विष्णु के कर्म देखो
ऋषिः-मेधातिथिः । देवता-विष्णुः । छन्दः-निवृद् आर्षी गायत्री ।
विष्णोः कर्मणि पश्यतु यतों व्रतानि पस्पशे। इन्द्रस्य युज्यः सखा ।।
-यजु० ६।४
हे मनुष्यो ! (विष्णो:१) चराचर जगत् में व्यापक परमेश्वर के ( कर्माणि ) कर्मों को (पश्यत ) देखो, ( यतः ) क्योंकि उसने ( व्रतानि ) व्रतों को, नियमों को ( पस्पशे ) ग्रहण किया हुआ है। वह ( इन्द्रस्य ) जीवात्मा का ( यज्यः )सहयोगी ( सखा) सखा है।
क्या तुम जानते हो कि विष्णु’ कौन है, और उसके कर्म क्या है ? विष्णु’ शब्द व्याप्ति अर्थ वाली ‘विष्ल’ धातु से बनता है। अतः जो चराचर जगत् में व्यापक जगदीश्वर हैं, उसका नाम विष्णु हैं । वेद में विष्णु का एक प्रधान कार्य यह बतलाया गया है कि वह तीन स्थानों में अपने पग रखता है। इसका आशय यह है कि विष्णु परमेश्वर पृथिवी, अन्तरिक्ष और द्यौ की त्रिलोकी में सर्वत्र व्याप्त है। यह भी कहा गया है कि उसके तीन पगों में समस्त भुवन आ जाते हैं। इससे उसके पगों की महिमा और भी अधिक बढ़ जाती है, केवल पथिवी, अन्तरिक्ष और द्यौ तक ही सीमित नहीं रहती। उसक यह कार्य भी वर्णित किया गया है कि उसने पार्थिव लोक की रचना की है और वह उत्तर सधस्थ अन्तरिक्ष और द्यौ को भी थामे हुए है। उसने तीन स्तरोंवाली पृथिवी और तीन स्तरोंवाले द्यलोक को धारण किया हआ है। पौराणिक परम्परा में ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन त्रिदेवों में भी विष्णु का कार्य ब्रह्माण्ड को धारण करना ही है, जबकि ब्रह्मा और महेश क्रमशः जगत् का उत्पादन और संहार करते हैं। जो भी ब्रह्माण्ड के सञ्चालन का कार्य है वह सब विष्णु का है। ग्रहों द्वारा सूर्य की परिक्रमा किया जाना, ऋतुचक्र और संवत्सरचक्र का चलना, बादल बनना, वर्षा होना, नदियाँ प्रवाहित होना, वनस्पतियों का उगना और बढ़ना, पतझड़ आना, पुन: वृक्षों को नये पत्र-परिधान से सज्जित, पुष्पित और फलित होना, पर्वतों पर बर्फ जमना, क्रम से दिन-रात्रियों का आना-जाना, नक्षत्र-लोकों का सञ्चालित होता, प्राणिजगत् का जनन वर्धन-मरण होना आदि विष्णु के कर्मों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं, तब आश्चर्यचकित होकर उसके प्रति नतमस्तक हो जाते हैं। इसलिए वेद कह रहा है कि हे मनुष्यो! विष्णु के कर्मो को देखो, सराहो और उसके प्रति सिर झुकाओ । विष्णु के कर्मों पर दृष्टिपात करने से यह बात भी हमारे सम्मुख आ जाती है कि वह सब कार्य व्रतों और नियमों के अनुसार ही कर रहा है। उसी के नियमबद्ध कर्मों को देख कर वैज्ञानिक लोग आकर्षणशक्ति आदि नियमों का आविष्कार करते हैं।
विष्णु जीवात्मा का सहयोगी सखा भी है। विष्णु है। सर्वशक्तिमान् और जीवात्मा है अल्पशक्तिमान् । जीवात्मा शक्तिस्रोत विष्णु से सख्य स्थापित करके शक्तिमान् होता और प्रत्येक क्षेत्र में बड़े-बड़े ऐसे कार्य करने में समर्थ हो जाता है, जिन्हें देख कर उसे छोटा परमात्मा मानने की इच्छा होती हैं|
हे मनुष्यो ! विष्णु से सायुज्य स्थापित करो, उससे मैत्री करो, उससे शक्ति की धारा ग्रहण करो और सशक्त होकर तुम भी एक छोटा संसार बना दो और उसका सञ्चालन करो।
पाद-टिप्पणियाँ
१. विष्लू व्याप्तौ । वेवेष्टि व्याप्नोति चराचरं जगत् स विष्णुः-स०प्र०, समु० १ ।
२. स्पश बाधनस्पर्शनयो:, भ्वादिः । पस्पशे स्पृशति गृह्णाति ।
३. इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । –ऋ० १.२२.१७ ४. यस्योरुषु त्रिषु विक्रमणेष्वधि क्षियन्ति भुवनानि विश्वा।
-ऋ० १.१५४.२
५. य उ त्रिधातु पृथिवीभुत द्यामेको दाधार भुवनानि विश्वा ।
–ऋ० १.१५४.४
विष्णु के कर्म देखो