‘‘मेरे लिये सन्ध्योपासना करिये?
एक विचित्र प्रश्न उ.प्र. से किसी ने किया है-‘‘यदि मैं किसी से अपने लिये सन्ध्योपासना गायत्री जप या यज्ञ कराऊँ तो इसका पुण्य लाभ मुझे क्यों न मिलेगा?’’
ऐसे भाई यह बतायें कि आपके लिये व्यायाम कोई करे तो लाभ किसको मिलेगा? रोगी की बजाय उसका कोई भाई बन्धु औषधि का सेवन करे तो क्या रोगी रोगमुक्त होगा? एक पौराणिक ने हैदराबाद सत्याग्रह में जाने वाले एक आर्य को बड़ी श्रद्धा से कहा, ‘‘भाई! आप जेल में मेरे लिए गायत्री जप करते रहना। मैं चाररुपये सैंकड़ा के दर से तेरे घर पर भुगतान करता रहूँगा। मुझे तू यह सूचना पहुँचा देना कि कितना जप मेरे लिये किया है? यह घटना श्री मेहता जैमिनि जी को स्वयं उस आर्य ने अबाला में सुनाई। श्री ओमप्रकाश वर्मा जी को भी इसका ज्ञान होगा। उस आर्य ने सत्याग्रह में भाग लेकर यश पाया और गायत्री जप से कमाई भी कर ली। उसे पता था कि जप से गायत्री क्रय करने वाले को कोई लाभ नहीं होगा। अब उदूसरों के लिए यज्ञ करने वाले संगठन भी मैदान में आ गए हैं और लुभावनी घोषणाएँ कर रहे हैं। पाप पुण्य, धर्म-कर्म के लेन-देन का व्यापार तो याज्ञिकों पाठियों के लिए बहुत अच्छा है, परन्तु है तो वेद विरुद्ध।’’
वेद का आदेश उपदेश हैः-‘‘स्वयं यजस्व स्वयं जुषस्व।’’
स्वयं कर्म कर और स्वयं फल चख। यही कल्याणी शिक्षा है।