ब्रह्मचारी गणपति के गर्भ में -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः प्रजापतिः । देवता गणपतिः । छन्दः शक्वरी।
गुणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिइहवामहे निधीनां त्वा निधिपति हवामहे वसो मम। आहर्बजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥
-यजु० २३.१९
हे आचार्य ! हम ( गणानां गणपतिं त्वा) विद्यार्थी-गणों के गणपति आपको (हवामहे) पुकारते हैं।(प्रियाणां प्रियपतिं त्वा) प्रिय शिष्यों के प्रियपति आपको (हवामहे ) पुकारते हैं। (निधीनां निधिपतिं त्वा ) विद्यारूप निधियों के निधिपति आपको ( हवामहे ) पुकारते हैं। अब पिता ब्रह्मचारी को कहता है-( मम वसो) हे मेरे धन ब्रह्मचारी ! ( अहं) मैं (गर्भधं ) ब्रह्मचारी को गर्भ में धारण करनेवाले आचार्य के पास ( आ अजानि ) तुझे लाता हूँ। ( त्वं ) तू ( आ अजासि ) आ जा ( गर्भधं) गर्भ में धारण करनेवाले आचार्य के पास।
जब विद्यार्थी गुरुकुल में प्रविष्ट होता है और ब्रह्मचारी होकर आचार्याधीन निवास करता है, तब आचार्य उसे अपने गर्भ में धारण करता है। अनेक विद्यार्थी उसके गर्भ में निवास करते हैं, अतः वह विद्यार्थी-गणों का गणपति होता है। उसके आचार्यत्व में सहस्र विद्यार्थी भी हो सकते हैं। वह अपने प्रिय शिष्यों का प्रियपति होता है। वह शिष्यों के प्रति प्रीति रखता है और शिष्य उसके प्रति प्रीति रखते हैं। प्रिय शैली से ही वह शिष्यों को पढ़ाता तथा सदाचार की शिक्षा देता है, जिससे उन्हें हस्तामलकवत् विषय का बोध हो सके। वह विद्यानिधियों का निधिपति होता है, अनेक विद्याओं के खजाने उसके अन्दर भरे होते हैं। चारों वेदों और उपवेदों की निधियाँ, शिक्षा कल्प-व्याकरण-निरुक्त-छन्द-ज्योतिष रूप षड्वेदाङ्गों की निधियाँ, दर्शन-शास्त्रों की निधियाँ, भौतिक विज्ञान की निधियाँ, अपरा और परा विद्या की निधियाँ लबालब भरी हुई उसके पास होती हैं। आचार्य के सहायक गुरुजन किन्हीं विशेष विद्या-निधियों के निधिपति होते हैं। कोई अग्नि, विद्युत्, सूर्य और नक्षत्रों के विज्ञान का अधिपति है, कोई राजनीति और युद्धनीति का अधिपति है, कोई कृषि-व्यापार-पशुपालन विद्या का निधिपति है। ब्रह्मचारीगण इन आचार्यों और गुरुजनों को आदर और प्रेम से पुकारते हैं। गुरुकुल में प्रवेश कराते समय विद्यार्थी का पिता उसे कहता है-हे मेरे धन ! हे मेरे पुत्र ! मैं विद्यार्थी को गर्भ में धारण करनेवाले, उसके साथ अत्यन्त निकट सम्पर्क रखनेवाले आचार्य के पास तुझे लाया हूँ। तू इस आचार्य के गर्भ में वास कर। यह तेरे अज्ञान को मार कर तुझे विद्वान् बनायेगा, तुझे नया जन्म देगा, तुझे द्विज बनायेगा और तदनन्तर तेरा समावर्तन संस्कार करके तुझे राष्ट्र की सेवा के लिए गुरुकुल से विदा करेगा। तू इसकी शरण में निवास कर, तू इससे विद्या की निधि ग्रहण कर। तू भी निधिपति बनकर बाहर निकल और अपनी निधियों को बाँट।
पाद टिप्पणियां १. गर्भे दधातीति गर्भधः तम् ।
२. आ-अज गतिक्षेपणयोः, लोट् ।
३. आ-अज गतिक्षेपणयो:, लेट् । ‘लेटोऽडाटौ’ पा० ३.४.९४ से आट्का आगम।।
ब्रह्मचारी गणपति के गर्भ में -रामनाथ विद्यालंकार