पृथिवी के पृष्ठ पर जो द्युति पा रहा है-रामनाथ विद्यालंकार

पृथिवी के पृष्ठ पर जो द्युति ती पा रहा है-रामनाथ विद्यालंकार  

ऋषिः परमेष्ठी। देवता अग्निः । छन्दः स्वराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।।

आ वाचो मध्यमरुहद् भुरण्युरयमग्निः सत्पतिश्चेकितानः। पृष्ठे पृथिव्या निहितो दविद्युतदधस्पदं कृणुतां ये पृतन्यवः॥

-यजु० १५ ।५१ |

( भुरण्यु:१) राष्ट्र का भरण-पोषण करनेवाला ( अयम् अग्निः ) यह वीर राजा (वाचःमध्यम् अरुहत् ) वाणी के मध्य में आरूढ़ हो गया है, अर्थात् वाणी से स्तुति पा रहा है। यह वीर राजा ( सत्पतिः ) सज्जनों का रक्षक है, (चेकितानः२) विज्ञानवान् है, ( पृथिव्याः पृष्ठे निहितः ) राष्ट्रभूमि के पृष्ठ परआसीन किया हुआ, (दविद्युतद् ) द्युतिमान् होता हुआ (अधस्पदं कृणुतां ) पैरों तले कर दे ( ये पृतन्यवः४) जो सेना लेकर चढ़ाई करनेवाले हैं उन्हें।।

आओ, हर्ष मनायें, उत्सव करें, हमारे राजा ने राजसिंहासन पर आरोहण किया है। राजा कोई छोटी-सी हस्ती नहीं है, वह है हमारे विशाल राष्ट्र का प्रभुतासम्पन्न महानायक। वह ‘भुरण्यु’ है, प्रजा का भरणपोषणकर्ता है, राष्ट्र को सब ऐश्वर्यों से भरपूर करके उन्नति के चरम सोपान पर ले जानेवाला है। वह ‘अग्नि’ है, जलता हुआ विद्युदीप है, जो सर्वत्र प्रकाश पहुँचाता है और अभिमान, मोह आदि के महान्धकार को दूर करके अन्धियारे कोनों में छिपे निशाचरों को मार भगाता है, वह राष्ट्र के यज्ञकुण्ड में ऊँची-ऊँची ज्वालाओं से लहराता हुआ यज्ञाग्नि है, जो राष्ट्र के सम्पूर्ण वातावरण को सुगन्धित कर देता है। वह अधीनस्थ राजाओं को अपनी परिक्रमा करवानेवाला ‘महासूर्य’ है, जो अपने किरणजाल से चारों ओर यजुर्वेद ज्योति के तम:स्तोम को उज्ज्वल प्रकाश में बदल देता है। आज वह जन-जन की वाणी का विषय बन गया है। सर्वत्र उसी की चर्चा है, उसी के गीत गाये जा रहे हैं, उसी की गुणावलि का बखान हो रहा है, उसी की वीरता-क्षमता-राजनीतिज्ञता का अवलोकन हो रहा है। यह हमारा राजाधिराज ‘सत्पति’ है, सज्जनों का रक्षक है, सहायक है, उन्हें सब सुविधाएँ देकर ऊँचा उठानेवाला है और दुर्जनों को या तो सज्जनों में परिणत कर देता है, अन्यथा उन्हें दण्डित करता है। यह हमारी आँखों का तारा राजा ‘चेकितान’ है, विज्ञानवान् है, अतएव राष्ट्र को भी ज्ञान-विज्ञान की दृष्टि से सर्वोन्नत करनेवाला है। इसके आधिपत्य में राष्ट्र में कोई भी नर-नारी अशिक्षित नहीं रहेगा। हमारा राष्ट्र सब विद्याओं से भरपूर होगा। नवीन-नवीन आविष्कार होंगे, कल-कारखानों का निर्माण होगा, शिल्प चरमोन्नति करेगा। कृषि की हरियाली लहरायेगी। हमारे देश का निर्माण विभाग वस्तुओं को दूसरे देशों में निर्यात करेगा। शास्त्र विज्ञान के साथ देश का शस्त्रविज्ञान भी बढ़ेगा, स्वरक्षा के लिए रक्षक और संहारक शस्त्रास्त्रों से भी हमारे सैनिक संनद्ध होंगे। हमारा राजा द्युतिमान्’ है, आदित्य की ज्योति से भासमान है। कोई भी हमारे राष्ट्र को कुदृष्टि से नहीं देख सकेगा। हमारे राजा और राष्ट्र की युति से संत्रस्त होकर कोई हमसे शत्रुता करने का साहस नहीं कर सकेगा। फिर भी यदि कोई शत्रु आकर सेना से हम पर आक्रमण करना चाहेगा, तो पैरों तले रौंद दिया जाएगा। हम विजयी होंगे। हम गर्व करते हैं अपने महामहिम सम्राट् पर। जय हो हमारे इस भुरण्यु, सत्पति, चेकितान, द्युतिमान् वीर सम्राट् की, जय हो हमारे विशाल, उन्नत राष्ट्र की ।

पाद-टिप्पणियाँ

१. भुरण धारणपोषणयोः । कण्ड्वादित्वाद् यक्, तत: उ: ।।

२. किती संज्ञाने। लिट: कानच् ।

३. द्युत दीप्तौ । दाधर्तिदर्धर्ति० पा० ७.४.६५ से यङ् लुगन्त, शतृप्रत्ययान्तनिपातित ।।

४. पृतनां सेनाम् आत्मनः इच्छुः पृतन्युः, ते पृतन्यवः ।।

पृथिवी के पृष्ठ पर जो द्युति पा रहा है-रामनाथ विद्यालंकार  

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