प्रजननशक्ति-वर्धक हवि -रामनाथ विद्यालंकार

प्रजननशक्ति-वर्धक हवि -रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः वैखानसः । देवता अग्नि: । छन्दः निवृद् अष्टिः।

इदं हविः प्रजननं मेऽअस्तु दशवीरश्सर्वगणस्वस्तये। आत्मसनि.प्रजासनि पशुसनि लोकुसन्यभयसनि। ग्निः प्रजां बहुलां में करोत्वन्नं पयो रेतोऽअस्मासु धत्त॥

-यजु० १९४८

( इहं हविः ) यह हवि ( मे ) मेरे लिए (प्रजननम् अस्तु ) प्रजननशक्ति देनेवाली हो, तथा ( सर्वगणं ) सब अङ्गों को पुष्ट करनेवाली हो। यह (आत्मसनि) आत्मिक शक्ति को देनेवाली, ( प्रजासनि) सन्तान देनेवाली, (पशुसनि) पशु देनेवाली, ( लोकसनि) लौकिक सुख देनेवाली और ( अभयसनि ) अभय देनेवाली हो। ( अग्निः ) हवि ग्रहण करनेवाला यज्ञाग्नि ( मे ) मेरे लिए ( बहुलां प्रजां करोतु ) बहुत सन्तान देवे । हे ऋत्विजो ! तुम ( अन्नं ) अन्न, ( पयः ) दूध और ( रेतः ) वीर्य ( अस्मासु धत्त ) हमें प्राप्त कराओ।

कर्मकाण्ड में इससे पूर्व के मन्त्र से अग्नि में दूध की आहुति दी जाती है और इस मन्त्र से यजमान पात्र में शेष दूध को पी लेता है। यह तो प्रचलित कर्मकाण्ड की प्रक्रिया है। हम इस मन्त्र का विनियोग इस रूप में भी कर सकते हैं कि इस मन्त्र का पाठ करके यजमान यज्ञाग्नि में दूध की आहुति भी दे और अवशिष्ट दूध का पान भी करे। इस प्रकार दूध की हवि यज्ञाग्नि में भी पड़े और यजमान की जाठराग्नि में भी। दोनों अग्नियों में दूध की हवि पड़ने से यजमान की प्रजनन शक्ति की वृद्धि होगी, ऐसा आशय प्रतीत होता है। प्रात:सायं यज्ञाग्नि में गोदुग्ध की हवि देने से तथा प्रातः और रात्रि गोदुग्ध का पान करने से प्रजनन-शक्ति बढ़ती है। शतपथ ब्राह्मण में ‘दशवीर’ से दस प्राणों का ग्रहण किया है। यह हवि दस प्राणों की शक्ति को भी बढ़ाती है। वहीं ‘सर्वगण’ से सब अङ्गों का ग्रहण किया गया है। सब अङ्गों की शक्ति भी इस हवि से बढ़ती है। अङ्गों में ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ, हृदय, तिल्ली, जिगर आँते, रक्तनाडियाँ, फेफड़े आदि सब आ जाते हैं। मन्त्र कहता है कि यह हवि आत्मिक शक्ति को भी बढ़ाती है, मन-बुद्धि-आत्मा इससे प्रभावित होते हैं, इससे प्रजनन-शक्ति बढ़कर सन्ताने भी बलवान् और बुद्धिमान् होती है। गाय, बकरी आदि पशु पालने की शक्ति और योग्यता भी इससे उत्पन्न होती है। लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के सुख भी इससे प्राप्त होते हैं। आत्मा में निर्मलता भी आती है। प्रजा अर्थात् पुत्र-पुत्रियाँ बहुल अर्थात् अधिक संख्या में उत्पन्न करने की शक्ति भी मिलती है। शतपथ ब्राह्मण में जनक याज्ञवल्क्य से पूछते हैं कि अग्निहोत्र किस हवि से किया जाए, तब याज्ञवल्क्य ने सबसे पहले दूध का ही नाम लिया है। प्रजनन-शक्ति बढ़ानेवाली शतावरी आदि अन्य ओषधियाँ भी हैं, जिनकी यज्ञाग्नि में तथा जाठराग्नि में हवि देने से लाभ मिलता है। शतावरी ओषधि वीर्यवर्धक है, इसका वर्णन अथर्ववेद में भी आता है। अन्त में यज्ञ के ऋत्विजों होता, उद्गाता, अध्वर्यु, ब्रह्मा से कहते हैं कि तुम हमें अन्न और दूध सुलभ कराओ, जिनके खान-पान से हमारे शरीर में वीर्य बनेगा। यह अन्न और दूध यज्ञशेष के रूप में हमें प्राप्त हो और कृषि तथा गोपालन द्वारा भी हम प्राप्त करें। हवि में ऐसी सात्त्विक एवं बलप्रद ओषधियाँ भी ग्राह्य हैं, जिनसे आत्मबल, निर्भयता आदि भी विकसित हों।

पाद-टिप्पणियाँ

१. प्राणा वै दशवीराः, प्राणानेवात्मन् धत्ते। श० १२.८.१.२२

२. अङ्गानि वै सर्वे गणाः, अङ्गान्येवात्मन् धत्ते। श० वही

३. आत्मानं सनोति ददातीति आत्मसनि । षणु दाने ।

४. श० ११.३.१.१-३

प्रजननशक्ति-वर्धक हवि -रामनाथ विद्यालंकार 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *