महेन्द्र जगदीश्वर -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः वसिष्ठः । देवता इन्द्रः । छन्दः निवृद् आर्षी जगती ।
महाँ२॥ऽइन्द्रो वज्रहस्तः षोडशी शर्म यच्छतु। हन्तु पाप्मानं योऽस्मान्द्वेष्टि उपयामगृहीतोऽसि महेन्द्राय त्वैष ते योनिर्महेन्द्राय त्वा॥
-यजु० २६.१०
( महान् ) महान् है ( इन्द्रः ) परमैश्वर्यशाली जगदीश्वर, ( वज्रहस्तः ) वज्र अर्थात् दण्डशक्ति उसके हाथ में है, ( षोडशी ) सोलहों कलाओंवाला अर्थात् पूर्ण है। वह हमें ( शर्म यच्छतु ) सुख देवे। ( हन्तु) विनष्ट करे ( पाप्मानं ) पाप को, (यःअस्मान्द्वेष्टि) जो पाप हमसे द्वेष करता है। हे मेरे आत्मन् ! (उपयामगृहीतःअसि) तूने यम, नियम आदि व्रत ग्रहण किये हुए हैं, ( महेन्द्राय त्वा ) मैं तुझे महेन्द्र के अर्पित करता हूँ। (एष ते योनिः ) यह महेन्द्र तेरा शरणगृह है। (महेन्द्राय त्वा ) महेन्द्र की स्तुति, प्रार्थना, उपासना के लिए तुझे प्रेरित करता हूँ।
इन्द्र परमेश्वर का नाम है, क्योंकि वह परमैश्वर्यवान् है। वह महान् सम्राट् है, उसकी महिमा महान् है। वह ‘वज्रहस्त’ है, अधार्मिक दुराचारियों को दण्ड देने के लिए उसके हाथ में वज्र रहता है। वज्रपात करता है वह दुष्टों पर, उनकी सब सम्पदा वज्र के आघात से चूर-चूर हो जाती है। थोड़ी देर पहले जो फूल-फल रहे थे, क्षण भर में धूल में लोटने लगते हैं। वह षोडशी है, पूर्णिमा के चाँद के समान सोलहों कलाओं से परिपूर्ण है, उसमें कोई न्यूनता नहीं है। न उसके ज्ञान में कोई कमी है, न कर्म में कोई कमी है, न उसके ईश्वरत्व में कोई कमी है। हम चाहते हैं कि वह हमें सुख प्राप्त कराये, आनन्द-सागर में गोते लगवाये, आनन्द की लहरों में झुलाये, हमारा कल्याण ही कल्याण करे। पाप विचार और पाप कर्म, जो हमसे द्वेष करते हैं और हमें घेरे रहते हैं, उन्हें वह विनष्ट कर दे। चोरी, हिंसा, गुरुद्रोह, कन्याभ्रूणहत्या, आतङ्कवाद, बलात्कार आदि पातक हमारे समाज से लुप्त हो जाएँ।
हे मेरे आत्मन् ! तू ‘उपयामगृहीत’ है, तूने यम-नियमों, उपनियमों के पालन का व्रत ग्रहण किया है, दीक्षा ली है। व्रतपालन की शक्ति प्राप्त करने के लिए मैं तुझे ‘महेन्द्र’ के अर्पित करता हूँ, महामहिम जगदीश के सुपुर्द करता हूँ। वह शक्ति का भण्डार है, तुझे भी शक्ति देगा। वह व्रतपति है, तुझे भी व्रतपति बनायेगा। वह महेन्द्र तेरा शरणगृह है, शरणागतत्राता है। उस महेन्द्र की स्तुति, प्रार्थना, उपासना के लिए तुझे प्रेरित करता हूँ, तत्पर करता हूँ, उस महेन्द्र का प्रेमी तुझे बनाता हूँ, उसके ध्यान में मग्न तुझे करता हूँ। तू महेन्द्र का हो जा, महेन्द्र तेरे पीछे-पीछे दौड़ेगा। |
आओ, वज्रहस्त, षोडशी महान् इन्द्र के गीत गायें। वह हमें सुख-सरोवर में स्नान करायेगा, महापापों से हमारा त्राण करेगा, हमारे समर्पण को स्वीकार करेगा।
पाद–टिप्पणियाँ
१. ‘इदि परमैश्वर्ये’ इस धातु से रन् प्रत्यय करने पर इन्द्र शब्द सिद्धहोता है। य इन्दति परमैश्वर्यवान् भवति स इन्द्रः परमेश्वर:-स०प्र०, समु० १।।
२. योनि=गृह। निघं० ३.४
महेन्द्र जगदीश्वर -रामनाथ विद्यालंकार