होता का वरण-रामनाथ विद्यालंकार 

होता का वरण-रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः अत्रिः । देवता गृहपतयः । छन्दः स्वराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।

वयहि त्वा प्रति यज्ञेऽअस्मिन्नग्ने होतारमवृणीमहीह ।ऋर्धगयाऽऋर्धगुतार्शमिष्ठाः प्रजनन्यज्ञमुर्पयाहि विद्वान्त्स्वाहा॥

-यजु० ८। २०

( अग्ने ) हे विद्वन्! (वयं हि ) हम गृहपतियों ने निश्चय पूर्वक ( अस्मिन् प्रयति यज्ञे ) इस प्रारभ्यमाण यज्ञ में त्वा) आपको ( होतारम् ) होता, यज्ञनिष्पादक (अवृणीमहि ) वरण किया है। आप पहले भी ( इह ) यहाँ (ऋधक् ) समृद्धिपूर्वक ( अशमिष्ठाः ) शान्ति या पूर्णाहुति करते रहे हैं। अतः (विद्वान्) विद्वान् आप (प्रजानन्) यज्ञ के विधि-विधान को जानते हुए ( यज्ञम् उपयाहि ) यज्ञ में आइये, और (स्वाहा ) आहुति दिलवाइये ।।

बड़े यज्ञों में चार ऋत्विज् होते हैं—होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्मा । होता मन्त्रपाठ, उद्गाता सामगान, अध्वर्यु यज्ञ का विधि-विधान और ब्रह्मा अध्यक्षता तथा सञ्चालन करता है। एक, दो, तीन ऋत्विजों से भी कार्यनिर्वाह हो सकता है। अच्छे विद्वान्, धार्मिक, जितेन्द्रिय, कर्म करने में कुशल, निर्लोभ, परोपकारी, दुर्व्यसनों से रहित, कुलीन, सुशील, वैदिक मतवाले, वेदवित् एक, दो, तीन अथवा चार (ऋत्विजों) का वरण करे। जो एक हो तो उसका पुरोहित, जो दो हों तो ऋत्विक्, पुरोहित और तीन हों तो ऋत्विक्, पुरोहित और अध्यक्ष और जो चार हों तो होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा ।” एक पुरोहित रखने पर उसे ऋत्विक्, पुरोहित या होता भी कह देते हैं। वहाँ होता’ का अर्थ यज्ञनिष्पादक  होता है। प्रस्तुत मन्त्र में यज्ञनिष्पादक पुरोहित अर्थ में ही ‘होता’ शब्द है।

हे विद्वन् ! आप यज्ञ कराने में कुशल हैं। यज्ञनिष्पादन में प्रमुख बातें होती हैं वेद तथा कर्मकाण्ड का पाण्डित्य, शुद्ध तथा स्पष्ट मन्त्रोच्चारण, भाषणकला तथा अनुभव। आप एक अनुभवी पुरोहित हैं और यज्ञ के विधि-विधान प्रभावपूर्ण शैली से कराने में निष्णात हैं और अच्छे उपदेशक तथा मार्गदर्शक हैं। अतः आपसे निवेदन है कि आप हमारे पवित्र यज्ञ के होता बनने की हमारी अभ्यर्थना स्वीकार करने की कृपा करें। आपने अब तक सब यजमानों का यज्ञ समृद्धिपूर्वक निष्पन्न किया है और समृद्धिपूर्वक ही उसकी पूर्णाहुति की है। आप यज्ञविधियों की जो प्रभावोत्पादक व्याख्या करते हैं, उससे यज्ञ को चार चाँद लग जाते हैं। आप आइये और हम यजमानों से स्वाहापूर्वक आहुति डलवाने की कृपा कीजिए। हम गृहपति जन आपका स्वागत करते हैं, आपको वरण करते

पादटिप्पणियाँ

१. प्र-इण् गतौ, शतृ, सप्तमी विभक्ति। प्रयति प्रगच्छति प्रवर्तमाने ।

२. ऋधगिति पृथग्भावस्य प्रवचनं भवति, अथापि ऋध्नोत्यर्थे दृश्यते ।’ऋधगया ऋधगुताशमिष्ठाः’ य० ८.२०, ऋध्नुवन् अयाक्षी: ऋध्नुवन् | अशमिष्ठाः इति च। -निरु० ४.६०

३. संस्कारविधि, स्वामी दयानन्द सरस्वती, सामान्य प्रकरण।

४. (होतारम्) यज्ञनिष्पादकम्-द० ।

होता का वरण-रामनाथ विद्यालंकार 

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