राष्ट्राध्यक्षों के प्रति आदर -रामनाथ विद्यालंकार

राष्ट्राध्यक्षों के प्रति आदर -रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः कुत्सः । देवता रुद्र: । छन्दः निवृद् अतिधृतिः ।

नमो हिरण्यवाहवे सेनान्ये दिशां च पतये नमो नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः पशूनां पतये नमो नमः शष्पिञ्जराय त्विषीमते पथीनां पतये नमो नमो हरिकेशायोपवीतिने पुष्टानां पतये नमः ।।

-यजु० १६ । १७

( नमः ) नमस्कार हो ( हिरण्यबाहवे सेनान्ये ) हिरण्यबाहु सेनापति को। (दिशांचपतये नमः ) और दिक्पाल को भी नमस्कार हो। (नमःहरिकेशेभ्यःवृक्षेभ्यः) नमस्कार हो हरे पत्ते रूपी केशोंवाले वृक्षों अर्थात् वृक्षाधिपतियों को । ( पशूनां पतये नमः ) पशुओं के रक्षक को नमस्कार हो। (नमःत्विषीमते शष्पिजराय’ ) नमस्कार हो पशुप्रदर्शनी में नियुक्त, पशुओं के पिंजरे खोलनेवाले दीप्तिमान अध्यक्ष को । ( पथीनां पतये नमः ) मागों के रक्षक को नमस्कार हो। ( नमः ) नमस्कार हो ( हरिकेशाय उपवीतिने ) यज्ञोपवीत की तरह हरे पट्टे को धारण करनेवाले ( पुष्टानां पतये ) पहलवानों के अध्यक्ष को।

किसी भी राष्ट्र के सफल सञ्चालन के लिए मुख्य अधिकारियों के अतिरिक्त प्रत्येक विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किये जाते हैं। प्रजाजनों को इन विभागाध्यक्षों के प्रति उचित आदरभाव प्रकट करना चाहिए। उन विभागाध्यक्षों का उनके कर्तव्यपालन के लिए कृतज्ञ भी होना चाहिए। प्रस्तुत मन्त्र में राष्ट्र के कतिपय विभागाध्यक्षों के प्रति ‘नम:’ कहा गया है। ‘नमः’ में नमन, कृतज्ञता, आदरभाव, साधुवाद, धन्यवाद, आशीर्वाद आदि सब आ जाता है। नमो हिरण्यबाहवे  सेनान्ये’—जिसने अपने बाहु पर सुनहरा पट्टा धारण किया हुआ है, उस सेनापति को हमारा नमस्कार है। वह सेनापति ही अपने सैनिकों की सहायता द्वारा शत्रुओं से हमारी रक्षा करता है, हमें अभयदान देता है, क्षत-विक्षत और असहाय होने की हमारी चिन्ताओं से हमें मुक्त करता है। दिशां च पतये नमः’–प्रत्येक दिशा में दिक्पाल के रूप में नियुक्त अध्यक्ष को हमारा नमस्कार है। शत्रु गुप्त रूप से किसी भी दिशा से हम पर आक्रमण कर सकता है। उस दिशा का दिक्पाल यदि सतर्क है, तो तुरन्त वह उसकी सूचना सेनाध्यक्ष को देता है, जिससे वह दल-बल के साथ आकर शत्रु से लोहा लेता है और उसे पराजित कर राष्ट्र की रक्षा करता है। दिक्पाल के साथ कुछ सैनिक भी रहते हैं, वे भी शत्रु का मुकाबला करते हैं। ‘नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः’ हरित पत्र रूप जिनके केश हैं, ऐसे वृक्षों को नमस्कार । यहाँ वृक्षों से लक्षणा द्वारा वृक्षरक्षक अध्यक्ष गृहीत होते हैं। ‘पशूनां पतये नम:’-पशुरक्षक अध्यक्ष को हमारा नमस्कार । जङ्गल के पशु हाथी, शेर, चीता, मृग आदियों का शिकार करना अपराध माना जाता है। उनकी रक्षा के लिए अध्यक्ष नियुक्त होते हैं। सचेत रहने के लिए हम उन्हें धन्यवाद और आदर देते हैं। ‘नमः शष्पिञ्जराय त्विषीमते’ पशुप्रदर्शनी में रखे गये सिंह, व्याघ्र आदि विविध पशुओं के पिंजरे खुलवानेवाले दीप्तिमान् अध्यक्ष को नमस्कार । चिड़ियाघर में विविध पशु-पक्षी प्रदर्शनार्थ रखे जाते हैं। उनमें हिंसक जन्तु पिंजरे में बन्द रहते हैं। जब कभी उन्हें पिंजरे से बाहर निकालना होता है, तब एक अधिकारी की निगरानी में कोई नियुक्त पुरुष पिंजरे को खोलता है। यह कार्य जिसकी अध्यक्षता से होता है, वह बहुत दीप्तिमान् ( त्विषीमान् ) पुरुष होता है। कभी हिंसक पशु बिगड़कर पिंजरा खोलने-खुलवाने वाले की जान भी ले सकते हैं। ऐसे साहसी अध्यक्ष को भी हमारा नमस्कार। ‘पथीनां पतये नम:’ मार्गरक्षक को हमारा नमस्कार। मार्गों में दुर्घटना यजुर्वेद ज्योति आदि रोकने के लिए मार्गरक्षक नियुक्त किये जाते हैं, उनके अध्यक्ष के प्रति भी हम आदर प्रदर्शित करते हैं। ‘पुष्टानां पतये नमः’–फिर हम पुष्टों अर्थात् पहलवानों के अधिपति को भी नमस्कार करते हैं। पहलवान लोग जिसके संयोजकत्व में अखाड़ा खोद कर पहलवानी, व्यायाम, मलखम्भ आदि करते हैं, उसके प्रति भी हम आदर दर्शाते हैं। वह संयोजक ‘हरिकेश उपवीती’ होता है, अर्थात् उसने हरित वर्ण का पट्टा यज्ञोपवीत की तरह धारण किया होता है।

मन्त्रोक्त सब अधिपतियों का तथा इनसे भिन्न अन्य अधिपतियों का भी सम्मान करना उचित है, क्योंकि ये अपने अपने विभागों का पालन करते हैं।

पाद टिप्पणी

१. शष्पिञ्जराय शङ् उत्प्लुतं पिञ्जरं बन्धनं येन तस्मै–द० | शशप्लुतगतौ, भ्वादिः ।

राष्ट्राध्यक्षों के प्रति आदर -रामनाथ विद्यालंकार 

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