देखो, वरुण प्रभु का चमत्कार – रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः वत्सः । देवता वरुणः । छन्दः विराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।
वनेषु व्यन्तरिक्षं ततान वाजमर्वत्सु पयेऽउस्रियासु।
हृत्सु क्रतुं वरुणो विक्ष्वग्निं दिवि सूर्यमदधात् सोममद्रौ ॥
—यजु० ४।३१
( वरुणः ) वरुण प्रभु ने ( वनेषु ) वन-वृक्षों के ऊपर (अन्तरिक्षम् ) अन्तरिक्ष को, (अर्वत्स्) घोड़ों में ( वाजं ) बल और वेग को, और ( अस्रियासु ) गायों में (पयः ) दूध को (वि ततान ) विस्तीर्ण किया है। उसी ने ( हृत्सु ) हृदयों में ( क्रतुं ) कर्म को, (विक्षु ) प्रजाओं में (अग्निं ) अग्नि को, (दिवि ) द्युलोक में ( सूर्यं ) सूर्य को, और (अद्रौ ) पर्वत पर ( सोमं ) सोमादि ओषधियों को ( अदधात् ) धरा है।
वरुण प्रभु की कारीगरी के चमत्कार जड़ जगत् और चेतन जगत् सर्वत्र आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले हैं। दूर से जङ्गलों की ओर निहारो, तो ऐसा लगता है कि हरे पत्तों, रङ्ग-बिरङ्गे पुष्पों और फलों से सजाये हुए वृक्षरूप खम्भों पर हल्के नीले गगन का शामियाना तना हुआ है। यह शामियाना किसने ताना है ? वरुण प्रभु की ही यह लीला है। और देखो, आग के जलते हुए गोले रूप सूर्य को बिना डोर के द्युलोक में किसने लटकाया है ? यही सूर्य है, जो हमारी पृथिवी को और मंगल, बुध आदि अन्य ग्रहों तथा उपग्रहों को प्रकाश, ताप एवं प्राण प्रदान कर रहा है तथा सबको अपनी-अपनी कक्षा में स्थित रख कर अपनी परिक्रमा करवा रहा है, मानो पिता अङ्गलि पकड़ कर बच्चों को अपने चारों ओर घुमा रहा हो। और भी देखो, पर्वतों पर अनेक प्रकार की सोम आदि ओषधियों को उत्पन्न करनेवाला कौन है ? ये ओषधियाँ अनेक गुण-धर्मों को अपने अन्दर रखनेवाली हैं तथा सोम इन ओषधियों का राजा है। इस सोम ओषधि का आकाशीय सोम चन्द्रमा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा इसकी घटती-बढ़ती चन्द्रकलाओं की घटती-बढ़ती के अनुसार होती है। इस सोम ओषधि के अनेक भेद होते हैं, जिनके रस में अद्वितीय वीरता, मेधा आदि पैदा करने की अपूर्व क्षमता होती है। यह चमत्कार भी वरुणदेव का ही किया हुआ है।
यह सब तो जड़ जगत् में दीखनेवाली हस्तकला का नमूना है। अब चेतन जगत् की ओर भी दृष्टि डालो। पशुओं में घोड़े बल और वेग के प्रतीक माने जाते हैं तथा किसी यन्त्र की बल की इकाइयाँ मापने के लिए यह कहा जाता है कि इसमें इतने घोड़ों के बल के बराबर शक्ति है। सरपट, दुलकी आदि विभिन्न चालों से चलते हुए, बोझे से भरे शकट को खींचते हुए तथा युद्ध में अनुपम वीरता दिखाते हुए घोड़े किसके मन को मुग्ध नहीं कर लेते ? घोड़ों में यह अद्भुत बल और वेग किसने भरा है ? वरुण प्रभु की ही यह करामात है। और, तरह-तरह की जातिवाली, माता कही जानेवाली गायों के पयोधरों में अमृतोपम दूध कौन भरता है? यह भी वरुणदेव की ही कारीगरी है। प्राणियों के हृदयों की ओर भी दृष्टिपात करो। ये हृदय शरीर के सारे अशुद्ध रक्त को शिराओं द्वारा खींच कर उसे शुद्ध करने के लिए फेफड़ों में भेजते हैं। तथा उस शुद्ध हुए रक्त को संगृहीत करके फिर धमनियों द्वारा सारे शरीर में पहुँचाते हैं। शरीर में हृदय के इस अद्भुत कर्म को करनेवाला कौन है ? यह भी वरुण प्रभु की ही देन है। विभिन्न राष्ट्रों की प्रजाओं को भी देखो। इनके अन्दर धधकती हुई राष्ट्रप्रेम, दृढ़ प्रतिज्ञा, वीरता, बलिदान-भावना आदि की अग्नि को कौन जगाता है ? वरुणदेव ही प्रजाओं में इन विभिन्न अग्नियों को प्रज्वलित करते हैं। वरुण’ राजाधिराज परमेश्वर का ही एक नाम है। आओ, वरुण के इन चमत्कारपूर्ण उपकारों के प्रति हम अपनी कृतज्ञता दर्शाते हुए उसके प्रति नतमस्तक हों।
पाद–टिप्पणियाँ
१. अस्त्रिया=गौ । निघं. २.११
२. तनु विस्तारे, स्वादिः । लिट् लकार।
३. वृञ् वरणे, वर ईप्सायाम् इन धातुओं से उणादि उनन् प्रत्यय होने से वरुण शब्द सिद्ध होता है। “यः सर्वान् शिष्टान् मुमुक्षुन् धर्मात्मनो वृणोति, अथवा य: शिष्टैर्मुमुक्षुभिर्धर्मात्मभिर्वियते वय॑ते वा स वरुणः परमेश्वरः ।’ स०प्र०, समु० १
देखो, वरुण प्रभु का चमत्कार – रामनाथ विद्यालंकार