इन दिनों भारत में असहिष्णुता के मानवीय महारोग पर बड़ा विवाद हो रहा है। अनादि ईश्वर के अनादि ज्ञान वेद के एक प्रसिद्ध मन्त्र में ईश्वर से बल, तेज, ओज, मन्यु व सहनशीलता आदि सद्गुणों की प्रार्थना की गई है। यह मन्त्र महर्षि दयानन्द ने आर्याभिविनय आदि पुस्तकों में दिया है। इससे स्पष्ट है कि असहनशीलता का महारोग मानव जाति के लिए घातक है। हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई, सबको इस मानवीय महारोग के कारण को जानकर इसका निवारण करना चाहिये।
हजरत मुहमद को तीन खलीफा हत्यारों ने मार डाला। मारने वाले काफिर नहीं थे। नमाजी मुसलमानों ने उनकी जान ले ली। क्या यह असहनशीलता नहीं थी? इस इतिहास से मुसलमानों ने क्या सीखा? वीर रामचन्द्र व वीर मेघराज की हत्या करने वाले हिन्दू ही थे। उनका दोष दलितोद्धार था। पं. लेखराम जी का वध करने वाले इस कुकृत्य पर आज भी इतराते हैं। क्या यह असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाला कु कृत्य नहीं था? महात्मा गाँधी ने महाशय राजपाल द्वारा प्रकाशित रंगीला रसूल पर विपरीत टिप्पणी करके असहिष्णुता को उत्तेजित किया या नहीं? काशी के राजा काशी शास्त्रार्थ के अध्यक्ष थे, परन्तु सभा विसर्जित राजा ने नहीं की। सभा विसर्जित करने वालों की कृपा से हुल्लड़ मचा। इस असहिष्णुता पर किसने पश्चात्ताप किया? चलो! जनूनी राजनेताओं को इतनी समझ तो आ गई कि असहिष्णुता एक महामारी है। गुरु अर्जुनदेव जी से वीर हकीकतराय व स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज तक सब असहिष्णुता के शिकार हुए।