ऋषि की ऊँचाईः–
हमें पहले ही पता था कि इतिहास प्रदूषण का उत्तर तो किसी से बन नहीं पड़ेगा। एक-एक बात का उसमें प्रमाण दिया गया है। विरोधी विरोध के लिए मेरे साहित्य में से इतिहास की कोई चूक खोज कर उछालेंगे। मैं तो वैसे ही भूल-चूक सुझाने पर उसके सुधार करने का साहस रखता हूँ। इसमें विवाद व झगड़े का प्रश्न ही क्या है। पता चला कि कुछ भाई ऋषि की ॥द्गद्बद्दद्धह्ल ऊँचाई का प्रश्न उठायेंगे। फिर पता नहीं, पीछे क्यों हट गये। मैंने निश्चय ही ऋषि को एक लबा व्यक्ति लिखा है। ग्रन्थ में यत्र-तत्र इसके प्रमाण भी दिये हैं। आक्षेप करने वाले ऋषि की खड़ाऊँ के आधार पर उनका कद बहुत बड़ा नहीं मानते। प्रश्न जब पहुँच ही गया है, तो एक प्रमाण यहाँ दे देता हूँ।
लाहौर में एक पादरी फोरमैन थे। वह लाहौर में बहुत ऊँचे व्यक्ति माने जाते थे। एक दिन डॉ. रहीम खाँ जी की कोठी से ऋषि जी समाज में व्यायान देने जा रहे थे। उनका ध्यान सामने से आ रहे पादरी फोरमेन पर नहीं गया। पादरी ने ऋषि का अभिवादन किया तो साथ वालों ने उन्हें कहा कि सामने देखो, पादरी जी आपका अभिवादन करते आ रहे हैं। जब पादरी जी पास आये तो मेहता राधाकिशन (ऋषि के जीवनी लेखक) ने देखा कि पादरी जी ऋषि के कंधों तक थे। अब विरोधी का जी चाहे तो मुझे कोस लें। मैं इतिहास को, तथ्यों को और सच्चाई को बदलने वाला कौन? मैं हटावट, मिलावट, बनावट करके मनगढ़न्त हदीसें नहीं गढ़ सकता। ऋषि जी ने स्वयं एक बार अपनी ऊँचाई की चर्चा की थी। वह प्रमाण हमारे विद्वानों की पकड़ में नहीं आया। ऋषि-जीवन की चर्चा करने वालों को वह भी बता दूँगा। प्रमाण बहुत हैं। चिन्ता मत करें।