डा. अम्बेडकर ने अपने ब्राह्मण वाद से घ्रणा के चलते मनुस्मृति को निशाना बनाया और इतना ही नही अपनी कटुता के कारण मनुस्मृति के श्लोको का गलत अर्थ भी किया …अब चाहे अंग्रेजी भाष्य के कारण ऐसा हुआ हो या अनजाने में लेकिन अम्बेडकर जी का वैदिक धर्म के प्रति नफरत का भाव अवश्य नज़र आता है कि उन्होंने अपने ही दिए तथ्यों की जांच करने की जिम्मेदारी न समझी |
यहाँ आप स्वयम देखे अम्बेडकर ने किस तरह गलत अर्थ प्रस्तुत कर गलत निष्कर्ष निकाले –
(१) अशुद्ध अर्थ करके मनु के काल में भ्रान्ति पैदा करना और मनु को बोद्ध विरोधी सिद्ध करना –
(क) पाखण्डिनो विकर्मस्थान वैडालव्रतिकान् शठान् |
हैतुकान् वकवृत्तीश्र्च वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत् ||(४.३०)
डा . अम्बेडकर का अर्थ – ” वह (गृहस्थ) वचन से भी विधर्मी, तार्किक (जो वेद के विरुद्ध तर्क करे ) को सम्मान न दे|”
” मनुस्मृति में बोधो और बुद्ध धम्म के विरुद्ध में स्पष्ट व्यवस्था दी गयी है |”
(अम्बेडकर वा. ,ब्राह्मणवाद की विजय पृष्ठ. १५३)
शुद्ध अर्थ – पाखंडियो, विरुद्ध कर्म करने वालो अर्थात अपराधियों ,बिल्ली के सामान छली कपटी जानो ,धूर्ति ,कुतर्कियो,बगुलाभक्तो को अपने घर आने पर वाणी से भी सत्कार न करे |
समीक्षा- इस श्लोक में आचारहीन लोगो की गणना है उनका वाणी से भी अतिथि सत्कार न करने का निर्देश है |
यहा विकर्मी अर्थात विरुद्ध कर्म करने वालो का बलात विधर्मी अर्थ कल्पित करके फिर उसका अर्थ बोद्ध कर लिया |विकर्मी का विधर्मी अर्थ किसी भी प्रकार नही बनता है | ऐसा करके डा . अम्बेडकर मनु को बुद्ध विरोधी कल्पना खडी करना चाहते है जो की बिलकुल ही गलत है |
(ख) या वेदबाह्या: स्मृतय: याश्च काश्च कुदृष्टय: |
सर्वास्ता निष्फला: प्रेत्य तमोनिष्ठा हि ता: स्मृता:|| (१२.९५)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – जो वेद पर आधारित नही है, मृत्यु के बाद कोई फल नही देती, क्यूंकि उनके बारे में यह घोषित है कि वे अन्धकार पर आधारित है| ” मनु के शब्द में विधर्मी बोद्ध धर्मावलम्बी है| ” (वही ,पृष्ठ१५८)
शुद्ध अर्थ – ‘ वेदोक्त’ सिद्धांत के विरुद्ध जो ग्रन्थ है ,और जो कुसिधान्त है, वे सब श्रेष्ट फल से रहित है| वे परलोक और इस लोक में अज्ञानान्ध्कार एवं दुःख में फसाने वाले है |
समीक्षा- इस श्लोक में किसी भी शब्द से यह भासित नही होता है कि ये बुद्ध के विरोध में है| मनु के समय अनार्य ,वेद विरोधी असुर आदि लोग थे ,जिनकी विचारधारा वेदों से विपरीत थी| उनको छोड़ इसे बुद्ध से जोड़ना लेखक की मुर्खता ओर पूर्वाग्रह दर्शाता है |
(ग) कितवान् कुशीलवान् क्रूरान् पाखण्डस्थांश्च मानवान|
विकर्मस्थान् शौण्डिकाँश्च क्षिप्रं निर्वासयेत् पुरात् || (९.२२५)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” जो मनुष्य विधर्म का पालन करते है …….राजा को चाहिय कि वह उन्हें अपने साम्राज्य से निष्कासित कर दे | “(वही ,खंड ७, ब्राह्मणवाद की विजय, पृष्ठ. १५२ )
शुद्ध अर्थ – ‘ जुआरियो, अश्लील नाच गाने करने वालो, अत्याचारियों, पाखंडियो, विरुद्ध या बुरे कर्म करने वालो ,शराब बेचने वालो को राजा तुरंत राज्य से निकाल दे |
समीक्षा – संस्कृत पढने वाला छोटा बच्चा भी जानता है कि कर्म, सुकर्म ,विकर्म ,दुष्कर्म इन शब्दों में कर्म ‘क्रिया ‘ या आचरण का अर्थ देते है | यहा विकर्म का अर्थ ऊपर बताया गया है | लेकिन बलात विधर्मी और बुद्ध विरोधी अर्थ करना केवल मुर्खता प्राय है |
(२) अशुद्ध अर्थ कर मनु को ब्राह्मणवादी कह कर बदनाम करना –
(क) सेनापत्यम् च राज्यं च दंडेंनतृत्वमेव च|
सर्वलोकाघिपत्यम च वेदशास्त्रविदर्हति||(१२.१००)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – राज्य में सेना पति का पद, शासन के अध्यक्ष का पद, प्रत्येक के ऊपर शासन करने का अधिकार ब्राह्मण के योग्य है|’ (वही पृष्ठ १४८)
शुद्ध अर्थ- ‘ सेनापति का कार्य , राज्यप्रशासन का कार्य, दंड और न्याय करने का कार्य ,चक्रवती सम्राट होने, इन कार्यो को करने की योग्यता वेदों का विद्वान् रखता है अर्थात वाही इसके योग्य है |’
समीक्षा – पाठक यहाँ देखे कि मनु ने कही भी ब्राह्मण पद का प्रयोग नही किया है| वेद शास्त्र के विद्वान क्षत्रिय ओर वेश्य भी होते है| मनु स्वयम राज्य ऋषि थे और वेद ज्ञानी भी (मनु.१.४ ) यहा ब्राह्मण शब्द जबरदस्ती प्रयोग कर मनु को ब्राह्मणवादी कह कर बदनाम करने का प्रयास किया है |
(ख) कार्षापण भवेद्दण्ड्यो यत्रान्य: प्राकृतो जन:|
तत्र राजा भवेद्दण्ड्य: सहस्त्रमिति धारणा || (८.३३६ )
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” जहा निम्न जाति का कोई व्यक्ति एक पण से दंडनीय है , उसी अपराध के लिए राजा एक सहस्त्र पण से दंडनीय है और वह यह जुर्माना ब्राह्मणों को दे या नदी में फैक दे ,यह शास्त्र का नियम है |(वही, हिन्दू समाज के आचार विचार पृष्ठ२५० )
शुद्ध अर्थ – जिस अपराध में साधारण मनुष्य को एक कार्षापण का दंड है उसी अपराध में राजा के लिए हज़ार गुना अधिक दंड है | यह दंड का मान्य सिद्धांत है |
समीक्षा :- इस श्लोक में अम्बेडकर द्वारा किये अर्थ में ब्राह्मण को दे या नदी में फेक दे यह लाइन मूल श्लोक में कही भी नही है ऐसा कल्पित अर्थ मनु को ब्राह्मणवादी और अंधविश्वासी सिद्ध करने के लिए किया है |
(ग) शस्त्रं द्विजातिभिर्ग्राह्यं धर्मो यत्रोपरुध्यते |
द्विजातिनां च वर्णानां विप्लवे कालकारिते|| (८.३४८)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – जब ब्राह्मणों के धर्माचरण में बलात विघ्न होता हो, तब तब द्विज शस्त्र अस्त्र ग्रहण कर सकते है , तब भी जब द्विज वर्ग पर भयंकर विपति आ जाए |” (वही, हिन्दू समाज के आचार विचार, पृष्ठ २५० )
शुद्ध अर्थ:- ‘ जब द्विजातियो (ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य ) धर्म पालन में बाँधा उत्पन्न की जा रही हो और किसी समय या परिस्थति के कारण उनमे विद्रोह उत्पन्न हो गया हो, तो उस समय द्विजो को शस्त्र धारण कर लेना चाहिए|’
समीक्षा – यहाँ भी पूर्वाग्रह से ब्राह्मण शब्द जोड़ दिया है जो श्लोक में कही भी नही है |
(३) अशुद्ध अर्थ द्वारा शुद्र के वर्ण परिवर्तन सिद्धांत को झूटलाना |
(क) शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुः मृदुवागानहंकृत: |
ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्रुते|| (९.३३५)
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” प्रत्येक शुद्र जो शुचि पूर्ण है, जो अपनों से उत्कृष्ट का सेवक है, मृदु भाषी है, अंहकार रहित हैसदा ब्राह्मणों के आश्रित रहता है (अगले जन्म में ) उच्चतर जाति प्राप्त करता है |”(वही ,खंड ९, अराजकता कैसे जायज है ,पृष्ठ ११७)
शुद्ध अर्थ – ‘ जो शुद्र तन ,मन से शुद्ध पवित्र है ,अपने से उत्क्रष्ट की संगती में रहता है, मधुरभाषी है , अहंकार रहित है , और जो ब्राह्मणाआदि तीनो वर्णों की सेवा कार्य में लगा रहता है ,वह उच्च वर्ण को प्राप्त कर लेता है|
समीक्षा – इसमें मनु का अभिप्राय कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का है ,जिसमे शुद्र उच्च वर्ण प्राप्त करने का उलेख है , लेकिन अम्बेडकर ने यहाँ दो अनर्थ किये – ” श्लोक में इसी जन्म में उच्च वर्ण प्राप्ति का उलेख है अगले जन्म का उलेख नही है| दूसरा श्लोक में ब्राह्मण के साथ अन्य तीन वर्ण भी लिखे है लेकिन उन्होंने केवल ब्राह्मण लेकर इसे भी ब्राह्मणवाद में घसीटने का गलत प्रयास किया है |इतना उत्तम सिधांत उन्हें सुहाया नही ये महान आश्चर्य है |
(४) अशुद्ध अर्थ करके जातिव्यवस्था का भ्रम पैदा करना
(क) ब्राह्मण: क्षत्रीयो वैश्य: त्रयो वर्णों द्विजातय:|
चतुर्थ एक जातिस्तु शुद्र: नास्ति तु पंचम:||
डा. अम्बेडकर का अर्थ- ” इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि मनु चातुर्यवर्ण का विस्तार नही चाहता था और इन समुदाय को मिला कर पंचम वर्ण व्यवस्था के पक्ष में नही था| जो चारो वर्णों से बाहर थे|” (वही खंड ९, ‘ हिन्दू और जातिप्रथा में उसका अटूट विश्वास,’ पृष्ठ१५७-१५८)
शुद्ध अर्थ – विद्या रूपी दूसरा जन्म होने से ब्राह्मण ,वैश्य ,क्षत्रिय ये तीनो द्विज है, विद्यारुपी दूसरा जन्म ना होने के कारण एक मात्र जन्म वाला चौथा वर्ण शुद्र है| पांचवा कोई वर्ण नही है|
समीक्षा – कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था ,शुद्र को आर्य सिद्ध करने वाला यह सिद्धांत भी अम्बेडकर को पसंद नही आया | दुराग्रह और कुतर्क द्वारा उन्होंने इसके अर्थ के अनर्थ का पूरा प्रयास किया |
(५) अशुद्ध अर्थ करके मनु को स्त्री विरोधी कहना |
(क) न वै कन्या न युवतिर्नाल्पविध्यो न बालिश:|
होता स्यादग्निहोतरस्य नार्तो नासंस्कृतस्तथा||( ११.३६ )
डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” स्त्री वेदविहित अग्निहोत्र नही करेगी|” (वही, नारी और प्रतिक्रान्ति, पृष्ठ ३३३)
शुद्ध अर्थ – ‘ कन्या ,युवती, अल्पशिक्षित, मुर्ख, रोगी, और संस्कार में हीन व्यक्ति , ये किसी अग्निहोत्र में होता नामक ऋत्विक बनने के अधिकारी नही है|
समीक्षा – डा अम्बेडकर ने इस श्लोक का इतना अनर्थ किया की उनके द्वारा किया अर्थ मूल श्लोक में कही भव ही नही है | यहा केवल होता बनाने का निषद्ध है न कि अग्निहोत्र करने का |
(ख) सदा प्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया |
सुसंस्कृतोपस्करया व्यये चामुक्तह्स्त्या|| (५.१५०)
डा. अम्बेकर का अर्थ – ” उसे सर्वदा प्रसन्न ,गृह कार्य में चतुर , घर में बर्तनों को स्वच्छ रखने में सावधान तथा खर्च करने में मितव्ययी होना चाहिय |”(वही ,पृष्ठ २०५)
शुद्ध अर्थ -‘ पत्नी को सदा प्रसन्न रहना चाहिय ,गृहकार्यो में चतुर ,घर तथा घरेलू सामान को स्वच्छ सुंदर रखने वाली और मित्यव्यी होना चाहिय |
समीक्षा – ” सुसंस्कृत – उपस्करया ” का बर्तनों को स्वच्छ रखने वाली” अर्थ अशुद्ध है | ‘उपस्कर’ का अर्थ केवल बर्तन नही बल्कि सम्पूर्ण घर और घरेलू सामान जो पत्नीं के निरीक्षण में हुआ करता है |
(६) अशुद्ध अर्थो से विवाह -विधियों को विकृत करना
(क) (ख) (ग) आच्छद्य चार्चयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयम्|
आहूय दान कन्यायाः ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तित:||(३.२७)
यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते|
अलकृत्य सुतादान दैव धर्म प्रचक्षते||(३.२८)
एकम गोमिथुंनं द्वे वा वराददाय धर्मत:|
कन्याप्रदानं विधिविदार्षो धर्म: स उच्यते||(३.२९)
डा अम्बेडकर का अर्थ – बाह्म विवाह के अनुसार किसी वेदज्ञाता को वस्त्रालंकृत पुत्री उपहार में दी जाती थी| देव विवाह था जब कोई पिता अपने घर यज्ञ करने वाले पुरोहित को दक्षिणास्वरूप अपनी पुत्री दान कर देता था | आर्ष विवाह के अनुसार वर, वधु के पिता को उसका मूल्य चूका कर प्राप्त करता था|”( वही, खंड ८, उन्नीसवी पहेली पृष्ठ २३१)
शुद्ध अर्थ – ‘वेदज्ञाता और सदाचारी विद्वान् कन्या द्वारा स्वयम पसंद करने के बाद उसको घर बुलाकर वस्त्र और अलंकृत कन्या को विवाहविधिपूर्वक देना ‘ बाह्य विवाह’ कहलाता है ||’
‘ आयोजित विस्तृत यज्ञ में ऋत्विज कर्म करने वाले विद्वान को अलंकृत पुत्री का विवाहविधिपूर्वक कन्यादान करना’ दैव विवाह ‘ कहाता है ||”
‘ एक या दो जोड़ा गाय धर्मानुसार वर पक्ष से लेकर विवाहविधिपूर्वक कन्यादान करना ‘आर्ष विवाह ‘ है |’ आगे ३.५३ में गाय का जोड़ा लेना वर्जित है मनु के अनुसार
समीक्षा – विवाह वैदिक व्यवस्था में एक संस्कार है | मनु ने ५.१५२ में विवाह में यज्ञीयविधि का विधान किया है | संस्कार की पूर्णविधि करके कन्या को पत्नी रूप में ससम्मान प्रदान किया जाता है | इन श्लोको में इन्ही विवाह पद्धतियों का निर्देश है | अम्बेडकर ने इन सब विधियों को निकाल कर कन्या को उपहार , दक्षिणा , मूल्य में देने का अशुद्ध अर्थ करके सम्मानित नारी से एक वस्तु मात्र बना दिया | श्लोको में यह अर्थ किसी भी दृष्टिकोण से नही बनता है | वर वधु का मूल्य एक जोड़ा गाय बता कर अम्बेडकर ने दुर्भावना बताई है जबकि मूल अर्थ में गाय का जोड़ा प्रेम पूर्वक देने का उलेख है क्यूंकि वैदिक संस्कृति में गाय का जोड़ा श्रद्धा पूर्वक देने का प्रतीक है |
अम्बेडकर द्वारा अपनी लिखी पुस्तको में प्रयुक्त मनुस्मृति के श्लोको की एक सारणी जिसके अनुसार अम्बेडकर ने कितने गलत अर्थ प्रयुक्त किये और कितने प्रक्षिप्त श्लोको का उपयोग किया और कितने सही श्लोक लिए का विवरण –
जनाब कृपया संस्कृत सीख कर आएं…
चलो आपकी बात सिर आँखों पर की अंबेडकर ने गलत अर्थ निकाले. जरा नजर पिछे दौड़ाए और पुरातन काल में स्त्रियों की दशा देखे। उस समय स्त्री की दशा क्या थी इतिहास गवाह है
पुराने जमाने मी स्त्रियो की स्थिती कैसी भी हो, उसके लिये मनुस्मृती कैसे जिम्मेदार होती है?मनुस्मृती कि जिम्मेदारी उतनीही सीमित है जितना की मनुस्मृती मे लिखा है
स्त्रियों की दुर्दशा से मनु स्मृति का क्या लेना देना मनु स्मृति में कहाँ स्त्रियों का अपमान है पहले एक बार मनु स्मृति पढ़ लीजिये
पढने लायक ही नही है
हो सकता है आपको ऐसा लगे
पूर्वाग्रह से रहित होकर यदि पढेंगे तो ही सत्य को पहचानने के करीब होंगे
हा बुध्द जी आप तो बस बुध्दम् सरणं गछामी ही पड़ो। पर याद रहे यह श्लोक हमारी मातृभाषा संस्कृत मे ही है।
पढ़ना नही है मगर उसके बारे में बोलना है । वाह ।
बहुत सुन्दर लेख। वेद और शास्त्र सदेव सबके हितेषी रहे हे। मनु समृति में मानव कल्याण का मार्ग बताया गया हे।ग्यानी व संसार के हित के लिए कर्म करने वाले व्यक्ति को ब्रामण कहा हे।वह किसी भी जाती का हो सकता हे। वैदिक काल में स्त्रियों को पूज्य माना जाता था। यह मनु समृति का परिणाम हे।
striyo ki dashaa us jmaane me koi itni khrab nahi thi jo insanity ke baahr ho sbhi inssniytke andr hi thi aur manu smrutime maanv kalyanke liye koi bhi manusy achaa kaam kr shktaa hai
isme galat kyaa hai ? insanity ke daayreme rh kr kaam kiya jataa hai
प्रहलाद भाई प्रजापति जी
स्त्रियों की दशा किसी भी ज़माने में कभी ख़राब नहीं थी उसे पुरुष के समान अधिकार दिए गए थे और अब भी दिए गए हैं मगर कुछ लोगो के कारण कुछ मिलावट कर दी गयी तो उसमे गलती किसकी ? और वैसे भी मनुस्मृति ईश्वरीय वाणी नहीं जिसमे मिलावट ना की जा सके | विशुद्ध मनुस्मृति पढ़े जिसमे कोई मिलावट नहीं है | धन्यवाद |
Amit Roy Ji -kaun se publication ki manusmriti padhani chahia jo sudh ho batana jarur please….
singh saab
आप मनुस्मृति में जो मिलावट नहीं की गयी है उसे पढ़ें | उस मनुस्मृति का नाम विशुद्ध मनुस्मृति और लेखक का नाम डॉ सुरेन्द्र कुमार जी हैं | आप यदि पीडीऍफ़ चाहते हैं तो हमारे साईट पर जाए आपको वैदिक कोष में मनुस्मृति मिल जायेगी जिसमे कोई मिलावट नहीं की गयी है | धन्यवाद |
आप तो बड़ी बड़ी बातो की डीग हाकते नजर आते है . किमान सुरेद्रर कुमार और डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर की ज्ञान की तुलनात्मक पद्धती से विवेचन करते तो शायद बात अधिक स्पष्ट रूप से उजागर होती , पर ऐसा न कर मात्र डॉ.अम्बेडकर जी को मनुस्मृति की अज्ञानता का शिकार बनाया जाना निरी मूर्खता है .
सुरेद्र कुमारजी का संस्कॄत साहित्य के सिवाय इतस्त्र देश, समाज,राज्य विषयक योगदान शून्यांश है जबकि डॉ.अंबेडकर जी का कद निश्चित ही बड़ा व्यापक तथा विश्वविख्यात है.उनके पाकिस्तान संबंधी विचार,चीन हमला ,जनसंख्य नियमन,आर्थिक विचार,जल,ऊर्जा,श्रम,वेतन,महिला अधिकार ,विधि ,समाज,आदिवासी समुदाय ,मानव विकास अधिकार ,सरक्षण,सामाजिक प्र तिनिधित्व इत्यादि की विषय सूचि पर नजर फेर कर यकायक ही सुरेद्र कुमार ही नही अन्य कोई भी विचारक या देशभक्त अपने आपको अल्प ज्ञानी समझना कोई अपमानित भरा भाव नही रखता है .हर कोई अपनी समझ सोच संवेदना से मार्ग क्रमण करता है .अपनी अपनी सोच सब की उत्तरदायी है .मान ले मनुस्मृति के विषयक बाबासाहेब अज्ञानी हो पर अन्य सभी विषय पर उनका योगदान सर्वकश सफल है .बात विवेक की है जो भी लोग मनुस्मृति के संबंध में डॉ.अंबेडकर जी के विचारो के आलोचक है वे उनके द्वारा सभी देश ,विषयक योगदान पर रुष्ट है यह लोगो की पूर्वग्रह दूषित मानसिकता के लक्षण के संकेत है.उन संकेतो में सुरेद्र कुमार भी अछूते नही है.
जिस समय मनुस्मृति का दहन हुआ उस वक्त डॉ.अम्बेडकर मात्र उपस्थिति दर्शक थे .प्रमुखता से बापुसाहब सहस्रबुद्धे ने मनुस्मृति का दहन किया एक चमार ने पठन किया .इन सब का आयोजन भी ब्राम्हणो ने ही किया था.
आज का मौजूदा युग संविधान युग है न की मनुस्मृति का है .. आपकी नजर में मनुस्मृति भले ही नैतिक ,आदरणीय ,पूजनीय हो पर आचरणीय ,अनुकरणीय बिलकुल ही नही है .
bhai jaan
ambedkar sahab kaa shudra kaun use parho aapko maalum chal jaayegaa… aur yadi ve bahut vidwaan hote to apane ko baudh ke rup me mat ko apana nahi lete… ambedkar saahab ved me kahaa dekh liya ki go hatya karna likhaa hai??? ve ved tak ko sahi se nahi jaante… aap bolte ho samvidhaan nirmata ambedkar sahab hai… thoda RTI se jaankaari le lena samvidhaan nirmaata kaun hai… aur uske baad hame batlana ki RTI ne samvidhaan nirmata kise bola gaya hai… itihaas ke saath bahut chhedchaad ki gayi hai… aap bhagat singh aur unke mitra jinhe ek saath fasnsi di gayi sahid maante ho magar sarkaar nahi maanti… are janab pahle itihaas ki sahi jaankaari lena mere bhai….fir aana charchaa karne…
कृपया बताए की ‘शुद्र कौन ..’ इस ग्रन्थ में किस पृ.पर आप का क्या सन्दर्भ अभिप्राय है.
shudra kaun yah koi granth nahi yah ek pustak hai jo ambekar sahab ne likhi hai… kripya pusatak parhe khojbin kare.. sab aapko aise hi jaankaari de dein to aap aalsi ban jaayenge… thoda mehnat bhi kare aap… bana banaya khaana naa khaaye.. khana banakar kayenge to uska maza hi alga hai mere bandhu…. dhanywaad
भाई साहब यहां पर संस्कृत की जानकारी ही महत्व रखती है। आप ज्यादा आगे की न सोचें।
संस्कृत में लिखी हर बात को समझने लिए संस्कृत का ज्ञान होना आवश्यक है न कि अंग्रेजी भाषा या राजनीति शास्त्र की।
रॉय साहब..,
आप तो मेरे मतंव्य को पढ़कर बुरा मान गये मैं यह मानने में विश्वास रखता हूँ की, आलोचना भी एक तरह से प्रसंशा ही होती है
उसे स्वीकार कर लेना सब को नसीब नही होता .जो उसे सह लेता है वह इंसान बड़ा ही सहन शील तथा उच्च हृदय वाला होता है.
आपने कहाँ है की.. बाबासाहब ने ही यह बात मान्य की है की उन्हें संस्कॄत का अधिक ज्ञान नही है. लिहाजा यह सिद्ध होता है की उन के द्वारा दिये गये सन्दर्भ मात्र कॉपी पेस्ट के सिवाय अधिक कोई महत्व नही रखते है .
मान कर चलते है की बाबासाहबजी संस्कॄत ,वेद,ब्राम्हण हिन्दू धर्म इत्यादि के सन्दर्भ में पूर्वग्रहि थे .
पर क्या आप बता सकते है की , मैक्समूलर ,रोमारोला और एच .एच. विल्सन जिन्होंने अपने अनुवाद सायणाचार्य की तर्ज पर किये गए है इन के हिन्दू धर्म के संबंध में क्या पूर्वग्रह था..??
जिस के चलते उन्होंने संस्कॄत का कुअनुवाद किया है.
क्या बाबासाहब जी ने मात्र उक्त अनुवादों के अलावा इतर स्त्र कोई भी सार गर्भित सहारा नही लिया है ..?? या स्वतः उन्होंने अपने विवेक बुद्धि का तनिक भी उपयोग नही किया है.
यदि आप बाबासाहब जी द्वारा लिखित “रिड्ल्स इन हिन्दुइज्म ” पढ़ लेते तो शायद मुझे ज्यादा कुछ लिखने ,बताने की जरूरत न पड़ती पर अफ़सोस बाबासाहब के सभी आलोचक उनके विरोधक उनके द्वारा देश हित के अच्छे कामो को हेतु पुरस्सर नजर अंदाज करते नजर आते है .
यह रवैया ठीक नही है न ही विवेकशील है .
संविधान के बारे में आप न बताए तो बेहतर है. रही बात RTI की ,तो RTI द्वारा गांधी को भी ‘महात्मा ‘मानने से इंकार किया है, और हिन्दू धर्म के संबंध में भी कोई संविधानिक व्याख्या सेRTI अनभिज्ञ है .
आप एक बार संविधान डिबेट्स के १० खण्ड पढ़ लीजिए .बाबासाहब ने स्वतः कभी भी अपने आप को संविधान निर्माता नही कहा है
उनके अतीरिक्त कार्य को मध्य नजर रखते हुए अन्य संविधान समिति के सदस्यों ने उन्हें इस पद से नवाजा है .उन्होंने कहा था की ‘अच्छे से अच्छा संविधान भी बेकार साबित हो सकता है अगर संविधान का क्रियान्वन करने वाले लोग बुरे हो , और बुरे से बुरा संविधान भी अच्छा साबित हो सकता है अगर क्रियान्वन करने वाले लोग विवेकशील हो..’
संविधान द्वारा हम विश्व के पटल पर पुनः एक बार विराज मान होने का दावा करते है पर हम भूल जाते है की अशोक के धम्म क्रान्ति के बगैर यह काम अशक्य ही नही नामुमकिन है.
sumangal saahab
sabse pahli baat yah hai ki hame koi gaali bhi deta hai to ham pyaar se use samjhaate hain kriya islaam kyu chhoda ?? biwi badalne kaa is tarah kaa post dekhe janab jisme gaali tak denewaalo ko pyaar se baat karte hain…. aur hamari kai burai karte hain unki bhi comment shaamil ki jaati hai. ek famous kahawat hai ji jo aapka burai kare use apane ghar me samman kare aur ham bhi samman karte hain kyunki ve aapki khaami ko batlaate hain… is kaaran ham jo burai karte hain unkaa hamesha swagat karte hain… ham gusaa nahi karte…
aapka bolna hai “ बाबासाहबजी संस्कॄत ,वेद,ब्राम्हण हिन्दू धर्म इत्यादि के सन्दर्भ में पूर्वग्रहि थे .
पर क्या आप बता सकते है की , मैक्समूलर ,रोमारोला और एच .एच. विल्सन जिन्होंने अपने अनुवाद सायणाचार्य की तर्ज पर किये गए है इन के हिन्दू धर्म के संबंध में क्या पूर्वग्रह था..??
जिस के चलते उन्होंने संस्कॄत का कुअनुवाद किया है.
क्या बाबासाहब जी ने मात्र उक्त अनुवादों के अलावा इतर स्त्र कोई भी सार गर्भित सहारा नही लिया है ..?? या स्वतः उन्होंने अपने विवेक बुद्धि का तनिक भी उपयोग नही किया है”
bhai iska ek udaharan deta hu usse samjho saayan maxmular sab kis tarah kaa anuwaad kiye honge ….
“kela le lo “ maine ye bola ab aap ise kai tarah kaa arth nikaal sakte hain 1) kela kharid lo 2) kelaa khaa lo 3) kela lete aana
ye to aise achha word me huwa kuch log kela kaa arth (penis) samjh lete hain aur is tarah kaa isse bhi ai arth nikal lete hain ..
ab ek aur udaharan deta hu bhai jaan… ek shlok hai ” guru ro brahma guru ro vishnu …… ” hai jiska arth kai log yah bikaal lete hai “guru hi brahma hai guru hi vishnu hai …… ” aur adhikatar ko yahi bhashy maalum hai jabki yah galat hai iskaa sahi arth hai “shiv hi guru hain vishnu hi guru hain …….. ” ab socho bhashya kaa arth galat karne se kitna bura aur galat asar jaata hai…. aur isi tarah maxmular sayanachaary log the jinhone sahi bhashy nahi kiya kyunki unhe sahi arth maalum nahi thaa aur jo un sabke bhashy ko parhte hain use sahi samajh lete hain isi kaaran bola jaata hai sahi bhashykaar ke bhashy ko parho…..galat bhashy ko parhkar ambedkar saahab aur kai log bhatak gaye aur baudh mat ko apana liye….
“संविधान के बारे में आप न बताए तो बेहतर है. रही बात RTI की ,तो RTI द्वारा गांधी को भी ‘महात्मा ‘मानने से इंकार किया है, और हिन्दू धर्म के संबंध में भी कोई संविधानिक व्याख्या सेRTI अनभिज्ञ है .
आप एक बार संविधान डिबेट्स के १० खण्ड पढ़ लीजिए .बाबासाहब ने स्वतः कभी भी अपने आप को संविधान निर्माता नही कहा है “ sabse pahle aapko batla du samvidhaan me kahi nahi likhaa hai ki gandhi rastra pita hain aur naa hi ambedkar saahab samvidhaan nirmata… samvidhaan ko nirmaan karne me kewal ambedkar saahab kaa yogdaan hi nahi thaa bade bade laogo kaa saath thaa jisme desh ke pratahm rastrapati rajendra prasad ji bhi the… unkaa yogdaan ambekar sahab sab se jyada hai …. magar koi is baat ko nahi jaanta… samvidhaan ban jaane par angrez me samvidhaan ko chura liya thaa… aur raajendra prasad ji aise vyakti the jinhe samvidhaan puraa yaad thaa kyunki unki budhhi bahut hi jayda tej aur bahut hi bada yaaddassht thaa jo ek baar parh lete the to unhe yaad ho jaata thaa… is hisaab se bhi rajendra prasad ko jayada samaman dena chahiye samvidhaan nirmata ke rup me magar nahi di jaati unhe… thoda itihaas ko janane ki koshish kare… aur hamara samvidhaan to pura vish ki samvidhaan ki achhe achhe baato ko apanaya hai… ambedkar saahab ko samvidhaan nirmata samuh aa adhyakash chunaa gaya thaa…. bhai thoda milawati itihaas chhod hakikat itihaas ki jaankaari karne ki koshis karte to bahut achhi hoti… hame bhi khushi hoti… aur ek baat jaan le sabse achha samvidhaan laakho varsh pahle likhaa gaya thaa jise ham swikaar nahi karte aur unhe hamesha jala diya karte hain..dharmik pustak bol dete hain… wah hai manusmriti….. haa magar milawati manusmriti nahi…. vishudh manusmriti….
aapse anurodh karunga pahle sahi itihaas ki jaankaari leni ki prayas karen…
dhanyawaad
सिरीमानजी..,
आप का ज्ञान संविधान के सन्दर्भ में निश्चित ही अल्प है, आप जो संविधान के योगदान के संबंध में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद की नसिहत दे रहे .., उन्होंने डॉ. बी . आर. अन्बेडकर साहब की प्रशन्सा निम्नलिखित शब्दों में की थी:
‘ प्रधान के रूप में प्रतिदिन कुर्सी पर बैठे मैंने किसी भी दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा अच्छे ढंग से यह बात नोट की है की प्रारूप समिति और इसके सभापति डॉ.अंबेडकर ने,अस्वस्थ होते हुए भी ,बहुत उत्साह और लगन से काम किया है.
हमने डॉ. अंबेडकर को प्रारूप समिति में लेने और इसका सभापति बनाने का जो निर्णय लिया था , हम उससे बेहतर और ज्यादा सही निर्णय ले ही नही
सकते थे . इन्होंने न केवल अपने चुने जाने को सार्थक बनाया अपितु जो काम इन्होने किया है, उसे चार -चाँद लगा दिये है. ‘
(*संविधान सभा कार्यवाही ११ पृ.९९४)
उक्त प्रशंसा से यह प्रतीत होता है की आप का संविधान संबंधि मनु- मिथक पूरी तरह बेबुनियाद है या तो , आप संविधान संबंधि पुर्व ग्रह मनुग्रस्त है.
संविधान को ज्यादा महत्व इसलिये नही है की वह डॉ.बी. आर. अंबेडकर ने बनाया है ,बल्कि इसके पहले भी कई बार संविधान बनाये गये थे, पर सभी प्रयास विफल रहे.
1927 में लॉर्ड बर्कन हैण्ड ने भारतीयो को चुनौती दी थी की वे अपना संविधान बनाकर दिखाए ,एक संविधान बनाया गया ‘नेहरु संविधान ‘ कहा गया .चूँकि संविधान निर्मिति के अध्यक्ष पण्डित मोतीलाल नेहरू थे इसलिये उसे यह नाम दिया गया किन्तु उसको भारतीयो ने नकारा समझ रद्दी की टोकरी में डाल दिया .
1930 में गोलमेज परिष द द्वारा संविधान बनाने का प्रयत्न किया गया किन्तु भारतीय विफल रहे. सप्रु – कमिटी द्वारा संविधान बनाने का तीसरी बार प्रयत्न किया गया मगर कोई सफलता न मिली .
1946 में गठित संविधान सभा में सर तेज बहादुर सप्रु ,के.एम्.मुंशी ,ठाकुरदास भार्गव ,सरदार पटेल आदि कितने ही वकील थे .उनमे से किसी को संविधान के निर्माण का काम क्यों न सौपा गया..??
इसलिए मजबूरन साहिर लुधियानवी के दो शब्द याद आते है:
सितम के दौर में हम अहल- ए-दिल ही काम आए
जबाँ पे नाज था जिन को वो बेज़बाँ निकले.
mere bhai jaan aap khud swikaar kar rahe ho ki kewal ambedkar kaa haath nahi tha samvidhaan banane me.. bahut logo kaa haath thaa wahi to main bhi bol raha hu jise aap ab swikaar kar rahe ho…
प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद की नसिहत दे रहे .., उन्होंने डॉ. बी . आर. अन्बेडकर साहब की प्रशन्सा निम्नलिखित शब्दों में की थी:
‘ प्रधान के रूप में प्रतिदिन कुर्सी पर बैठे मैंने किसी भी दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा अच्छे ढंग से यह बात नोट की है की प्रारूप समिति और इसके सभापति डॉ.अंबेडकर ने,अस्वस्थ होते हुए भी ,बहुत उत्साह और लगन से काम किया है.
हमने डॉ. अंबेडकर को प्रारूप समिति में लेने और इसका सभापति बनाने का जो निर्णय लिया था , हम उससे बेहतर और ज्यादा सही निर्णय ले ही नही
सकते थे . इन्होंने न केवल अपने चुने जाने को सार्थक बनाया अपितु जो काम इन्होने किया है, उसे चार -चाँद लगा दिये है. ‘
(*संविधान सभा कार्यवाही ११ पृ.९९४)
mera yah bolna thaa ki kewal ambedkar kaa yogdaan nahi thaa aur bhi logo kaa bahut bada yogdaan raha hai… meri baat ko samjhane me itna samay lag jaata hai anab aapko fir bhi baat ko nahi samjhate ho…
janab aap rajiv dixit ji ki video dekhe jisame yah bhandaabhod kiya gaya hai samvidhaan banane samay kaise nehru ki chaplusi ki thi ambedkar sahab ne…
aap yah thopna chahte ho ki ki kewal ambedkar sahab ne hi samvidhaan banaya… aur suno hamara samvidhaan wah hai jo sabhi desh kaa achhi baato ko swikaar kiya hai…
ham bhi samvidhaan ko maante hain … janab kewal aap hi nahi maante ho… aap yah bolnaa chahte ho ki ambedkar ne hi samvidhaan banaya samvidhaan sabha karywaahi aur praup ne nahi yogdaan diya.. had hai aapki soch par..
फिर वही बात डॉ.राजेन्द्र प्रासाद यह मान्य कर चुके है की अंबेडकरजी के कार्य से ‘चार चाँद लग गए है…’
इसबात पर मन्थन करे चार चाँद शब्द कही भी सामान्य कार्य के लिए उपयोग नही किया जाता है..
विवेक का उपयोग करे ,हमेशा संविधान परक सोच रखे,..मनु ग्रस्तता का इलाज कराये .
“मनु ग्रस्तता ”
satya to sweekar na karna hee grastata hai
सिरी मानजी..,
राजिव दिक्सित न तो संविधान विशेषज्ञ है न ही संस्कृत तज्ञ है .
इनकी यात्रा स्वदेशी मन्च से शुरू हुई थी , अंत में यह सिरिमान … स्वदेशी छोड़ दलित द्वेषी , अंबेडकर द्वेषी बन गये .
मुझे लगता है यह मनुतज्ञ ‘the worshiping folse god ‘डॉ.अरुण शोरी के एजंट बन गये क्योकि उनकी सारी थ्योरि शोरीजी की नकल है.
शोरीजी की उक्त किताब कई वर्ष तक बैन थी क्योकि उनके बताये गए सन्दर्भ सन्देहात्मक थे . जो सन्दर्भ उपलब्ध ही नही उनका साहारा ले कर जनाब चरित्र हनन करने निकल पड़े थे.
आज भी कई ब्लॉगर इन्ही कि नकल मन्दी आजमा रहे है .
आश्चर्य तो इस बात का है कि जो वास्तविक उपलब्धि है उस पर न लिख कर अवास्तविक ,मनु गढ़न्त कथाओ पर राष्ट्र की ऊर्जा, समय ,शक्ति खर्च कर रहे है.
..,
राजिव दिक्सित न तो संविधान विशेषज्ञ है न ही संस्कृत तज्ञ है .
yahee dikkat dr ambedkar ke sath thee
wo Sanskrit ke n to gyata the n hee dharm ke
Agar aap dalit nahi hai toh,
Aapke dalit ristedaaro ki sankhya aapko bata sakti hai Ambedker ji Sahi hai ya Manu Smirti
ye kya logic hai ?
sumangaldhurandhar Ji samvidhan achchhe se padhye usme likha hai samvidhan ka 75% Bharat shashn adhiniyam 1935 Se liya gaya hai aur bharat shashan adhiniyam baba sahab ne nhi agrejon ne banaya tha
अरे कपिल जी आप और हम कितना समझा लो इन्हें सुमंगल जी को ये इस बात को नहीं मानेंगे | बस ये बोलते हैं की इनकी बात सही है | राजीव दीक्षित जी जैसे विद्वान् तक को ये गलत साबित कर दिया है | ipc एक्ट जो है आयरिश एक्ट था जिसे केवल आयरिश की जगह इंडियन कर दिया गया | और यह ipc एक्ट है | सत्य को स्वीकार करना इन्हें नहीं आता है | हमें सत्य को स्वीकार करना आता है | आंबेडकर साहब खुद बाद में भारतीय संबिधान को जलाना चाहते थे | इन्हें ना तो इतिहास का ज्ञान है और ना धरम सम्बन्धी ज्ञान ही | जैसे अम्बेडकरवादी करते हैं बिना प्रमाण और तर्क के चर्चा वैसे ही ये उन्ही की तरह चर्चा करते हैं |
सर आप कि सब बातो से मैं सहमत हू केवल राजीव दीक्षित का नाम न ले , वो बिना तथ्थ के जो मर्जी वो बोलते थे ! उनके विडियोज में बहुत सारे झूठ तो एक स्कूल का बच्चा भी पकड़ ले !
सिरी मान ..,
१९३५ का ‘भारत शासन अधिनियम’ जो की आप के नुसार अंग्रेजो ने बनाया है कहते नजर आते है ,क्या आप को यह बात पता है की यह’ भारत शासन अधिनियम ‘ का स्त्रोत क्या था…??
यदि नही , तो पता कर लीजिए !
संविधान कोई ग्रन्थ या स्मृति नही है जिनकी अगल अलग व्याख्या की जा सके .
क्या आप को पता है बाबासाहब अंबेडकर के पश्चात अपने देश में विश्व विख्यात संविधान विशेषज्ञ कौन रहा है ..??
१९५५ में constitutional expert एम्.व्ही. पायली ने डॉ .अंबेडकर को father of Indian constitution कहाँ है.
अंबेडकर साहब को यू ही संविधान के पिता नही कहा है.
संविधान सभा के २३समिति में से २० समिति पर उनकी नियुक्ति की गई थी _जिन समिति में उनका योगदान रहा है वह इस प्रकार है_१ ) ड्राफ्टिंग कमिटी, २) ऍडव्हायजरी कमिटी ३)सब कमिटी ऑन फन्डामेन्टल राइट्स ४)सब कमिटी इन माइनॉरिटी राइट्स ५)यूनियन कांस्टिटूशन कमीटी ६)ऍडव्हॉक कमिटी ऑन सिटीजनसिप ७)एडव्हॉक कमिटी ऑन आर्टिकल १५{३}अंड १६{४} ८ज्वाइन सब कमिटी ऑन जून ३प्लान [Indian independent act] ८) ज्वाइन सब कमिटी ऑन लिंगविस्टिक स्टेट ९) सबइलोकट्रॉल पॉलिसी ऑफ़ प्रिसेडेन्ट ऑफ़ इण्डिया १०) सब कमिटी ऑन अप्पर हॉउस [राज्यसभा]
११) फ्लैग कमिटी १२) चे अर मन ऑफ़ सब कमिटी टू कंसीडर दी अमेण्डमेंड टू दी कांस्टिटूशन १३) एडव्होक कमिटी ऑफ़ दी प्रोवोनशियल कांस्टिटूशन कमिटी १४) कमिटी टू कंसीडर दी रिपोर्ट ऑन दी फंक्शन स् ऑफ़ दी कांस्टिटूशन असेम्बली अंडर इंडियन इंडीपेंडेंट एक्ट१९४७
१५) सब कमीटीऑन दी फॉर्मेशन ऑफ़ सिक्स माइनॉरिटी राइट्स
१६) स्पेशल कमिटी टू कंजमशन दी ड्राफ्ट कॉनस्टिटूशन १७) स्पेशल कमिटी ऑन ऑफिसियल लैग्नवेज् १८)यूनियन पॉवर कमिटी १९) प्रोवेंशियल कांस्टिटूशन कमिटी
आज भी की लोग इस भ्रम में है की गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया एक्ट १९३५ जो है अंग्रेजो की नकल है , पर क्या उन्हें पता है _
१३० से लेकर १९३२ तक जो राउन टेबल कॉन्फरन्स हुई थी उनमे जो अंबेडकर जी ने व्हूज रखे थे वही व्हूज् आगे चलकर 50% से भी ज्यादा veiws १९३५GOI के अक्ट में शामिल किये गए है.
आप के जानकारी लिए बता दू ,हमारे संविधान में ऐसी १० बाते है जो की दुनिया के किसी भी संविधान में नही है… समता,बन्धुता , स्वतंत्रता और न्याय यह ‘चार स्वर्णिम सिद्धांत’ भारतीय संविधान के पहले एकसाथ किसी भी संविधान में नही थे.
🙂
Samata bandhuta ye to manu smriti ke hee siddhant hein bandhuwar
स्व्यस्य च प्रिय आत्मनः ये मनु स्मृति का ही वचन है
Sumangal jee,
Gandhi koi samman-yogya vyakti nahi hai aur na hi rashtra pita hone ke yogya. Uske sandarbh mein isi site par ek post hei. Aap chahe to pustak “Rangeela Gandhi” padh sakte ho. Agar aap gandhi-vadi nahi ho to “Gandhi vadh kyon” padh sakte ho. Gandhi ne hamesh muslimo ko khush rakhe ke liye hindu/sikh logo ko marne diya(Congress bhi vahi kar rahi hai).
Jab Ambedkar sahab dalit ke vishesh adhikar ke liye baat le kar gaye the tab uske virodh mein Gandhi upavas par chale gaye the.
To vo RTI bilkul yogya hai.
Mein Ambedkar ke kaamo/vicharo ki prashansa karta huin. Aur, Gandhi ke badle Ambedkar ko Rashtra pita kaha jay to mujhe adhik prasannata hogi.
– Dhanyawad
bravo ji
sabse pahle yah maalum hona chahiye ki kisi bhi rastra kaa koi pita nahi ho sakta … desh kaa saput hota hai … fir log kyu koi gandhi ko pita bole??? ambedkar ko pita bole… sab yah kyu naa bole ki ham bharat ke santaan hai… bahut dukh hota hai un logi ki soch par jo gaandhi ko pita bolte hain yaa ambedkar ko pita bolte hain … ambedkar gaandhi raam krishn se bhi mahan the kyaa???
डॉ.अंबेडकरजी के देश हित में किये गए योगदान पर हमे गर्व होना लाजमी है क्योंकि देश तभी आगे बढ़ेगा जब तक समाज से दकियानूसी का अंत हो … अन्यथा समाज को गर्त में ढ़केलना निरी मूर्खता है..
केवल आंबेडकर ने ही विकास किया और किसी ने नहीं | यदि आज भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोस इत्यादि ना होते तो आज रोते रहते अब तक | मगर आप जैसे लोगो को समझाना ठीक वैसा ही है जैसे गधे की सर पर सिंह खोजना |यदि आज पटेल ना होते तो आज भारत का कोई अश्तित्व नहीं होता |
अरे भाई ..!
महान देश भक्त भगत सिंह ,चन्द्रशेखर और सुभास चन्द्र बोस इनको यह भली भाति ज्ञात था वह क्या कर रहे है ,और उनको इस कार्य के लिए क्या सजा मिलने वाली है यह भी मालुम था .
इन सबों का कार्य कहि भी सन्देहात्मक नही है. पर क्या इस के चलते अंबेडकरजी के कार्य को संकुचित करना उनके कार्य में त्रुटिया खोजना या कम आंकना कहाँ की बुद्धिमानी है.
डॉ.अंबेडकर जी को छोड़ अन्य किसी भी देशभक्त के ऐसे पांच देशहित में किये गए कार्य को स्पष्ट करने का प्रयास करे .
jo satya hai wah satya hai
Amit jee,
Aap ka kathan satya hai. Rashtra pita jaisa koi padd nahi hota, rashtra-sapoot hona chahiye. Parantu, Rajnaitik dal apne samuhik swarth ke liye Gandhi ko rashtra pita ghoshit kar chuka hai. Aur, iske sath kuch aapatti janak nivedan hota hai to janta virodh mein matdan karte hai. Kyonki Bharat bahut see aasthao mein vibhakta desh hai.
Parantu ab gandhi ke vastavik charitra adhik log avagat ho chuke hai. To vo padd Ambedkar ko diya ja sakta hai. Haan ve, Ram aur Krishna se mahan nahi the.
Yaha par Ram ke liye kuch virodhabhas avashya hoga ki Ram ne shudra Shambuka ko mara tha. Par mera vichar hai ke vo ghatna Uttar Ramayan ki hai, Aur uttar ramayan baad mein aaya hai. Aur, Ramayan ke lekhak(kavi) Rishi Valmiki svayam bhi janma se bhrahmin nahi the. Aur, Aaj bhi valmik caste SC mein listed hai. Aur, dusari baat Ram ne shudra mahila Shabri ke jhuthe bair bhi khaye the. To yaha par mein itna keh sakta huin ke Shambuka vali ghatna satya nahi hai.
– Dhanyawad
kisane gaandhi ko rastrapita ghoshit kar diya hai ji….rti se pucho koi rti nahi batayega ki gandhi rastrapita hai… ambedkar ko kyu bola jaaye kyunki usane nehru kaa chaplusi kiya ….. ambedkar ko kyu kya usane apane jaan di swatantrata samgraam me ??? ved kaa apmaan kiya hindu se baudh ho gaye is kaaran kai hindu baudh ho gaye… aap bhi baudh ho gaye…. yadi aisi baat hai to kyu nahi chandrashekar aajad ko yaa fir shubhas chandra bose , bhagat singh ityaadi jo desh ke liye kaary aur jivan balidaan diye unhe banaya jaaye… waise yah koi pad nahi hai bharat ke samvidhaan me … is kaaran kisi ko bhi rastra pita nahi banana chahiye… nehru ko bhi chacha ki pad lut lena chahiye…..
pahle jaati nahi dekhaa jaata tha yah mahabhart ke baad dekhaa jaane lagaa aur us samay se shuru ho gaya… valmiki prashar ityaadi ko brahman bolaa jaata thaa… dusari baat raam ne koi sambhuk vadh nahi kiya thaa… yah milawat kar di gayi hogi jaise bahuht si baat milawat kar di gayi hai….
Amit jee,
Mein koi buddha nahi huin. Haa par buddha ki bahut saree baton se sahmati rakhta huin.
Ambedkar sahab ko is liye ke kyonki unhone samvidhan ki rachna mein mahatva-purna yogdan diya tha. Aur, desh ki aazadi ke bad desh ko marg pradarshit karne vale ko rashtra pita kaha jana chahiye.
Aur, Ambedkar ka uddeshya tha ki dalito ko mukti mile. Kyonki angrezo se to avashya mukti mil jati parantu jo kuch bhrashta hindu the unse dalito ko mukti nahi milti. Is liye shayad unhone svatantrata sangram me koi bhag nahi liya.
Baki jo naam aapne liye unko mein rashtra-nayak kehta huin. Kyonki unke parayas se hi svatantrata siddh hui hai. Aur, Nehru kisi pad ke layak nahi hai. Nehru ka charitra Gandhi se thoda jyada accha tha, par vo bhi rangeela avashya tha.
Aur haa, Ambedkar ne ved/smriti ka apman kiya hai. Kyonki unka yogya bhashantar nahi hua tha. Ambedkar ne jo bhashantar padha tha uska apman kiya tha. Vedo ke yathochit bhashantaran ka apman nahi kiya. Aur samaj mein kranti lane ke liye ye ninda karna avashyak hai. Jaise Dayanand maharaj ne bhi purano ki ninda kee hai.
Aur Ambedkar ne ye bhi kaha tha ki arya log yaha ke hi hai. Ambedkar ne kuch muslimo ko vapas hindu bhi banaya tha, ye aap hi ka article hai.
Agar Ambedkar buddha ho gaye to isme koi baat nahi hai. Buddha bhi hamare hi log hai. Mein manta hui ki Hindu, Sikh, Jain, Buddha sare hi hindu hi hai. Hindu koi dharam nahi par rashtriyata hai. Hindu ko dharam bana ke dekho to bahot sare dharam hai jaise ki vaishnava, shiv-bhakta, shakya-bhakta, ganpati-bhakta, kartikeya-bhakta aur bahot sare. Jo bhi bharat ki bhumi ka aadar/samman karta hai aur samvidhan ko manta aur jo kehta hai ki mein pehle bhartiya huin vo hindu hi hai, chahe vo islam ko hi kyu naa manta ho.
Aur haa, ye satya hai ki ramayan aur mahabharat mein bhi bahut prakshepan hai jaise ki “Draupadi ke paanch pati” aur bahot sari kahaniya. Ek batata huin jaise kaha hai ki Mahabharat ke yuddh mein 18 akshauhini(25-35 lakh yoddha) sena thi. Baad mein yuddisthira kehte hai ki yuddha mein 1 abajj se adhik yoddha mare gaye hai.
– Dhanyawad
bravo ji
“Ambedkar sahab ko is liye ke kyonki unhone samvidhan ki rachna mein mahatva-purna yogdan diya tha. Aur, desh ki aazadi ke bad desh ko marg pradarshit karne vale ko rashtra pita kaha jana chahiye. “
ambedkar sahab ke saath bahut se aur logo kaa samvidhaan nirmaan me bahut bada yogdaan raha hai… ham is tarah se dekhenge to sardaar balaabah bhai patel ji ko rastrapita ke rup me kyu naa swikaar kare… unhi ke kaaran aaj bharat akhand bharat ban paaya nahi to aaj kai rajya me divide hota aur chhote chhote bhaag me hota.. pura desh ko ek karne me patel saahab kaa mahatvpurn yogdaan raha hai. ho sakta hai samvidhaan nirmaan me bhi unka haath ho is baare me abhi kuch nahi jaankaari de sakta main…nehru ke kaaran hi aaj kashmir den hai … nehru ke kaaran chin se yudh huwa.. sahi nirdeshn nahi karne ke kaaran haar huyi thi…magar yah sab itihaas me mahi batlaya jaayegaa..
dharam sabhi kaa ek hota hai ye mat hota hai jiske baare me aap baat kar rahe ho dhanywaad…
Amit jee,
Sardar patel bhi uchit aur samman-neeya vyakti hai, Vo bhi us pad par uchit hai. Mera virodh Gandhi se hai, kyonki naa hee vo mahatma hai, naa hee rashtrapita ke liye uchit. Gandhi ne Patel ke badle Nehru ko Mantri padd de kar jo bhul kee thi uska parinam abhi bhi ham bhugat rahe hai.
-Dhanyawad
सिरी मानजी,
आप डॉ.अंबेडकरजी का मूल ग्रन्थ पढ़े इससे आपके कई प्रश्न के हल मिल सकते है .., अंबेडकर वादी होने के लिए बौद्ध बनना जरूरी नही है, किसी भी धर्म का व्यक्ति जो मानवता वादी ,समानता वाद है ,संविधान वादी ,विवेकवादी है वह अंबेडकर वादी है .
आप एक बार ‘जयभिम नेटवर्क’नामक साइट्स पर सर्च करे जो हंगेरी देश से अंबेडकर वादी रोमा जिप्सी यन लोगो की संघटन है. अंबेडकरवाद विश्वव्यापी बन गया है हर देश में अंबेडकरजी के समर्थक मिल जाएंगे , सयुक्त राष्ट्र संघठन ने उन्हें ‘symbol of knowledge’
से नवाजा है .
उन्हें समझने के लिए जरूरत है विवेक बुद्धि की , न्याय ,समता के मानसिकता की जो की उनके 22 खण्ड को पढ़कर हम उन्हें अच्छे से समझ सकते है .
देश का हर चौथा नागरिक दलित (sc,st) है इतने बड़े वर्ग को अलग थलग रख कर हम अपने आप को विकसित कैसे कह ला सकते है . आज देश में हर 18 मिनिट में एक दलित का उत्पीड़न होता है , किसी को पीटा जाता है ,किसी को नग्न किया जाता है, तो किसी की जमीन हड़प ली जाती है.
दलित शोषको , अत्याचार करने वालो को कानून का डर नही है .
यदि विवेकवादी ,समतावादी लोग इतने बड़े वर्ग का विकास का विरोध करेंगे तो सामन्ती , मनुग्रस्त , मध्ययुगीन मानसिकता वालो की क्या कमी है.
kaha pita jaata hai ji ab dalit ko… bahut dukh hota hai ji aapki soch par… aur 4 me ek dalit… waah matlab 25% dalit hain.. hame yah batlana dalit kis granth me aaya thaa sabd… are apane soch se thoda upar utho ji…. aur jo is tarah kaa karte hain unhe kya samvidhaan ki taraf se saza nahi milta ??? had ho gayi ji??? aap hi samvidhaan ki taarif karte ho aur samvidhaan ko galt batla rahe ho… jay ho aapki..
Sumangal jee,
Aap dalito ke utpeedan kee bat karte ho. Kya aapko ye pata hai ki SC/ST quota mein 45-50% vale log doctor ban kar aate hai aur baad mein vo aadhe mein padhai chhod dete hai ya fir acche doctor nahi ban pate, aur ye gareeb nahi ameer dalito kee baat hai. Kyonki gareeb koi bhi ho vo abhi medical mein admission bhi nahi le sakta. To kya ye upar ki caste valo ke sath anyay nahi hai. Vo bichare 90% par bhi admission nahi le pate.
Aur dalito par atyachar ki baat hai to Rohith Vemula ke liye kya kahoge. Kya aap bhi Yakub Memon ki fansee ke virodh mein ho? Ab usko bhi dalit ke mudde se jod diya hai.
Are hamare desh ke PM swayam bhi OBC caste se hai. Kya ye ek badi baat nahi ki ab caste system nikal chuka hai?
Aur aap Ambedkar-vad ki baat karte ho. Ambedkar ne bhi Brahmin kanya se vivah kiya tha. Pehle Ambedkar ko ek baar samajh to lo. Ambedkar dalito ka uddhar to chahte hi the, aur desh ka bhi uddhar chahte the. Aap log Ambedkar ke naam pe apni dukan chalane valo ko hava de rahe ho.
Khed ki baat ye hai ki aap aaj bhi caste system me fase ho. Ab Bharat mein class system aa gaya hai. Ab Brahmin ladki bhi dalit ladke se vivah ke liye caste system nahi dekhti. Par uska ghar kaisa hai kitna kamata hai vo dekhti hai.
Website se bahar aa kar aur cheeze bhi dekho, aap ko vastavikta ka anubhav ho jayega.
Aur ant mein aapko “Jay bheem” kehta huin. Kyonki mein bhi Ambedkar ke vicharo ke prashansa karta huin par mein unke naam par dukan chalanevalo ko support nahi karta.
– Dhanyawad
सिरी मानजी..,
आप पहले यह तय कर लिजीए .. आजादी किसे कहते है .क्या राजनैतिक आजादी को आजादी कहेंगे ..??
या सामाजिक आजादी की स्वतन्त्रता को आजादी कहेंगे ..?
आज भी हम अपने आप को कानूनन आजाद समझते है पर क्या हमे सामाजिक आजादी प्राप्त हुई है..?
25% आबादी को नागरिक ही नही समझा जाता है उन्हें कभी धर्मांतर के नाम पर तो ,कभी आरक्षण के नाम पर ताड़ा जाताहै क्या यह सही है..?
आजादी या स्वतन्त्रता की संकल्पना हमेशा से बदलती रही है तिलक द्वारा स्वराज्य को आप समझ ले तो पता चलेगा की मात्र सत्ता में भागीदारी को उन्होने स्वराज्य की व्याख्या की गई है.
ब्रिटिशो का शासन विधि द्वारा प्रदत्त कह लाता है लिहाजा बाबासाहब अंबेडकर ने उन्हें विधि द्वारा ही प्राप्त करना योग्य समझा था इसलिए अंबेडकर साहब प्रसंगावधान ब्रिटिश सरकार को सहयोग करना लाजमी था.
उस वक्त कई डॉ.सर्वपल्ली राधा कृष्णन जैसे बड़े नेता बाद में देश के राष्ट्रपति तक बने ब्रिटिशो की ‘सर’ पदवी से नवाजे गए .
यदि द्वितीय महायुद्ध अंग्रेज हार जाते तो क्या होता .. हिटलर की सत्ता एशिया में फ़ैल जाती .यदि युद्ध के बाद सुभास् चन्द्र बोस पकड़े जाते तो उनके साथ क्या सलूक किया जाता .
सोच कर भी रोंगटे खड़े हो जाते है इसलिए विधि द्वारा प्रदत्त ब्रिटिश राज को गैर- विधि द्वारा समाप्त करना मूर्खता पूर्ण भले ही न हो पर विवेक पूर्ण नही है.
आज मै यह मानता हु की ‘अत्याचारो का पुनर्भुगतान किये बिना अत्याचार समाप्त नही होते है ‘ पर हमारा विवेक हमें इस बात पर अमल करने से कहि न कहि रोकता है.
आज भी सामाजिक आजादी को निम्नतम दर्जा प्राप्त है .
आपका कथन तात्पर्य ‘अन्बेडकर साहब ने हिन्दू धर्म ,ग्रन्थ, स्मृति इत्यादि पर कुअनुवाद के चलते अपमान किया था ..’
नितांत व्यंग पूर्ण है . अंबेडकर साहब जैसे दुनिया सर्वकश ज्ञान के प्रतिक को किसी अनुवाद मात्र के शिकार समझना अपना विवेक बेच खाने के समान ह
है.
दुनिया के सब से ज्यादा ग्रंथो का निजी सन्ग्रह रखने वाले वह दुनिया के एक मात्र इंसान थे उनके ज्ञान सम्पदा के कारण ही ब्रितिश उनकी विदवत्ता का लोहा मानते थे.
देश का समग्रता से सोच रखने वाले उस इंसान को हम मात्र पक्षपात तरीके से तो कभी धर्मांतर की दृष्टि से देखते है .हम यह सोचते हुए भूल जाते है ,की यदि अंबेडकर साहब बौद्ध की जगह अन्य कोई धर्म जैसे इस्लाम या इसाई धर्म अपनाते तो क्या होता ..?
क्या सनातन सोच जिन्दा रह पाती ..?
वक्त आज भी नही बदला है सुअवसर है हमे बदलने का यदि समय रहते हम नही बदले तो बहुत कम समय में देश का चित्र अवश्य बदल सकता है.
सनातन वादी सोच बदलकर
समानता वादी सोच लाना नितांत जरूरी है .
हम किसी भी हालत में पीछे नही जा सकते है हम संविधान नही बदल सकते है .संविधान का सम्मान कर के अपने आप को उपकृत जरूर कर सकते है.
“समानता वादी सोच लाना नितांत जरूरी है .”
samantawadi soch hee manu soch hai
ये देश पंडितो के बाप का नहीं है जो वे कहेगे वैसा ही करेंगे ……ये देश किसी मनुस्मृति से नहीँ बाबा साहब के सविधान से चलता है ……..अगर अब वो कुत्ता मनु होता तो सबसे पहला जुत उसको मै मारता
sunil dutt sahab
sabse pahle aap yah bataoge ki aapke pita kaa kya naam hai unke pita kaa fir unke pita kaa aur unke pita kaa …. is tarah se pichhe jaaoge to purwaz me aapke ek samay manu aa jaayenge… ho sakta hai aap aapane maata pita ko juta se maarte hote hoge tabhi aap apane purwaz ko bhi maar sakte ho tabhi to aisa bola hai aapne janab… pahale apane purwaz ko samman karna sikho… aur aapke baba sahab ne likhaa hai shudra kaun me sabhi kaa purwaz ek the…us hisaab se ambedkar ko aur unke purwaz manu ko bhi gaali de rahe ho.. kis tarah kaa baba bhakat ho…thoda apani akal lagao ji… dusari baat ambedkar sahab me akaele dum par itnaa dimaag naa thaa ki wah samvidhaan ko likh paate samvidhaan ko banane me aur bhi kai logo kaa haath hai jisme rajendra prasad ji kaa bhi bada yogdaan raha hai aur kaa bhi… aur yah samvidhaan jo hai sabhi ne pura vishwa ke samvidhaan se achhi achchi baato ko liya hai bas… aur samvidhaan ban gaya…. ambedkar saahab ne koi apane man se nahi likhaa kai logo kaa bhumika thi …. aur desh kaa samvidhaan ko sab koi maanta hai… ek baar bina milawat waala manusmriti parh lo fir maalum chal jaayega manusmriti jaisa samvidhaan ho jaaye to aaj desh fir se vishguru ho jaayega… magar jo apane purwaz ko juta se maare uske paas itni akal nahi ki yah sab baat samjh paaye…
सिरी मानजी…!
एक अकेला संविधान हजारो मनुओं का पिता है .
संविधान द्वारा बाबासाहबजी ने मनुओं तथा तथाकथित राजाओ की नसबन्दी कर रखी है अब किसी भी स्त्री की कोख से राजा या मनु पैदा नही हो सकता है.
prarup samiti nahi thi kya jaise aapne jaankaari di thi samvidhaan karywaahi nahi thi. bhai sabhi ke yogdaan ko mahatv do kewal ambedkar ko hi kyu dete ho… aur aaj kya hai rahul gandhi? jyotidya raj sindhiya ityaadi jise yuvraaj bola jaata hai… aaj bhi kai jagah raaja maharaja hai.. maine khud dekha hai… aur sabhi raaja maharaza hi bola karte hain… aur suno aap bhi manu ki santaan ho kyunki aapke purwaz manu the…jaise aapko aapke pita ke naam se… aapke pita ko unke pita ke naam se isi taarh pichhe jayenge to aap bhi manu ke santaan ho… bahut dukh hota hai aap apane purwaz ko gaali galauz karte ho…
सिरी मानजी…,
राजा म्हाराजाओ को संविधान का कोई संरक्षण प्राप्त नही है जो परंपरा संविधान पूर्व काल में राजा महाराजा चली आ रही थी वह कहा है …? यह जानकारी आपको भी है पर इस से आप अकारण बचना चाहते है क्योंकि आपके दिल में कहि न कहि अपनी परंपरा, संस्कृति की प्रियता का मोह छूटता ही है , अपने अंदर यह जड़े गहरी पैठ जमी हुए है .
जिस मनु की सन्तान का जिक्र आप कर रहे है वह आपकी मन गढ़न्त मनुग्रस्तता का प्रतीक है जो आपके अंदर है वही बार बार बेवजह बाहर आता है . यह आपकी मनु वैज्ञानिक सोच है या मनु रुग्णता है जो आप संविधान परक सोच से पूरी तरह नाता तोड़ चुके है. मेरी समझ से परे है.
manu rugnata kaise hai ?
varn parivartan vyavastha men aapka vishwas kyon naheen hai
itihas iska udaharan hai
jahan kshmata ke aadhar par varn parivartit huye
भाई .., देश जरूर संविधान के अधीन है परन्तु चलता तो आज भी पंडितो के मर्जी से जरा एक बार केंद्रीय मन्त्रीमण्डल पर नजर फेर लो पता चल जाएगा.
यदि देश और संविधान पर यकीं नहीं तो यहाँ क्यों हो जी दुसरे देश में क्यों नहीं चले जाते हो | मुर्खता की हद हो गयी | अरे जनाब अप जैसे मुर्ख लोगो से चर्चा करना समय बर्बाद करना है | आप केवल सही हो और पूरा देश गलत है | प्रधानमत्री किस जाती के हैं यह बतलाना | हम जात पात को नहीं मानते मगर आपलोग मानते हो इस कारण उनका जात पूछा | अपना सोच को सही करो |
भाई साहब ..,
देश के प्रधाणमंत्री पिछड़े है ऐसा आप मानते है पर एक बार ‘मोदी फेक obc..’ नाम पर सर्च करे पता चल जाएगा ..
हकीकत क्या है .
जबान मोदीजी 2012 के पहले obc नही थे मैं खुद गुजरात में 5 साल रहा हु , मोदीजी मूलतः वैश्य है . मोदीजी कहते है मैं चाय बेचता था..अरे भाई साहब जरा..तर्क विवेक से सोचे ..यदि मोदी चाय बेचते थे तो उनकी हाथ की चाय पिने वाला कोई ग्राहक अभी तक सामने क्यों नही आया है…???
असल में यह ‘चाय ‘ नही जनता की भावनाओ के साथ ‘ चुना’ लगाना कहते है.
जनाब क्या शुद्र चाय नहीं बेच सकता | चलो कोई बात नहीं | मगर आप दलित को अलग मानते हो और यह सोच आपको राजनेताओ ने डाली है | सबसे पहले यह जानकारी दे दू कम से कम अब आप कर्म पर मोदी को वैश्य बोल रहे हो क्यूंकि जो व्यापर करता है उसे वैश्य बोलते हैं | मोदी पहले घूमनेवाले होते थे जिसे आप बंजारा भी एक तरह से बोल सकते हो जो बाद में व्यापर करने लगे | और मोदी सबका साथ सबका विकास चाहते हैं | मगर वामपंथी और अम्बेडकरवादी को यह नजर नहीं आता | वैसे यह जानकारी दे दू मैं किसी पार्टी का समर्थक नहीं हु |
सिरी मानजी…,
आप हम से और हमारी चर्चा से परेशान नजर आ रहे है .. आपकी ब्लॉग पर आने से पहले किसी मित्र ने आपके बारे में –
मुझे जानकारी दी थी, लिहाजा मैं आपके द्वारा लिखित आधे से अधिक लेख पढ़ चुका हूँ .
मैं यह मानता हु की आप हमेशा आपना तर्क न लगाते हुए किसी और के संशोधन, मन्तव्य को अपना मत मान लेते है पर असल में यह आपका भ्रम है किसी के जानकारी का समर्थन कर के आप ज्ञानी जरूर होते पर उक्त ज्ञान उधार का होता है स्वयम् संशोधित कतई कहलाता नही है.
कुशवाहजी,डॉ सुरेद्र कुमार तथा अन्य आर्य समाजिष्ठो का सन्दर्भ दे के आप अपनी भूमिका स्पष्ट करते है परंतु यह तर्क किसी और के होते है स्वत: संशोधित नही .
वेद् ,संस्कॄत,रामायण इत्यादि ग्रन्थ सन्दर्भ की दृष्टी से कालबाह्य हो चुके है मौजूदा युग में मात्र यह अमूर्त स्वरूप से जीवित है इनका कोई भी मूर्त स्वरूप तथा सन्दर्भ उपलब्ध नही है.
सभी मौखिक प्रामाण निर्मित है सद्य युग में सन्दर्भों का प्रमान जरूरी होता है.
आप कई बार डॉ.अंबेडकर साहब जी का ऐकेरी उल्लेख करते नजर आते है किसी विश्व स्तर के व्यक्ति के बारे में इस तरह का संबोधन आपको शोभा नही देता है.
अरे जनाब हम आपकी चर्चा से परेशान नहीं हैं मगर आपके अपने विचार को धोपने की बात से सहमत नहीं है | हम आपके हर सवाल का जवाब देंगे और देते हैं मगर हम आपकी तरह बैठे नहीं होते हैं आपको क्या है जब चाहो 5 १० कमेंट पोस्ट कर दिया वह भी सूना सुनाया हुयी बाते जिसकी ना तो पैर होती हैं और ना हाथ बस जो मन में आया बोल देते हो | आपके बहुत से कमेंट का जवाब नहीं दे पा रहा हु इसका कारण यह है की हमें और का भी कमेंट का जवाब देना होता है और हमारे पास समय समय का आभाव रहता है |
जनाब कोई भी खुद का तर्क से चर्चा नहीं करता वैसे मैं खुद का तर्क से चर्चा करता हु | आप एक बात बताओ मुझे क्या आपने पढ़ना सिखा खुद से या किसी और से ??? 1 २ ३ खुद से सिखा किसी और ने ही सिखाया ना | क्या आप खुद पढ़कर ज्ञानी हुए जनाब | इस बात का जवाब देना | आप उनकी जानकारी लेकर यह भ्रम पाल लेते हो की आप ज्ञानी नहीं हो ??? हद है आपकी मानसिक सोच पर जनाब | बिना हाथ पैर के बेतुके ब्यान देते हो जिसका कोई प्रमाण नहीं होता आपके पास | अरे प्रमाण से चर्चा करो तो चर्चा करने में मजा भी आये और उसका खंडन करने में भी मजा आये | आप प्रमाण से चर्चा करें मगर आपने प्रमाण से चर्चा करने की क्षमता ही नहीं है आपको तो बस इल्जाम लगाना होता है | उस हिसाब से मैं यह बोल देता हु की आपके लिए की मैं आंबेडकर पिछले जनम में था तो क्या आप उसे स्वीकार करोगे ??? बोलोगे प्रमाण दो वही प्रमाण तो हम भी मांग रहे हैं |
दूसरी बात हम किसी की चोरी नहीं करते तर्क को जो जिस तरह के लिखा होता है उसी का नाम से जानकारी दे देते हैं आप भी क्या खुद से बोलते हो यदि बोलते हो तो 1 २ ३ इत्यादि क ख इत्यादि खुद से जान लिए | भाई जो जिसने लिखा उसका नाम दे देते है और यह बतलाना की ये तर्क उनका है यह बतलाता है की हम चोरी नहीं कर रहे हम उनकी ज्ञान को बाँट रहे हैं | आप हमारी बहुत से कमेंट को देखे जनाब जिसमे हमने खुद को अज्ञानी बोला है खुद को ज्ञानी नहीं बोला है |
जनाब हम भी प्रमाण की बात करते हैं | हम कभी पोल खोल नहीं करना चाहते आम्बेडकार जी की मगर आप लोग मजबूर कर देते हो | आप खुद को राजीव दिक्सित जी से महान समझाते हो ज्ञानी समझते हो | उनकी बातो को भी गलत बोलते हो जिसने पूरा प्रमाण और खोज करके बाते पेश की |
चलो आप बाबा के बहुत भक्त हो एक सवाल पूछता ही संभिधान को बनाने के बाद खुद बाबा साहब ने यह क्यों बोला इस संभिधान से भारतीय को कोई फायदा नहीं होगा | इस संभिधान को जला देना चाहिए |
लिंक दे रहा हु : हम जो भी बाते करते हैं प्रमाण से खुद से कोई बात नहीं करते | आये आप प्रमाण से चर्चा करे हमें चर्चा करने में कोई दिक्कत नहीं मगर बिना हाथ पैर के कुछ बोल देना प्रमाण नहीं देना यह सब आपकी बचपना है | अब लिंक दे रहा हु जिससे यह मालुम चलेगा आंबेडकर साहब संविधान बना कर बहुत दुःख थे और संभिधान को जला देना चाहते थे
http://www.dainikbharat.org/2016/12/blog-post_342.html
संविधान के सन्दर्भ में दिक्सित जी दोगली बात करते नजर आते है कभी एक साक्षात्कार की बात करते है ,तो कभी 1953 की राज्यसभा का हवाला देते है .संविधान जला देने की बात का जिक्र बाबासाहब उस वक्त करते है जिस समय sc,st,तथा उनके अधिकारो के विषय में कोंग्रेस
पर्याप्त कदम उठाने में नाकामियाब होती नजर आ ती है.
अक्सर आज भी कई बार न्यूज़ मिडिया न्यूज़ चैनल वाले तोड़ मरोड़ कर बयान पेश करना पेशा बन गया है ,उस समय टाइम्स ऑफ़ इंडिया हमेंशा अंबेडकर जी के ब्यान विकृत कर के पेश किया करता था.
जनाब आप ना तो कोई प्रमाण पेश करते हो और ना कुछ | बस हवा हवाई में बात करते हो | राजीव दिक्सित जी जैसे इंसान आज होना बहुत मुश्किल है जो पूरा जीवन समाज के लिए लगा दिया |अरे इतिहास तो देखो | बिना इतिहास देखे चर्चा करते हो | आप खुद को बहुत ग्यानी समझाते हो | और ऐसा सभी भीम लोग करते हैं | और तर्क और प्रमाण पर चर्चा नहीं करते है ये भीम वाले | हमने कई बार बोला है तर्क और प्रमाण पर चर्चा करना है तो आपका स्वागत है वरना हमारा समय ना बर्बाद करे बेकार की कमेंट करके | साईट पर आये पोस्ट पढ़े और चुप चाप चले जाए | धन्यवाद
भाई साहब…,
आप किस प्रमाण की बात कर रहे है, एक प्रमाण होता तो दिखाते पर यह तो शेकडो भर पड़े है . और आप मौदी भक्ती युग में इस प्रकार सुन्न पड़े है की कोई कितना भी क्यों न प्रयत्न करे , आप अपने बुद्धि विवेक को ताला लगाकर चाबी स्वयम घोषित इतिहास तज्ञ राजीव जी दिक्सित के पास दे रखी है. भला उनसे कौन लढाई में जित सकता है ..?
हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ ‘की ओर से डॉ.अंबेडकर जी १२६ वीं जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई गई , पिछले वर्ष कोलंबिया विश्व विद्द्यापीठ ने अपने ३०० वर्ष की विद्द्यार्थीओ की सूचि में अंबेडकरजी को सर्वश्रेष्ठ माना तथा उन्हें ‘symbol of knowledge’ नवाजा है .क्या आप संयुक्त राष्ट्र संघ’ ,कोलंबिया यूनिवर्सिटी , इण्डिया लाइब्रेरी ,लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स इन सब को अपने पास उन्हे आईना दिखाने की योग्यता रख पाते है …???
दिक्सित जी अपने एक व्याख्यान में अपने पास दुनिया के अलग अलग देशो से संबन्धित बीस हजार दस्तावेज होने का दावा करते है और उन पर अपनी ज्ञान की डीग हांकते है , क्या उन्हें यह बात पता है उनके पचास वर्ष पूर्व बाबासाहब जी के अपने निजी ग्रंथालय में दुनिया के अर्थशास्त्र,राजनीति, मानव शास्त्र,नृविज्ञान, सैन्यशास्त्र, कृषि शास्त्र और न जाने कई विषयो के संबंधित ५० हजार से भी ज्यादा ग्रंथो के सन्ग्रह थे .
आज भी यह नजारा आप को मुंबई के दादर में उनके घर सुरक्षित है.
जिस संविधान की निर्माण पर आप उन्ही (दीक्सित) की पैरोती करते है,…, हम आप को बता दे की उन्हें पता है की १९३५ का इंडिया एक्ट स्त्रोत क्या था . …??
१९३० से ले कर१९३२ तक जो गोलमेज परिषद हुई है उन्ही का परिणाम इंडिया एक्ट बना है.
अरे भाई …. जब जब बाबासाहब जी ने जो बात पहले मान्य की बाद में कॉन्ग्रेस और अन्य देश भक्तो ने भी मान्य की चाहे सायमन कमीशन हो, पाकिस्तान की निर्माण की बात हो,चाहे द्वितीय महायुद्ध हो.., आज मोदीजी भी उन्ही की नदी जोड़ो की बात करते है क्या अपने अंध भक्ति से लिप्त ग्रंथो में उन्हें कोई लेने योग्य बात नही मिलती है….?
अब जब की संविधान बना है तो उसे कोसने की बजाए अपनाना बुद्धिमानि होगी .
मुझे लगता है जिस विषय का ज्ञान हमे नही है
उस पर बात न करे तो बेहतर होता है .
यदि आप वेद्,समृति,संस्क्रीत इत्यादि में पारंगत है तो उनसे संबन्धित वेदों के निर्भ्रांत का सिद्धांत ,कुलक भट का मत जो की वेदों को निरुत्तर करते है ..वेदों के मत जो की वेदों के विरोधी है अपने आप ने एक पहेली है उस का समाधान करे .
“मुझे लगता है जिस विषय का ज्ञान हमे नही है
उस पर बात न करे तो बेहतर होता है .”
jab gyan hee naheen to fir samay kyon barbad kar rahe ho
सबसे पहले तो इस बात पर सभी भारतीय मिलकर विचार किजिये कि हम भारत भूमी को और संपुर्ण पृथ्वी को ही मां कहतें हैं ।
अब जब लगभग सभी देश के लोग अपने देश को Mother/मां ही कहतें हैं तो इस मां का कोई शपुत यानी की कोई उस देश में जन्म लिया हुआ इंसान जो अपने देश को मां का दर्जा देता है उसे मां ही केहता है वो कैसे उस मां का पति हो सकता है ?
क्योंकि उस देश के सर्वोच पद पे बैठे हुए मनुष्य को राष्ट्रिय पति कहतें हैं ।
क्या ये राष्ट्रिय पति शब्द आप सबको अपमान जनक नहीं लगता ?
उसी तरह भारत मां का कोई इंसान बाप/पिता कैसे हो सकता है ?
राष्ट्रिय पिता शब्द आपको अपमान जनक नहीं लगता इस भारत माता के लिए ।
सोचे विचार करें और विरोध करें ।
जिसने भी इन सभी शब्दो को देश मे थोपा होगा वो भारत मां का सपुत नहीं होगा !
क्योंकि अगर वो भारत मां का सपुत होगा ? इस भारत भूमी को मां केहता होगा तो कैसे किसी को इस भारत मां का राष्ट्रिय पति बना दिया उसने राष्ट्रिय पिता बना दिया उसने ?
क्या उसे शब्दो के अर्थ पता नहीं थें ?
एेसी ही कुछ गलतियां हमारे बाबा साहब डॉ० भीम राव अम्बेदकर ने भी कि है जिसके कारण दलित वर्ग बहोत भ्रमित हो गया है ।
मैं ये नहीं केहता की उन्होंने जानबुझकर एेसी गलतियां की हैं । पर डॉ० अम्बेदकर चाहतें तो इससे भी और अच्छा जात – पात की दुरिया मिटाने का कुछ ठोस काम कर सकतें थें ।
जैसे……….
सबसे पहले संस्कृत का अच्छे से वे अध्य्यन करतें और चारो वर्णो की सहीं व्यख्या करके दलितो को और ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य समाजो को बतातें ।
क्योंकि जात – पात तो यहीं से शुरू हुई ।
उस समय तो अंग्रेज थें ही उनके साथ कौन पंडित रोकता दलितो को संस्कृत और वेद पढ़ने से ?
सबके सब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एक जैसे नहीं थें ।
पर सहीं इंसान की खोज डॉ० भीम राव अम्बेदकर ने नहीं कि, सीर्फ अपने ही ज्ञान को सहीं समझा । नहीं तो स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे विचारो वाले शंकराचार्य जैसे विचारो वाले लोग उस समय उन्हें मिल जातें जो उनकी जात – पात की खाई को भरने मे सहायक होतें ।
पर अफसोस एेसा नहीं हुआ जीसके कारण कहीं न कहीं भ्रम उत्पन्न करने वालो की सूची मे डॉ० अम्बेदकर भी सामिल हो गये जन्मना ब्राह्मणो की तरह ही ।
डॉ० अम्बेदकर के साथ बुरा सलुक हुआ पर इसका ये मतलब नहीं कि बुरा सलुक क्यों हुआ उसकी जड़ तक हम ना पहोचकर डॉ० अम्बेदकर के रास्तें मे चलकर ही गैरसमझ पालकर बैठ जायें और ब्राह्मणो, क्षत्रियो, वैश्य वर्णो से जींदगी भर द्वेश पाले रख जायें ।
आज यही हो रहा है, लोगो को डॉ० अम्बेदकर का हवाला देकर दलितो को बहुजन समाजो को भड़काया जा रहा है ।
आप भी पक्के मनुवादी हैं
नमस्ते जी
हम तो सत्यवादी है
अब मनु सत्य है तो उसका अनुशरण करेंगे यदि आंबेडकर सत्य होते तो उनका करते परन्तु व्यक्ति अपनी पहचान अपने कार्यों से करवा ही देता है इससे अधिक आपको समझाने की आवश्यकता नहीं दिखती
धन्यवाद
Agar aap dalit nahi hai,
Toh aapke dalit Ritedaaro ki sankhya hi Ambedker ji ko galat or aapko Sahi bata Sakti hai……..
ye kya logic hai ?
यदि वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी तो गीता में जाति का भी उल्लेख हुआ है और अगर हिंदू ग्रंथों में बदलाव को ब्राह्मण विदेशी हस्तछेप मानता है तो आज अपनी लड़कियों का विवाह नीचे के तीनों वर्णों से क्यों नहीं करता ? आज किसने रोका है? ब्राह्मण जन्म के आधार पर अपने बच्चों का विवाह नीचे के वर्णों से करने से क्यों इनकार करता है तब वर्णसंकर कहां से आ जाता है? ये अपने समाज को ऊपर रखने की ब्राह्मणों की साजिश है ये किसी भी मठ का मठाधीश सुद्र या वैश्य को क्यों नहीं बनाते? चारों मठाधीश अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ क्यों है? वर्णसंकर और पूर्व कर्म आधारित जन्म व जन्म आधारित वर्ण और जाति ही सनातन धर्म का सत्य है, मठाधीश का जवाब है,।
नमस्ते जी
वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित नही कर्म आधारित है, चारों वर्ण वालों की विशेषता क्या होती है उसे पढ़े और समझे
आपका जवाब आपको स्वतः मिल जायेगा
साधारण शब्दों में कहे तो क्या आप अपनी डॉ बेटी का विवाह किसी अनपढ़ से कर देंगे ??
आजकल (वर्ण व्यवस्था आदि को न मानने वाले) लोग अपनी जाति के स्थान पर बच्चों के कार्यक्षेत्र के अनुरुप ही उसका जीवन साथी खोजते है डॉ के लिए चपरासी नही देखते, नौकरी पेशा व्यक्ति व्यवसायी जीवन साथी नही देखते
ठीक वैसा ही है कुछ है वर्ण व्यवस्था
आप इसे पूर्ण रूप से पढ़े आप समझ जायेंगे