मालवीय जी ने पं. दीनदयाल से कहा, ‘‘मुझसे विधवाओं का दु:ख देखा नहीं जाता।’’ इस पर उन्होंने कहा- ‘‘परन्तु सनातनधर्मी हिन्दू तो विधवा-विवाह नहीं मानेंगे। क्या किया जाये?’’ इस पर मालवीय जी बोले, ‘‘व्याख्यान देकर एक बार रुला तो मैं दूँगा, सम्भाल आप लें।’’
इन दोनों का वार्तालाप सुनकर स्वामी श्रद्धानन्द जी को बड़ा दु:ख हुआ। आपने कहा, ‘‘ये लोग जनता में अपना मत कहने का साहस नहीं करते। व्याख्यानों में विधवा-विवाह का विरोध करते हैं।’’
मालवीय जी शुद्धि के समर्थक थे परन्तु कभी किसी को शुद्ध करके नहीं दिखाया।
हटावट मिलावट दोनों ही पाप कर्म- धर्मग्रन्थों में मिलावट भी पाप है। हटावट भी निकृष्ट कर्म है। परोपकारिणी सभा के इतिहास लेखक ने ऋषि-जीवन में, ऋषि के सामने जोधपुर में आर्यसमाज स्थापना की मनगढ़न्त कहानी जोड़ दी, दयानन्द आश्रम के लिये उस युग में प्राप्त २४०००/- रुपये की आश्चर्यजनक राशि की घटना की हटावट एक दु:खदायक पाप कर्म है। ऐसे ही सभा द्वारा मौलाना अब्दुल अज़ीज की शुद्धि व स्वामी नित्यानन्द विश्वेश्वरानन्द जी को आर्यसमाज में सभा ने खींचा। इस हटावट का कारण समझ में नहीं आया। यह भी पाप है।
कहीं से जानकारी मिले तो पता दीजिये:- कर्नल प्रतापसिंह ने अपनी आत्मकथा में ऋषि के जोधपुर आगमन व विषपान पर एक अध्याय तो क्या एक पृष्ठ भी नहीं लिखा। इसी प्रकार उसके जीवन काल में जहाँ-जहाँ से उसका जीवन परिचय (उसी से प्राप्त सामग्री के आधार पर) छपा किसी ने भी ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज का कतई उल्लेख नहीं किया। ‘भारत के सपूत’ नाम की पुस्तक इसका प्रमाण है। यदि किसी देशी-विदेशी लेखक की पुस्तक में कर्नल प्रतापसिंह की ऋषि-भक्ति व समाज-प्रेम की कोई घटना दी गई हो तो कृपया उसकी जानकारी दी जाये।
श्री दुर्गासहाय ‘सरूर’:- देश के मूर्धन्य कवि, आर्यसमाज के रत्न श्री दुर्गासहाय सरूर की रचनाओं का संग्रह ‘हृदय की तड़पन’ प्रकाशन आधीन है। वह आर्यसमाजी कैसे बने? यह प्रामाणिक जानकारी और पं. लेखराम पर उनकी मुसद्दस चाहिये। क्या कोई सभा संस्था सहयोग करेगी। उत्तराखण्ड सरकार को भी पत्र तो लिखा है। वह पीलीभीत जि़ला अन्तर्गत जहानाबाद निवासी थे। समाज के मन्त्री रहे। उनके मेरठ निवासकाल व समाज-सेवा की कोई प्रामाणिक घटना भी चाहिये।