ऋषिः वैखानसः । देवता वैश्वदेवी वाक् |छन्दः विराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।
वैश्वदेवी पुनती देव्यागाद्यस्यामिमा बढ्यस्तुन्वो वीतपृष्ठाः। तया मर्दन्तः सधमादेषु वयस्याम् पर्तयो रयीणाम् ॥
-यजु० १९ । ४४ |
(वैश्वदेवी ) सब विद्वानों का हित करनेवाली’, ( पुनती ) पवित्रता देती हुई (देवी) ज्ञान से प्रकाशित वेदवाणी (आगात् ) आयी है, ( यस्याम् ) जिसके अन्दर (इमाःबढ्यःतन्व:२) ये बहुत-सी विस्तीर्ण विद्याएँ (वीतपृष्ठाः३) व्याप्त पृष्ठों वाली हैं। (तया) उससे (सधमादेषु ) यज्ञों में ( मदन्तः ) आनन्दित होते हुए (वयं) हम (रयीणांपतयः ) धनों के स्वामी (स्याम) हो जायें।
एक देवी आयी है। वह सब विद्वानों का हितसम्पादन करती है, अपवित्रों को पवित्र करती है। वह बहुत-सी विद्याएँ जानती है। उससे विद्याएँ सीख कर धनवान् हो जाओ। यह देवी है वेदवाणी। यास्काचार्य के अनुसार जो दान करता है, प्रकाशित होता है, प्रकाशित करता है, उसे देव कहते हैं। देवी स्त्रीलिङ्ग है। वेदवाणी ईश्वरभक्ति, सत्य, अहिंसा आदि का दान करने, स्वयं ज्ञान से प्रकाशित होने तथा अन्यों को ज्ञान से प्रकाशित करने के कारण ‘देवी’ है। जो वेदवाणी को सीख कर विद्वान् बनते हैं, उन्हें कर्त्तव्याकर्तव्य का बोध करा कर यह उनका हित सम्पादन करती है और जो पापाचार से अपवित्र होते हैं उन्हें सदाचार में प्रवृत्त करके यह उन्हें पवित्रात्मा बनाती है। इस वेदवाणी के अन्दर बहुत-सी विस्तीर्ण विद्याएँ भरी हुई हैं। इसमें अध्यात्मविद्या, योगविद्या, प्राणविद्या और ब्रह्मविद्या भी है, अग्नि-विद्युत्-सूर्य की आग्नेय विद्या भी है, जलविद्या भी है, वायुविद्या भी है, भूगोलविद्या भी है, नक्षत्रविद्या भी है, गणितविद्या भी है, राजनीतिविद्या भी है, यन्त्रविद्या भी है, युद्धविद्या भी है, वर्णाश्रमविद्या भी है, विमानादियानविद्या भी है, सर्पविद्या भी है, हिरण्यविद्या भी है, आयुर्वेदविद्या भी है, धनुर्वेदविद्या भी है, गन्धर्वविद्या भी है, पुनर्जन्म एवं मुक्ति की विद्या भी है, सृष्टिविद्या भी है, कृषिविद्या एवं पशुपालनविद्या भी है। जिन विद्याओं में जिन्हें रुचि हो, उन्हें ध्येय बनाकर वेदवाणी का अध्ययन, पारायण और अनुसन्धान करें, आधुनिक विज्ञान से उसकी तुलना करें। यदि कोई नवीन तथ्य मिलता है, तो उसे आधुनिक विज्ञान से जोड़े। विभिन्न यज्ञ चलाएँ, उनमें वेदवाणी का प्रयोग करें। सङ्गठन करें, आगे बढ़े, उत्कर्ष प्राप्त करें, प्रत्येक क्षेत्र में विजयी हों, धन कमायें, दान करें, आनन्दित हों, आनन्दित करें।
हे वैश्वदेवी देवी! तू हमें पवित्र कर, धर्मात्मा बना, दीर्घायुष्य दे, सबसे बड़े सम्राट् परमेश्वर का सखा बना। उसके साथ हम हँसे, खेलें, दिव्यता का झूला झूलें, धन्य हों।
पाद-टिप्पणियाँ
१. विश्वेभ्यो देवेभ्यो विद्वद्भ्यो हिता वैश्वदेवी।
२. (तन्वा:) विस्तृतविद्या:-द० ।।
३. वीतानि व्याप्तानि पृष्ठानि यासु ताः ।।
४. सह माद्यन्ति यत्र स सधमादो यज्ञः । सधमादस्थयोश्छन्दसि पा०६.३.९६ से सह को सध आदेश।
एक देवी -रामनाथ विद्यालंकार