वेदाध्ययन का अधिकार सबको -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः लौगाक्षिः । देवता ईश्वरः । छन्दः स्वराड् अत्यष्टिः ।
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः । ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चाय च स्वाय चारणाय च। प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृध्यतामुप मादो नमतु॥
-यजु० २६.२
वेदों का वक्ता ईश्वर कहता है—( यथा) क्योंकि ( इमां कल्याणीं वाचं ) इस कल्याणकारिणी वेदवाणी को (जनेभ्यः ) सभी जनों के लिए ( आवदानि ) मैं उपदेश कर रहा हूँ, ( ब्रह्मराजन्याभ्यां ) ब्राह्मण और क्षत्रिय के लिए भी (शूद्राय च) जन्म से शूद्र के लिए भी ( अर्याय च ) और वैश्य के लिए भी, (स्वाय च) अपनों के लिए भी (अरणाय च ) और परायों के लिए भी, अतः मैं (इह) इस संसार में ( देवानां ) विद्वानों का और ( दक्षिणायै दातुः ) वेदों का दान अन्यों को देनेवाले का ( प्रियः भूयासम्) प्यारा होऊँ। अब विद्यार्थी कहता है कि-(अयं में कामः ) यह मेरी इच्छा (समृद्ध्यतां) पूर्ण हो कि ( अदः ) यह वेदज्ञान ( मा उप नमतु ) मुझे समीपता से प्राप्त रहे।
वेद परमेश्वर का दिया हुआ ज्ञान है। परमेश्वर कहता है। कि यह कल्याणी वेदवाणी मैंने सभी जनों के लिए बोली है, ब्राह्मण के लिए भी, क्षत्रिय के लिए भी, वैश्य के लिए भी और शूद्र के लिए भी। सभी के कर्तव्य कर्मों का इसमें वर्णन है, सभी के लिए उपयुक्त ज्ञान इसमें भरा है। ब्राह्मण के लिए विहित अध्ययन-अध्यापन, शिक्षारीति, यज्ञ-याग, दान देना लेना भी इसमें वर्णित है, क्षत्रियोचित राजनीति, युद्धनीति आदि भी है, वैश्य के कर्म कृषि, व्यापार, पशुपालन भी हैं और शूद्रोचित सेवा भी है। इसके अतिरिक्त वे सन्देश भी इसमें प्रतिपादित हैं जो निरपवाद सबके लिए समान हैं, सार्वभौम धर्म हैं। कोई मेरा भक्त हो या मेरी सत्ता को न माननेवाला नास्तिक हो, उसके लिए भी यह वेदविद्या मैंने दी है, क्योंकि इसे पढ़कर भक्त को यह शिक्षा मिलेगी कि केवल भक्ति ही नहीं, कर्म भी करना है और नास्तिक को भी मुझमें श्रद्धा होने लगेगी। इस वेदवाणी का श्रवण करके जो विद्वान् बनेंगे और विद्वान् बनकर वे भी मेरी तरह इसका दान या अध्यापन औरों को करेंगे, उन सबका मैं प्रिय हो जाऊँगा। वे वेदों पर रीझ रीझ कर कहेंगे कि कैसा विद्या का भण्डार परमेश्वर ने हमारे कल्याण के लिए दिया है और वे मुझसे प्रेम करने लगेंगे। अन्तिम वाक्य विद्यार्थी की ओर से कहा गया है। वह कहता है कि मेरी यह कामना पूर्ण हो मैं कि वेद पढ़े और मेरे मानस में वेदविद्याएँ छायी रहें।
मन्त्र इस ओर भी घटता है कि वेदाध्यापक आचार्य कह रहा है कि मेरी वेद की कक्षा में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, आस्तिक, नास्तिक सभी बैठकर पढ़ सकते हैं, कोई ऐसा नहीं है, जो वेद पढ़ने के अधिकार से वञ्चित हो। महिलाएँ भी अपनी अध्यापिका से वेद पढ़ सकती हैं। इस योजना में भी अन्तिम वाक्य विद्यार्थी की ओर से ही है कि मेरी इच्छा हैं। कि वेद का ज्ञान मेरे मन और आत्मा में छा जाए।
दयानन्दभाष्य में इस मन्त्र का भावार्थ यह लिखा है ‘‘परमात्मा सब मनुष्यों के प्रति उपदेश दे रहा है कि वह चारों वेदों की वाणी सब मनुष्यों के हित के लिए मैंने उपदिष्ठ की है, इसमें किसी का अनधिकार नहीं है। जैसे मैं पक्षपात छोड़कर सब मनुष्यों में वर्तमान होता हुआ सबका प्यारा हूँ, वैसे ही आप लोग भी हों। ऐसा करने पर तुम्हारी सब कामनाएँ सिद्ध होंगी।”
वेदाध्ययन का अधिकार सबको -रामनाथ विद्यालंकार