राज्याधिकारियों से निवेदन -रामनाथ विद्यालंकार

राज्याधिकारियों से निवेदन -रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः तापसः । देवता मन्त्रोक्ता: । छन्दः भुरिग् आर्षी गायत्री ।

प्रनों यच्छत्वर्यमा प्रपूषा प्र बृहस्पतिः। प्र वाग्देवी ददातु नः स्वाहा।।

-यजु० ९ । २९ |

( अर्थ्यमा ) न्यायाधीश ( नः ) हमें (प्रयच्छतु ) अपनी देन दे। ( प्र पूषा) पुष्टि, पशुपालन और यातायात का मन्त्री अपनी देन दे। ( प्र बृहस्पति:३) शिक्षामन्त्री भी अपनी देन दे। ( वाग् देवी ) दिव्य वेदवाणी भी (नः प्र ददातु ) हमें अपनी देन दे।

हम चाहते हैं कि राष्ट्र के सब अधिकारी हमें अपने-अपने अधिकार और सेवा से लाभ पहुँचाएँ।’ अर्यमा’ अपनी देन दे। जो ‘अर्यो’ अर्थात् श्रेष्ठों का मान करता है और अश्रेष्ठों को दण्डित करता है वह न्यायाधीश अर्यमा कहलाता है। उसका कर्तव्य है कि वह प्रत्येक अभियोग के दोनों पक्षों को ध्यान से सुनकर अपना निर्णय दे कि दोषी कौन है और उसे क्या दण्ड दिया जाए। अपराध का दण्ड मिलने पर अपराधी को यह शिक्षा मिलती है कि भविष्य में वह अपराध न करे और अन्य लोग भी सजग हो जाते हैं। इस प्रकार न्यायाधीश की समाज को यह देन है कि वह राष्ट्र में निरपराधता का वातावरण तैयार करता है। पूषा’ वेद में पुष्टि, पशुपालन और मार्गों का नियन्त्रण करता है, अत: वह इस विभाग का मन्त्री है। खेती और बागवानी की सब समस्याओं को वह देखेगी। वेद में ब्रीहि, यव, माष, तिल, मूंग, चने, किनकी चावल (अणु), साँवक चावल (श्यामाक), तृणधान्य (नीवार), गेहूँ, मसूर आदि अन्नों के नाम आते हैं। दूध, घी, रस, मधु का भी वर्णन आता है। पुष्ट और पुष्टि की प्रचुरता होने का भी उल्लेख है। पशुपालन के सूक्त भी हैं। इन सब विषयों की समस्याओं का समाधान करना और अपनी ओर से इन सबकी उन्नति करना पूषा मन्त्री की देन है। वह हमें प्रचुरता से प्राप्त होती रहे। ‘बृहस्पति’ शिक्षामन्त्री है। विश्वविद्यालयों की उन्नति, शिक्षा के विषयों की वृद्धि, उच्च शिक्षा का प्रबन्ध, वैज्ञानिक विषय कृषि, शिल्प आदि तथा अन्य विभिन्न विषयों की शिक्षा को सञ्चालित तथा उन्नत करना शिक्षा मन्त्री का कार्य है। वह इस कार्य को भलीभाँति करके अपनी देन देता रहे। |

‘वाग् देवी’ दिव्य वेदवाणी है, सरस्वती भी उसी का नाम है। वेदवाणी विभिन्न विद्याओं का सरस प्रवाह हमें देकर हमारा उपकार करती है। साथ ही उद्बोधन, आशावाद की उमङ्ग, शिवसङ्कल्प, आत्मा की अमरता, आत्मा की अद्भुत क्षमता, सन्मार्ग में प्रवृत्ति, बाधाओं और विघ्नों का क्षय एवं ऊध्र्वारोहण करा कर हमें समुन्नत करती है।

उक्त सब मन्त्रोक्त विभिन्न विभागों के राज्याधिकारी एवं वेदविद्या हम सबको अपनी बहुमूल्य देन देकर उपकृत करते रहें, यही हमारी कामना है।

पादटिप्पणियाँ

१. (अर्यमा) न्यायाधीश:-२० ।

२. पुष्टं च मे पुष्टिश्च मे । य० १८.१०, पूषा गा अन्वेतु नः पूषा रक्षत्वर्वतः ।।पूषा वाजं सनोतु नः । ऋ० ६.५४.५, पथस्पते ऋ० ६.५३.१

३. बृहत्याः वेदवाच:, बृहतो ज्ञानस्य शिक्षाशास्त्रस्य वा पतिः बृहस्पतिःशिक्षामन्त्री।

४.य० १८.१२ ५.

५.य० १८.९

६.अ० २.३४, ३.९८, ६.३१, ७.१०४ आदि ।

राज्याधिकारियों से निवेदन -रामनाथ विद्यालंकार 

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