स्वर्ग की साधना -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः प्रजापतिः। देवता यज्ञः । छन्दः भुरिग् आर्षी उष्णिक्।
एकस्मै स्वाहा द्वाभ्यश्चस्वाहा शताय स्वाहैकशताय स्वाहा व्युयै स्वाहा स्वर्गाय स्वाहा।।
-यजु० २२.३४
( एकस्मै ) एक परमेश्वर की प्राप्ति के लिए ( स्वाहा ) स्तुति, प्रार्थना, उपासना और पुरुषार्थ करो। ( द्वाभ्यां ) मन और जीवात्मा दोनों की शुद्धि के लिए ( स्वाहा ) स्तुति, प्रार्थना, उपासना और पुरुषार्थ करो। ( शताय ) शतवर्ष की आयु प्राप्त करने के लिए (स्वाहा ) पुरुषार्थ करो। ( एकशताय) एक सौ एक प्रणवजप और गायत्रीजप के लिए ( स्वाहा ) तत्पर हो। ( व्युष्ट्यै ) अन्धकार दूर करके प्रकाश की प्राप्ति के लिए (स्वाहा ) प्रयास करो। ( स्वर्गाय ) स्वर्गप्राप्ति के लिए ( स्वाहा ) प्रयास करो।
बच्चा रोये जा रहा था, किसी तरह शान्त नहीं हो रहा था। उसके आगे फूल, फल, मिष्टान्न, खिलौने आदि अनेक लभावने पदार्थ रखे गये, किन्त उसने उन्हें फेंक दिया। तीन दिन से उसकी माता उसे छोड़कर बाहर गयी हुई थी। माता आयी, तो वह उससे चिपट गया। माता उसे कोई वस्तु देने के लिए अपने से अलग करना चाहती थी, तो वह और भी अधिक चिपट जाता था, यह सोचकर कि कहीं माता फिर न चली जाए। शौनक ने अङ्गिरस् ऋषि से पूछा कि वह वस्तु कौन-सी है, जिसके विदित होने पर सब कुछ विदित हो जाता है। ऋषि ने जो व्याख्यान दिया, उसका सार यह है कि परमात्मा ही वह वस्तु है, उसका ‘ओ३म्’ नाम से ध्यान करो । अतः आओ, हम बच्चों के लिए जो माँ के समान है। और जिस एक के जान लेने से सब कुछ जाना जाता है, उस एक परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए ‘स्वाहा’ करें, स्तुति प्रार्थना-उपासना और पुरुषार्थ करें।
किन्तु परमेश्वर की प्राप्ति शुद्ध मन और शुद्ध आत्मा से ही हो सकती है। अतः आओ, पहले मन और आत्मा इन दो को शुद्ध कर लें। वैदिक भावना है कि हमारा मन शिव सङ्कल्पोंवाला हो। आत्मा चित्तवृत्तियों का निरोध करने से ही स्वच्छ, शुद्ध और योगयुक्त हो सकता है। अतः मन और आत्मा दोनों को शुद्ध करने के लिए हम ‘स्वाहा’ करें, ईशस्तुति, ईशप्रार्थना, ईश्वरोपासना और योगाभ्यास करें। मन आत्मा की शुद्धि तथा ईश्वरप्राप्ति एक क्षण में नहीं हो सकती, इसके लिए लम्बी अवधि चाहिए। अत: आओ, हम शत वर्ष की आयु प्राप्त करने का प्रयास करें। यह सब साधना प्रणव जप और गायत्री-जप से सफल होती है। अतः, आओ, प्रतिदिन हम एक-सौ-एक प्रणव-जप और गायत्री-जप किया करें। हमें अपने मानस के अन्धकार और आत्मा की तामस वृत्ति दूर करने के लिए भी प्रयत्न करना होगा। अध्यात्मप्रकाश की उषा उदित करने पर ही यह तमस् दूर हो सकेगा। इन सब साधनों को करने के पश्चात् हमें ‘स्वर्ग’ की प्राप्ति हो सकेगी। स्वर्ग उस अवस्था का नाम है, जिसमें ‘स्वः’ अर्थात् ईश्वरीय प्रकाश साक्षात् अनुभव होता है।
अतः आओ, मन्त्रोक्त सफलताओं को पाने के लिए सर्वात्मना प्रयासरत हो जाओ, अपने अन्नमय, प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय कोषों को इस साधना में लीन कर दो।
पाद-टिप्पणियाँ
१. ओमित्येवं ध्यायथ आत्मानम् । मु० उप० २.२.६
२. तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु । य० ३४.१-६
स्वर्ग की साधना -रामनाथ विद्यालंकार