand up to people who come up with such proposed laws,” Bari said.

One of Pakistan’s leading English-language newspapers, Dawn, used humor to fight back against the CII. On Friday, it published “a comprehensive list of things you can ‘lightly beat’ other than your wife.” It includes an egg, a carpet, a ketchup bottle, ice trays, bed sheets, a podium, remote control and “It” — as in the late pop singer Michael Jackson’s hit song “Beat It.”

Using a GIF of Homer Simpson smacking his forehead, Dawn also concluded that someone one can just lightly beat themselves.

“Important: Do this every time you think ‘lightly beating’ women is a thing,” Dawn wrote above the GIF.
https://www.washingtonpost.com/news/worldviews/wp/2016/05/26/pakistani-husbands-can-lightly-beat-their-wives-islamic-council-says/

तप से सब प्रकार के दुर्भावों का नाश होता है : डा. अशोक आर्य ,मण्डी डबवाली

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ओउम
तप से सब प्रकार के दुर्भावों का नाश होता है
डा. अशोक आर्य ,मण्डी डबवाली
संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है ,किन्तु काम एसे करता है कि वह अपनी करनी के कारण सुखी हो नहीं पाता | वास्तव में आज के प्राणी दुर्भावनाओं से भरे हैं | प्रत्येक व्यक्ति अन्यों से किसी न किसी बहाने द्वेष रखता है | वह चाहता है कि उसे स्वयं को कोई सुख चाहे न मिले किन्तु किसी दुसरे को सुख नहीं मिलना चाहिए | इस प्रयास में वह अपने आप को ही भूल जाता है | अपने दु:ख से इतना दु:खी नहीं है , जितना दुसरे के सुख से | इस के दु:ख का मुख्य कारण है किसी दुसरे का सुखी होना | उस को स्वयं को सर्दी से बचने के लिए बिजली के हीटर की आवश्यकता है | वह इस हीटर को खरीदने के स्थान पर इस बात से अधिक दु:खी है कि उसके पडौसी के पास हीटर क्यों है ? बस इस का नाम ही दुर्भाव है | मनुष्य को सुखी रहने के लिए सब प्रकार के दुर्भावों से हटाने की आवश्यकता होती है | इस के लिए तप की आवश्यकता है | यह तप ही है ,जो मनुष्य को दुर्भावों से दूर कर सकता है | मानव को चाहिए की वह दुर्भावों से बचने के लिए तप की ओर लगे | अथर्ववेद के मन्त्र संख्या ८.३.१३ तथा १०. ५.४९ में भी इस भावना पर ही बल दिया गया है | मन्त्र इस प्रकार है : – परा श्रनिही तपसा यातुधानान
पराग्ने रक्षो हरसा श्रीनिही |
परार्चिषा मूरदेवान श्रीनिही
परासुत्रिपा: शोशुचत: श्रीनिही ||
शब्दार्थ : –
( हे अग्ने) हे अग्नि (यातुधानान) राक्षसों अथवा कपट व्यवहार करने वालों को ( तपसा) तप से (परा श्रीनिही ) दूर से ही नाशत करो ( रक्ष: ) राक्षसों या कुकर्मियों को (हरसा) अपनी शक्ति से (परा श्रीनिही) नष्ट करो (मूरदेवान) मूढ़ देवों को अथवा जड़ देवों के उपासकों को (अर्चिषा )अपने तेज से (परा श्रीनिही) नष्ट करो (असुत्रिषा:) दूसरों के प्राणों से अपनी तृप्ति करने वाले ( शोशुचत:) शोकग्रस्त दुर्जनों को (परा श्रीनिही ) नष्ट करो |
भावार्थ :
– हे अग्निरूप प्रभो ! तुम कपट व्यवहार करने वालों को अपने तप से, राक्षसों तथा कुकर्मियों को अपनी शक्ति से , जड़ देवों के उपासकों को अपने तेज से तथा जीव हत्या करने वाले और सदा शोकग्रस्त दुष्टों को नष्ट कर दो |
अथर्ववेद के इस मन्त्र में चार प्रकार के पापियों को नष्ट करने के लिए चार ही प्रकार से नष्ट ल्कराने की व्यवस्था की गयी है | ये चारों इस प्रकार हैं : –
१. यातुधानों को तप से :-
यातुधानों को तप से नष्ट करने का विधान दिया है | जब तक हम यातुधान का अर्थ ही नहीं जानते तब तक इसे समझ नहीं सकते | अत:पहले हम इस के अर्थ को समझाने का प्रयास करते हैं | जो माया , छल , कपट आदि कुटिल व्यवहारों से अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं , उन्हें ” यातु ” कहते हैं ,धान का अर्थ है – रखने वाले | अत: जो छल. कपट,माया आदि कुटिल व्यवहार रखते हैं , उन्हें यातुधान कहते हैं | मन्त्र में उपदेश किया गया है कि हे तपस्वी मानव ! छल , कपट व मायावी व्यवहार रखने वालों को कठोर से कठोर दंड द्वारा संताप दे कर उन्हें नष्ट कर दें | इस में ही भला है |
२. राक्षसों को हरस से :-
जो राक्षस वृति वाले हैं , उन्हें हरस अथवा अपने तेज से नष्ट कर दो , क्योंकि तेज के सम्मुख कभी राक्षस ठहर ही नहीं सकते | प्रश्न यह उठाता है कि राक्षस है कौन , जिसे यहाँ तेज से नष्ट करने को कहा गया है | राक्षस उसे कहते हैं जो सदैव दुसरे का अहित करने वाले तथा उन्हें दू:ख व संताप देने वाले होते हैं | यह लोग दूसरों को संताप देने में ही आनंद का अनुभव करते हैं | ऐसे लोग तेज से ही नष्ट हो जाते हैं | दूसरों को यातना देकर अपना हित साधने वालों को क्रोध कि अग्नि में जला देना चाहिए |
३. मूरदेवों को अर्चिष से :
इस का वर्णन करने से पूर्व मुरदेव का अर्थ भी समझना आवश्यक है | मुर कहते हैं जड़ को | अत: जो जड़ पदार्थों को अपना देवता मानते हैं, उन्हें मुर्देव कहते हैं | इस प्रकार के लोग जड़ कि पूजा करते हैं, अन्धविश्वासी होते हैं, विद्या रहित होने के कारण यह लोग विवेक से भी बहुत दूर होते हैं | होते हैं बुद्धि नाम कि वास्तु इन के पास नहीं होती | ऐसे लोगों को लापत अर्थात तेज से नष्ट करने का इस मन्त्र में विधान किया गया है |
४. असूत्रिप को शोक से :-
असुत्रिप का अभिप्राय: समझाने से पता चलता है कि इस श्रेणी में कौन लोग आते हैं | असू का अर्थ होता है प्राण तथा त्रिप का अर्थ है पिने वाले या हरण करने वाले या मारने वाले | इस से स्पष्ट है जो लोग दूसरों को मार कर खा जाते हैं, उनका खून पि जाते हैं अथवा दूसरों कि जान लेने में जिन्हें आनंद आता है , ऐसे लोग इस श्रेणी में आते हैं | वेड कहता है कि यह लोग सदा भयभीत रहनते हैं, शोक व क्लेश कभी इन का पीछा नहीं छोड़ते , सदा चिंता में ही रहते हैं | न स्वयं सुखी होते हैं न दूसरों को सुल्ही देख सकते हैं | उन कि यह भावना अंत में पर ह्त्या, आत्महनन या आत्म हिंसा के रूप में परिणित होती है | यह सदा दूसरों के मार्ग में कांटे ही पैदा करने का प्रयास करते हैं , इस करना इन्हें समाज के शत्रु कि श्रेणी में रखा जाता है | अत: वेड मन्त्र एइसे लोगों को नष्ट करने का आदेश देता है |
इस प्रकार प्रस्तुत मन्त्र में यह सन्देश दिया गया है कि दुष्ट, छल, कपट व माया से अन्यों को दू:ख देने वाले तथा दूसरों को मार देने कि इच्छा रखने वाले राक्षसी प्रवृति के लोग समाज के शत्रु होते हैं | जब तक यह लोग जीवित रहते हैं, तब तक समाज के मार्ग को काँटों से भारटा रहते हैं, दू:ख , क्लेश खड़े करने के मार्ग खोजते रहते हैं , इन से सुपथगामी लोगों को सदा ही भय बना रहता है | एइसे लोगों का विनाश ही समाज को सुखी
बना सकता है | इओस लिए ओप्रानी को अकारण वह दू:ख न दे सकें | यह सब केवल तप से ही संभव है | अत: यह तप सी है जो दुर्भावों को नष्ट क्रोध से, तेज से एइसे लोगों को नष्ट कर देना चाहिए , उन्हें मार देना चाहिए | जिससे समाज के किसी भी करने कि क्षमता रखता है | ताप से ही सुखों कि वृष्टि होती है | यदि विनाश से बचना है तो हमें तप करना चाहिए |

डा. अशोक आर्य,मण्डी डबवाली
१०४ – शिप्रा अपार्टमेंट ,कौशाम्बी
जिला गाजिया बाद ,उ. प्र.भारत
चल्वार्ता : 09718528068

जाकिर नाईक – देशद्रोही क्यों? डॉ. धर्मवीर

जाकिर नाईक – देशद्रोही क्यों?

इस समाज की समस्या है कि यहाँ सत्य से सामना करने का किसी में साहस नहीं है। जो लोग कुछ जानते नहीं उनको हम दोषी नहीं मान सकते, उनके सामने तो जो भी कोई अपनी बात को अच्छे प्रकार से रखेगा, वे उसी को स्वीकार कर लेते हैं। जिनके पास अच्छा-बुरा पहचानने की क्षमता है, वे स्वार्थ के वशीभूत सत्य कहने से बचते हैं। इसी अज्ञान के वातावरण में इस्लाम का जन्म हुआ है। इस्लाम के जन्म के समय जो लोग थे, वे मूर्त्ति पूजक थे। पैगबर मोहमद ने मूर्ति-पूजा का विरोध किया। मन्दिर तोड़े, लोगों को मूर्ति-पूजा से दूर रहने के लिये कहा। पैगबर मोहमद का यह प्रयास पहले से अधिक घातक और अज्ञानता को बढ़ाने वाला रहा। पहले लोग मूर्ति-पूजा के अज्ञान में अनुचित कार्यों को करते थे। अब इसमें और अधिक अज्ञानता और उसके प्रति दुराग्रह उत्पन्न हो गया।
इस्लाम में जो सबसे अमानवीय बात है, वह मनुष्य को स्वविवेक से वञ्चित करना है। प्रायः सभी गुरु, नेता, पण्डित इस उपाय का आश्रय लेते हैं, परन्तु इस्लाम में दूसरे के विचार की उपस्थिति ही स्वीकार नहीं की गई। पैगबर ने शिष्यों, अनुयायियों को निर्देश दिया कि मेरे अतिरिक्त किसी की बात सुननी ही नहीं। विरोधी की बात सुनना भी पाप है, मानना तो दूर की बात है। दूसरे का विचार सुनने को पाप (कुफ्र) माना गया। जो कुछ मोहमद साहब ने किया और कहा, वही आदर्श है, जो कुछ कुरान में लिखा गया, वह अल्लाह का अन्तिम आदेश है।
इस विषय में इस्लाम पर शोध करने वाले विद्वान् अनवर शेख लिखते हैं- कुरान अल्लाह का वचन नहीं हैं, बल्कि (पैगबर) मुहमद की रचना है, जिसके लिये उसने अपनी पैगबरता बनाये रखने के लिये अल्लाह को श्रेय दिया है। इसके अनेकों प्रमाण हैं- (सम आस्पेक्ट्स ऑफ कुरान, पृ. 17, 18, 21)
दूसरी सपूर्ण मानव समाज के प्रति हानि पहुँचाने वाली बात- दुनिया में एक ही दीन है और वह है इस्लाम और इसके अतिरिक्त संसार में किसी भी विचार का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं है। वह विचार दूसरा नहीं है बल्कि विरोधी और शत्रु है। इस संसार में रहना हो तो उसे मुसलमान बनकर ही रहना चाहिए। सोचने की बात है कि क्या किसी अन्य पर किसी का इतना अधिकार हो सकता है कि वह उसके जीने के और स्वतन्त्रता के अधिकार को ही समाप्त कर दे? इस्लाम या मोहमद साहेब को यह अधिकार किसने दिया? किसी ने भी नहीं दिया। यह अधिकार उनका स्वयं का उपार्जित है। परन्तु संसार बड़ा विचित्र है, उस अधिकार को ऐसे बताया जा रहा है, जैसे भगवान ने उन्हें ही यह अधिकार देकर भेजा है।
इस्लाम के संस्थापक ने जहाँ इस्लाम को एक मात्र संसार का वास्तविक धर्म घोषित किया, वहाँ इस विचार के लिये, इसको मानने वाले को यह भी अधिकार दिया कि किसी भी उपाय से वे इस धर्म का प्रचार-प्रसार करें। इसके लिये लोभ, लालच, धोखा, हिंसा, बलात्कार, किसी भी उपाय का सहारा क्यों न लेना पड़े। पैगबर ने अपने धर्म को बढ़ाने-फैलाने के लिये सत्ता का सहारा लिया और तलवार के बल पर अपने देश में और दूसरे देशों में उसको फैलाया। इसको जिहाद कहा गया। मुसलमानों के लिये जिहाद एक प्रेरणा और आवश्यक कर्त्तव्य होने के कारण इस्लाम अहिंसक नहीं हो सकता। एक मुसलमान के लिये किसी गैर-मुसलमान के विरुद्ध जिहाद से मुकर जाना एक महापाप है। जो ऐसा करेंगे वे जहन्नुम की आग में पकेंगे। डॉ. के.एस. लाल (थ्योरी एण्ड प्रेक्टिस ऑफ मुस्लिम स्टेट इन इण्डिया, पृ. 286)
इस धर्म को सुरक्षित और बलवान बनाने के लिये एक और सिद्धान्त प्रतिपादित किया- ‘‘संसार में राज्य करने का अधिकार केवल मुसलमान को है।’’ पैगबर की मान्यता के अनुसार मुसलमान और अन्य धर्मावलबी में राज्य करने का अधिकार इस्लाम के मानने वाले का है। यदि दो व्यक्ति मुसलमान हैं तो राज्य का अधिकार अरब के मुसलमान का है, अरब से बाहर के मुसलमान को नहीं। यदि सत्ता का विभाजन अरब के दो मुसलमानों के बीच होना है, तो यह अधिकार मक्का के मुसलमान को ही मिलना चाहिये। यदि दोनों मुसलमान मक्का के ही हों, तो यह अधिकार कुरैश को मिलना चाहिए। अपने आपको ही ठीक और श्रेष्ठ मानने के इस विचार को कुछ भी करके प्राप्त करने की स्वतन्त्रता ने इस्लाम के अनुयायी को अपराध की ओर प्रेरित किया।
इस्लाम को धर्म की श्रेणी में रखने की आवश्यकता खुदा और जन्नत के कारण है। ये दोनों वस्तुएँ तो इस संसार में मिलती नहीं है, अन्यथा इस्लाम का धर्म से कोई सबन्ध नहीं है। सभी धर्म अंहिसा और संयम के बिना नहीं चलते, क्योंकि धर्म के यात्रा-रथ के ये दोनों पहिये हैं। इनके बिना धर्म का रथ चलेगा कैसे? परन्तु इस्लाम ने इन दोनों को ही समाप्त कर दिया है। इसलिये सारे मुस्लिम इतिहास में हिंसा और महिलाओं के प्रति अत्याचार को बढ़ावा मिला है।
इस विचार ने मनुष्य को अपराध करने का अधिकार दे दिया। यह व्यक्ति नहीं, विचार का परिणाम है। इस्लाम की मान्यता को सत्य सिद्ध करने के प्रयास को जाकिर नाईक के कथन में देखा जा सकता है। एक संवाद में जाकिर नाईक से प्रश्न किया गया है कि इस्लामी देशों में मन्दिर चर्च आदि क्यों नहीं बनाने दिया जाता, जबकि गैर मुस्लिम देशों में मस्जिद बनाने और उनकी परपरा का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। इस पर नाइक का उत्तर है- यदि तीन व्यक्तियों को अध्यापक बनाने के लिये बुलाया गया हो और उनसे प्रश्न पूछा जाये कि चार और तीन कितने होते हैं? एक का उत्तर हो- चार-दो सात होते हैं, दूसरे का उत्तर हो, चार और चार सात होते हैं और तीसरे का उत्तर हो चार और तीन सात होते हैं। जिसका उत्तर ठीक होगा, उसे ही अध्यापक बनाया जायेगा, वैसे ही जो धर्म शत-प्रतिशत ठीक है, उसी को हमारे देश में स्थान दिया जाता है, दूसरे को नहीं। धर्म इनका, निर्णय भी इनका, परीक्षा की आवश्यकता नहीं। जब बिना परीक्षा के ही निर्णय करना है तो शेष लोगों का धर्म ठीक क्यों नहीं? आप कहते हैं- मेरा धर्म ही ठीक है, कहने से तो कोई ठीक नहीं होता, परन्तु इस्लाम में यही सिखाया जाता है। एक ही दीन ठीक है और उसे ही रहना चाहिये। दूसरे को संसार में रहने का अधिकार नहीं है।
जाकिर नाईक को आर्य समाज ने सदा ही चुनौती दी है। लिखित भी, मौािक भी। वह ‘आप और हम दोनों मूर्ति पूजक नहीं हैं’ कहकर पीछे हट जाता है। जाकिर नाईक दूसरों की मान्यता पर तर्क करता है, प्रश्न उठाता है, परन्तु इस्लाम पर प्रश्न उठाने को अनुचित कहता है। वह हिन्दू धर्म पर चोट करते हुये कहता है- ‘जो शिव अपने बेटे गणेश को नहीं पहचानता, वह मुझे कैसे पहचानेगा।’ परन्तु पैगबर द्वारा अंगुली से चाँद के दो टुकड़े करने को ठीक मानता है।
वह धर्म की रक्षा के लिये मानव बम बनकर शत्रु को नष्ट करने को उचित ठहराता है। जब कोई आतंकवादी देशद्रोही सेना के हाथों मारा जाता है, तो उससे पीछा छुड़ाने के लिये कहा जाता है- आतंकी का कोई धर्म नहीं होता। फिर उसकी अन्तिम यात्रा धार्मिक रूप से क्यों निकाली जाती है? हजारों लोग उसे श्रद्धाञ्जलि क्यों देते हैं? उसके लिये जन्नत की कामना क्यों करते हैं?
इस्लाम में दोजख का भय और जन्नत का आकर्षण इतना अधिक है कि सामान्य व्यक्ति भी अपराध के लिये प्रेरित हो जाता है। जन्नत में हूरें, शराब, दूध की नदियाँ, वह सब जो इस दुनिया में नहीं मिल सका, जन्नत में मिलेगा। केवल उसे पैगबर का हुकुम मानना है। उसे पता है- जीवन चाहे जैसा हो, यदि वह एक काफिर को मार डालता है, तो उसे जन्नत बशी जायेगी। कुछ जो उस मनुष्य ने संसार में चाहा, परन्तु उसके भाग्य में नहीं था, फिर वह सब कुछ जन्नत में इतनी सरलता से पा सकता है, तो वह क्यों नहीं प्राप्त करना चाहेगा।
इसी प्रकार दोजख का भय भी एक मुसलमान को कोई दूसरी बात सोचने से भी डराता है। उसे सिखाया जाता है- जो कुरान को न माने, पैगबर को न माने, वह काफिर है, उसकी सहायता करना गुनाह है, अपराध है और अपराध का दण्ड दोजख है। कुरान में लिखा है- ‘जो लोग ईमान लाते हैं, अल्लाह उनका रक्षक और सहायक है। वह उन्हें अन्धेरे से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जाता है। रहे वे लोग, जिन्होंने इन्कार किया, तो उनके संरक्षक बढ़े हुये सरकश हैं, वे उन्हें प्रकाश से निकाल कर अन्धेरे की ओर ले जाते हैं। वे ही आग (जहन्नुम) में पड़ने वाले हैं।’ (2.257, पृ. 40)
जिसे अल्लाह मार्ग दिखाये, वह ही मार्ग पाने वाला है और वह जिसे पथ-भ्रष्ट होने दे, तो ऐसे लोगों के लिये उससे इतर तुम सहायक नहीं हो पाओगे। कयामत के दिन हम उन्हें औंधे मुँह इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि वे अन्धे, गूंगे और बहरे होंगे। उनका ठिकाना जहन्नुम है। जब भी उसकी आग धीमी पड़ने लगेगी, तो हम उसे उनके लिये और भड़का देंगे। (17.97, पृ. 247)
यदि कोई मुसलमान अपने धर्म का त्याग करे, तो उसके लिये कहा गया है-
और तुम में से जो कोई अपने दीन से फिर जाय और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आखिर में नष्ट हो गये और वही आग (जहन्नुम) में पड़ने वाले हैं। वे उसी में सदैव रहेंगे। (2:217, पृ. 33)
जहन्नुम जिसमें वे प्रवेश करेंगे, तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है। यह है, उन्हें अब इसे चखना है- खौलता हुआ पानी और रक्त-युक्त पीप और इसी प्रकार की दूसरी चीजें, यह एक भीड़ है, जो तुहारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आरामगाह उनके लिये नहीं, वे तो आग में पड़ने वाले हैं। (38:56-58, पृ. 405)
भला इस परिस्थिति में इस्लाम के मानने वाले में कहाँ से इतना साहस आयेगा कि वह गैर-मुस्लिम की सहायता करने की सोचे।
इस प्रकार के इन धार्मिक आदेशों के कारण इस्लाम जहाँ अन्य सप्रदायों के साथ समन्वय नहीं कर पाता, वहीं इस्लाम में जो सत्तर से अधिक प्रशाखायें हैं, उनमें भी परस्पर इसी प्रकार का संघर्ष देखने में आता है।
मुसलमान किसी भी देश में वहाँ के संविधान का पालन करने में समर्थ नहीं है। यदि वे किसी गैर-मुस्लिम देश में हैं, तो वह ‘दारुल हरब’ है। उसमें रहकर उन्हें उस देश को ‘दारुल इस्लाम’ बनाना है, यह उसका धार्मिक कर्त्तव्य है। और एक मुसलमान के लिए देश, समाज, परिवार से ऊपर धर्म है, अल्लाहताला का हुक्म है। फिर वह कैसे किसी संविधान का आदर करेगा? कैसे उसको मान्यता देगा? यह वैचारिक संघर्ष उसे कभी शान्ति से बैठने नहीं देता, यही देश की अशान्ति का मूल कारण है। भारतीय संस्कृति कहती है- मनुष्य मनुष्य का रक्षक होना चाहिए, प्राणिमात्र की रक्षा की जानी चाहिये। वेद मनुष्य मात्र को परमेश्वर का पुत्र कहता है, रक्षा करने का उपदेश देता हैं।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः
पुमान् पुमान्सं परिपातु विश्वतः।।
– धर्मवीर