महात्मा गांधी व लालबहादुर शास्त्री- दोनों की जयंती एक ही दिन होती है। दोनों में कुछ बातें समान थीं, जैसे- दोनों बेहद सादगी से जीते थे और दोनों स्वयं के प्रति ईमानदार थे। दोनों में एक और बात कॉमन थी कि दोनों की मौत सामान्य नहीं हुई थी, बल्कि दोनों की हत्या हुई थी! इन समानताओं के अलावा उन दोनों में कई असमानताएं भी थीं, मसलन-
1) महात्मा गांधी खुद के लिए सत्ता नहीं चाहते थे, लेकिन लोकतांत्रिक निर्णय को नष्ट कर उन्होंने सरदार पटेल की जगह नेहरू को सत्ता दिलायी, लेकिन वहीं नेहरू की मौत के बाद कामराज योजना में शास्त्री जी को आगे बढ़ाया गया। अर्थात महात्मा गांधी किंग मेकर थे तो शास्त्री जी को दूसरों ने किंग बनाया।
2) आजादी से पहले गांधी और पटेल में इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ था कि आजाद भारत में सेना रखी जाए अथवा नहीं रखी जाए। गांधी सेना रखने के पक्ष में नहीं थे और यही बात उनके मानस पुत्र नेहरू भी कह रहे थे, लेकिन पटेल का कहना था कि एक तरफ आक्रमणकारी पाकिस्तान है तो दूसरी तरफ दुनिया से आंख मिलाकर बात करने के लिए सेना हर हाल में जरूरी है। वहीं शास्त्री जी भी सेना को अपरिहार्य मानते थे। पाकिस्तान ने जब कश्मीर- राजस्थान बॉर्डर पर हमला किया तो शास्त्री जी ने सीधे लाहौर पर हमला करने के लिए सेना को कह दिया। इस मामले में शास्त्री जी पटेल के विचारों के ज्यादा नजदीक थे।
3) शास्त्री जी एक पत्नीव्रत के प्रति ईमानदार थे। वैसे एक पत्नीव्रती गांधी जी भी थे, लेकिन ब्रहमचर्य के प्रयोग को लेकर वो इस हद तक चले गए थे कि नग्न महिलाओं व युवतियों के साथ सोने और साथ नहाने लगे थे। यहां तक कि अपने आखिरी दिनों में वह अपनी पोती मनु गांधी के साथ भी नग्न सोते थे। इसे उन्होंने ‘सत्य के साथ प्रयोग’ कहा, लेकिन उनका तरीका गलत था। क्योंकि वह स्वयं को कर्ता बनाकर तो इसे जायज ठहरा सकते थे, लेकिन उन महिलाओं की मानसिक पीड़ा पर उन्होंने बिल्कुल भी ध्यान नहीं, जिनको उन्होंने अपने ब्रहमचर्य प्रयोग का अस्त्र बनाया था।
उन्होंने अपने कई पत्रों में इसका उल्लेख किया है कि महिलाओं के साथ नग्न सोने में उनका वीर्य स्खलित हो जाता था। वीर्य स्खलन से उत्पन्न अपनी पीड़ा को उन्होंने कभी नहीं छुपाया, उसे ईमानदारी से स्वीकार किया- इसलिए मैं उन्हें ईमानदार कहता हूं, क्योंकि इसे स्वीकारने के लिए बड़ी हिम्मत की जरूरत है, जो आज की आधुनिक पीढ़ी में भी नहीं है। लेकिन उन्होंने उन महिलाओं की तकलीफ पर जरा भी ध्यान नहीं दिया, जिनके साथ सोने के वक्त वह स्खलित हुए थे। सोचिए, उन महिलाओं की मानसिक दशा क्या रही होगी? यह साफ तौर पर स्त्री यौन शोषण का मामला है! और ऐसा भी नहीं है कि इसकी शिकायत किसी ने नहीं की? उनके सचिव प्यारेलाल की पत्नी कंचन ने स्पष्ट कहा, मैं गृहस्थ जीवन जीना चाहती हूं, मुझ पर अपना ब्रहमचर्य न थोपे। गांधी इससे आहत हुए थे।
4) गांधी जी का अहंकार बहुत जल्दी आहत हो जाता था, लेकिन शास्त्री जी के अंदर अहंकार बिल्कुल भी नहीं था। प्यारेलाल की पत्नी कंचन के गर्भवती होने पर गांधी का अहंकार, कस्तूरबा जी के शौचालय साफ करने से मना करने पर उन्हें थप्पड़ मारने का अहंकार, सुभाषचंद्र बोस की जीत को अपनी हार बताने का अहंकार, कस्तूरबा की मूर्ति बनवाने का अहंकार, भगत सिंह आदि की विचारधारा को समाज के लिए घातक मानने का अहंकार, पटेल द्वारा सवाल का जवाब दे देने पर दुखी हो जाने का अहंकार आदि-एक लंबी कड़ी है।
5) शास्त्री जी के जर्जर मकान से लेकर कर्ज लेकर उनके द्वारा कार खरीदने तक में उनकी गरीबी झलकती है और वह थे। लेकिन गांधी जी की पूरी फंडिंग और रहने की व्यवस्था घनश्यामदास बिड़ला करते थे। उनके साबरमती आश्रम का खर्च भी धनपति उठाते थे और गांधी ने जयप्रकाश नारायण को कई बार जलील करने के लिए यह बात कही भी थी कि मुझसे पैसा मांगने क्यों चले आते हो। तुम तो समाजवादी हो और मेरा खर्च धनश्यामदास बिड़ला उठाते हैं। यह दोनों के बीच का फर्क था।
6) भारत विभाजन पर गांधी दुखी थे, लेकिन उन्होंने न तो उस विरोध में अनशन किया, न जेल की यात्रा की और न ही कांग्रेस पार्टी से खुद को अलग करने की ही घोषणा की, लेकिन लालबहादुर शास्त्री ने एक रेलदुर्घटना को भी अपनी जिम्मेवारी माना और रेलमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। फर्क यह कि गांधी ने भारत विभाजन में अपनी जिम्मेवारी स्वीकार नहीं की, लेकिन उसके मुकाबले एक बेहद साधारण घटना में भी शास्त्री जी ने अपनी जिम्मेवारी मानी।
ऐसी कई समानता-असमानता थी, देश के उन दो सपूतों में जिन्हें नियति ने एक ही दिन 2 अक्टूबर को भारत की धरती पर भेजा था। मेरा मकसद किसी का दिल दुखाना नहीं है, लेकिन मैं सच को कहने से झिझकता भी नहीं। जब गांधीजी ने पूरे जीवन सच को नहीं छोड़ा तो उनकी गलतियों कोे ढंकने की कोशिश करने वाले पता नहीं कैसे खुद को गांधीवादी कहते रहते हैं? मुझे आश्चर्य होता है!