(विशेष टिप्पणी:- ७२ वर्ष पूर्व पं. त्रिलोकचन्द जी शास्त्री रचित यह सुन्दर गीत आर्य मुसाफिर के विशेषाङ्क में छपा था। पूज्य पण्डित जी सात भाषाओं के विद्वान्, तीन भाषाओं के सिद्धहस्त लेखक तथा कवि थे। सर्वाधिक पत्रों के सम्पादक रहे। तीन आर्यपत्रकारों १. स्वामी दर्शनानन्द जी, २. पं. त्रिलोकचन्द्र जी, एवं ३. पं. भारतेन्द्रनाथ पर आर्यसमाज को बहुत अभिमान है। आपने उर्दू-हिन्दी में कविता लिखनी क्यों छोड़ दी? यह कभी बताया नहीं। जीवन के अन्तिम वर्षों में केवल संस्कृत में ही काव्य रचना करते थे। पं. लेखराम जी पर उनकी यह ऐतिहासिक रचना, यह अमर गीत पाठकों को सादर भेंट है-‘जिज्ञासु’)
रौदाय तालीम पं. लेखराम।
लायके ताज़ीम पं. लेखराम।।
अज़मते लासानी ज़ाहिर दर जहाँ।
दौर अज़ त$फसीर पण्डित लेखराम।।
उल$फते तसदीके वेद पाक थी।
मखज़ने त$फसीर पण्डित लेखराम।।
दूर की सारी बतालत कु$फ्र की।
असद-तक$फीर पण्डित लेखराम।।
अय मुबल्लि$ग मु$फस्सिर वेद के।
माहिरे तहरीर पण्डित लेखराम।।
ज़ुल्मे ज़ालिम झेलकर भी उ$फ न की।
वाह! प्यारे वीर पं. लेखराम।।
र$फ्ता र$फ्ता वेद के कायल हुए।
सुन तेरी तकरीर पण्डित लेखराम।।
अबद तक कायम रहेगा नामे तू।
तू ‘अमर’ अय वीर पण्डित लेखराम।।
– पं. त्रिलोकचन्द्र जी ‘अमर’ शास्त्री
लेखराम नगर (कादियाँ), पंजाब।