हम नायकों को पुकारते हैं -रामनाथ विद्यालंकार

हम नायकों को पुकारते हैं -रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः तापसः । देवताः मन्त्रोक्ताः सोमः, अग्निः, आदित्याः, विष्णुः,सूर्यः, ब्रह्म, बृहस्पति: । छन्दः आर्षी अनुष्टुप् ।

सोमेश्राजानमवसेऽग्निमन्वारभामहेआदित्यान्विष्णुसूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिस्वाहा ।।।

 -यजु० ९ । २६

हम ( अवसे ) रक्षा के लिए ( सोमं राजानम् ) सौम्य तथा ज्योति से राजमाने परब्रह्म को, ( अग्निम्) अग्रनेता तेजस्वी जननायक को, ( आदित्यान्) सूर्यसदृश तेजस्वी वीर सैनिकों को, (विष्णुम्) अपने प्रभाव से सकल राष्ट्र में व्यापक राजा को, ( सूर्यम् ) विद्या और सदाचार के सूर्य उपदेशक को, ( ब्रह्माणम्) यज्ञ के नेता ब्रह्मा को, (बृहस्पतिं च) और वाक्पति आचार्य को (अन्वारभामहे ) स्वीकार करते हैं, ( स्वाहा) इनके प्रति हमारा समर्पण फलदायक हो ।

हम आत्मरक्षा और आत्मोन्नति के लिए केवल स्वयं पर ही नहीं, किन्तु अन्यों पर भी निर्भर रहते हैं। उनमें से सर्वप्रथम हम अपने ‘सोम राजा’ को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हैं। ‘सोम राजा’ हमारा परम प्रभु है, जो अन्तरिक्षस्थ चन्द्रमा के समान सौम्य, रसमय, मधुर और मधुस्रावी है तथा सुखद ज्योति से राजमान है। वह निरन्तर हमें अपनी छत्रछाया में लेकर हमारी रक्षा कर रहा है, हमें आगे बढ़ना सिखा कर हमारी उन्नति कर रहा है। फिर हम ‘अग्नि’ अर्थात् अग्रनेता, तेजस्वी जननायक को पुकारते हैं। वह हमारे अन्दर मानवता, सहृदयता एवं प्रेम की ज्योति प्रज्वलित कर हमारी रक्षा करता है तथा पारस्परिक अभ्युत्थान के लिए हमें प्रेरित करता है। तदनन्तर हम आदित्यों अर्थात् वीर क्षत्रियों को पुकारते हैं, जोआदित्य की किरणों के समान तेजस्वी होते हुए हमारे राष्ट्र की रक्षा करते हैं तथा उच्च राष्ट्रों की श्रेणी में हमारे राष्ट्र को ले जाते हैं। तत्पश्चात् हम राष्ट्रोन्नायक विष्णु को अर्थात् राष्ट्र के राजा को पुकारते हैं, जो अपने प्रभाव से समग्र राष्ट्र में व्याप्त होता हुआ, समस्त प्रजा का रक्षक होता हआ राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर पहुँचाता है। फिर हम सूर्य के समान तेजस्वी उपदेशक को पुकारते हैं, जिसकी वाणी में ओज है तथा जो अपनी प्रभावोत्पादक वाणी से राष्ट्रजनों को उद्बोधन देता है, उनके प्रसुप्त हृदयों को जगाता है एवं उन्हें कर्तव्योन्मुख करता है। साथ ही हम ब्रह्मा का भी आह्वान करते हैं, जो राष्ट्र में यज्ञों का सञ्चालन करे, वायु-जल आदि को तथा जनमानस को शुद्ध कर राष्ट्रवासियों के हृदयों को यज्ञसूत्रता में बाँध कर हमारा महान् उपकार करता है। अन्त में हम बृहस्पति अर्थात् वाचस्पति आचार्य को पुकारते हैं, जो गुरुकुल में प्रविष्ट बालकों को ब्रह्मचारी बनाकर ज्ञान तथा सदाचार की उच्च शिक्षा देकर सुयोग्य नागरिक बनाता है।

हम उक्त सब महान् नेताओं के प्रति स्वयं को समर्पित करते हैं-‘स्वाहा’। ये हमें महान् लक्ष्य के प्रति प्रबुद्ध एवं जागरूक करके हमारा अभ्युत्थान करें।

पाद-टिप्पणियाँ

१. अवसे–अव रक्षणादिषु, असुन्, चतुर्थी विभक्ति।

२. अनु-आ-रभ राभस्ये, भ्वादिः ।

हम नायकों को पुकारते हैं -रामनाथ विद्यालंकार 

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