मेल जोल और पुरुषार्थ का यज्ञ -रामनाथ विद्यालंकार

मेल जोल और पुरुषार्थ का यज्ञ -रामनाथ विद्यालंकार

ऋषयः देवाः । देवता आत्मा। छन्दः शक्वरी ।

ऊर्क च मे सुनृता च मे पर्यश्च मे रसश्च मे घृतं च मे मधु च मे सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे कृषिश्च मे वृष्टिश्च मे जैत्रं च मऽऔद्भिद्यं च मे ज्ञेने कल्पन्ताम्॥

-यजु० १८।९

( ऊ च मे ) मेरा बलप्राणप्रद अन्न, ( सूनृता च मे ) और मेरी रसीली वाणी, (पयःचमे) और मेरा दूध, ( रसः च मे ) और मेरा रस, (घृतं च मे ) और मेरा घृत, (मधुच मे) और मेरा मधु, ( सन्धिः च मे ) और मेरा सहभोज, (सपीतिः च मे ) और मेरा सहपान, ( कृषिः च मे ) और मेरी खेती, ( वृष्टिः च मे ) और मेरी वर्षा, (जैत्रं च मे ) और मेरी विजय, (औद्भिद्यं च मे ) और मेरा ओषधि-वनस्पतियों का अंकुरित होना (यज्ञेन कल्पन्ताम् ) यज्ञ से सम्पन्न हों।

मैं यदि मेल-जोल और पुरुषार्थ एवं कर्मण्यता का यज्ञ करता हूँ, तो मुझे बहुत-सी सम्पदाएँ प्राप्त हो सकती हैं और वे मेरे पास स्थिर रह सकती हैं। मुझे ‘ऊर्क’ प्राप्त हो. बलप्राणप्रद अन्न मुझे मिले, जिससे मैं बलवान्, प्राणवान् और परिपुष्ट बनूं। मेरे शरीर की रचना परमेश्वर ने मांसभक्षी हिंसक जन्तुओं-जैसी नहीं बनायी है, अत: मांस-मदिरा के सेवन से अपने शरीर, मन और आत्मा को मलिन न करूं। मुझे रसीली वाणी प्राप्त हो। मैं दूसरों के प्रति मधुर-प्यारी वाणी बोलूं और अन्य जन भी मेरे प्रति मधुर-प्यारी वाणी बोलें। मुझे शुद्ध ‘गोदुग्ध’ प्राप्त हो, मैं गाय पालू, गोसेवा का पुरुषार्थ करूं। मुझे ‘रस’ प्राप्त हो, मैं द्राक्षारस, अङ्गों का रस, सन्तरों का रस, सेव का रस, इक्षुरस सेवन करूं, जिससे मुझे पुष्टि और  तीव्र बुद्धि मिले। मुझे ‘गोघृत’ प्राप्त हो, गोघृत से शरीर नीरोग और कान्तिमय तथा मन बुद्धि सात्त्विक होते हैं। मुझे ‘मधु मिले, मैं शहद का आस्वादन करूं। शहद कान्ति तथा पाचनशक्ति देता है तथा नेत्रज्योति बढ़ाता है। मुझे ‘सग्धि’ और ‘सपीति’ के अवसर प्राप्त हों। दूसरों के साथ मिलकर सहभोज और सहपान करके मुझे सङ्गति का आनन्द प्राप्त हो। मेरी ‘कृषि’ लहलहाये। बीज बोने के लिए धरती को तैयार करने से लेकर फसल काटने तक की सब क्रियाएँ मैं पुरुषार्थपूर्वक करूँ, जिससे मैं अन्नपति होकर दूसरों को अन्न खिला सकें। मुझे ‘वर्षा’ मिले, बादल की वर्षा भी मेरे ऊपर हो और विविध ऐश्वर्यों की वर्षा तथा प्रभुकृपा की वर्षा का भी मैं पात्र बनें।

मुझे जैत्र’ प्राप्त हो, मैं प्रतियोगिताओं में भाग लेकर विजयी बनूं, शत्रुओं से लोहा लेकर विजयी बनूं, आपदाओं। से लड़कर विजयी बनूं। मुझे ‘औद्भिद्य’ प्राप्त हो, मैं उत्कर्ष प्राप्ति में बाधक विघ्न-बाधाओं की परत फोड़ कर ऊपर उठें, ऊर्ध्वारोहण करूँ। उक्त सब सम्पदाएँ मुझे पारस्परिक मेल जोल और पुरुषार्थ के यज्ञ से प्राप्त हों और बढ़कर मुझे आनन्दित करती रहें।

मेल जोल और पुरुषार्थ का यज्ञ -रामनाथ विद्यालंकार

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