स्वर्ग जहाँ मधु और घृत की धारा बहती हैं-रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः विश्वकर्मा। देवता यज्ञः । छन्दः विराड् आर्षी अनुष्टुप् ।
यत्र धाराऽअनपेता मधोघृतस्य च याः। तदग्निर्वैश्वकर्मणः स्वर्देवेषु नो दधत् ॥
-यजु० १८ । ६५
( यत्र) जहाँ ( मधोः ) मधु की (घृतस्य च ) और घृत की (धाराः) धाराएँ ( अनपेताः ) उपस्थित रहती हैं ( तत् स्वः ) वह स्वर्ग अर्थात् सुखी जीवन ( वैश्वकर्मणः१ अग्निः ) विश्वकर्मा परमेश्वर द्वारा रचित यज्ञाग्नि ( देवेषु ) विद्वानों केमध्य में (नः दधत् ) हमें प्राप्त कराये।
क्या तुम पूछते हो कि यज्ञाग्नि प्रज्वलित करके उसमें घृत, हवन-सामग्री, पक्वान्न, मेवा आदि की आहुति डालने से क्या फल सिद्ध होता है ? श्रुति कहती है कि इस अग्निहोत्र से स्वर्ग प्राप्त होता है। वह स्वर्ग कहीं आकाश में नहीं है, यहाँ पृथिवी पर ही है। हम यज्ञकुण्ड में मन्त्रोच्चारणपूर्वक अग्न्याधान और अग्निप्रदीपन करते हैं, समिदाधान, पञ्च घृताहुतियाँ, जलसेचन, आघार आज्याहुतियाँ, आज्याभागाहुतियाँ, प्रधान होम की आहुतियाँ देकर पूर्णाहुति करते हैं। यह तो दैनिक अग्निहोत्र का विधि-विधान है। अन्य कोई यज्ञ करते हैं, तो उसके लिए निर्धारित विधियाँ करनी होती हैं। सभी यज्ञों में यज्ञ-समिधा पलाश, शमी, पीपल, बड़, गूलर, आम, विल्व आदि की ही प्रयोग में लाते हैं। घृत के अतिरिक्त हवन-सामग्री में चार प्रकार के होम-द्रव्यों का मिश्रण होता है-”प्रथम सुगन्धृित कस्तूरी, केशर, अगर, तगर, श्वेत चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री आदि। द्वितीय पुष्टिकारक घृत, दूध, फल, कन्द, अन्न, चावल, गेहूँ, उड़द आदि। तीसरे मिष्ट शक्कर, सहत, छुवारे, दाख आदि। चौथे रोगनाशक सोमलता अर्थात् गिलोय आदि ओषधियाँ।”
इन यज्ञों से पर्यावरण शुद्ध होता है, वायु जल आदि सुगन्धित होते हैं, रोग नष्ट होते हैं, शुद्ध जल की वृष्टि होती है। ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना होती है। सबके मिलकर बैठने से सङ्गठन सुदृढ़ होता है। दान की भावना जागृत होती है। प्रस्तुत मन्त्र में कहा गया है कि विश्वकर्मा परमेश्वर द्वारा रचित यज्ञाग्नि में होम करने से हमें वह स्वर्ग प्राप्त होता है, जिसमें मधु और घृत की धाराएँ बहती हैं। सुखी जीवन ही स्वर्ग है। यज्ञ करने से इस जन्म में भी ‘स्वर्ग’ अर्थात् सुखी जीवन प्राप्त होता है और इहलोकप्रयाण के बाद भी मनुष्य जन्म मिलता है और उसमें मधु, घृत आदि की सम्पदा से युक्त सुखी जीवन होता है।
आओ, हम भी यज्ञ करके मधु और घृत की धाराओंवाला स्वर्ग प्राप्त करें।
पाद-टिप्पणियाँ
१. विश्वकर्मणः परमेश्वराज्जातः वैश्वकर्मणः ।
२. डुधाञ् धारणपोषणयोः, लेट् लकार ।
स्वर्ग जहाँ मधु और घृत की धारा बहती हैं-रामनाथ विद्यालंकार