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तुहें याद हो कि न याद होः- राजेन्द्र जिज्ञासु

राजेन्द्र जिज्ञासु
तुहें याद हो कि न याद होः-

आर्य समाज को याद हो, कि न याद हो यह सेवक गत आधी शताब्दी से यह याद दिलाता आ रहा है कि उर्दू साहित्य के एक मूर्धन्य कवि श्री दुर्गासहाय सरूर आर्यसमाज जहानाबाद के मन्त्री थे। आपके गीतों को गाते-गाते देश सेवक फाँसियों पर चढ़ गये। आपने देश, जाति व वैदिक धर्म पर उच्च कोटि की प्रेरणाप्रद पठनीय कवितायें लिखीं। आपके निधन पर महरूम जी की लबी कविता का एक पद्य भारत व पाकिस्तान में किसी बड़े व्यक्ति के मरने पर वक्ता पत्रकार लगभग एक शतादी से लिखते व बोलते चले आ रहे हैं। पं. लेखराम जी के बलिदान पर लिखी आपकी कविता सुनकर आपके कविता गुरु मौलाना ने कहा था, ‘‘तू एक दिन मेरा नाम रौशन करेगा।’’ मैं 45 वर्ष से यह कविता खोज रहा था। किसी ने सहयोग न किया। देश भर में घूम-घूम कर आर्य पत्रों से ‘सरूर’ जी की कई कवितायें खोज पाया। अब आर्य समाज कासगंज के पुस्तकालय से राहुल जी और कई कवितायें ले आये हैं। श्री राम, ऋषि दयानन्द, गऊ, माता सीता, विधवा, अनाथ, मातृभूमि आदि पर हृदय स्पर्शी ऐसी कवितायें प्राप्त हुई हैं, जिनमें डॉ. इकबाल ने प्रेरणा ली। आज से यह साहित्यिक कुली इनका देवनागरी में सपादन करना आरभ कर रहा हूँ। इसे एक जाति भक्त प्रकाशित प्रसारित करने को आगे आयेगा। शेष फिर लिखा जावेगा।

त्रैतवाद पर मौलिक तर्कः- राजेन्द्र जिज्ञासु

हमने पं. शान्तिप्रकाश जी आदि विद्वानों के आर्य सिद्धान्तों पर प्रमाण संग्रह के मोटे-मोटे रजिस्टर देखे। अब मौलिक सैद्धान्तिक साहित्य की चर्चा समाजों में नाम-नाम की है। श्री डॉ. हरिश्चन्द्र जी की एक रोचक अंग्रेजी पुस्तक के कुछ पृष्ठ मैंने अपनी 10-11 वर्षीया नातिन मनस्विनी को पढ़ाये। उसे पुस्तक रोचक व पठनीय लगी। उसे स्कूल में बोलने को कहा गया। उसने डॉ. हरिश्चन्द्र जी की पुस्तक के आधार पर त्रैतवाद पर बोलकर वाह-वाह लूट ली। उसने कहा-संसार का कार्य-व्यापार व्यवहार सब तीन से ही चलता है-ग्राहक चाहिये, माल चाहिये और विक्रे ता चाहिये। एक के न होने से व्यापार नहीं चल सकता। रोगी, डॉक्टर व औषधियों से ही अस्पताल चलता है। सिखों के ग्राम में नाई और नंगे पैर घूमने वालों के ग्राम में बाटा की दुकान क्या चलेगी? इसी प्रकार से आप सोचिये तो पता चलेगा कि तीन के होने से ही संसार चलेगा।
इसी प्रकार सृष्टि की रचना तीन से ही सभव है। सृष्टि रचना का जिसमें ज्ञान हो वह सत्ता (प्रभु) चाहिये, जिसके लिये सृष्टि की उपयोगिता या आवश्यकता है, वह ग्राहक (जीव) चाहिये तथा जिससे सृष्टि का सृजन होना है, वह माल (प्रकृति) चाहिये। डॉ. हरिश्चन्द्र जी की रोचक पुस्तक से यह पाठ उसे मैंने कभी स्वयं पढ़ाया था। ऐसे मौलिक तर्कों व लेखकों को मुखरित करिये।
श्री पं. रामचन्द्र जी देहलवी कहा करते थे- नीलामी 1,2 व 3 पर छूटती है। दौड़ 1,2 व 3 पर ही क्यों आरभ होती है? वह कहा करते थे, अनादि काल से तीन अनादि पदार्थों का मनुष्य जाति को यह संस्कार दिया जाता है। दौड़ या नीलामी तीन से आगे 5,7 व दस पर क्यों नहीं होती? अब सस्ते दृष्टान्त व चुटकुले सुनाकर वक्ता अपना समय पूरा करते हैं।

रहमान व रहीम वाला तर्कः: राजेन्द्र जिज्ञासु

रहमान व रहीम वाला तर्कः-
अप्रैल प्रथम 2016 के अंक में श्रीयुत पं. रणवीर जी ने विश्व पुस्तक मेले हैदराबाद में मुस्लिम मौलवियों के इस प्रचार अभियान को विफल बनाने सबंधी उनका लेख पढ़ लिया होगा। अनेक उच्च शिक्षित प्रतिष्ठित आर्यों ने बार-बार यह अनुरोध किया है कि वेद आदि आर्ष ग्रन्थों में हजरत मुहमद के नाम का उल्लेख है- मुसलमानों के इस दुष्प्रचार के उत्तर में एक पुस्तक अवश्य लिखकर दूँ। वे तो पुराणों में भी मुहमद का नाम निकाल लाने का तमाशा करते हैं। हिन्दू -हिन्दू की रट लगाने वालों से इस दुष्प्रचार के प्रतिकार की आशा नहीं की जा सकती।
इस सेवक ने ‘कुरान सत्यार्थ प्रकाश के आलोक में’ तथा ‘ज्ञान घोटाला’ लघु पुस्तक में इसका उत्तर देकर सबकी बोलती बन्द कर दी है। आर्य समाज में पादरी स्काट व सर सैयद अहमद की रट लगाने वाले इन आक्रमणों का सामना नहीं कर सकते। जब रणवीर जी व राहुल जी ने चुनौती दी कि कुरान में प्रायः हर सूरत के आरभ में अल्लाह मियाँ महर्षि दयानन्द का नाम लेकर ही अपना कथन करता है। वे कुरान ले आये और कहा, ‘‘दिखाओ कहाँ है स्वामी दयानन्द का नाम?’’
झट से इन आर्य वीरों ने ‘रहमान-उल-रहीम’ निकालकर कहा, ‘‘यह लो दयालु दयानन्द या दयावान दयानन्द के नाम से आरभ करता हूँ, लिखा है या नहीं?’’ पाठक पढ़ चुके हैं कि यह सुनकर उनके पाँव तले से धरती खिसक गई। वे भाग खड़े हुए। हम आपसे बात नहीं करते। आप जाओ, जान छोड़ो। परोपकारिणी सभा अपने पाक्षिक ‘परोपकारी’ के द्वारा प्रत्येक मोर्चे पर आपको खड़ी दिखेगी। आप भी कुछ करो। सहयोग करो। कुछ सीखो। ऐसे साहित्य का प्रसार करो।

मिलावट, हटावट, बनावट की रोकथामः- राजेन्द्र जिज्ञासु

मिलावट, हटावट, बनावट की रोकथामः-
आर्य समाज के लिये एक-एक श्वास देने वाले रक्त की धार से इस वाटिका को सींचने वाले एक नेता ने सवा सौ वर्ष पहले लिखा था कि कई व्यक्ति ऋषि की विचारधारा के कारण से नहीं, स्वप्रयोजन से आर्य समाज में घुसे। कुछ अपना उल्लू सीधा करके समाज को छोड़ भी गये। ऐसे ही कुछ लोगों ने आर्य समाज के सिद्धान्तों का हनन किया। इसके साहित्य व इतिहास में मिलावट, हटावट व बनावट करते चले गये। आर्य समाज के गौरव व इतिहास को रौंदा गया। इतिहास जो हम चाहें, वैसा लिखा जावे-यह एक घातक खेल है। महात्मा मुंशीराम जी ने लाला लाजपतराय के देश से निष्कासन के समय से लेकर (लाला लाजपतराय के अनुसार) सन् 1915 तक आर्यसमाज के दमन, दलन व सरकार की घुसपैठ से समाज की रक्षा के लिये महात्मा मुंशीराम जी की सेवाओं व शूरता पर गत साठ-सत्तर वर्षों में कोई उत्तम ग्रन्थ आया क्या? यह इतिहास छिपाया व हटाया गया। आचार्य रामदेव जी को डी.ए.वी. कॉलेज से निकाला गया। यह दुष्प्रचार आरभ हो गया कि पढ़ाई बीच में छोड़ी गई। आचार्य जी के बारे में सर्वथा नया इतिहास गढ़ कर परोसा जा रहा है। स्वामी सोमदेव की मृत्यु एक ही बार हुई। उन्हें दूसरी बार फिर मारा गया। लाला लाजपतराय जी को ईश्वर ने तब जन्म दिया, वह इतिहास प्रदूषण वालों को नहीं जँचा, उनको अपनी इच्छा का जन्मदिवस अलाट किया गया। महात्मा हंसराज लिखते हैं कि उन्होंने ऋषि को न देखा, न सुना। प्रदूषणकारों ने महात्मा जी के लाहौर देखने से पहले ही उन्हें लाहौर ऋषि का उपदेश सुना दिया। महाशय कृष्ण जी, नारायण स्वामी जी का नया इतिहास गढ़कर मिलावट कर दी।
ऋषि के जीवन काल में महाराणा सज्जन सिंह जी ने अनाथ कन्याओं की शिक्षा के लिए भारी दान दिया। इतिहास में हटावट करके यह घटना दी गई। हैदराबाद सत्याग्रह जब चरमोत्कर्ष पर था, स्वामी स्वतन्त्रानन्द अड़ गये कि मैं तो जेल जाऊँगा। आर्य नेताओं के सामने यह नया संकट खड़ा हो गया। महाराज को जेल जाने से रोकने के लिए बैठक पर बैठक बुलाई गई। यह इतिहास कहाँ किसने लिखा है? नारायण स्वामी जी का दबाव देकर महाशय कृष्ण जी ने लाहौर में आपरेशन करवाया। महाशय जी के बहुत दबाव देने पर स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी ने मुबई ओपरेशन करवाना मान लिया। यह इतिहास कहाँ गया? यह स्वर्णिम इतिहास हटाया गया। क्यों? ऋषि के जीवन काल में कर्नाटक में आर्यसमाज पहुँच गया। यह स्वर्णिम इतिहास हटावट का शिकार हो गया। पं. लेखराम जी का तिल-तिल जलने का इतिहास हटाया गया या नहीं? जिस रमाबाई के कारण सहस्रों स्त्रियाँ धर्मच्युत हुईं, आर्य समाज तड़प उठा, उस रमाबाईके फोटो छपने लगे। वह ऋषि की भक्त और प्रशंसक बना दी गई। यह क्या?

सेवाधन के धनी आर्य नेता वैद्य रविदत्त जीः- राजेन्द्र जिज्ञासु

सेवाधन के धनी आर्य नेता वैद्य रविदत्त जीः-

ब्यावर के आर्य मन्दिर में एक रोगी, वयोवृद्ध महात्मा की दो आर्य पुरुष अत्यन्त भक्तिभाव से सेवा किया करते थे। उसे स्नान आदि सब कुछ ये ही करवाते थे। एक जैनी ने इनको सुधबुध खोकर सेवा करते कई बार देखा। एक दिन उसने आर्य सेवक वैद्य रविदत्त जी से कहा, ‘‘क्या मेरी अन्तिम वेला में भी ऐसी सेवा हो सकती है?’’ वैद्य जी ने कहा, ‘‘भाई, आपने इच्छा व्यक्ति की है तो आपकी भी अवश्य करेंगे।’’

उसने अपनी सपत्ति की वसीयत आर्य समाज के नाम कर दी। समय आया, वह रुग्ण हो गया। सभवतः शरीर में ….. पड़ गये। वैद्यजी अपने सैनिक ओमप्रकाश झँवर को साथ लेकर समाज मन्दिर में उसका औषधि उपचार तो करते ही थे, मल-मूत्र तक सब उठाते। मल-मल कर स्नान करवाते। संक्षेप से यह जो घटना दी है, यही तो स्वर्णिम इतिहास है। कहाँ किसी ने यह इतिहास लिखा है? स्कूलों, संस्थाओं व सपदा के वृत्तान्त का नाम इतिहास नहीं, इतिहास वही है, जो ऊर्जा का स्रोत है।

ठाकुर शिवरत्न जी पातूर: राजेन्द्र जिज्ञासु

ठाकुर शिवरत्न जी पातूरः-

विदर्भ में परतवाड़ा कस्बा में पंकज शाह नाम का एक सुशिक्षित युवक दूर-दूर तक के ग्रामों में प्रचार करवाता रहता है। इसी धुन का एक धनी युवक ठाकुर शिवरत्न इस क्षेत्र में ओम् पताका लेकर ग्राम-ग्राम घूमकर प्रचार करता व करवाता था। महर्षि दयानन्द के सिद्धान्तों को उसने जीवन में भी उतारा। वाणी से तो वह प्रचार करता ही था। वह एक प्रतिष्ठित सपन्न परिवार का रत्न था।
उसकी पुत्री विवाह योग्य हुई। उसने महात्मा मुंशीराम जी को अपना आदर्श मानकर जाति बंधन, प्रान्त बंधन तोड़कर अपनी पुत्री का विवाह करने की ठान ली। महात्मा मुंशीराम का ही एक चेला, कश्मीरी आर्य युवक पं. विष्णुदत्त विवाह के लिये तैयार हो गया। विष्णुदत्त सुयोग्य वकील, लेखक व देशभक्त स्वतन्त्रता सैनिक था। महाशय कृष्ण जी का सहपाठी था। ठाकुर जी को यह युवक जँच गया। आपने कन्या का विवाह कर दिया। ऐसा गुण सपन्न चरित्रवान् पति प्रत्येक कन्या को थोड़ा मिल सकता है!
हिन्दू समाज हाथ धोकर ठाकुर जी के पीछे पड़ गया। श्री ठाकुर शिवरत्न का ऐसा प्रचण्ड सामाजिक बहिष्कार किया गया कि उन्हें महाराष्ट्र छोड़कर पंजाब आना पड़ा। कई वर्ष पंजाब में बिताये, फिर महाराष्ट्र लौट गये। पातूर का कस्बा नागपुर के समीप है। संघ की राजधानी नागपुर है। हिन्दू समाज के कैंसर के इस महारोग जातिवाद से टक्कर लेने वाले पहले धर्म योद्धा ठाकुर शिवरत्न का इतिहास क्या संघ ने कभी सुनाया है? इतिहास प्रदूषण अभियान वालों ने ठाकुर शिवरत्न के कष्ट सहन व सामाजिक प्रताड़नाओं का प्रेरक इतिहास हटावट की सूली पर चढ़ा दिया है। मैं जीते जी ठाकुर शिवरत्न के नाम की माला फेरता रहूँगा।
– वेद सदन, अबोहर, पंजाब

जिगर का खून दे देकर ये पौधे हमने पाले हैंःराजेन्द्र जिज्ञासु

जिगर का खून दे देकर ये पौधे हमने पाले हैंः- एक बार माननीय डॉ. धर्मवीर जी ने आज पर्यन्त आर्यों पर चलाये गये अभियोगों का इतिहास क्रमशः प्रकाशित करने की घोषणा की थी। मैंने कई आर्य विद्वानों पर चलाये गये अभियोगों पर कई अंकों में लिखा था। किसी समाज ने, किसी सज्जन ने परोपकारी को कोई जानकारी न ोजी। मैंने भी लिाना बन्द कर दिया। आर्यों पर सर्वाधिक अभियोग मिर्जाइयों ने चलाये। किस-किस की चर्चा करूँ? मैंने दसवीं की परीक्षा दी थी या कॉलेज में प्रवेश पाया ही था कि रबे कादियाँ जी (इन्द्रजीत जी के कुल के एक निडर अद्भुत वक्ता) ने गुरुद्वारा गोबिन्दगढ़ (मन्दिर के साथ) कादियाँ में मिर्जाइयों का उत्तर देने के लिए एक जलसा किया था। रब जी का और मेरा भाषण हुआ। श्री राम शरण प्रेमी आर्य कवि की पुरजोश कवितायें हुईं। मिर्जाइयों ने धर्म निरपेक्षता की आड़ में हम तीनों को जेल भिजवाना चाहा। रब जी ने सूझबूझ से डी.सी. के सामने हम तीनों का पक्ष रखा। हमारा कुछ न बिगाड़ा जा सका। मेरे पिता जी को पता ही न चला कि मेरे ऊपर केस बनने वाला है।
कादियाँ में ऐसी घटनायें प्रायः घटती रही हैं। सन् 1996 में स्वामी सपूर्णानन्द जी ने पं. लेखराम जी के बलिदान पर मेरा खोजपूर्ण ओजस्वी भाषण करवाया। तब पुलिस सक्रिय हो गई। मुझे कम से कम दो वर्ष तक जेल में भिजवाने पर मिर्जाई तुले बैठे थे। स्वामी सपूर्णानन्द जी मेरे साथ जेल जाने को तैयार बैठे थे। हम फिर बच गये।
पं. निरञ्जनदेव जी पर और रब जी पर इसी विषय का कांग्रेस ने तुष्टीकरण व वोट बैंक के लिये लबा केस चलाकर दोनों को बहुत यातनायें दीं। हमने वे भी हँसते-हँसते सहीं। पं. शान्तिप्रकाश जी पर पं. लेखराम जी के बलिदान विषयक इल्हामों की शव परीक्षा पर ऐतिहासिक केस चला था। श्री महाशय कृष्ण सरीखे नेता पण्डित जी की पेशी पर लाहौर से गुरदासपुर आते रहे। स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी और दीवान बद्रीदास के कुशल नेतृत्व में आर्य समाज एक बार फिर अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। पं. शान्तिप्रकाश भट्टी से कुन्दन बनकर निकले। हाईकोर्ट से पण्डित जी बड़ी शान से केस जीत गये।
हाथों में हथकड़ियाँ, पाँवों में बेड़ियाँ डाली गईं। टाँगों में घावों के कारण लहू बह रहा था, तब जेल से बाहर आने पर झंग (पश्चिमी पंजाब) में रामचन्द्र जी (स्वामी सर्वानन्द जी) ने आपकी पट्टी की। किस-किस केस व अग्नि-परीक्षा का उल्लेख किया जावे? हमने लहू देकर वाटिका को सींचा है। रक्तरंजित इतिहास रचा है।
अब इतिहास प्रदूषणकार एक उठता है, वह मिर्जाइयों की बोली बोलकर लिखता है कि मिर्जाई मत का खण्डन पं. लेखराम का उद्देश्य था, जबकि पं. लेखराम जी ने सदा आत्म रक्षा में ही लिखा। यह कोर्टों व सरकार ने माना। ईद के दिन पण्डित जी की हत्या कतई नहीं हुई। यह मिर्जाई प्रचार सर्वथा मिथ्या है। एक मिर्जाई चैनल भी सुना है कि विदेश से यही प्रचार करता चला आ रहा है। उ.प्र. के कई युवकों ने उनके दुष्प्रचार का परोपकारी में उत्तर देने के लिए उनकी सामग्री भेजी है। उनके स्वर में स्वर मिलाकर ‘आर्य सन्देश’ के 28 मार्च के अंक में ईद के दिन पण्डित जी की हत्या होना लिखा है।
पं. देवप्रकाश जी, पं. शान्तिप्रकाशजी से लेकर राजेन्द्र जिज्ञासु तक हमारे विद्वानों ने इस विषय पर सहस्र्रों पृष्ठ लिखे हैं। आर्य सन्देश ने तो यह अनर्गल लेख देकर हम सबकी हत्या करके रख दी है। हम अपनी व्यथा किसे सुनावें? हम जानते हैं, ये लोग आर्य समाज पर दया नहीं करेंगे। हम फिर भी यही कहेंगे कि कोई इन्हें समझावे। जिगर का खून दे दे कर ये पौधे हमने पाले हैं।
रही उत्तर देने की बात। इस विषय पर मेरा छः सौ पृष्ठों का ग्रन्थ आर्यवीरों ने छपने को दे दिया है। इसमें उद्धृत पुस्तकों, पत्रिकाओं के सैंकड़ों प्रमाण पढ़कर विरोधी भी दंग रह जायेंगे। इस ग्रन्थ के प्रसार में पं. लेखराम जी विषयक सब मिथ्या विषैले लेखों का उत्तर मिल जायेगा। यह अपने विषय से सबन्धित अब तक का सबसे बड़ा और प्रमाणों से परिपूर्ण ग्रन्थ है।

‘‘मेरे लिये सन्ध्योपासना करिये?: राजेन्द्र जिज्ञासु

‘‘मेरे लिये सन्ध्योपासना करिये?

एक विचित्र प्रश्न उ.प्र. से किसी ने किया है-‘‘यदि मैं किसी से अपने लिये सन्ध्योपासना गायत्री जप या यज्ञ कराऊँ तो इसका पुण्य लाभ मुझे क्यों न मिलेगा?’’
ऐसे भाई यह बतायें कि आपके लिये व्यायाम कोई करे तो लाभ किसको मिलेगा? रोगी की बजाय उसका कोई भाई बन्धु औषधि का सेवन करे तो क्या रोगी रोगमुक्त होगा? एक पौराणिक ने हैदराबाद सत्याग्रह में जाने वाले एक आर्य को बड़ी श्रद्धा से कहा, ‘‘भाई! आप जेल में मेरे लिए गायत्री जप करते रहना। मैं चाररुपये सैंकड़ा के दर से तेरे घर पर भुगतान करता रहूँगा। मुझे तू यह सूचना पहुँचा देना कि कितना जप मेरे लिये किया है? यह घटना श्री मेहता जैमिनि जी को स्वयं उस आर्य ने अबाला में सुनाई। श्री ओमप्रकाश वर्मा जी को भी इसका ज्ञान होगा। उस आर्य ने सत्याग्रह में भाग लेकर यश पाया और गायत्री जप से कमाई भी कर ली। उसे पता था कि जप से गायत्री क्रय करने वाले को कोई लाभ नहीं होगा। अब उदूसरों के लिए यज्ञ करने वाले संगठन भी मैदान में आ गए हैं और लुभावनी घोषणाएँ कर रहे हैं। पाप पुण्य, धर्म-कर्म के लेन-देन का व्यापार तो याज्ञिकों पाठियों के लिए बहुत अच्छा है, परन्तु है तो वेद विरुद्ध।’’
वेद का आदेश उपदेश हैः-‘‘स्वयं यजस्व स्वयं जुषस्व।’’
स्वयं कर्म कर और स्वयं फल चख। यही कल्याणी शिक्षा है।

पण्डित लेखराम वैदिक मिशन की गुरुवर वेदग्य देव धर्मवीर जी को श्रद्धांजली

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ओउम
धर्मवीर जी का यूँ जाना ……….
हाय ! देव के दुर्विपाक से , ये क्या अपने साथ हो गया I
धर्मवीर जी का यूँ जाना, बहुत बड़ा आघात हो गया II
जिनको पाकर परोपकारिणी प्रगति पथ पर चल निकली थी I
परोपकारी पत्र लोकप्रिय , ऋषि उद्यान सनाथ हो गया …….
उनके जितने सद्गुण वाला व्यक्ति मिलना महा कठिन है I
इसीलिये आने वाला दिन , दिन न रहा , अब रात हो गया …
उनके अपनेपन की परिधि , इतनी विस्तृत और विशाल थी I
सत्यनिष्ठ , सिद्धांतनिष्ठ , हर व्यक्ति उनके साथ हो गया ……
लेकिन कपट कुटिलता रखकर सज्जनता का पहन मुखौटा
जो छलने टकराने आया, तर्क बुद्धि से मात हो गया ……

स्वाध्याय उनका सजीव था , वेद शाश्त्र भाषा पण्डित थे I
आयुर्वेद , व्याकरण उनको , तत्व रूप से ज्ञात हो गया …..
उनके प्रवचन लेखन दोनों वर्तमान में अद्वितीय थे I
सम्पादकीय पढ़ा जिसने भी , सबको आत्मसात हो गया
पता नहीं वो क्या नाता था उनका कितनों से ऐसा था ?
बढे बड़ों का धीरज टूटा , खुलकर अश्रुपात हो गया ….
यह सब कुछ लिखते लिखते “गुणग्राहक” तू भी रोया था I
महीनों तक यूँ ही रोयेगा ऐसा विकट विषाद हो गया …
भावी कल को आज समान देखने कि अन्तर्दृष्टि थी I
जिसके बल उनका हर निर्णय , आज सुखद संवाद हो गया
रवि सम ज्ञान प्रकाश हमें , मिलता संग शीतल सी ज्योत्सना के
सुखद सुहाना समय हाय क्यों , सहसा उल्कापात हो गया
अधिक क्या कहूँ सद्गुण प्रेरक , सज्जनता का पोषक जीवन
कल जो हम सबका हिस्सा था , आज पुरानी बात हो गया I I
राम निवास गुणग्राहक

बड़ों की सेवा के प्रेरक प्रसंगः- राजेन्द्र जिज्ञासु

बड़ों की सेवा के प्रेरक प्रसंगः-

एक जन्मजात दुःखिया के दुष्प्रचार के प्रतिवाद के लिए हमने पूज्य विद्वान् महात्माओं की आर्यों द्वारा सेवा के कई दृष्टान्त देकर लिखा था कि आर्य समाज ने महात्मा आनन्द स्वामी जी आदि को अन्तिम वेला में फेंक दिया, ये सब घृणित व मिथ्या प्रचार हैं। ऐसे प्रचारकों ने आप तो जीवन भर कभी किसी की सेवा की नहीं, सस्ते उपदेश देते हैं।

महात्मा आनन्द भिक्षु जी के पुत्र जैमिनि जी ने भक्तों से घिरे अपने पिताजी को अन्तिम दिनों में सेवा का अवसर देने का अनुरोध किया। मेरे सामने महात्मा जी पर दबाव बनाया। सेवा उनकी हो ही रही थी। मैंने ऐसे किसी व्यक्ति को पूज्य मीमांसक जी और आचार्य उदयवीर जी के अन्तिम दिनों में उनके पास फटकते नहीं देखा था। कुछ लोग पं. युधिष्ठिर जी मीमांसक से श्री धर्मवीर जी, विरजानन्द जी आदि विद्वानों के मतभेद को उछालते रहे। मीमांसक जी ने अपनी अमूल्य बौद्धिक सपदा तो धर्मवीर जी को ही सौंपी। क्यों? मीमांसक जी के निधन पर केवल परोपकारिणी सभा से जुड़े विद्वान् ही रेवली पहुँचे। और सभायें भी पहुँचती तो अच्छा होता। मान्य विरजानन्द जी, श्रीमती ज्योत्स्ना ने पहुँचकर आर्य समाज की शोभा बढ़ाई। आचार्य सत्यानन्द जी वेदवागीश तथा यह सेवक भी वहाँ था। पहलेाी पता करने कई बार गये। पूज्यों को छोड़ने व फेंकने का प्रचार कोरी शरारत है।