तीन देवियाँ राष्ट्र-यज्ञ में आसीन -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः अग्निः । देवता इडा सरस्वती भारती । छन्दः आर्षी गायत्री।
तिम्रो देवीर्बहिरेदसदन्त्विड़ा सरस्वती भारती।मही गृणाना॥
-यजु० २७.१९
( मही ) महती ( गृणाना ) उपदेश देती हुई ( इडा ) इडा, ( सरस्वती ) सरस्वती और ( भारती ) भारती ( तिस्रः देवीः ) ये तीन देवियाँ ( इदं बर्हिः ) इस राष्ट्रयज्ञ के आसन पर ( आ सदन्तु ) आकर स्थित हों।
जिस राष्ट्र में वेदोक्त तीन देवियाँ निवास करती हैं, वह राष्ट्र गौरवशाली और भाग्यशाली होता है। वे तीन देवियाँ हैं। इडा, सरस्वती और भारती। ‘इडा’ शब्द वैदिक कोष निघण्टु में अन्नवाची पठित है। अन्न भौतिक सम्पदा का सूचक है, क्योंकि रुपया-पैसा असली सम्पदा नहीं है। असली सम्पदा तो अन्न ही है, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते । अतः ‘इडा’ सम्पदा की देवी है। जिस राष्ट्र में निर्धनता व्याप रही होती है, जहाँ की प्रजा अन्न के दानों के लिए मुंहताज रहती है, जहाँ पचास या उससे भी अधिक प्रतिशत लोग भूखे पेट रहते हैं, वह राष्ट्र कभी उन्नत नहीं हो सकता। इसके विपरीत जिस राष्ट्र की शतप्रतिशत प्रजा ऐश्वर्यशालिनी होती है, सुख के सब साधन जहाँ विद्यमान रहते हैं, जहाँ विमानों द्वारा यात्रा होती है, जहाँ का उपजा सामान अन्य देशों को निर्यात होता है, ऐसा समृद्धिशाली देश उन्नत राष्ट्रों की पंक्ति में आसीन होता है। दूसरी देवी है ‘सरस्वती’, जो विद्या की देवी है। जिस देश में सब लोग शिक्षित हैं, विविध विद्याएँ जहाँ नृत्य करती हैं, जहाँ का कलाकौशल खूब समुन्नत है, वह राष्ट्र भी उन्नतिशील कहलाता है। जहाँ की बहुत कम प्रतिशत जनता साक्षर है, वैदुष्य जहाँ आकाशकुसुमवत् है, जिस देश की सरस्वती रूठी हुई है, वह देश स्वराज्य चलाने में भी विफल होता है, वहाँ पराधीनता व्यापती है और राष्ट्र की श्रेणी में भी नहीं आता। तीसरी देवी है ‘भारती’। निरुक्त के अनुसार ‘भारती’ का अर्थ है ‘आदित्यप्रभा’। अतः भास्ती तेजस्विता, वीरता और क्षात्रधर्म की देवी है। जिस राष्ट्र की सैन्यशक्ति विकसित नहीं है, वह आत्मरक्षा करने में भी असफल रहता है। जहाँ की प्रजा उदासीन, तेजस्विताहीन, शत्रु से भयभीत रहती है वह राष्ट्र पंगु कहलाता है। जिस राष्ट्र की प्रजा सूर्य की प्रभा के समान तेजस्विनी होती है, जहाँ ब्रह्मबल के साथ क्षात्रबल भी हिलोरें लेता है, जहाँ की स्थलसेना, जलसेना और अन्तरिक्षसेना समृद्ध होती है, वह राष्ट्र अग्रणी राष्ट्रों में परिगणित होता है।
उक्त तीनों देवियों के लिए मन्त्र में दो विशेषण दिये गये हैं-‘मही’ और ‘गृणाना’। मही का अर्थ है महती, पूजास्पद, गगनचुन्विनी और गृणाना’ का अर्थ है बोलती हुई । ये तीनों देवियाँ राष्ट्र में अपने समृद्ध रूप में रहनी चाहिए, नग्न रूप में नहीं, यह ‘मही’ विशेषण से सूचित होता है। गृणाना’ शब्द यह सूचित करता है कि तीनों देवियाँ बोलती हुई तस्वीर। के समान होनी चाहिएँ, मूक और शोभाहीन रूप में नहीं।
आओ, हम भी अपने राष्ट्र में इडा, सरस्वती और भारती तीनों देवियों की प्रतिष्ठा करें, तीनों देवियों को उच्चासन पर बैठायें, जिससे हमारा राष्ट्र परम लक्ष्मीवान्, विद्यावान् और प्रतापवान् होकर सबसे आगे की पंक्ति में बैठने योग्य हो सके।
पाद टिप्पणियाँ
१. गृ शब्दे, क्रयादिः, शानच् ।
२. इडा=अन्न। निघं० २.७
३. भारती, भरतः आदित्यः तस्य भाः । निरु० ८.१३
तीन देवियाँ राष्ट्र-यज्ञ में आसीन -रामनाथ विद्यालंकार