किस वृक्ष से द्यावापृथिवी बने?-रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः भुवनपुत्रः विश्वकर्मा । देवता विश्वकर्मा ।। छन्दः स्वराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।।
किस्विद्वनं कऽउस वृक्षऽसियत द्यावापृथिवी निष्टतुक्षुः । मनीषिणो मनसा पृच्छतेदु तद्यध्यतिष्ठद्भुव॑नानि धारयन्॥
-यजु० १७। २०
( किं स्विद् वनं ) कौन सा वन था ( कः उ स वृक्षः आस ) कौन सा वह वृक्ष था, (यतः) जिससे [जगत्स्रष्टाओं ने] ( द्यावापृथिवी ) द्युलोक और भूलोक को (निष्टतक्षुः ) गढ़ा, रचा ? ( मनीषिणः ) हे मनीषिओ ! ( मनसा ) मत लगा। कर ( तत् इत् उ पृच्छत ) इसके विषय में भी पूछो कि ( भुवनानि धारयन्) भुवनों को धारण करनेवाला वह कारीगर ( यत् अधि अतिष्ठत् ) जिसके ऊपर बैठा हुआ था।
जब मैं द्यावापृथिवी पर दृष्टि डालता हूँ, तब आश्चर्यचकित रह जाता हूँ। भूलोक के मिट्टी, घास, वृक्ष-वनस्पति, पर्वतमाला, नदियाँ, समुद्र, जल, वायु, खनिज पदार्थ, वसन्त-ग्रीष्म-वर्षा शरद् आदि ऋतुएँ सबमें किसी की कारीगरी दृष्टिगोचर होती है। भूमि से लगा हुआ ही अन्तरिक्षलोक है, जिसमें पवन, बिजली, बादल, चन्द्रमा आदि की छटा हमें मुग्ध करती है। उससे ऊपर द्युलोक है, जहाँ सूर्य, विविध नक्षत्रपुंज, राशिचक्र, आकाशगङ्गा आदि हमें विस्मित कर देते हैं। |
वेदमन्त्र प्रश्न उठा रहा है कि वह वन कौन-सा था और उसके अन्तर्गत वृक्ष कौन-सा था, जिससे सृष्टि के कारीगर ने द्यावापृथिवी की रचना की ? मन्त्र के उत्तरार्ध में एक प्रश्न और उठाया गया है कि मन की पूर्ण जिज्ञासा के साथ इस यजुर्वेद ज्योति विषय में भी पूछो कि जिस कारीगर ने द्यावापृथिवी आदि भुवनों की रचना की वह जब उन भुवनों को धारण कर रहा था, तब किस स्थान पर स्थित होकर धारण कर रहा था ?
ऋग्वेद में भी यह मन्त्र विश्वकर्मा-सूक्त (ऋक् १०.८१) में आया है। सकल ब्रह्माण्ड का रचयिता और धर्ता विश्वकर्मा परमेश्वर है। उसी के कर्तृत्व से विविध शिल्पकलाओं से परिपूर्ण ये द्यावापृथिवी आदि लोक रचे गये हैं। वह विश्व का निमित्त कारण है। प्रश्न है कि किस उपादान से, किस वन और वक्ष से. उसने लोकों की रचना की है ? इसको उत्तर है। कि ‘प्रकृति’ रूप वन है और उसके महत्, अहंकार, पंचतन्मात्रा आदि वृक्ष हैं, जिससे द्यावापृथिवी आदि भुवनों की रचना हुई है। जीवात्मा दूसरा निमित्त कारण है, जिसके लिए ये सब भुवन रचे गये हैं। दूसरा प्रश्न यह है कि द्यावापृथिवी आदि भुवनों का कारीगर जब उन भुवनों को धारण कर रहा था, तब किस आधार पर स्थित था? यह प्रश्न इस कारण उठा कि हम लोग जब किसी बोझ को अपने कन्धे या सिर पर उठाते हैं, तब आकाश में लटके-लटके नहीं उठाते, अपितु किसी आधार पर स्थित होकर ही उठाते हैं। यही बात विश्व के कारीगर पर भी लागू होनी चाहिए। इसका उत्तर यह है कि आधार पर खड़े होना तो उनके लिए लागू होता है, जो शरीरधारी हैं। विश्व का कारीगर विश्वकर्मी’ जैसे अशरीरी होते हुए विश्व की रचना कर लेता है, ऐसे ही अशरीरी होने के कारण बिना किसी आधार पर स्थित हुए ही विश्व का धारण भी कर लेता है।
पाद टिप्पणी
१. निस्त क्षु तनूकरणे, लिट् ।
किस वृक्ष से द्यावापृथिवी बने?-रामनाथ विद्यालंकार