पर्यावरण शुद्ध रखें
ऋषिः अगस्त्यः । देवता यज्ञः । छन्दः ब्राह्मी त्रिष्टुप् ।
द्यां मा लेखीरन्तरिक्षं मा हिंसीः पृथिव्या सम्भव ।। अयहि त्वा स्वर्धितिस्तेतिजानः प्रणिनाय महते सौभगाय । अतस्त्वं देव वनस्पते शतवल्शो विरोह सहस्त्रेवल्शा वि वयश्रुहेम।।
-यजु० ५।४३ |
हे मनुष्य! तू ( द्यां ) द्युलोक को ( मा लेखी:१) मत खुरच, मत विकृत कर, (अन्तरिक्षं) अन्तरिक्ष को (मा लेखीः ) मत विकृत कर। (पृथिव्या संभव ) पृथिवी के साथ अच्छे पर्यावरण में रह । ( अयं हि तेतिजानः स्वधितिः) यह तीक्ष्ण कुल्हाड़ा (महते सौभगाय ) महान् सौभाग्य के लिए। ( त्वा प्रणिनाय) तुझे प्रेरित कर रहा है। (अतः ) इसलिए ।। ( देव वनस्पते ) हे हरीभरी वनस्पति ! ( त्वं ) तू ( शतवल्शः४) सैकड़ों अंकुरों से युक्त होकर (विरोह) बढ़। (वयं ) हम ( सहस्रवल्शा: ) सहस्र अंकरोंवाले होकर ( विरुहेम ) बढे । |
वेदों का आदेश है कि मानव शुद्ध वायु में श्वास ले, शुद्ध जल का पान करे, शुद्ध अन्न खाये, शुद्ध मिट्टी में खेले-कूदे, शुद्ध भूमि में खेती करे। ऐसा होने पर ही उसे वेदप्रतिपादित सौ वर्ष या सौ से भी अधिक वर्ष की आयु प्राप्त हो सकती है। परन्तु आज न केवल हमारे देश में, अपितु विदेशों में भी प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि मनुष्य को न शुद्ध वायु सुलभ है, न शुद्ध मिट्टी और शुद्ध भूमि सुलभ है। कल-कारखानों से निकले अपद्रव्य धुआँ, गैस, कूड़ा-कचरा, वन-विनाश आदि इस प्रदूषण के कारण हैं। प्रदूषण इस स्थिति तक पहुँच गया है कि कई स्थानों पर तेजाबी वर्षा हो रही है। प्रस्तुत मन्त्र प्रेरित कर रहा है कि हे मनुष्य ! द्युलोक को विकृत मत कर, अन्तरिक्ष को विकृत मत कर। कारखानों की गैसें, धुआँ, बाहर नालियों में बहनेवाले तेजाबी द्रव्यों की गन्ध वायुमण्डल में मिलकर आकाश में जहाँ तक पहुँच सकते हैं, वहाँ तक उनसे आकाश विकृत हो चुका है। शत्रु द्वारा छोड़े गये अणु बम आदि शास्त्रास्त्र भी आकाश को मलिन कर रहे हैं। यदि वेद के सन्देश की ओर लोगों का ध्यान न गया, तो एक दिन विनाश निश्चित है। आकाश से जो हवाएँ आयेंगी, जो वर्षा होगी, जो ओले गिरेंगे, जो बिजलियाँ लहरायेंगी, जो चक्रवात उठेंगे, जो उल्कापात होंगे, जो सूर्यकिरणें नीचे आयेंगी, सब ऐसे विषैले होंगे जिनमें मनुष्य का श्वास लेना भी मृत्यु को निमन्त्रण देनेवाला होगा। अत: चेत रे मानव! चेत जा, आकाश को ऐसा शुद्ध कर ले कि वहाँ से अमृत की वर्षा हो, जीवनदायी हवाएँ चलें, सूर्य की प्राणदायक रश्मियाँ प्राप्त हों। पृथिवी पर शुद्ध पर्यावरण में निवास कर। अशुद्ध पर्यावरण रोगों को निमन्त्रण देगा, कराहटों को जन्म देगा, शिशुओं की और युवक-युवतियों की मौतें लायेगा।
हे मानव! एक बात और याद रखना । वातावरण को शुद्ध करने में वृक्ष-वनस्पतियों का बहुत बड़ा हाथ है। प्राणी जो अशुद्ध कार्बन डायक्साइड गैस छोड़ते हैं, वह वृक्ष-वनस्पतियों का प्राण है। वे उसे ग्रहण करके पनपती हैं, और बदले में ऑक्सीजन गैस छोड़ती है, जो जीवधारियों को प्राण है। वृक्ष वर्षा लाने में भी कारण बनते हैं। इन्हें काटना बर्बादी को बुलाना है। अतः वृक्षों को नष्ट मत कर, अपितु नये-नये वृक्ष उगा। यह जो कुल्हाड़ा तेरे हाथ में है, इसका सदुपयोग कर। यह वृक्षों को सजाने-सँवारने के लिए है, काट कर समाप्त कर देने के लिए नहीं। इस कुल्हाड़े के द्वारा वृक्षों को इस तरह कतरन कर कि उनकी नवीन-नवीन सैंकड़ों शाखाएँ फूटें और वृक्ष बढ़कर दुगने-चौगुने विशाल हो जाएँ। साथ ही नये पौधे भी अङ्कुरित हों और बढ़कर नये विशाल वृक्ष बने । हे मानव ! तू वृक्षों को भी बढ़ा और स्वयं भी बढ़। सन्तति से बढ़, सम्पदा से बढ़, वीरता से बढ़, विजय से बढ़। तू पर्यावरण की जय बोल, पर्यावरण तेरी जय बोलेगा।
पाद-टिप्पणियाँ
१. लिख अक्षरविन्यासे। इह तु हिंसार्थ:-म० ।।
२. तिज निशाने (तीक्ष्णीकरणे), यङन्तात् शानच् ।
३. प्र णी प्रापणे, यहाँ प्रेरणार्थक।
४. शतवल्श:=बह्वङ्करः ।।
पर्यावरण शुद्ध रखें