शिव शोध बोध प्रति पल पागो।
जागो रे व्रतधारक जागो।।
जब जाग गये तो सोना क्या,
बैठे रहने से होना क्या।
कत्र्तव्य पथ पर बढ़ जाओ,
तो दुर्लभ चाँदी सोना क्या।।
मत तिमिर ताक श्रुति पथ त्यागो।
जागो रे व्रतधारक जागो।।१।।
बन्द नयन के स्वप्न अधूरे,
खुले नयन के होते पूरे।
यही स्वप्न संकल्प जगायें,
करें ध्येय के सिद्ध कँगूरे।।
संकल्प बोध उठ अनुरागो।
जागो रे व्रतधारक जागो।।२।।
शिव निशा जहाँ मुस्काती है,
जागरण ज्योति जग जाती है।
संकल्पहीन सो जाते हैं,
धावक को राह दिखाती है।।
श्रुति दिशा छोडक़र मत भागो,
जागो रे व्रतधारक जागो।।३।।
बोध मोद का लगता फेरा,
मिटता पाखण्डों का घेरा।
शिक्षा और सुरक्षा सधती,
हटता आडम्बर का डेरा।।
बोध गोद प्रिय प्रभु से माँगो।
जागो रे व्रतधारक जागो।।४।।
कुल फूल मूल शिव सौगन्धी,
शंकर कर्षण सुत सम्बन्धी।
रक्षा, संचेत अमरता से,
हों जन्म उन्हीं के यश गन्धी।।
योग-क्षेम के क्षितिज छलाँगो।
जागो रे व्रतधारक जागो।।५।।
– अलीगढ़, उ.प्र.