डॉ अम्बेडकर की वेदों के प्रति कुछ भ्रान्ति के बारे में हमने पिछली पोस्टो पर लिखा .इस बार अम्बेडकर जी की सांख्य दर्शन पर भ्रान्ति का निराकरण का प्रयास किया है ..
डॉ अम्बेडकर जी अपने बुद्ध और उनका धम्म नामक पुस्तक में लिखते है की सांख्य दर्शन के रचेता कपिल मुनि ईश्वर को नही मानते है ओर अम्बेडकर जी ये भी मानते है कि गौतम बुद्ध इस दर्शन से प्रभावित थे और उन्होंने इस की शिक्षा भी ली ..वैसे बुद्ध साहित्य के अनुसार बुद्ध ने सांख्य की ही नही वेदों की भी शिक्षा ली थी ..बुद्ध ग्रन्थ ललितविस्तर में इसका उलेख है :-
“स ब्रह्मचारी गुरुगेह वासी ,तत्कार्यकारी विहितान्नभोजी।
सांय प्रभात च हुताशसेवी ,वृतेन वेदाश्चं समध्यगीष्ट ।।”
अर्थात सिद्धार्थ गौतम ने ब्रह्मचारी बन,गुरु के कुल में निवास और उन की सेवा करते हुए शास्त्र विहित भोजन,प्रात सांय हवन और व्रतो को धारण करते हुए वेदों का अध्यन्न किया …
अत: यह स्पष्ट है कि बुद्ध ने सनातन ग्रंथो की शिक्षा ली थी ..
अब अम्बेडकर जी की भ्रान्ति देखते है जिसमे उन्होंने माना है की सांख्य कार ईश्वर को नही मानता है ,,
अम्बेडकर की सांख्य दर्शन के प्रति भ्रान्ति
अब हम यहा यही कहेंगे की अम्बेडकर जी ने शायद सांख्य दर्शन नही पढ़े होंगे ..या फिर किसी फिरंगी अनुवादक या किसी वेद विरुधि की पुस्तक पढ़ ये बात लिखी होगी ..
सांख्य से ही प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे है कि सांख्य कार कपिल मुनि जी ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे :
“स हि सर्ववित् सर्वकर्ता (सांख्य ३:५६)” अर्थात ईश्वर सर्वत्र और निमित कारण रूप से जगत का कर्ता है …….
“ईदृशेश्वरसिद्ध: सिद्धा (सांख्य ३:५७ )” ऐसे जगत के निमित कारण रूप सर्वत्र ईश्वर की सिद्धी सिद्ध है …..
इन उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि कपिल मुनि ईश्वर को मानते थे ..अब उनके वेद विषय में देखते है :-
” नात्रिभीपौरुषेयत्वाद्वेदस्यतदर्थस्यातिन्द्रियत्वात् (सांख्य ५:४१)” वेद अपौरुष होने और वेदार्थ के अति इन्द्रिय होने से उक्त तीनो कारणों से नही हो सकता है …
“पौरुषेयत्व तत्कर्त्तः पुरुषस्याऽभावत् (सांख्य ३:५६)” वेदों का कर्ता पुरुष न होने से पौरुषेत्व नही बनता है …
इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट है कि सांख्य कार कपिल ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे ..
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ :-(१) सांख्य दर्शन
(२) वेदों का यथार्थ स्वरूप :-प. धर्मदेव जी
Swami Daya Nand sarswati ne sabhi darshno ko samgrata se parhne ko kaha hai. Alag alag parhne se bhranti paida hoti hai. sabhi rishion ne ek ek vishya ka varnan kiya hai.is liye bhanti me nahi parna chahiye