बांके वीर को प्रोत्साहन -रामनाथ विद्यालंकार

बांके वीर को प्रोत्साहन

ऋषिः अगस्त्यः । देवता अग्निः । छन्दः आर्षी त्रिष्टुप् ।

अयं नोऽअग्निर्वरिवस्कृणोत्वूयं मृधः पुरऽएतु प्रभिन्दन्यं वाजाञ्जयतु वाजसाताव्यशत्रूञ्जयतु जर्हषाणः स्वाहा।।

-यजु० ५। ३७

( अयं ) यह ( नः ) हमारा ( अग्निः ) बांका वीर ( वरिवः१) राष्ट्र का रक्षण (कृणोतु ) करे। ( अयं ) यह ( मृधः ) हिंसक आततायियों को ( प्रभिन्दन् ) छिन्न-भिन्न करता हुआ ( पुरः एतु ) आगे बढ़े। ( अयं ) यह ( वाजसातौ ) बलप्रदर्शन में ( वाजान्’ ) शत्रु-बलों को (जयतु ) जीत ले। ( अयं ) यह ( जर्हषाणः४) अतिशय हृष्ट, उत्साहित होता हुआ ( शत्रून् जयतु ) शत्रुओं को जीते। ( स्वाहा ) इसके प्रति हमारे सुवचन हैं।

मरे देश का बांका वीर साक्षात् ‘अग्नि’ है। वह अग्नि के समान तेजस्वी है, शत्रु को अपनी ज्वालाओं से लपेटनेवाला है, दग्ध करनेवाला है। उसके शस्त्रास्त्र आग के गोले बरसाते हैं, शत्रुपुरी में गिरकर जनसंहार मचा देते हैं, पुरी को भस्मसात् कर देते हैं। वह संग्रामाग्रणी वीर राष्ट्र की शत्रु से रक्षा करने में अद्वितीय है। उसके सेनापतित्व में सैंकड़ों सेनाएँ शत्रु से लोहा लेने के लिए रणाङ्गण में निकल पड़ती हैं। वह हिंसकों को, आतङ्कवादियों को छिन्न-भिन्न करता हुआ, कुचलता हुआ, धूल में मिलाता हुआ संग्राम में आगे बढ़े। संग्राम का बिगुल बजने पर वह हर्षित, उत्साहित, उल्लसित हो कि आज अवसर मिला है रण में अपना युद्धकौशल दिखाने का, युद्ध के उभयपक्षसंमत नियमों का पालन करते हुए शत्रु को हताहत, व्याकुल, उद्वेजित और धराशायी करने का, न केवल स्वपक्ष से, अपितु शत्रुपक्ष से भी प्रशंसा पाने का । हमारा रणबांकुरा वीर दिखा देना चाहता है कि संहार हमारा उद्देश्य नहीं है, हमारा उद्देश्य है शान्ति । शान्ति लाने के लिए भीषण संहार भी करना पड़ता है, तो हम चूकते नहीं हैं। बलप्रदर्शन में हम शत्रु के बल को मात दे सकते हैं। हँसते-हँसते, हृष्ट-उल्लसित उत्साहित होते हुए हम शत्रुओं को जीत सकते हैं। आत्मसम्मान बनाये रखते हुए हम सन्धि भी कर सकते हैं, शत्रु को अपना भी बना सकते हैं, पारस्परिक द्वन्द्व को समाप्त भी कर सकते हैं। परन्तु शत्रु को यह अनुभव हो जाना चाहिए कि हम किस सीमा के वीर हैं, किसे धन के धनी हैं। वीरता हमारा मन्त्र है, मौत के मुँह में पहुँचानेवाला हमारा अस्त्र है, बाँके वीरों को झुका देनेवाला हमारा उत्साह है, ‘कट जाय सिर न झुकना हमारा नारा है। किन्तु अवसर आने पर हम झुकना भी जानते हैं, झुकते हैं तो ऐसे झुकते हैं कि झुकने पर भी हमारे सिर ऊँचे रहते हैं।

हे अग्निज्वाल के समान दमकनेवाले राष्ट्रवीर! समय आ गया है, संनद्ध कर ले अपनी सेना, सज्जित कर ले अपने संहारक शस्त्रास्त्र, कूच कर दे अधर्म पर धर्म की विजय के लिए। विजयी होकर आ । राष्ट्र तेरा अभिनन्दन करेगा, तेरे विजयगीत गायेगा, तेरे प्रति सुवचन कहेगा।

पाद-टिप्पणियाँ

१. वरिवः भृशं रक्षणम्-द० ।

२. कृणोतु, कुवि हिंसाकरणयोः, स्वादिः ।।

३. वाज:=बल, निघं० २.९, अधिक पाठ।

४. हृष तुष्टौ, अत्यर्थं हृष्यन्

बांके वीर को प्रोत्साहन

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