सम्राट कैसा और किस लिए नियुक्त -रामनाथ विद्यालंकार

सम्राट कैसा और किस लिए नियुक्त -रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः आभूतिः । देवता सोमः । छन्दः निवृद् आर्षी पङ्गिः।

उपयामगृहीतोऽस्याश्विनं तेजः सारस्वतं वीर्यमैन्द्रं बलम्।। एष ते योनिर्मोदय त्वानन्दाय त्वा महसे त्वा ॥

 -यजु० १९५८

हे सम्राट् ! तू ( उपयामगृहीतः असि) यम-नियमों से गृहीत है, जकड़ा हुआ है। तेरे अन्दर ( आश्विनं तेजः ) प्राण अपान एवं सूर्य-चन्द्र का तेज है, ( सारस्वतं वीर्यम् ) सारस्वत वीर्य है, (ऐन्द्रं बलम् ) विद्युत् का बल है। (एष ते योनिः ) यह राष्ट्र तेरा घर है, आश्रम है, कार्य-स्थल है। ( मोदाय त्वा) मैं तुझे प्रजा के मोद के लिए नियुक्त करता हूँ, (आनन्दाय त्वा ) आनन्द के लिए नियुक्त करता हूँ, (महसे त्वा ) महत्त्व के लिए तुझे नियुक्त करता हूँ।

हे सम्राट् ! क्या आपको मालूम है कि हमने आपके अन्दर किन गुणों को देखा है और किसलिए आपको इस पद पर प्रतिष्ठित किया है? आप उपयामों’ से बंधे-जकड़े हुए हैं। अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह ये पाँच यम और शौच-सन्तोष-तप-स्वाध्याय-ईश्वरप्रणिधान ये पाँच नियम आपको ऊँचा उठाये हुए हैं। इनके पालन करने के कारण सब प्रजाजन प्रसन्नता और विश्वास के साथ आपको अपना नेता स्वीकार करने में गौरव अनुभव करते हैं। आपके अन्दर ‘अश्वियुगल’ का तेज विद्यमान है। ‘अश्विनौ’ के अनेक अर्थों में निरुक्तकार ने सूर्य-चन्द्रमा अर्थ भी बताये हैं। आपके अन्दर सूर्य और चन्द्र दोनों का तेज विद्यमान है। जीवन में  दोनों तेजों की आवश्यकता है। सब प्राणी और वनस्पति सूर्य और चन्द्रमा दोनों के तेजों से प्राण ग्रहण करते हैं। सूर्य का तेज उष्ण प्राण और चन्द्रमा का तेज सौम्य प्राण प्रदान करता है। यदि केवल उष्ण प्राण ही प्राप्त हो, तो यह जड़-चेतन जगत् भस्म हो जाए। इसी प्रकार यदि केवल सौम्य प्राण ही प्राप्त हो, तो यह जड़-जङ्गम जगत् सर्दी से ठिठुर कर गल जाए। दोनों तेजों से सप्राण मनुष्य सच्चे अर्थों में तेज से जगमगाता है और अपने सम्पर्क में आनेवालों को तेज से सप्राण करता है। आश्विन तेज’ से भासमान होने के कारण। ही आप सबका नेतृत्व करने में समर्थ हैं। आपके अन्दर ‘सारस्वत वीर्य’ भी है। सरस्वती का वरदान आपको प्राप्त है, वेदवाणी की शिक्षाएँ आपके आत्मा में ओतप्रोत हैं, विद्या का भण्डार आपके पास विद्यमान है, ज्ञान-विज्ञान की बहुमुखी धाराओं में आप निष्णात हैं। इस कारण भी हम आपको अपना नेता बनाना चाहते हैं। फिर आपके अन्दर ‘इन्द्र का बल’ भी है, विद्युत्-जैसी चामत्कारिक शक्ति हैं, जो असंख्यों को अपने पीछे चला सकती है। इस कारण भी हम नेतृत्व का वागडोर आपके हाथों में सौंपने के लिए उत्सुक हो रहे हैं। |

राष्ट्र का यह राजमहल आपके लिए है। आवश्यकता पड़ने पर राजमहल छोड़कर आपको सड़कों पर भी आना पड़ सकता है। आपको हम राजमुकुट पहना रहे हैं। किस लिए? प्रजा को मोद प्रदान करने के लिए, कष्टों से उबार कर उन्नति के शिखर पर चढ़ा कर प्रफुल्ल करने के लिए, प्रजा को पूजास्पद बनाने के लिए, महिमान्वित करने के लिए, तेजस्विता प्रदान करने के लिए। आप आइये और अपना पदभार ग्रहण कीजिए।

सम्राट कैसा और किस लिए नियुक्त -रामनाथ विद्यालंकार 

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