ऋषिः नारायणः । देवताः सविता । छन्दः गायत्री ।
ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव । य॑ह्म॒द्रन्तन्न॒ऽआ सु॑व ॥
– यजु० ३० । ३ हे ( सवितः ) सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता, समग्र- ऐश्वर्ययुक्त शुभगुणप्रेरक, (देव) तेजस्वी, शुद्धस्वरूप, सब सुखों के दाता परमेश्वर ! आप कृपा करके (नः) हमारे ( विश्वानि ) सम्पूर्ण ( दुरितानि) दुर्गुण, दुर्व्यसन और दुःखों को (परा सुव ) दूर कर दीजिए। (यत्) जो ( भद्रम् ) कल्याणकारक गुण-कर्म-स्वभाव और पदार्थ है, ( तत् ) वह सब, हमको ( आ सुव) प्रदान कीजिए ।
हे जगदीश्वर ! आप सूर्य, चन्द्र, तारावलि, पर्जन्य, पर्वत, निर्झर, सरिता, सागर आदि से परिपूर्ण सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता हो, समग्र ऐश्वर्यों से युक्त हो और हम मानवों के आत्मा में शुभ गुणों की प्रेरणा करनेवाले हो । आप ‘देव’ हो, तेजस्वी हो, तेज प्रदान करनेवाले हो, शुद्धस्वरूप हो और सब सुखों के दाता हो। जो दुर्गुण हमारे अन्दर आ गये हैं, जिन दुर्व्यसनों में हम फँस गये हैं, जिन आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक दुःखों के हम घर हो रहे हैं, उन सबको आप हमारे अन्दर से दूर कर दीजिए । जो भद्र है, कल्याणकारक गुण-कर्म-स्वभाव है और जो कल्याणकारक पदार्थ हैं, वह हमें प्रदान कीजिए ।