श्री लक्ष्मण जी ‘जिज्ञासु’ आदि कुछ भावनाशील युवकों ने परोपकारिणी सभा को वेद और आर्य हिन्दू जाति के विरुद्ध विधर्मियों की एक घातक पुस्तिका की सूचना दी। सभा ने एक सप्ताह के भीतर ज्ञान-समुद्र पं. शान्तिप्रकाश जी का एक ठोस खोजपूर्ण लेख परोपकारी में देने की व्यवस्था कर दी। आवश्यकता अनुभव की गई तो पुस्तक का उत्तर पुस्तक लिखकर भी दिया जायेगा। मिशन की आग जिन में हो वही ऐसे कार्य कर सकते हैं। विदेशों में भ्रमण करने वाले कथावाचक तो कई हो गये। मेहता जैमिनी, डॉ. बालकृष्ण, पं. अयोध्याप्रसाद, स्वामी विज्ञानानन्द, स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी की परम्परा से एक डॉ. हरिश्चन्द्र ही निकले। जिन में पीड़ होगी वही विरोधियों के उत्तर देंगे। दर्शनी हुण्डियाँ काम नहीं आयेंगी। इन महाप्रभुओं ने कभी श्याम भाई, पं. नरेन्द्र, देहलवी जी, कुँवर सुखलाल, पं. लेखराम, आर्यमुनि जी पर एक पृष्ठ नहीं लिखा। इनसे क्या आशा करनी?