प्रश्न – यज्ञ के प्रारम्भ मे जल को हवन कुंड के किस दिशा मे रखना चाहिए ? आचार्य कपिल

उत्तर – जल (आप:) स्त्रिलिंग का प्रतीक है और अग्नि पुल्लिंग।
जैसे स्त्री पति के बांयी तरफ सोती है ऐसे ही जल को अग्नि के बायीं ओर (उत्तर दिशा) मे रखना चाहिए।
अग्नि और जल के बीच से नही निकलना चाहिए क्योंकि स्त्री और पुरुष के जोड़े के बीच नही पड़ना चाहिए।
यजुर्वेद के मन्त्र 1/6 को पढते हुए जल को लाना और 1/7 को पढते हुए वेदी के पास रखना चाहिए।
इन दोनो मंत्रो को अर्थ सहित आगे भेजेंगे।

विशेष हवन तथा संस्कार आदि करने से पहले एक य तीन दिन पहले से व्रत रखते हैं
जब व्रत रखे तो क्या व्रत मे खा सकते हैं?
उत्तर-देवो को खिलाने से पहले नही खाना चाहिए देव यज्ञ के माध्यम से खाते हैं। हवन उन्ही पदार्थो से करना चाहिए जो खाने योग्य हों जैसे मेवा जौ चावल खीर आदि।
तो जिन पदार्थो से हवन करे उन्हे नही खा सकते हैं क्योंकि पहले देव खायेंगे।

जिनका हवन मे प्रयोग न हो उनको खा सकते हैं
और उतना खाना चाहिए जिससे न खाने मे गणना हो सके।
व्रत मे वन मे उपजी हुई चीज खानी चाहिए औषधि य वनस्पति।
व्रत रखने के दूसरे दिन यज्ञ की जब तैयारी करते हैं तो पहले जल को लाकर वेदी के पास रखते हैं

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