उस पोस्ट मे उस अम्बेडकरवादी ने प्रचोदयात् शब्द को प्र+चोदयात को अलग कर के अत्यन्त असभ्य अर्थ किया है। इस मन्त्र पर विचार करने से पहले संस्कृत के कुछ शब्दो पर विचार करे जो हिन्दी मे बिलकुल अलग अर्थों मे प्रयोग करते हैं।संस्कृत के अनेक शब्द हिन्दी में अपना अर्थ आंशिक या पूर्ण रूप से बदल चुकें हैं।
पूरण रूप से अर्थ परिवर्तन- उदाहरण-
1-अनुवाद- (हिन्दी)-भाषान्तर, Translation
(संस्कृत)- विधि और विहित का पुनःकथन (विधिविहितस्यानुवचनमम्नुवादः -न्यायसूत्र 4।2।66),
प्रमाण से जानी हुई बात का शब्द द्वारा कथन( प्रमाणान्तरावगतस्यार्थस्य शब्देन सङ्कीर्तनमात्रमनुवादः -काशिका)
2-जयन्ती- (हिन्दी)- जन्म तिथि (संस्कृत)—पताका,आयुर्वेद में औषधि
3- प्रकाशन- (हिन्दी)किसी पुस्तक को छपना या छपवाना, Publication (संस्कृत) – उजाला, प्रकट करना
4-सौगन्ध-(हिन्दी)- कसम (संस्कृत)- सुगन्धि, सुगन्धि युक्त
5-कक्षा- (हिन्दी)- विद्यालय की श्रेणि (संस्कृत)- रस्सी, हाथी को बान्धने की जंजीर, परिधि
6-निर्भर-(हिन्दी)- आश्रित (संस्कृत)-अत्याधिक, जैसे निर्भरनिद्रा= गहरी नींद (हितोपदेश)
7- विश्रान्त- (हिन्दी) थका हुआ (संस्कृत) – विश्राम किया हुआ
आंशिक रूप से अर्थ परिवर्तन – उदाहरण-
1- धूप- (हिन्दी)- सूर्य का ताप, सुगंधित धुंआ (संस्कृत)-सुगन्धित धुंआ, सूर्य ताप संस्कृत में नहीं है
2- वह्नि- (हिन्दी)- आग (संस्कृत)- आग, ले जानेवाला
3- साहस- (हिन्दी) – हिम्मत, कठिन कार्य में दृढता, उत्साह,वीरता, हौसला आदि।
(सस्कृत) संस्कृत में साहस के ये अर्थ भी हैं परन्तु संस्कृत में साहस शब्द लूट, डाका, हत्या आदि के अर्थों में प्रयोग होता है।4 प्रजा- (हिन्दी)- राजा के अधीन जनसमूह (संस्कृत)- राजा के अधीन जनसमूह, सन्तान
पुरानी हिन्दी पुस्तकों मे भी ऐसे शब्दों का प्रयोग मिलता है जो आधुनिक हिन्दी के अर्थों के प्रतिकूल और संस्कृत के शब्दों के अनुकूल है —-उदाहरण –
गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस –
1- मुदित महीपति मंदिर आए । सेवक सचिव सुमंत बुलाए ॥ यहाँ मंदिर का अर्थ देवालय न होकर राजमहल है।
2- करहूँ कृपा प्रभु आस सुनी काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ॥ – यहाँ पर निर्भर का अर्थ आश्रित न हो कर भरपूर है ।
3- खैर खून खांसी खुशी क्रोध प्रीति मद पान। रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान॥
यहाँ पर पान का अर्थ हिन्दी मे पान का पत्ता (ताम्बूल) न होकर पीना है। आधुनिक हिन्दी मे पान का प्रयोग पौधे के पत्ते के लिए होता है ।
हिन्दी मे बहुत से शब्द ऐसे हैं जो देशज शब्द कहलाते हैं जो संस्कृत से कोई सम्बंध नहीं रखते जैसे लड़का, छोरा, लुगाई, चारपाई, कुर्सी आदि।
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यदि मैं इंगलिश के CAT का अर्थ कुत्ता , RAT का अर्थ हाथी करूँ और यह जिद्द करूँ कि सभी इंगलिश जानने वाले गधे हैं। केवल मेरा अर्थ ही सही माना जाए तो क्या यह कोई स्वीकार करेगा। इसलिए गायत्री मंत्र का अर्थ भी वेद व संस्कृत के विशेषज्ञों द्वारा किया गया ही स्वीकार किया जाएगा।
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नीचे वेद के विद्वान महर्षि दयानन्द जी द्वारा सत्यार्थ प्रकाश मे गायत्री मंत्र का जो अर्थ किया है वह दिया जा रहा है।
ओ३म् भूर्भुवः स्व: । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
इस मन्त्र में जो प्रथम (ओ३म्) है उस का अर्थ प्रथमसमुल्लास में कर दिया है, वहीं से जान लेना। अब तीन महाव्याहृतियों के अर्थ संक्षेप से लिखते हैं-‘भूरिति वै प्राणः’ ‘यः प्राणयति चराऽचरं जगत् स भूः स्वयम्भूरीश्वरः’ जो सब जगत् के जीवन का आवमार, प्राण से भी प्रिय और स्वयम्भू है उस प्राण का वाचक होके ‘भूः’ परमेश्वर का नाम है। ‘भुवरित्यपानः’ ‘यः सर्वं दुःखमपानयति सोऽपानः’ जो सब दुःखों से रहित, जिस के संग से जीव सब दुःखों से छूट जाते हैं इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘भुवः’ है। ‘स्वरिति व्यानः’ ‘यो विविधं जगद् व्यानयति व्याप्नोति स व्यानः’ । जो नानाविध जगत् में व्यापक होके सब का धारण करता है इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘स्वः’ है। ये तीनों वचन तैत्तिरीय आरण्यक के हैं। (सवितुः) ‘यः सुनोत्युत्पादयति सर्वं जगत् स सविता तस्य’। जो सब जगत् का उत्पादक और सब ऐश्वर्य का दाता है । (देवस्य) ‘यो दीव्यति दीव्यते वा स देवः’ । जो सर्वसुखों का देनेहारा और जिस की प्राप्ति की कामना सब करते हैं। उस परमात्मा का जो (वरेण्यम्) ‘वर्त्तुमर्हम्’ स्वीकार करने योग्य अतिश्रेष्ठ (भर्गः) ‘शुद्धस्वरूपम्’ शुद्धस्वरूप और पवित्र करने वाला चेतन ब्रह्म स्वरूप है (तत्) उसी परमात्मा के स्वरूप को हम लोग (धीमहि) ‘धरेमहि’ धारण करें। किस प्रयोजन के लिये कि (यः) ‘जगदीश्वरः’ जो सविता देव परमात्मा (नः) ‘अस्माकम्’ हमारी (धियः) ‘बुद्धीः’ बुद्धियों को (प्रचोदयात्) ‘प्रेरयेत्’ प्रेरणा करे अर्थात् बुरे कामों से छुड़ा कर अच्छे कामों में प्रवृत्त करे।
यहाँ ओ३म का अर्थ – सर्वव्यापक रक्षक आदि है
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जो चित्र मैंने पोस्ट के साथ लगाया है उसमे सायण (SY) महीधर (Mah) उदगीथ (U ) व आचार्य सायण की भाष्य भूमिका (BB) का उदाहरण दिया है।
प्रचोदयात् के अर्थ को रेखांकित किया है
—
aise hi logon ne vedon ka arth karke aryon ko badnaam kiya hai….. aaj se hi nahi charwak ke jamane se hi……..bahut sharm ki baat hai
आक्रमणकारीयों ने न सिर्फ मंदिरों को तोडा बल्कि ब्राह्मणों को डरा धमका कर लालच देकर कुछ खराब वाक्यांश डाले गए….
chacha aisa gyaan tab dete , jab shudra kaam karte the and unki kamai tum thaate the, and unke peeche jhaaru and aage matka bandate the. chhuachhut ki parampara chalai tumne, tum sab british 💂 se bhi behetar ho.
What a shame? All this is for tolerating Idol Worship and hereditary aceptance of Brahminsm., which led to casteism, Ambedkar and reservation.After may be 10000yrs Veda not reached public and what ever reached was misinterpreted with selfish reasons. To whom to blame. Only for this Hind poulation is going on reducing, being encroached upon by other sect like Christians, Muslims, Amma Bhagawan, Chidanand, Nigamanand, Sai Baba, Siridi Sai, etc etc and similar thousands increasing from time to tim
What happened after that? Any reaction by our Sarbajanik Arya Sabha? Any protest posted or not. Why not file a case against such intentional defamation? Otherwise how the vedic Sanskruti will be saved?
ye batao tum log khud hi kisi ek arth pe ek nhi..har koi alag-2 tarike se arth nikalta hai..lagta hai sanskrit kisi ko bhi nhi aati,,,shayad ye ek brahm paida kerne wali language hai….
vaise ye post to maine kai logo ke sath dekha hai ..adiktar muslim.. sirf ek aadmi ko gali kyo..
her slok ke kai arth h ,so i dont like this language..
Mitr sanskrit shayad tumne nahi parhi varna aisi moorkhtapoorn baat nahi karte.
samaj ke liy kalank he ye log, is jivan ko bekaar kar rahe hain ye setan
इनके बाप दादाओ ने भी कभी संस्कृत पढ़ा था क्या??
दुष्ट प्रवृति के कमीने प्रजाति
इसलिए ही यह अर्थ सही है जो अपने धर्म के लोगों को ही हेय दृष्टि से देखता हो वह वास्तव में अश्लील है।
ऐसा एक अश्लील प्रकरण यज्ञ की व्याख्या उपनिषद में मन्मथ कर्म सम्बंधित है।छांदोग्य या बृहदारण्यक मे।
prakran batayen
शरीर वाली माँ एक बच्चे को जन्म दे कर उसके सारे कार्य करती है, जबतक एक बच्चा पढ लिख कर अपने पैरो पर खडे रहकर अपने बलबूते पर सही सही जीना सीख ले। पर एक माँ बिना शरीर वाली जीससे यह शरीर चलता फिरता और सारे कर्म जीससे हो पा रहे है। हरेक जीव और मनुष्य शरीर की वह है सारे जीवो की शक्ति। जो अच्छे बूरे इन्सान सभी के पास हो सकती है शक्ति। पर बिना शरीर वाला बाप सबके पास नहीं हो सकता वह एक समय पर एक ही के पास हो सकता है, वह है ईश्वर, आत्म ज्ञान। शक्ति शरीर में मनुष्य सारे शरीर मे कही भी अनुभव कर सकता है। पर ईश्वर अनुभूति उसे सिर्फ और सिर्फ संयम नियम, त्याग समर्पण, प्राणायाम होने के बाद निर्विचार स्थिती में ईश्वर अनुभूति होती है जीससे सारे ब्रह्मांड के खेल जारी है, जो अजन्मा है, जो अकाल पुरुष, स्त्री भी है। नोंध: ईश्वर को शरीर नही है ईश्वरसे शरीर और सारा कुछ है तो लिंग भेद का प्रश्न नही उठता है। जब भी कीसी मनुष्य शरीर में जीव को ईश्वर अनुभूति हूई है तब वह असल मे वास्तव वर्तमान मे ही रहता है और सबका सहारा छोड, सभी कुछ जीससे है उस ईश्वर परायण हो कर अमर हो जाता है। ईश्वर वही है जीसकी सत्ता के बगैर पता भी नही हिलता। धन्यवाद।🙏।। शुभ प्रभात।।🙏
हिन्दू धर्म का विचित्र इतिहास आप भी जाने
1- मंदोदरी ” मेंढकी ” से पैदा हुई थी !
2- ” श्रंगी ऋषि ” ” हिरनी ” से पैदा हुये थे !
3- ” सीता” ” मटकी” मे से पैदा हुई थी !
4- ” गणेश ” अपनी ” माँ के मैल ” से पैदा हुये थे !
5- ” हनुमान ” के पिता पवन ” कान ” से पैदा हुये थे !
6- हनुमान का पुत्र # मकरध्वज था जो # मछ्ली के मुख से पैदा हुआ था !
7- मनु सूर्य के पुत्र थे उनको छींक आने पर एक लड़का नाक से पैदा हुआ था !
8- राजा दशरत की तीन रानियो के चार पुत्र जो फलो की खीर खाने से पैदा हुये थे
9- सूर्य कर्ण का पिता था। भला सूर्य सन्तान कैसे पैदा कर सकता है वो तो आग का गोला है !
” ब्रह्मा ” ने तो 4 वर्ण यहां वहां से निकले हद है !!
” दलित ” का बनाया हुआ ” चमड़े का ढोल”
# मंदिर में बजाने से मंदिर # अपवित्र नहीं होता!
” दलित ” मंदिर में चल जाय तो मंदिर ” अपवित्र ” हो जाता है।
# उन्हें इस बात सेकोई # मतलब नहीं की # ढोल किस जानवरकी चमड़ी से बना है।
उनके लिए # मरे हुए जानवर की चमड़ी पवित्र है,
पर जिन्दा दलित अपवित्र….!!
” लानत है ऐसे धर्म पर” ….!!!
” बुद्धिजीवी ” प्रकाश डाले !! दिमाग की बत्ती जलाओ अंधविश्वास भगाओ!!
Better thinking for us and all the people
Sateesh Siddharth ji
क्या आप बताओगे की दलित किस ग्रन्थ में हिन्दू धर्म में लिखा है ? यह थोडा जानकारी देना जी | यह भी जानकारी देना जी हिन्दू सब्द हिन्दू के किस ग्रन्थ में आया है जी | थोडा यह भी बतलाना जी की धर्म किसे कहते हैं ? आप जो बाते कर रहे हैं वह पुराण रामायण महाभारत इत्यादि ग्रन्थ में मिलावट कर दी गयी है | यदि आप अपनी थोडा अक्ल लगाते तो यह नहीं बोलते की “मंदोदरी ” मेंढकी ” से पैदा हुई थी !” क्या ऐसा कभी हो सकता है क्या ? थोडा अपनी अक्ल का भी इस्तेमाल करो जी | एक मेढकी कैसे मानव की बच्चा को जन्म दे सकती है | ऐसा ऊपर का सारे सवाल जो आपने किया है सब गलत है जी मिलावट कर दी गयी जिसे आप स्वीकार कर रहे हो | आपके सारे सवाल गलत है जी | मुझे एक बात बतलाना जी आप अम्बेडकर को मानते हो ना ? चलो उन्ही की लिखी पुस्तक है who were the shudra
जिसमे उन्होंने बोला है शुद्र सभी एक ही माँ बाप के संतान थे ऐसा मुझे याद आ रहा है | तब जो आप खुद को दलित बोल रहे हो वह तो शुद्र के अंतर्गत आता है तो क्या आप आंबेडकर का तौहीन नहीं कर रहे ? दूसरी बात शुद्र किसे बोलते हैं यह बताना जी | दलित किसे बोलते हैं यह भी बताना जी | वर्ण किसे बोलते हैं यह भी बताना जी | इस हिसाब से तो आपको तो अपने पूर्वज पर भी शर्म करनी होगी जिस हिसाब से शायद आम्बेडकर ने लिखा है की शुद्र ब्राह्मण इत्यादि सभी एक ही माँ बाप से उत्पन्न हुए थे | भाई जान जो सवाल किया उसका जवाब देना जी ? कुछ बोलने से पहले सोच लिया करो क्या बोल रहे हो | आप वर्ण वयवस्था पर हमारे लेख पढ़ सकते हो उससे आपको सत्य की जानकारी हो जायेगी | और कुछ वर्ण वयवस्था पर लेख आनी है हमारे आर्टिकल पढ़े आपको सारे शंका का समाधान हो जायेगी | आपसे कुछ सवाल पूछा है उम्मीद है उसका आप जवाब देने की कोशिश करोगे |
धन्यवाद
इसी लिए ये ब्राह्मण भारत के 85% को शिक्षा से दूर रखा ताकि जुल्म कर सके गाली को मंत्र बताये,पत्थर को भगवान,
सुरेन्द्र चंडाल जी
पहले आप यह समझे की वर्ण किसे बोलते हैं ब्राह्मण किसे बोलते है क्षत्रिय किसे बोलते हैं वैश्य किसे बोलते हैं शुद्र किसे बोलते हैं | इनके क्या क्या कार्य होते हैं जी | फिर यदि यह सभी बात आपको समझ में आजयेगा तो ऐसा आप कभी नहीं बोलोगे | आपने अम्बेडकर जी को तो पढ़ा होगा जी और उन्हें आप मानते होगे | उन्होंने who were the shudra लिखा था उसे पढ़े होते जिसमे उन्होंने यह शायद लिखा है की ब्राह्मण शुद्र इत्यादि सभी एक ही माँ बाप के संतान हैं | फिर ब्राह्मण अपने भाइयो को शिक्षा से यदि दूर रखे होते तो आज आप भी अनपढ़ होते साईट पर कमेंट ना कर रहे होते | दूसरी बात ब्राह्मण कोई जाती नहीं जैसे आपने खुद को चंडाल से शोभित किया है टाइटल में | आज यदि ब्राह्मण ना होते तो आज देश इतना विकास ना कर पाटा और ना आप कुछ लिखने के काबिल होते | आपको ब्राह्मण को धन्यवाद देना चाहिए जी | आप यह बताना जी ब्राह्मण किसे बोलते हैं उनके क्या क्या कार्य हैं | आप वर्ण वयवस्था पर आर्टिकल पढ़े आपको सारी जानकारी मिल जानी चाहिए | गलत अर्थ तो मंत्र का ब्राह्मण ने नहीं बताया जी | यदि गलत अर्थ बताता तो आप कभी इस स्तर तक कभी नहीं पहुच पाते | इतना अपने भाई पर गलत इल्जाम लगाना आप जैसे ज्ञानी से उम्मीद नहीं की जा सकती | और ना अम्बेडकर जी ऐसे बोले थे | आप उनको मानते हो फिर भी उनका अनुसरण नहीं करते यह आप अम्बेडकर का तौहीन कर रहे हो | धन्यवाद |
आजकल के कुछ मूर्खों ने गायत्री मन्त्र का गलत अर्थ निकाल कर ये सिद्ध किया है कि वो अपने बाप दादा के उन्नत ज्ञान को समझने की योग्यता नहीं रखते।ऐसे ही मूर्ख जो आर्यों को विदेशी समझते है , वे लोग वैसे ही हैं जैसे एक बेटा जिस बाप से पैदा हुआ उसी को पहचानने से इंकार करे।ऐसे कमअक्ली लोगों के लिए ही कबीरदास ने एक दोहा की रचना की थी वह यह है–
जा में जितनी बुद्धि हो उतना ही देय बताय।
वा को बुरा न मानिए , और कहाँ से लाय।।
आगे जाके ये मूर्ख अम्बेडकर को ही पहचानने से इंकार करदे
तो आश्चर्य की बात नहीं।। शुभमस्तु।
Amit Ji aaj 1950 se pahle ambedkar aur fule Ji ko chhor kar koi pasha likha ho to batao agar ayesa hi Hai to baki log padhe likhe kyo nahi the mere dada Ji jinka janm 1930 mei hua that unhone mujhe khud bataya Hai ki padhai ka naam lene per sudro per jute barsaye jaate the aur aap logo ne is sabd ko galat sabit kar diya aap ye bataiye ” Dhol gawar shudra pashu naari sada taadan Ke adhikari” iska arth kya nikaloge aur Sanskrit se Maine graduation kiya Hai per mujhe Jo is me ambedkar wadi vichar Hai aur alag alag shabdo ka arth nikala to ambedkar wadi arth Thik Hai ” Pahle jaano Baad mei maano” aap ka qualification kya Hai aur Sanskrit ki baare me kya jaante ho
तुलसी दास जी का लिखा हुआ गलत है
इसमें दोराय नहीं हैं
समाज के एक वर्ग ने दलितों तो प्रताड़ित किया इसमें बजी दोराय नहीं
लेकिन आर्य समाज ने इस राह में कितना कार्य किया ये डॉ आंबेडकर के शब्दों से ही स्पष्ट है स्वामी श्रद्धानंद जी को उन्होंने दलितों का सच्चा सुधारक कहा इत्यादि
वेदिक मंत्र इसलिये ऐसे निर्मित किये गये है ब्राह्मण जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता होगा वही उसके अर्थ को समझ पायेगा कामुकता या अन्य प्रकार की कुप्रवृत्तियो में लिप्त होगा वो उसका अर्थ गलत ही लगायेगा जिसका कोई लाभ नहीं मिलेगा डर्टी माइंड लोग उसे वैसी ही पड़ेगे जैसे शब्दो को पहली बार पड़ने से समझ आता है लेकिन जो ज्ञानी जन है वो उसी मंत्र को उसके उसके भाव से सही तालमेल बैठा कर पड़ेगे
मंत्रोच्चारण और उनका अर्थ भाव के साथ करना लाभदायक होता है । संस्कृत में शब्दों संयुक्त कर लिखा जाता है और यह प्रयास किया जाता शब्द को विस्तारित न करते हुऐ संक्षिप्त कर लिखा जाये।