हे नारी! लोक सुधार, छिद्र भर -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः परमेष्ठी। देवता इन्द्राग्नी बृहस्पतिश्च । छन्दः विराड् आर्षी अनुष्टुप् ।
लोकं पृण छिद्रं पृणाथों सीद धुवा त्वम्।। इन्द्राग्नी त्व बृहस्पतिरस्मिन् योनावसीषदन्॥
-यजु० १५ । ५९
हे नारी ! ( लोकं पृण) इहलोक और परलोक को सुधार, ( छिद्रं पृण ) छिद्रों एवं न्यूनताओं को भर ( अथो ) और ( त्वम् ) तू ( धुवा सीद) स्थिरमति होकर रह। (त्वा) तुझे ( इन्द्राग्नी ) इन्द्र और अग्नि ने ( बृहस्पतिः ) और बृहस्पति ने (अस्मिन्योनौ) इस घर में, इस पद पर ( असीषद) स्थित किया है।
हे वैदिक नारी! तेरे ऊपर अपना, अपने घर का और नारी समाज का गुरुतर भार निहित है। तुझे अपने, अपने घर के और नारी-समाज के इहलोक और परलोक का सुधार करना है। प्रथम तो तू आत्मनिरीक्षण कर। अपने में, अपने घर में और नारी-समाज में यदि कोई त्रुटियाँ दिखायी देती हैं, छिद्र प्रतीत होते है, तो तू उन त्रुटियों को दूर कर, छिद्रों को भर। यदि तुझमें ज्ञान की कमी है या विपरीत ज्ञान है, तो ज्ञानपूर्ति और ज्ञानसंशोधन में लग जा। ज्ञान की कमी और विपरीत ज्ञान के कारण उचित कर्म भी नहीं हो पाते । अतः जब तू ज्ञानपूर्ति और ज्ञानसंशोधन कर लेगी, तब तेरे कर्मों की पूर्ति और कर्मों का संशोधन स्वयमेव होने लगेगा। तेरा जीवन आदर्श होना चाहिए, तेरे घर का वातावरण आदर्श होना चाहिए और तू जिस नारी-समाज से संबद्ध है, उस नारी समाज का चरित्र आदर्श होना चाहिए।
तेरा यह भी कर्तव्य है कि तू ‘ध्रुवा’ अर्थात् स्थिरमति और स्थिर कर्मोंवाली बने। प्रथम तो तेरे मन में अपने कर्तव्यपालन के प्रति स्थिरता और दृढ़ता होनी चाहिए। जब तू निर्धारित कर्मों, आयोजनाओं, समितियों, सुधारों के प्रति पर्वत-जैसी ‘ध्रुव’ और अविचल हो जाएगी, तब कोई तुझे कर्तव्यच्युत नहीं कर सकेगा। तब तेरी निर्धारित योजनाएँ सफल होंगी। तब तू स्वयं, तेरा घर और तेरा नारी समाज निश्चय ही समुन्नत होंगे।
तुझे स्मरण रखना चाहिए कि तेरे इस घर में तुझे किसने बैठाया है, तुझे इन्द्र, अग्नि और बृहस्पति ने इस घर में या इस प्रतिष्ठित पद पर अभिषिक्त किया है। इन्द्र क्षत्रियों का प्रतिनिधि है, अग्नि वैश्यों का प्रतिनिधि है, बृहस्पति ब्राह्मणों का प्रतिनिधि है। तीनों ने मिलकर तुझे ध्रुवा बनाकर लोकपूर्ति, और छिद्रपूर्ति का कार्य सौंपा है। उसे तू दृढ़ता के साथ पूर्ण कर। तेरे लिए यह वेद का सन्देश है।
पाद-टिप्पणियाँ
१. कर्मकाण्ड में इस कण्डिका का विनियोग गार्हपत्य अग्नि का वेदि | में इष्टकाओं के उपधान के लिए किया गया है। तदनुकूल ही उवटएवं महीधर का भाष्य है। दयानन्दभाष्य में व्याख्या नारीपरक है।
२. पृ पालनपूरणयो, क्रयादिः, लोट् ।
३. योनि=घर, नि० ३.४
४. षद्लू, णिच्, लुङ्, चङ्।
हे नारी! लोक सुधार, छिद्र भर -रामनाथ विद्यालंकार