श्री कृष्ण पर घृणित प्रहार की यह परम्परा:- जयपुर राज्य से एक भक्त ने महर्षि दयानन्द को एक पत्र लिखकर यह सूचना दी कि यहाँ जयपुर (हिन्दू राजा के राज्य में) के गली-बाजारों में ईसाई पादरी अपने मत का प्रचार करते हुये श्री राम तथा श्री कृष्ण महाराज की बहुत निन्दा करते हैं। उस भक्त की भावना तो स्पष्ट ही थी। वह ईसाई पादरियों के दुष्प्रचार को रोकने के लिये ऋषि जी को जयपुर आने के लिये गुहार लगा रहा था। उस सज्जन के पत्र में यह समाचार पाकर प्यारे ऋषि का मन बहुत आहत हुआ। ऋषि जी ने ऐसे ही किसी प्रसंग में एक बार यहाँ तक कहा था कि सब कुछ सहा जा सकता है, परन्तु श्री राम-कृष्ण आदि महापुरुषों का अपमान नहीं सहा जा सकता।
अभी भारत के एक जाने-माने वकील श्री प्रशान्त भूषण महोदय ने श्री कृष्ण महाराज पर लड़कियों की छेड़छाड़ का दोष लगा दिया। सत्य इतिहास क्या है यह वकील जी भी भली प्रकार से जानते हैं, परन्तु कुछ लोगों को दूसरों का मन दुखाने में ही आनन्द आता है।
श्री लाला लाजपतराय जी ने महर्षि दयानन्द के एक वाक्य से प्रेरणा पाकर इस देश में श्री कृष्ण के निष्कलङ्क जीवन पर सबसे पहले एक पठनीय पुस्तक में यह लिखा था कि संसार के अन्य महापुरुषों का अपमान तो उनके विरोधियों ने किया, परन्तु श्री कृष्ण का अपमान तो उनके भक्तों ने किया। महर्षि दयानन्द ने लिखा है कि महाभारत में तो श्री कृष्ण जी के जीवन पर आक्षेप करने वाली कोई अभद्र घटना या पाप-कर्म का उल्लेख नहीं, परन्तु पुराणों में वर्णित रासलीला व गोपियों से छेड़छाड़ की मिथ्या कहानियों का भक्तों ने ही अधिक प्रचार किया। इसका लाभ विरोधियों व विधर्मियों ने जी भरकर उठाया।
ऋषि दयानन्द ने तो यहाँ तक लिखा है कि श्री कृष्ण ने जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त कोई पाप नहीं किया। महाभारत में वर्णित घटनाओं से भी यही प्रमाणित होता है। पुराणों में वर्णित कहानियाँ अस्वाभाविक, मनगढ़न्त, एक-दूसरे से भिन्न और परस्पर विरोधी भी हंै। लंदन से प्रकाशित तथा कलकत्ता से प्रचारित ईसाइयों की एक बहुत पुरानी पुस्तक हमारे पास है जो इस समय मिल नहीं रही। उसमें श्री कृष्ण के चरित्र पर भी कई गम्भीर दोष लगाये गये हैं। उस पुस्तक में वर्णित बातें उद्धृत करने से भी हमारा मन दुखता है।
वही लेखक आगे चलकर सत्यार्थप्रकाश तथा महर्षि दयानन्द जी की चर्चा न करते हुये ऋषि के वाक्य दोहराता है कि महाभारत के श्री कृष्ण नीतिमान्, विद्वान्, दार्शनिक तथा गुणी महापुरुष हैं। उस लेखक के उसी ग्रन्थ की अन्त:साक्षी से सिद्ध है कि उसने ऋषि का अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश पढ़ रखा है।
यह हो नहीं सकता कि रासलीला रचाने वाले पौराणिकों ने तथा श्री प्रशान्त भूषण सरीखे उलटी-पुलटी बातें करके विवाद खड़ा करने वालों ने यह न पढ़ा हो कि गीता में कहा गया है कि जिसने इन्द्रियों का वशीकरण किया हो उसी की संज्ञा प्रतिष्ठित है अर्थात् वही……..(बड़ा व्यक्ति है)। दुर्भाग्य की बात है कि किसी भी हिन्दू लीडर ने गीता के इस प्रमाण से श्रीमान् प्रशान्त भूषण के आपत्तिजनक कथन का विरोध नहीं किया।
कभी संघ में एक गीत बड़े जोश से गाया जाता था:-
निज गौरव को निज वैभव को
क्यों हिन्दू बहादुर भूल गये?
इसी सुन्दर गीत में यह मार्मिक पंक्तियाँ गाई जाती थीं-
क्यों रास रचाना याद रहा?
क्यों चक्र चलाना भूल गये?
दु:ख का विषय है कि ऐसे ओजस्वी गीत यह देश भूल गया। किसी भी हिन्दू विद्वान् ने प्रशान्त भूषण जी को झकझोरा नहीं। पहले जेठमलानी जी के श्री राम पर प्रहार का मान्य धर्मवीर जी ने सप्रमाण प्रतिवाद किया, अब हम प्रशान्त भूषण जी के घातक कथन का प्रतिवाद करते हैं। यह स्मरण रखिये कि जब तक रासलीलायें हैं तब तक श्रीकृष्ण की निन्दा करने का दु:साहस कोई न कोई करेगा। आर्यसमाज ऋषि दयानन्द, लाला लाजपतराय, पं. चमूपति आदि अपने पूर्वजों का अनुकरण करता है, अनर्थ अनाचार से टक्कर लेने से पीछे नहीं हटेगा।
Shri Krishan par aakshep bahut khoob hai.
Rahhinder jigyasu g dhanyawad ke patta hain RF