सृष्टिकर्ता एक है। वह कण-कण में है। वह हर मन में है। वह जन-जन में है। वह प्रभु जगत् के भीतर-बाहर व्यापक है। वह अखण्ड एकरस है-यह वेद, उपनिषद् सब शास्त्र बताते हैं। सब मत-पंथ कहने को यही कहते हैं कि परमात्मा एक है और कण-कण में है। ब्रह्माकुमारी जैसे कई मत इसका अपवाद हो सकते हैं। ब्रह्माकुमारी मत परमात्मा को सर्वत्र नहीं मानता।
आश्चर्य है कि फिर भी संसार में विशेष रूप से भारत में भगवानों की संख्या बढ़ रही है। मुर्दों की और मर्दों की पूजा भी बढ़ रही है। परमात्मा भोग देता है। कर्मफल का देने वाला वही तो है, फिर भी अज्ञानी मूर्ख यह मानकर अंधविश्वास फैला रहे हैं कि नदियों में स्नान से, तीर्थ यात्रा से, पाप के फल से हम बच जाते हैं। परमात्मा ने कर्मफल का अपना अधिकार नदी, नालों, समाधियों और तीर्थों को दे दिया है। विचित्र कहानियाँ सुनी-सुनाई जाती हैं। दीनानगर (पंजाब) में एक मन्दिर से हिन्दुओं की जगदम्बा की मूर्ति काजी गुलाम मुहम्मद ने उठा ली। माता ने न तो शोर मचाया और न थाने में जाँच में सहयोग किया। काज़ी उसी मूर्ति से अपनी रसोई में मसाला पीसता रहा। जाँच करते-करते पुलिस ने उसे धर दबोचा। चालान हुआ। काज़ी पर केस चला। मनोविकार (पागल-सा) होने की आड़ में गुलाम मुहम्मद दण्ड से बच गया। यह घटना सन् १८९० के एक पत्र में छपी मिलती है, फिर भी अन्धविश्वासी हिन्दू की आँखें नहीं खुलीं। भगवानों की चोरी कौन रोके?