बिहार में गंगा पार करते कितने तीर्थ यात्री मर गये। भगदड़ में यहाँ-वहाँ मरे। प्रयाग में इतनी शीत में यमुना में, त्रिवेणी में डुबकी लगाने वालों का क्या विधि विधान होता है? अव्यवस्था से प्रतिवर्ष इतने तीर्थ यात्री मर जाते हैं। यह बड़े दु:ख की बात है। सरकारें पर्यटन के नाम पर तीर्थ-यात्राओं को, अन्धविश्वास को प्रोत्साहन देती हैं। प्रत्येक नदी का महत्त्व है। गंगा, यमुना, नर्मदा की महिमा गा-गाकर आरती उतारना जड़ पूजा है। यह अन्धविश्वास है। क्या कृष्णा, कावेरी, भीमा नदी का महत्व नहीं? नदी में स्नान से मोक्ष लाभ नहीं। गंगा, गायत्री, गौ व तुलसी की तुक मिलाकर धर्म की नई विशेषता गढ़ी गई है। उपनिषदों में, गीता में, मनुस्मृति में इसका उल्लेख है कहीं? लोगों को वेद विमुख करने के लिये यह फार्मूला गढ़ा गया है। अदरक का, नीम का, काली मिर्ची का, गन्ने का, नारियल का, केले का, बादाम व मूंगफली का क्या तुलसी से कम महत्त्व है? वेद में तो सब वनस्पतियों, औषधियों का गुणगान है। हमारे क्षेत्र में एक संस्था ने हिन्दू धर्म के नाम पर तुलसी के पौधे घरों में लगाने के लिये वितरित किये। आस्था के नाम पर…….।
हिन्दू संगठन का राग छेडऩा तो अच्छा लगता है परन्तु संगठन के, एकता के सूत्र क्या हैं? हिन्दुओं की जाति-पाँति, मन्दिर-प्रवेश की रुकावटें, फलित ज्योतिष, विधवा विवाह का निषेध, बाल-विवाह, मृतक-श्राद्ध आदि कुरीतियों व अंधविश्वासों का आज पर्यन्त किसी हिन्दू संगठन ने खण्डन किया? अस्पृश्यता, जाति बहिष्कार, वेद के पढऩे से स्त्रियों तथा ब्राह्मणेतर को वञ्चित करने का विरोध हिन्दू संगठन करने वाली किस संस्था ने किया? निर्मल दरबार की किसी ने पोल खोली! जो अन्धविश्वासों का खण्डन करे, वह बुरा। जाति-पाँति तोड़ कर जब तक विवाह करने का आन्दोलन लोकप्रिय नहीं होगा, हिन्दू की रक्षा और संगठन की लहर सफल न होगी।
सामूहिक बलात्कार के समाचार टी.वी. पर सुनकर कलेजा फटता है। इस पाप की निन्दा में कोई लहर देश में दिखाई नहीं देती। आत्महत्या का महारोग बढ़ रहा है। धर्म-प्रचार व व्यवस्था अब धर्माचार्य नहीं कोई और ही रिमोट कन्ट्रोल से….. दुर्भाग्य यही है।