युवा इन्द्र जिनका सखा बनता है-रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः त्रिशोकः । देवता इन्द्रः । छन्दः निवृद् आर्षी गायत्री।
बृहन्निदिध्मएषां भूरिशस्तं पृथुः स्वरुः । येषामिन्द्रो युवा सखा ।
–यजु० ३३.२४ |
(एषां ) इनका ( बृहन् इत् ) विशाल ही ( इध्मः ) ईंधन होता है, ( भूरि ) बहुत ( शस्तं ) यश होता है, और ( पृथुः ) विस्तीर्ण ( स्वरुः ) खड्ग होता है, ( येषां ) जिनका (युवाइन्द्रः ) युवा इन्द्र (सखा ) सखा बन जाता है।
कोई मनुष्य कैसा है इसकी पहचान इससे होती है कि उसके मित्र कैसे हैं, उसका मेल-मिलाप कैसे लोगों के साथ है। एक बार कोई व्यक्ति हत्या के सन्देह में पकड़ा गया। वह प्रतिदिन एक साधु के यहाँ सत्सङ्ग में जाता था। साधु के साथ इसकी मैत्री है, यह हत्यारा नहीं हो सकता, यही सोचकर उसे छोड़ दिया गया। किसी की राजमन्त्री के साथ मैत्री होती है, किसी की समाधि लगानेवाले महात्मा के साथ मैत्री होती है, किसी की चोर-डाकुओं और अतिङ्कवादियों के साथ मैत्री और सहानुभूति होती है। उन्हीं से उसका चरित्र परखा जाता है। |
आओ, हम युवा इन्द्र के साथ मैत्री करें। उससे मैत्री करके हम उसी के सदृश बन जायेंगे। इन्द्र की एक विशेषता यह है कि वह अन्धकार और अत्याचार के प्रेमी वृत्र’ का संहार करता है। यदि हम इन्द्र से मैत्री स्थापित करेंगे तो हमें भी वृत्रे-जैसे आततायी लोगों का संहार करने का उत्साह और बल प्राप्त होगा। इन्द्र की दूसरी विशेषता यह है कि वह ग्रीष्म के ताप से तपती प्यासी भूमि पर शुद्ध मेघ-जल की वर्षा करती है। इन्द्र के मित्र बनकर हम भी प्यासों को पानी पिलायेंगे, सहायता की बाट जोहते लोगों की सहायता में तत्पर होंगे, दु:खियों के दु:ख मिटा कर उन पर सुख की वर्षा करेंगे। वेदों में जो भी बल के कर्म हैं, उन्हें इन्द्र करता है। इन्द्र के मित्र होकर हम भी बल के कर्म करेंगे। इन्द्र ने सूर्य विद्युत् और अग्नि को ज्योति दी है। हम भी अन्धकार में ज्योति उत्पन्न करेंगे। इन्द्र सृष्टि की उत्पत्ति करता है और सृष्टि को धारण करता है। हम भी बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनायेंगे, उन्हें क्रियान्वित करेंगे और उन्हें चिरस्थायी बनाये रखने के लिए उनका धारण भी करेंगे।
मन्त्र में युवा इन्द्र जिसका सखा हो जाता है, उसके लिए तीन बातें कही गयी हैं। प्रथम यह कि उसका ईंधने विशाल होता है। युवा इन्द्र सर्वस्वत्यागी है, उसने अपने लिए कुछ न रख कर ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा दूसरों के लिए स्वाहा की हुई है। इन्द्र का सखा बनकर मनुष्य भी न केवल अपनी सम्पत्ति गरीबों के लिए स्वाहा करने को उद्यत हो जाता है, अपितु स्वयं को भी अपने राष्ट्र के लिए स्वाहा कर देता है। इन्द्र के सखाओं के लिए दूसरी बात यह कही गयी है कि उनका भूरि-भूरि यश होता है, क्योंकि वे इन्द्र के सदृश स्तुत्य कर्म करते हैं। इन्द्र के सखा मनुष्यों को तीसरी उपलब्धि यह होती है कि उनका खड्ग बहुत विशाल होता है। छोटी-छोटी तलवारें छोटे-छोटे अस्त्र-शस्त्र तो बहुतों के पास होते हैं, परन्तु इन्द्र के वज्र-जैसा वज्र उन्हीं के पास होता है, जो इन्द्र के प्रेमी हैं। इन्द्र का मित्र भी ‘इन्द्र’ बनकर आततायी शत्रुओं पर खड्ग-प्रहार करता है, तोप के गोले बरसाता है, आग्नेयास्त्र से उन्हें भून डालता है। यह विध्वंसलीला वह उनकी करता है, जो शान्ति में बाधक होते हैं, जो अशान्ति और उपद्रव को अपना ध्येय मानते हैं। | आओ, हम भी इन्द्र के सखा बनकर उक्त सब उपलब्धियों को पाने का सौभाग्य प्राप्त करें।
पाद-टिप्पणी
१. शस्तं यशः, शसि इच्छायाम्, भ्वादिः
युवा इन्द्र जिनका सखा बनता है-रामनाथ विद्यालंकार